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सर्दियों में उत्तर और पूर्वी भारत रहे सबसे प्रदूषित, राजस्थान-बिहार के छोटे शहर नए हॉटस्पॉट बने

डाउन टू अर्थ, 21 मार्च जैसे ही सर्दी शुरू हुई, जहरीले वायु प्रदूषण के बढ़ने से एक बार फिर लोगों के स्वास्थ्य पर असर डाला। सितंबर-अक्टूबर में कम बारिश और सर्दी के पूरे मौसम में धीमी हवाओं जैसे मौसम संबंधी कारकों के कारण वायु प्रदूषण में वृद्धि हुई। दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने सर्दियों की वायु गुणवत्ता की समीक्षा के बाद रिपोर्ट जारी की है। जिसमें काफी...

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क्या एम.एस.पी की मांग सिर्फ एक चुनावी नाटक है ?

वर्ष 2020 में केंद्र सरकार ने किसानों से जुड़े मसलों पर तीन कानून बनाएँ। जिसका किसानों ने भारी विरोध किया। दिल्ली की सरहदों पर डेरा डाला। करीब 13 महीनों की रस्सा-कशी के बाद समाधान का रास्ता निकला। केंद्र सरकार ने तीनों कानूनों को निरस्त कर दिया। किसानों ने धरना/आन्दोलन ख़त्म कर दिया। किसान अपने-अपने घरों की ओर लौट गए। करीब दो वर्ष बाद, एक बार फिर किसान दिल्ली की ओर...

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जानलेवा वायु प्रदूषण: यूरोप में सालाना 2.53 लाख मौतों की वजह बना पीएम 2.5

डाउन टू अर्थ, 01 दिसम्बर  भारत ही नहीं बढ़ते वायु प्रदूषण से यूरोप भी त्रस्त है, जो हर साल वहां लाखों जिंदगियों को लील रहा है। यूरोपियन एनवायरनमेंट एजेंसी (ईईए) ने 24 नवंबर 2023 को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि यूरोप में 2021 के दौरान वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा तय मानकों से कहीं ज्यादा दर्ज किया गया। आंकड़ों के अनुसार इस दौरान प्रदूषण के...

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घटते भूजल के कारण राजस्थान के किसानों के लिए सोलर पंप का इस्तेमाल कर पाना हुआ मुश्किल

मोंगाबे हिंदी, 3 नवम्बर  इस साल जून में जैसे ही तापमान बढ़ा, राजस्थान के झुंझुनू जिले के बदनगढ़ गांव में रहने वाले 69 साल के किसान जमन सिंह सैनी की मुसीबतें भी बढ़ने लगीं थीं। वह अपने 31 एकड़ के बाजरा खेत की सिंचाई एक इलेक्ट्रिक पंप से करने की कोशिशों में लगे थे। उनके सामने कई चुनौतियां थीं, मसलन अनियमित बिजली की आपूर्ति, वोल्टेज में उतार-चढ़ाव और उससे जुड़े खर्चे। हालांकि...

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किसान का 'जेंडर' ?

किसानों के ऊपर जब भी बात की जाती है तब उस बातचीत का दायरा इतना संकीर्ण क्यों हो जाता है ? सिर्फ ‘पुरुष’ किसान को ही किसानों का एकमात्र प्रतिनिधि मान लिया जाता है। ऐसा क्यों ? तमाम अखबारों से लेकर टीवी चैनलों के चित्रपटों पर ‘पुरुष’ किसान ही पूरे कृषक समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहा होता है। क्या इस देश की खेती–बाड़ी में महिलाओं का कोई योगदान नहीं है...

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