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विजयगाथा | न बीज खरीदा, न खाद! 3 एकड़ से कमाती हैं 2 लाख रुपए, 3 हजार को जोड़ा रोजगार से
न बीज खरीदा, न खाद! 3 एकड़ से कमाती हैं 2 लाख रुपए, 3 हजार को जोड़ा रोजगार से

न बीज खरीदा, न खाद! 3 एकड़ से कमाती हैं 2 लाख रुपए, 3 हजार को जोड़ा रोजगार से

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published Published on Jul 16, 2021   modified Modified on Jul 16, 2021

-द बेटर इंडिया,

आज हम आपको एक ऐसी महिला की कहानी बताने जा रहे हैं, जो न तो ज्यादा पढ़ी-लिखी हैं, न ही किसी बड़े शहर में रहती हैं। बावजूद इसके, वह अपने गांव और आस-पास के कई गावों की महिलाओं के लिए एक आदर्श हैं। हम बात कर रहे हैं, गुजरात के नर्मदा जिले के सागबारा तालुका की रहनेवाली महिला किसान, उषा वसावा की। 

उषा, आज से 17 साल पहले एक सामान्य गृहिणी थीं। उनके पति दिनेश वसावा एक किसान थे, जो अपनी पांच एकड़ जमीन पर खेती करते थे। लेकिन खेती में खाद, बीज, मज़दूर का खर्च इतना ज़्यादा था कि बड़ी मुश्किल से घर का गुजारा चल पाता था। ऐसे में, उषा ने खेती में कुछ बदलाव लाने का फैसला किया। हालांकि, उन्हें खेती की ज्यादा जानकारी नहीं थी। तभी उन्हें Aga Khan Rural Support Programme (India) के बारे में पता चला। द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बताती हैं, “उस समय घर से निकलना इतना आसान नहीं था। लेकिन मुझे अपनी आर्थिक स्थिति में बदलाव लाना था। इसलिए मैंने 2005 में AKRSPI ज्वाइन किया।”

यह संस्था ग्रामीण और आदिवासी इलाके में लोगों को रोजगार के साधन और सरकारी योजनाओं के लाभ से जोड़ने का काम करती है। 

ट्रेनिंग से आया बदलाव 

उषा बताती हैं, “हमे वहां लीडरशिप, जमीन पर महिला अधिकार और सरकारी नियमों व योजनाओं की जानकारी दी गई। साथ ही, हमें ऑर्गेनिक खेती की तालीम भी मिली।” चूँकि, उस समय बहुत कम लोग ऑर्गेनिक खेती के बारे में जानते थे, इसलिए सभी को लगता था कि इस तरह की खेती से फसल अच्छी नहीं होगी। 

वह बताती हैं कि उस समय हाइब्रिड बीजों और नए रासायनिक खाद का उपयोग ज्यादा किया जा रहा था। लेकिन उन्हें अपनी ट्रेनिंग पर पूरा भरोसा था। वहां उन्हें ट्रेनिंग के दौरान, वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद) बनाना और ऑर्गेनिक कीटनाशक बनाना भी सिखाया गया था। उषा ने अपनी पांच एकड़ जमीन में से, तकरीबन तीन एकड़ में ऑर्गनिक खेती से शुरुआत की। 

उषा बताती हैं, “चूँकि जमीन में पहले से काफी मात्रा में रसायन का उपयोग हुआ था। इसलिए जमीन के प्राकृतिक तत्व कम हो गए थे। यही कारण था कि पहले साल हमें मुनाफा भी कम हुआ। अच्छी फसल के लिए, अच्छी जमीन बहुत जरूरी है। हमने खेतों को धीरे-धीरे वर्मी कम्पोस्ट, गाय के गोबर आदि से तैयार किया। हमने  फिर अगले साल, उसमें सब्जियां, दाल और मुंगफली उगाईं।” 

अब वह हर साल, अपने खेतों में सीजनल सब्जियां, लाल चावल आदि उगाती हैं। उनके बाकि दो एकड़ खेत में कपास की खेती होती है। 

पूरी विजयगाथा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


प्रीति टौंक, https://hindi.thebetterindia.com/74547/gujarats-successful-woman-farmer-usha-vasava/


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