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भूख | सार्वजनिक वितरण प्रणाली
सार्वजनिक वितरण प्रणाली

सार्वजनिक वितरण प्रणाली

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ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दस्तावेज के अनुसार-
http://planningcommission.gov.in/plans/planrel/fiveyr/11th
/11_v2/11v2_ch4.pdf

  • समाज के सभी वर्गों के लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिहाज से पीडीएस सरकार द्वारा चलायी जा रही सबसे बड़ी योजना है। पीडीएस के अन्तर्गत चलायी जा रही उचित मूल्य की राशन दुकानों की संख्या देश में ४ लाख ८९ हजार है।
  • पीडीएस के अन्तर्गत भारतीय खाद्य निगम के मुख्य वितरण केंद्र तक खाद्यान्न को पहुंचाने और उसके उपार्जन का जिम्मा केंद्र सरकार का है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों की पहचान करना, राशन कार्ड के वितरण की व्यवस्था करना तथा समाज के कमजोर तबकों को उचित मूल्य की दुकानों के जरिए खाद्यान्न मुहैया कराने का जिम्मा राज्य सरकारों का है। पीडीएस समाज के कमजोर तबकों को खाद्यान्न मुहैया कराने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है। अगर पी़डीएस इस काम में सफल रहता तो पिछले दो दशकों से खाद्यान्न के उपभोग में लगातार कमी नहीं आ रही होती।
  • पीडीएस के कामकाज में सुधार करने के लिए जून १९९७ में उसे टीपीडीएस (टारगेटेड पब्लिक डिस्ट्रब्यूशन ) का रुप दिया गया । टीपीडीएस का लक्ष्य गरीब परिवारों की पहचान करना और उन्हें तयशुदा खाद्यन्न अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराना है । टीडीपीएस के अन्तर्गत निर्धनतर और निर्धनतम परिवारों को अत्यंत अनुदानित मूल्य पर खाद्यान्न मुहैया कराया जाता है। गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले परिवारों को भी टीडीपीएस में खाद्यान्न मुहैया कराया जाता है लेकिन इसके मूल्य पर अनुदान कम होता है। टीडीपीएस के अन्तर्गत अंत्योदय कार्डधारी परिवारों को पहले १० किलो ग्राम अनाज प्रति महीने दिया गया फिर अप्रैल २००२ से इसे बढ़ाकर ३५ किलोग्राम अनाज प्रति महीना कर दिया गया।
  • अलग-अलग अध्ययनों से पता चलता है कि टीडीपीएस में कुछ खामियां है, मसलन- निर्धनतम परिवारों की पहचान ठीक तरीके नहीं हो पायी है, उचित मूल्य की दुकानें कारगर नहीं है, खाद्यान्न के दामों में स्थिरता नहीं लायी जा सकी है और टीडीपीएस के अन्तर्गत मुहैया कराये जाने वाले खाद्यान्न को लाभार्थियों तक पहुंचाने के क्रम में उसका एक हिस्सा दूसरे हाथों में चला जाता है।

 

 

कितना कारगर रहा है टीडीपीएस ?

 

 

  • केवल २२.७ फीसदी उचित मूल्य की दुकानें कुल लागत पूंजी पर १२ फीसदी लौटा पाने में सफल हो पा रही हैं ।
  • हिमाचल प्रदेश,तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल को छोड़ दें तो गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों द्वारा टीडीपीएस के तहत लिए जाने वाले खाद्यान्न की मात्रा नगण्य है। .
  • पश्चिम बंगाल, केरल, हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु में बीपीएल कार्डधारियों की टीडीपीएस पर निर्भरता अधिक है। 
  • सर्व-सुलभ पीडीएस की तुलना में टीडीपीएस पर गरीबों की निर्भरता अपेक्षाकृत ज्यादा है।
  • टीडीपीएस के अन्तर्गत कार्ड का वितरण उचित रीति से नहीं हो सका है। झूठहा कार्ड बनाने की घटनाएं आम हैं।
  • गरीब परिवारों की पहचान ठीक तरह से ना हो पाने के कारण बड़ी संख्या में गरीब परिवार टीडीपीएस से बाहर रह गए हैं आकलन के मुताबिक सिर्फ ५७ फीसदी गरीब परिवारों को टीडीपीएस की सुरक्षा हासिल हो पायी है।
  • आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में गरीब परिवारों की पहचान में गड़बड़ी की घटनाएं ज्यादा हुई हैं। इसका मतलब यह हुआ कि इन राज्यों में गरीबी रेखा से ऊपर आने वाले कुछ लोगों को टीडीपीएस के तहत अनुदानित मूल्य पर राशन मुहैया कराया जा रहा है।
  • टीडीपीएस के तहत मुहैया कराये जा रहे राशन की सम्पूर्ण मात्रा उसके लक्षित ग्राहक तक नहीं पहुंच पाते, कुछ बीच में ही दूसरे हाथों में चली जाती है। अलग अलग प्रांतो में इस घटना के प्रतिशत में अन्तर है। बिहार और पंजाब में टीडीपीएस की ७५ फीसदी सामग्री दूसरे हाथों में जाती है तो हरियाणा और  उत्तरप्रदेश में ५० से ७५ फीसदी। 
  • अवांछित हाथों में टीडीपीएस का खाद्यान्न पहुंचने का मतलब है कि जो बीपीएल परिवार इसके असली हकदार हैं उन्हें टीडीपीएस के अन्तर्गत अनुदानित मूल्य पर वांछित मात्रा से कहीं कम खाद्यान्न हासिल हो रहा है। अनुमान के मुताबिक साल २००३-०४ में बीपीएल परिवारों के लिए केंद्रीय कोटे से एख करोड़ एकतालिस लाख टन खाद्यान्न भेजा गया लेकिन बीपीएल परिवारों के हाथ आया केवल ६१ लाख टन जबकि ८० लाख टन अनाज लक्षित ग्राहकों के हाथ में नहीं पहुंचा।
  • अनाज के गलत हाथों में जाने के कारण सरकार को वांछित मात्रा मुहैया कराने में ज्यादा खर्च करना पड़ता है।गरीब परिवारों को एक किलाग्राम अनाज मुहैया कराने के लिए केंद्रीय कोष से सरकार को २.३२ किलोग्राम अनाज देना पड़ा।
  • साल २००३-०४ में टीडीपीएस के तहत ७२५८ करोड़ रुपयों का अनुदान दिया गया लेकिन महज ४१२३ करोड़ रुपये का ही अनुदान बीपीएल परिवारों के हाथ आया। बाकी रकम का अनुदान ग्राहक तक ना पहुंच कर आपूर्ति-तंत्र से जुड़ी विभिन्न एजेंसियों के बीच बंट गया।


Rural Expert
 

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