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महिला/जेंडर | 'वोकल फॉर लोकल' का बेहतरीन उदाहरण है नीलगिरी में बसा यह 'टी स्टूडियो', जिसे स्थानीय महिलाएं ही करती हैं संचालित

'वोकल फॉर लोकल' का बेहतरीन उदाहरण है नीलगिरी में बसा यह 'टी स्टूडियो', जिसे स्थानीय महिलाएं ही करती हैं संचालित

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published Published on May 25, 2021   modified Modified on May 26, 2021

-गांव कनेक्शन,

नीलगिरी की चाय के बारे में लिखना थोड़ा मुश्किल है। यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि घुमावदार पहाड़ियों में ये चाय के बागान कैैसे दिखते हैं। हरियाली से ढंके इस इलाक़े में लाल रंग की एक छोटी सी बिल्डिंग बरबस अपनी तरफ़ आकर्षित करती है। लाल रंग की ये बिल्डिंग मुस्कान खन्ना का आकर्षक टी स्टूडियो है, जो तमिलनाडु के नीलगिरी में कट्टाबेट्टू के एक छोटे से गांव टी मनीहट्टी में स्थित है। ये जगह तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से करीब 550 किलोमीटर दूर है। 2018 में स्थापित यह टी स्टूडियो दरअसल दक्षिण भारत के सबसे बड़े चाय उत्पादक जिले नीलगिरी में चाय उत्पादन की एक छोटी सी इकाई है। यहां चार तरह की ब्लैक टी, छह तरह की ग्रीन टी, तीन तरह की व्हाइट टी और दो तरह के ओलोंग टी का उत्पादन होता है। ये सभी उत्पादन सेमी हैंड क्राफ़्टड हैं और ग्राहकों की सुविधानुसार इन्हें बनाया जाता है। बाहर के ठंड के विपरीत गरम चाय की भीनी खुशबू माहौल को गरम बनाए रखती है।

इस टी स्टूडियो की सबसे विशेष बात यह है कि यहां की सभी कर्मचारी महिलाएं हैं, जो पड़ोस के ही गांव में रहती हैं। जबकि इस टी स्टूडियो की मालकिन मुस्कान खन्ना 20 किलोमीटर दूर कुन्नूर में रहती हैं। इस तरह यह 'लोकल फॉर वोकल' का एक बेहतरीन उदाहरण है, जो स्थानीय लोगों को रोज़गार देता है। यह शायद देश की एकमात्र चाय उत्पादन इकाई है जो चाय की पत्तियों के सुखाने, भूनने और उसे प्रोसेस, प्रसंस्कृत करने के लिए एलपीजी का उपयोग करती है, ताकि पर्यावरण का भी संरक्षण किया जा सके। आपको बता दें कि अधिकांश चाय बनाने वाली फैक्ट्रियां, चाय उत्पादन में कोयला या लकड़ी का उपयोग करती हैं। फैक्ट्री के लिए चाय की पत्तियां टी स्टूडियो के चारों ओर स्थित बागानों से आती हैं। यह आम तौर पर स्थानीय चाय उत्पादकों की होती हैं, जिनके पास आधा एकड़ (0.2 हेक्टेयर) से लेकर चार एकड़ (लगभग 1.5 हेक्टेयर) तक ज़मीन है। ये उत्पादक प्रमुख रूप से 'बड़गा समुदाय' से हैं। वे फैक्ट्री में अपनी चाय की पत्तियां लाते हैं, मुस्कान खन्ना उनको चेक करती हैं और यदि वे गुणवत्ता में पास होती हैं, तो मुस्कान उन्हें तुरंत ख़रीद लेती हैं। इन चाय उत्पादकों में से कई फैक्ट्री में ही कार्यरत महिलाओं के पति हैं।

मुस्कान हर महीने लगभग 2,000 किलो चाय की पत्तियां ख़रीदती है। ये चाय की पत्तियां पूरी तरह से जैविक होती हैं। "परंपरागत रूप से इन छोटे उत्पादकों ने कभी भी रसायनों या उर्वरकों का उपयोग नहीं किया है। वे गोबर की खाद का उपयोग चाय के उत्पादन में करते हैं। हालांकि इन्हें अभी तक जैविक होने का प्रमाण पत्र नहीं मिला है," मुस्कान खन्ना ने बताया। मुस्कान इन चाय उत्पादकों से लेन-देन का काम अपनी कर्मचारी वैधेगी की सहायता से करती है, जो चाय उत्पादकों के स्थानीय बड़गा भाषा का अनुवाद अंग्रेजी में करती हैं। ताजी हरी चाय की पत्तियों के ढेर की पहले जांच की जाती है, उत्पादकों से कुछ सवाल पूछे जाते हैं और फिर अंतिम रूप से सौदा मंज़ूर कर लिया जाता है। 'टी स्टूडियो' एक साफ-सुथरी जगह पर बना है, जहां पर भरपूर रोशनी और हवा का इंतज़ाम है। स्टूडियो की चमकदार मशीनें जब चलती हैं, तब 'हम्म', भनभनाहट और गड़गड़ाहट की मीठी आवाज़, कानों को सुकून देती हैं। इस 'टी स्टूडियो' में केवल महिला कारीगरों की मदद से चाय बनती है, चाय उत्पादन की प्रक्रिया में कर्मचारियों का नाज़ुक स्पर्श बहुत जरूरी होता है। गेट पर बाहर बैठी अकेली महिला कर्मचारी चाय की पत्तियों की बहुत ध्यान से हाथ से ही छंटाई करती है। ये चाय की पत्तियां बहुत नाज़ुक होती हैं और इस फैक्ट्री में कोई छंटाई मशीन नहीं है जैसे कि सभी चाय के प्लांट्स में होती हैं। इसलिए महिलाएं ही हाथ से छंटाई करती हैं। चाय उत्पादन की यह फैक्ट्री बहुत छोटी है और इसमें बहुत ही सीमित उत्पादन होता है। इस फैक्ट्री में सिर्फ एक ही शिफ्ट चलती है, जिसमें काम के घंटे और समय का निर्णय महिलाओं के सुविधा के अनुसार ही तय होता है।

पारंपरिक रूप से पुरुष प्रधान इस उद्योग में महिलाओं को अपना तालमेल बिठाने में कुछ समय ज़रूर लगा। फैक्ट्री की कर्मचारी वैधेगी ने बताया कि उन्हें भी इस जॉब में एडजस्ट करने में थोड़ा समय लगा था। इस फैक्ट्री की पांच कर्मचारी- चित्रा, शर्मिला, संध्या, कलिवानी और कुंजम्मा दिहाड़ी कामगार हैं और उन्हें प्रति दिन के काम के बदले 320 रुपया मिलता है। वे सप्ताह में छह दिन काम करती हैं। जबकि प्रमुख 'चाय निर्माता' वैधेगी प्रति माह 13,000 रुपये कमाती हैं। इस फैक्ट्री की एकाउंटेंट ऐश्वर्या का वेतन प्रति माह 12,000 रुपये है। इन सभी कर्मचारियों की उम्र 23 से 48 साल के बीच है। इनमें से कुछ अविवाहित लड़कियाँ हैं, जबकि कुछ घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं हैं। फैक्ट्री की ऊपरी मंज़िल बहुत ही सुंदर है, जहां खिड़कियों से चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ चाय के बागान ही दिखते हैं। एक काउंटर पर फैक्ट्री में बनने वाली अलग-अलग तरह की चाय सजाई गई हैं, जो कि गहरे लाल रंग से लेकर पीले रंग के हैं।

पूरी विजयगाथा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


पंकजा श्रीवासन, https://www.gaonconnection.com/read/the-perfect-brew-the-all-women-tea-studio-in-the-nilgiris-is-a-perfect-example-of-the-local-going-global-48621


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