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जलवायु संकट: जलवायु रिकॉर्ड का सबसे गर्म वर्ष होगा 2024, वैज्ञानिकों ने जताई 55 फीसदी आशंका

डाउन टू अर्थ, 18 अप्रैल  इस बात की 55 फीसदी आशंका है कि 2024 जलवायु रिकॉर्ड का सबसे गर्म साल होगा। वहीं 2024 के पांच सबसे गर्म वर्षों में शुमार होने की 99 फीसदी आशंका है। यह जानकारी नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) द्वारा जारी नई रिपोर्ट में सामने आई है। गौरतलब है कि कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) के बाद अब एनओएए ने...

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पीटलैंड में छिपे सूक्ष्मजीवों के खाद्य जाल को बदल रहा है जलवायु परिवर्तन

डाउन टू अर्थ, 26 मार्च एक अध्ययन के मुताबिक, पीटलेंड के दलदल भूरे, गीले होते हैं, जलवायु परिवर्तन के खिलाफ मुकाबले में यह एक महाशक्ति बन गए हैं। हजारों वर्षों से, दुनिया के पीटलैंड ने भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित और जमा किया है, इस ग्रीनहाउस गैस को हवा में नहीं बल्कि जमीन में रखा है। हालांकि पीटलैंड धरती पर केवल तीन फीसदी भूमि पर कब्जा किए हुए हैं, वे...

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खतरे में खाद्य उत्पादन, बढ़ते तापमान से भारत में 73 फीसदी तक घट सकती है किसानों की श्रम उत्पादकता

डाउन टू अर्थ, 22 जनवरी   कहते हैं जब किसान का पसीना धरती पर गिरता है तो दाना उपजता है, जो धरती पर करोड़ों लोगों का पेट भरता है। इसमें शक नहीं की खेती-किसानी बड़ी मेहनत का काम है। इसके लिए किसानो को तपती गर्मी, बारिश और हाड़ गला देने वाली सर्दी की परवाह किए बिना जूझना पड़ता है। लेकिन बढ़ता तापमान देश के इन मेहनतकश किसानों को भी आजमा रहा है। इसका...

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कॉप-28: लंबी खींचतान के बाद क्लाइमेट पर नए प्रस्ताव पर सहमति लेकिन नीयत सवालों के घेरे में

कार्बनकॉपी, 14 दिसम्बर  लंबी खींचतान के बाद आखिरकार दुबई वार्ता में एक नए क्लाइमेट प्रस्ताव पर सहमति हो गई लेकिन इसमें जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को खत्म करने या भारी कटौती के लिए प्रावधानों का अभाव है। पिछले दो हफ्ते से संयुक्त अरब अमीरात की मेजबानी में हुए इस सम्मेलन में कई विवाद उठे और जीवाश्म ईंधन, क्लाइमेट फाइनेंस और एडाप्टेशन जैसे मुद्दों पर गहरी चर्चा हुई। हालांकि सम्मेलन के पहले...

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इंसानों के चलते 250 करोड़ एकड़ क्षेत्र में खारी हो रही जमीन, बिगड़ रहा 'नमक चक्र' का संतुलन

डाउन टू अर्थ, 29 नवम्बर  क्या आप जानते हैं कि जो नमक हमारे लिए बेहद जरूरी है उसकी जरूरत से ज्यादा मात्रा पर्यावरण और इंसानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रही है। विडम्बना देखिए कि जिस तरह से पर्यावरण में खारापन बढ़ रहा है उसके लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं। रिसर्च से पता चला है कि इंसानों के कारण दुनिया भर में बढ़ते लवणीकरण से 250 करोड़ एकड़ क्षेत्र में...

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