खास बात साल 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल श्रमशक्ति की तादाद 40 करोड़ है जिसमें 68.37 फीसद पुरुष और 31.63 फीसद महिला कामगार हैं। @ तकरीबन 75.38% फीसद महिला श्रमशक्ति खेती में लगी है। @ एफएओ के आकलन के मुताबिक विश्वस्तर पर होने वाले कुल खाद्यान्न उत्पादन का 50 फीसद महिलायें उपजाती हैं। # साल 1991 की जनगणना के अनुसार 1981 से 1991 तक पुरुष खेतिहरों की संख्या में 11.67 फीसदी की बढोतरी...
More »SEARCH RESULT
नवीनतम एनएफएचएस डेटा: कुल प्रजनन दर में गिरावट की प्रवृत्ति के बीच केरल और तमिलनाडु अपवाद बनकर उभरे!
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण पांचवें दौर (एनएफएचएस-5) के दूसरे चरण के आंकड़े जारी होने के बाद, मीडिया टिप्पणीकारों और विशेषज्ञों ने लिखा है कि भारत के लिए कुल प्रजनन दर (टीएफआर) प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता से नीचे चली गई है. साल 2015-16 में पूरे देश का कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2.2 थी, जो 2019-21 में घटकर 2.0 हो गई है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता तब...
More »पुरुषों की तुलना में महिला नसबंदी प्रक्रिया ज्यादा जटिल लेकिन भारत में इसे ही प्राथमिकता दी जाती है
-द प्रिंट, छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में पिछले हफ्ते 101 महिलाओं की नसबंदी के मामला कुछ ऐसा है जो खुद इस पूरी प्रक्रिया की असली तस्वीर को सामने लाता है. महिला नसबंदी या ट्यूबेक्टॉमी परिवार नियोजन के उपलब्ध तरीकों में सबसे ज्यादा जटिल है. फिर भी भारत में कंडोम, इंट्रायूटराइन डिवाइस (आईयूडी), गर्भनिरोधक गोलियों और पुरुष नसबंदी की तुलना में परिवार नियोजन के इसी तरीके का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है. राष्ट्रीय परिवार...
More »तालाबंदी से खुला अनचाहे गर्भ का रास्ता!
-इंडिया टूडे, मुरादाबाद के हरपाल नगर चौराहे पर होप हॉस्पिटल ऐंड मैटरनिटी सेंटर में डॉ. शाजिया मोनिस ऑपरेशन थिएटर से मुस्कराते हुए निकलती हैं और बताती हैं, ‘‘आज तीन दिन बाद एक डिलिवरी हुई है.'' लॉकडाउन से पहले इस मैटरनिटी सेंटर में हर रोज तीन-चार डिलिवरी होती थी और लगभग इतना ही लीगल एबोर्शन या गर्भपात के मामले होते थे. लेकिन लॉकडाउन के बाद अचानक जच्चा-बच्चा के मामले आने कम हो...
More »स्त्री छवि का उनका खांचा-- मनीषा सिंह
अमेरिका और ब्रिटेन जैसे खुले समाजों वाले देश 'कंटेंट वॉटरशेड टाइमिंग' जैसे तरीके का इस्तेमाल कर यह सुनिश्चित करते हैं कि टीवी पर ऐसी फिल्मों, धारावाहिकों और विज्ञापनों का प्रसारण उस वक्त न हो, जिस वक्त आम तौर पर बच्चे टीवी देख रहे होते हैं। इन विकसित देशों में भी ऐसी पाबंदी के पीछे यह धारणा काम कर रही है कि खुले समाज का अर्थ यह नहीं है कि वयस्क...
More »