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चर्चा में.... | बजट : जीडीपी का एक फीसद से भी कम खर्च हुआ है कृषि और ग्रामीण विकास पर
बजट  : जीडीपी का एक फीसद से भी कम खर्च हुआ है कृषि और ग्रामीण विकास पर

बजट : जीडीपी का एक फीसद से भी कम खर्च हुआ है कृषि और ग्रामीण विकास पर

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published Published on Jan 28, 2018   modified Modified on Jan 28, 2018
खेती-किसानी और ग्रामीण विकास पर सरकार कितना खर्च करती है- क्या बजट से पहले यह सवाल आपको अहम जान पड़ता है ? सवाल का एक उत्तर मिल सकता है देश महत्वपूर्ण मंत्रालयों के वास्तविक खर्च के आंकड़ों से. अनुमान लगाइए कि बीते छह सालों में कृषि मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय का वास्तविक व्यय कितना रहा होगा ?


इन्क्लूसिव मीडिया फॉर चेंज टीम का शरुआती आकलन है कि इन दोनों मंत्रालयों ने बीते छह सालों में देश की जीडीपी का 1 प्रतिशत से भी कम हिस्सा खर्च किया है.(खर्च की तालिका देखने के लिए यहां क्लिक करें).इन्क्लूसिव मीडिया फॉर चेंज के इस आकलन की पुष्टी सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायर्नमेंट के एक अध्ययन से भी होती है.


डाऊन टू अर्थ पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक कृषि मंत्रालय ने 2012-13 में 29655 करोड़ तथा 2013-14 में 31479 करोड़ रुपये खर्च(ब्याज में दी गई छूट समेत) किए. यह जीडीपी का क्रमश 0.30 तथा 0.28 प्रतिशत है. इसी तरह, साल 2014-15 और 2015-16 में 31917 तथा 35092 करोड़ रुपये मंत्रालय ने खर्च किए जो इन दोनों ही वित्तवर्षों के लिए जीडीपी का 0.26 प्रतिशत है. डाऊन टू अर्थ में प्रकाशिक रिपोर्ट के मुताबिक 2016-17 की तुलना में 2017-18 में कृषि-मंत्रालय के बजट में मात्र 3053 हजार करोड़ का इजाफा(4807 करोड़ से बढ़कर 51026 करोड़) हुआ लेकिन यह देश की कुल जीडीपी का मात्र 0.30 प्रतिशत है.


सरसरी नजर से देखें तो जान पड़ेगा कि कृषि, सहयोग एवं कृषक कल्याण विभाग का वास्तविक खर्च 2015-16 की तुलना में 2016-17 में बढ़ा है. साल 2015-16 में इस विभाग का खर्च 15,296.04 करोड़ रुपये का था जो साल 2016-17 में बढ़कर 39,840.5 करोड़ रुपये हो गया( आकलन रिवाइज्ड एस्टीमेट पर आधारित है, देखें तालिका). लेकिन कई अर्थशास्त्रियों ने ध्यान दिलाया है कि बढ़ा हुआ खर्च आंकड़ों को एक खाते से उठाकर दूसरे खाते में दर्ज करने की चतुराई का नतीजा है.
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक किसानों को छोटी अवधि के ऋण पर दी जाने वाली सब्सिडी के मद का खर्चा पहले पहले वित्त-मंत्रालय के वित्तीय सेवा प्रभाग के डिमांड फॉर ग्रांट के मद में दर्ज किया जाता था लेकिन 2016-17 में यह खर्चा कृषि मंत्रालय के कृषि, सहयोग एवं कृषक कल्याण विभाग के अंतर्गत दिखाया गया.


अगर किसानों को छोटी अवधि के ऋण के मद में दी गई छूट की राशि को विभाग के कुल व्यय से घटा दिया जाय तो कृषि मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय का कुल खर्च साल 2016-17 के लिए जीडीपी का 0.96 प्रतिशत ना रहकर 0.87 प्रतिशत हो जाता है. इसी तरह किसानों को छोटी अवधि के लिए दिए गए कर्ज के ब्याज में दी गई छूट की राशि को घटाने पर साल 2017-18 के लिए दोनों मंत्रालय का खर्च जीडीपी के 0.95 प्रतिशत से घटकर 0.86 प्रतिशत पर चला आता है.

 

वैसे उम्मीद लगायी जा सकती है कि इस साल 1 फरवरी के दिन जब 2018-19 के लिए बजट पेश किया जायेगा तो कृषि मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय के बजट आबंटन को बढ़ा हुआ दिखाने के लिए आंकड़ों की ऐसी बाजीगरी नहीं की जायेगी.

 

कृषि मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय के खर्च की सालाना वृद्धि दर 2016-17 से 2017-18 के बीच 30.9 प्रतिशत से घटकर 8.8 प्रतिशत पर आ गई है. तालिका-1 से यह तथ्य स्पष्ट है.

 

वित्तमंत्री ने हाल में कहा था कि अगर वृद्धि दर का फायदा किसानों को नहीं होता तो इसे उचित नहीं कहा जा सकता. वित्तमंत्री के ऐसा कहने से अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल के बजट में खेती-किसान और ग्रामीण विकास को वरीयता दी जायेगी क्योंकि कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव होने वाले हैं. विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि 2018-19 का बजट मौजूदा एनडीए सरकार का आखिरी पूर्ण बजट होगा इसलिए देश के कई क्षेत्रों मे हाल में हुए उग्र किसान आंदोलनों के मद्देनजर सरकार कृषि-क्षेत्र में आबंटन को प्राथमिकता दे सकती है. गौरतलब है कि हाल के गुजरात चुनावों में सत्ताधारी बीजेपी को ग्रामीण क्षेत्रों में अपेक्षा के अनुरुप चुनावी कामयाबी हासिल नहीं हुई.


किसान फिलहाल चौतरफा समस्याओं से घिरे हैं. खेती की लागत बढ़ने के साथ-साथ उनकी एक मुख्य समस्या है कि लागत के अनुरुप उपज का मूल्य नही मिलता. मौसम की मार के कारण फसल नष्ट होती है तो इसके घाटे से उबार के लिए कोई कारगर बीमा-योजना नहीं है. साथ ही, देश में कर्जदारी की स्थिति के बीच किसान आत्महत्याओं का सिलसिला अभी थमने का नाम नहीं ले रहा है.


बताते चलें कि हाल में एक स्वयंसेवी संस्था की रिपोर्ट में कहा गया कि ग्रामीण इलाकों के किशोर किसानी को आकर्षक पेशा नहीं मानते. एनुअल स्टेटस् ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2017 के तथ्यों के मुताबिक केवल 1.2 फीसद ग्रामीण किशोर( 14-18 वर्ष की आयु) खेती-किसानी का कम करना चाहते हैं. बियोन्ड बेसिक नामक इस रिपोर्ट को देखने के लिए यहां क्लिक करें.



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