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राजस्थान की अवांछित बेटियां: लिंग निर्धारण और कन्या भ्रूण हत्या

रूरल वॉयस, 22 मई भारत में कपास के उत्पादन में हाल के वर्षों के दौरान गिरावट आई है। यह गिरावट वर्ष 2015 से लगातार है। इस दौरान उत्पादन सालाना 400 लाख गांठ से घटकर 310 लाख गांठ रह गया है। कीटों का प्रभाव नए सिरे से बढ़ने और विपरीत जलवायु परिस्थितियों के कारण यील्ड नहीं बढ़ रही है। विश्व औसत कपास उत्पादकता 768 किलो प्रति हेक्टेयर है, जबकि भारत का राष्ट्रीय...

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राजस्थान की अवांछित बेटियां: लिंग निर्धारण और कन्या भ्रूण हत्या

इंडियास्पेंड, 19 मई “यहाँ दूसरे या तीसरे बच्चे के रूप में जन्म लेने वाली लड़कियों के लिए बोझा, आनाछी, कचरी, निराशा कुछ लोकप्रिय नाम हैं,” पश्चिमी राज्य राजस्‍थान की राजधानी जयपुर के ग्रामीण इलाके में रहने वाली काचरी बाई कहती हैं। बोझा का अर्थ है बोझ, अनाच्छी का अर्थ है अवांछित या खराब, कचरी का अर्थ है कचरा और निराशा का अर्थ है निराशा। अपनी बहनों रोशनी और रेणु के बाद कचरी...

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उत्तर भारत में लिंगानुपात में दिख रहा सुधार, दक्षिण भारत की स्थिति खराब: प्यू रिसर्च

दिप्रिंट , 24 अगस्त अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर के एक अध्ययन में पाया गया है कि कभी कन्या भ्रूण हत्या के लिए कुख्यात रहे पंजाब और हरियाणा ने जन्म के समय अपने विषम लिंगानुपात को दुरुस्त करने की दिशा में एक लंबा सफर तय कर लिया है. मंगलवार को जारी ‘इंडिया’ज सेक्स रेश्यो एट बर्थ बिगिन टू नोर्मलाइज़ ‘ शीर्षक वाली रिपोर्ट के अनुसार, इन दोनों राज्यों में प्रत्येक 100...

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जेंडर

खास बात   साल 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल श्रमशक्ति की तादाद 40 करोड़ है जिसमें 68.37 फीसद पुरुष और 31.63 फीसद महिला कामगार हैं। @ तकरीबन 75.38%  फीसद महिला श्रमशक्ति खेती में लगी है। @ एफएओ के आकलन के मुताबिक विश्वस्तर पर होने वाले कुल खाद्यान्न उत्पादन का 50 फीसद महिलायें उपजाती हैं। # साल 1991 की जनगणना के अनुसार 1981 से 1991 तक पुरुष खेतिहरों की संख्या में 11.67 फीसदी की बढोतरी...

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जब सोच बदलेगी तो खिलेंगी बेटियां-- रमा गौतम

हमारा समाज बेशक आज मार्डन हो गया है। समाज के लोग यही कहते है कि हमने आज तक बच्चों में कोई फर्क नहीं किया और हमारे लिए तो बेटा-बेटी एक समान हैं। मगर, वास्तविकता कुछ और ही होती है। लड़कों के मामले में हम बहुत खुले विचार रखते हैं। मगर, लड़की की बात आते ही कहीं न कहीं हमारी सोच थोड़ी सिकुड़ जाती है, इसी के चलते सृष्टि को आगे...

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