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वनों की 1996 की परिभाषा पर लौटने का आदेश सराहनीय, लेकिन नाकाफी: विशेषज्ञ

कार्बन कॉपी, 27 फरवरी सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में सरकार द्वारा वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) में किए गए संशोधनों पर रोक लगाते हुए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वह उसके 1996 में दिए गए आदेश में वर्णित ‘वन’ की परिभाषा का पालन करें। यह पर्यावरण कार्यकर्ताओं और वन में रहने वाले समुदायों के लिए एक बड़ी जीत है। वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में पिछले साल किए गए संशोधनों...

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पारिस्थितिकी तंत्र के लिए वैश्विक खतरा हैं जैव आक्रमण

मोंगाबे हिंदी, 30 जनवरी   आक्रमणकारी प्रजातियों का प्रसार जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं के सामने मौजूद पांच बड़े खतरों में से एक है। ऐसे जानवर, पौधे, कवक और सूक्ष्म जीव जो कि खुद को अपने प्राकृतिक आवास के बाहर ऐसी जगह पर खुद को विकसित करते हैं जहां कि वे स्थानीय जैव विविधता नकारात्मक असर डालते हैं, उनके बारे में उतनी चर्चा नहीं होती है जितनी कि जलवायु परिवर्तन,...

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असमः तेल कुएं में विस्फोट के तीन साल बाद पुराने रूप में लौट रही मगुरी मोटापुंग बील

मोंगाबे हिंदी, 24 जनवरी  असम में 27 मई,  2020 को आर्द्रभूमि मगुरी मोटापुंग बील के पास बागजान में ऑयल इंडिया लिमिटेड के मालिकाना हक वाले तेल क्षेत्र में गैस रिसाव हुआ। इस वजह से 9 जून, 2020 को विस्फोट हुआ। इसे बुझाने में 173 से ज्यादा दिन लगे। विस्फोट से क्षेत्र में प्राकृतिक चीजों को गंभीर नुकसान हुआ। इस विस्फोट के तीन साल बाद  पारिस्थितिकी तंत्र के पुराने रूप में बहाल होने...

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मशीनों से की जा रही अंधाधुंध खेती से संकट में पड़े स्टेपी और लिटिल बस्टर्ड पक्षी

डाउन टू अर्थ, 24 जनवरी  मानवजनित कारणों से लुप्तप्राय स्टेपी-लैंड पक्षी और लिटिल बस्टर्ड को बचाने के लिए वैज्ञानिक, किसान और संरक्षणकर्ताओं के बीच सहयोग महत्वपूर्ण है। प्राकृतिक आवासों में कमी, सिंचाई में वृद्धि और शहरीकरण के कारण सतही क्षेत्र कम हो गए हैं, जो इस कमजोर प्रजाति के अस्तित्व के लिए अहम हैं। जर्नल बायोलॉजिकल कंजर्वेशन में प्रकाशित एक शोध से पता चलता है कि लिटिल बस्टर्ड की सबसे अधिक खतरे...

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खतरे में खाद्य उत्पादन, बढ़ते तापमान से भारत में 73 फीसदी तक घट सकती है किसानों की श्रम उत्पादकता

डाउन टू अर्थ, 22 जनवरी   कहते हैं जब किसान का पसीना धरती पर गिरता है तो दाना उपजता है, जो धरती पर करोड़ों लोगों का पेट भरता है। इसमें शक नहीं की खेती-किसानी बड़ी मेहनत का काम है। इसके लिए किसानो को तपती गर्मी, बारिश और हाड़ गला देने वाली सर्दी की परवाह किए बिना जूझना पड़ता है। लेकिन बढ़ता तापमान देश के इन मेहनतकश किसानों को भी आजमा रहा है। इसका...

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