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साक्षात्कार | ओमिक्रॉन: 'पहली बार एक नए गेंदबाज का सामना करने जैसा है'
ओमिक्रॉन: 'पहली बार एक नए गेंदबाज का सामना करने जैसा है'

ओमिक्रॉन: 'पहली बार एक नए गेंदबाज का सामना करने जैसा है'

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published Published on Feb 10, 2022   modified Modified on Feb 23, 2022

-इंडियास्पेंड,

दक्षिण अफ्रीका में सार्स-कोविड-2 का एक नया वेरिएंट भारत समेत दुनिया के दो दर्जन से अधिक देशों में फैल चुका है। नाम है इसका ओमीक्रॉन। ओमीक्रॉन न सिर्फ पब्लिक हेल्थ सेक्टर में, बल्कि दुनियाभर के फाइनेंशियल सेक्टर में भी सुर्खियों में है। दुनियाभर की सरकारों में भी इस बात को लेकर चिंता पैदा हो रही है कि आने वाले वक्त में यह किस तरह से अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा। ऐसे में सवाल कई हैं। आखिर हम इतनी प्रतिकूल प्रतिक्रिया क्यों दे रहे हैं? पहले के वेरिएंट और म्यूटेशन को लेकर हम इतना भयभीत क्यों है? यह किस तरह से हमारी भविष्य की प्रतिक्रिया को जान ले रहा रहा है? दूसरा, हममें से कई सारे लोगों को टीका लग चुका है, भले ही उस स्तर का नहीं जैसा हमें चाहिए था लेकिन ये टीके कितने कारगर हैं? भारत जैसे बड़े देशों में पब्लिक हेल्थ और पब्लिक पॉलिसी अपनी सोच को किस तरह से आकार दे रहा है, आदि मसलों को अच्छी तरह से समझने के लिए हमने पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के. श्रीनाथ रेड्डी से लंबी बात की।

डॉ. रेड्डी हार्वर्ड टी एच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में महामारी विज्ञान के सहायक प्रोफेसर हैं। इसके अलावा डॉ. रेड्डी वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन के अध्यक्ष और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख भी रहे हैं।

सम्पादित अंश:

ऐसा क्यों है कि हम इस नए वेरिएंट की खोज के साथ ही भयभीत हो गए हैं?

मुझे ऐसा लगता है कि डर और भय इसलिए है क्योंकि यह वेरिएंट कई स्पाइक प्रोटीन म्यूटेशन्स होने के लिए जाना जाता है, जो इसे पिछले वेरिएंट की तुलना में बहुत अधिक संक्रामक बना रहा है। एक हद तक हम इसका सामना कर भी चुके हैं जिसमें डेल्टा वेरिएंट भी शामिल है। दूसरी चिंता इस बात को लेकर है कि हमने जो वैक्सीन बनाई वह मुख्य रूप से स्पाइक प्रोटीन को खत्म करने की क्षमता वाला है लेकिन अब जबकि इसने आकार बदल लिया है जिसमें मल्टी स्पाइक प्रोटीन म्यूटेशन्स है तो इसमें मौजूदा टीकों के बहुत प्रभावी होने की संभावना नहीं है। और एंटीबॉडी जो स्पाइक प्रोटीन-केंद्रित टीकों द्वारा बनाए गए हैं, वे उस स्पाइक प्रोटीन को न तो पहचान सकते हैं और न ही मनुष्य की कोशिकाओं में प्रवेश करने से पहले इसे रक्तप्रवाह में ही रोक सकते हैं। ये दो प्रमुख चिंताएं हैं। तीसरी प्रमुख बात जिसका हम सबको ध्यान रखना चाहिए कि क्या यह पहले से अधिक जानलेवा स्ट्रेन तो नहीं है जो एक और गंभीर महामारी को पैदा करेगा, डेल्टा जैसा, डेल्टा से भी अधिक या डेल्टा से कम खतरनाक? और इतना ही नहीं, शरीर की इम्यूनिटी के मद्देनजर नए स्ट्रेन का मुकाबला करने के लिए हमें कोशिश करनी होगी, अंतर करना होगा कि प्राकृतिक संक्रमण के लिए क्या कुछ हासिल किया गया होगा -- जहां सारे वायरस ने वैक्सीन के विरुद्ध हमारी इम्यून सिस्टम की पोल खोलकर रख दी हो, सैद्धांतिक तौर पर शरीर की इम्यून सिस्टम के साथ स्पाइक प्रोटीन को किस तरह से प्रदर्शित किया गया होगा? तो ये कुछ अनसुलझे मसले हैं।

चिंता इसलिए है क्योंकि यह संक्रामक है, क्योंकि यह पूरे हेल्थ सिस्टम को कमजोर करता है। यहां तक ​​​​कि अगर यह अपेक्षाकृत कमजोर स्ट्रेन है, कम मरीज होने के बावजूद टेस्टिंग, ट्रेसिंग, क्वारेन्टाइन, आइसोलेटिंग आदि में बहुत सारे संसाधन खर्च करने होंगे। इसका मतलब यह है कि आर्थिक और सामाजिक रूप से हमने हालात को सामान्य करने की दिशा में जो प्रयास किये थे वह फिर से बाधित होने वाला है। साथ ही संक्रमण की गंभीरता और टीके की प्रभावशीलता को लेकर जिस तरह की बात सामने आ रही है, लोग ज्यादा ही परेशान हो रहे हैं।

हमने पिछले 18 महीनों में कई वेरिएंट और म्यूटेशन्स देखे हैं। क्या उनमें से कुछ अधिक नहीं तो समान रूप से भी संक्रामक नहीं थेडेल्टा अपने आप में काफी संक्रामक वेरिएंट था। तो क्या यह अधिक लोगों में तेजी से फैलने के अलावा भी कुछ बुनियादी बदलाव कर पाया?

अभी यह बताना बहुत मुश्किल होगा क्योंकि संख्या अभी कम है, लेकिन सीमित संख्या के आधार पर अगर आप देखें कि दक्षिण अफ्रीका और बोत्सवाना में क्या अनुभव रहा है, यूरोप में, नीदरलैंड में अब तक के क्या अनुभव रहे हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि वास्तव में वायरस के संचरण की गति बहुत अधिक है। हमने न केवल दक्षिण अफ्रीका के गौतेंग प्रांत में, बल्कि प्रिटोरिया में सीवरेज के नमूनों में भी देखा है, जहां यह बहुत अधिक फैला है। यहां तक कि यूरोप में भी हम देख रहे हैं कि लोगों के संक्रमित होने के कई मामले अभी भी सामने आ रहे हैं। तो चिंता यह है कि यह अधिक संक्रामक है, क्योंकि यदि स्पाइक प्रोटीन म्यूटेशन्स अधिक हैं, जो पहले रक्त में मौजूद कुछ एंटीबॉडी से बच सकते हैं, और अधिक स्पाइक प्रोटीन खुद को मानव कोशिकाओं के एसीइ रिसेप्टर से जोड़ सकते हैं, वे आसानी से मानव कोशिकाओं को खोलकर तहस-नहस कर सकते हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे सबूत भी हैं कि गले में इसके फैलाव की मात्रा बहुत अधिक है, जो बहुत तेजी से खुद को विस्तार देती है। तो ये सभी चीजें अधिक संक्रामकता की ओर इशारा कर रहे हैं। जरूरी नहीं कि यह अधिक नुकसान पहुंचाने वाला ही हो, लेकिन यह अब चिंता का विषय है।

तो क्या हम इस नए वायरस को धारणा के आधार पर या फिर सार्स कोविड-2 के वेरिएशन के तौर पर ही मानें?

ये एक वेरिएंट ही है, क्योंकि हम जानते हैं कि वायरस म्यूटेट करेगा। ये उसकी प्रकृति है। और ऐसा इसलिए भी क्योंकि इस धरती पर मौजूद रहने के लिए वो एक प्रजाति या स्ट्रेन के तौर पर खुद को ढाल लेते हैं। इसके पीछे विकासवादी जीव विज्ञान है। शुरुआत में वो प्रवेश करते हैं फिर संक्रमित करने के साथ ही विषैले होने लगते हैं। ऐसा इसलिए भी क्योंकि धरती पर इंसान और जानवर के रूप में उनके पास कई होस्ट हैं। ताजा मामला इंसानों को होस्ट बनाने का है। लेकिन समय के साथ जब इंसान अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है, या फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करने लगता है, मास्क लगाने लगता है और अन्य तरीकों से उसका सामना करता है या फिर वैक्सीन लगवा लेता है तो वायरस के लिए निकल भागने का आसान तरीका नहीं रह जाता। ऐसे में या तो वो खुद ही अपनी मौत मर जाता है या फिर समय के साथ ढल जाता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि एक होस्ट को ये ज्यादा देर तक परेशान नहीं कर सकता। इसलिए ये कम घातक और ज्यादा संक्रामक हो जाता है। तो कह सकते हैं कि इस नए वेरिएंट का उभरना विकासवादी जीव विज्ञान का ही हिस्सा है। लेकिन ये एक काल्पनिक बात है। हमें किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इसे और विस्तार से समझने की जरूरत है। या फिर हमें समझना होगा कि क्या कुछ और ऐसे चरण हैं जिस पर चलकर हम जान पाएं कि यह वायरस उस स्थिति में पहुंच गया है कि हम में से किसी को भी जान से मारे बगैर कुछ को संक्रमित कर हमारे साथ हमारे बीच रह पाए।

कई हेल्थ एक्सपर्ट इसके खात्मे की बात कहते हैं। कहा जा रहा है कि वायरस एक स्थान विशेष तक सीमित होकर रह गया है। तो क्या समझा जाए कि अब हम अपने चरणों को या अपनी परिभाषा को फिर से तलाश रहे हैं?

हां, ये मुमकिन है। क्योंकि यह वायरस अपना आकार बदल रहा है, और हममें से कईयों में ये अंत के संकेत दे रहा है। ये खुद को बदलती परिस्थितियों के अनुकूल बना रहा है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि वैक्सीन से मिली प्रतिरोधक क्षमता, पुराने संक्रमित लोग जिनकी प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है और लोगों का मास्क इसके लिए चुनौती है। निकल भागने का इसके पास रास्ता नहीं है इसलिए ये खुद को परिस्थिति के अनुकूल बदल रहा है। ये हमारे बीच है और खात्मे की ओर है, लेकिन ये भी समझ लें कि किसी एक स्ट्रेन का अंत पूरी तरह से नहीं होगा। अगर हम वायरस को संकलित तौर पर देखें तो हम कह सकते हैं हां ये हमारे साथ रह रहा है। लेकिन हमारे साथ रहने के लिए ये लगातार अपनी प्रकृति को बदल रहा है, ऐसा इसलिए भी कि ये ज्यादा संक्रामक हो सके और साथ ही हमारे बीच अपना अस्तित्व बनाए रखे।

अच्छे परिदृश्य में बात करें तो पूर्व में जिस तरह ये वायरस फैला है उसमें अब क्या हो सकता हैऔर अगर हालात बदतर हुए जिसमें ये टीके से मिली सुरक्षा को भी चकमा दे जाएं तब क्या स्थिति होगी?

बेहतरीन परिदृश्य यही है कि ये वायरस अब कम विषैला या घातक होने के साथ ही ज्यादा संक्रामक होने का संकेत दे रहा है। इसका मतलब ये है कि अब ये कम हानिकारक होगा या फिर सामान्य सर्दी-जुकाम के वायरस की तरह होगा। मैं ये नहीं कह रहा कि ऐसा हो गया है लेकिन ये उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है। सो अगर ऐसी स्थिति बनी रहती है और आगे चलकर ये ज्यादा संक्रामक या कम घातक रहता है तो हम जीवित क्षीण विषाणु टीके की ओर बढ़ जाएंगे। अगर इससे हम संक्रमित भी होते हैं तो हमारी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी और हमें कुछ बेचैनी भी होगी लेकिन घातक रोग नहीं होगा। इस तरह से ही इसके खात्मे का बेहतरीन परिदृश्य होगा। लेकिन अगर ये बेहद खराब परिदृश्य होगा, अगर इसने संक्रामकता में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि की। अगर यह वैक्सीन और प्राकृतिक संक्रमण की प्रतिरोधक क्षमता को चकमा देने में सफल रहा या फिर प्रतिरोधक क्षमता से बच निकलता है और डेल्टा वेरिएंट से ज्यादा विषैला है तो निस्संदेह हम बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाएंगे।

अभी हमारे पास बेहद सीमित आंकड़े हैं ऐसे में भारत के संदर्भ में आपको क्या लगता है कि ओमीक्रॉन हमें कितना प्रभावित करेगा?

अब जबकि ओमीक्रॉन ने भारत में भी एंट्री ले ली है, इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि मौका मिलने पर ये बेहतरीन अवरोधों को हटा कर फैल जाए। अभी तो हम बस लोगों से यही गुजारिश कर सकते हैं कि वो मास्क लगाकर खुद को बचाएं, शारीरिक दूरी का पालन करें, स्वच्छता का ख्याल रखें और भीड़-भाड़ वाले इलाकों की अपेक्षा खुली जगह में विचरण करें। ताकि, डेल्टा की तरह हम इस वेरिएंट को अपने भीतर घुसने का अवसर न प्रदान करें। हमने एक तरह से खुद को बर्बाद करने का खुला निमंत्रण डेल्टा वेरिएंट को दे दिया था। हमें अब ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है।

साथ ही हमें अपने निगरानी कार्यक्रम पर भी पैनी निगाह बनाकर रखनी होगी। देश के सभी प्रवेश द्वारों पर चाहें वो वायुमार्ग हो या फिर जलमार्ग हो, या कोई लैब हो, और हमें जितनी जल्दी हो इस वेरिएंट की पहचान करनी होगी। इसी आधार पर हमें उन संपर्कों को ट्रेस कर आइसोलेट करना होगा। अतः हमें निगरानी कार्यक्रम में बहुत मुस्तैद होना चाहिए। लेकिन इसके साथ हमें वायरस के व्यवहार को भी समझना होगा। जानना होगा कि क्या ये कम विषैला या खतरनाक है, क्या इससे हल्का-फुल्का बुखार ही हो रहा है, इसके बाद हमें लोगों को समझाना होगी। लेकिन साथ ही आप अस्पताल के मुकाबले होम केयर के लिए भी तैयार रहें। ये कुछ ऐसी तैयारियां हैं जिनकी आवश्यकता हमें आपात परिस्थितियों के आधार पर करनी होगी। लेकिन अगर यह डेल्टा वेरिएंट की तरह ज्यादा खतरनाक साबित होता है तो हमें जरूर अस्पताल का रूख करना होगा। तो ये कुछ आकस्मिक या आपातकालीन तैयारियां हैं जो हमें करनी ही होगी।

टीकाकरण की स्थिति और निगेटिव टेस्ट के बावजूद कई देशों और यहां तक ​​कि भारत के राज्यों ने भी संस्थागत क्वारंटाइन जैसे उपायों की घोषणा की हैखासतौर से "हाई रिस्क" स्थानों से आने वालों के लिए। यदि वैक्सीन से उपचार किया गया हैतो पब्लिक हेल्थ की दृष्टि से इसका क्या तुक है कि वह यात्रा के लिए कहीं भी जाने और आने के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट कराए?

मुझे लग रहा है सभी सुरक्षा उपायों के बीच हम लोग खुद को सबसे बुरे दौर के लिए तैयार कर रहे हैं और हम इस भरोसे के साथ कोशिश में आगे बढ़ रहे हैं कि डेल्टा वेरिएंट की तेज गति के जैसे ही ये नया वेरिएंट हमारे यहां न आ जाए। इसके साथ ही हम पूरे सिस्टम को तैयार करने के लिए फिर से खुद को समय दे रहे हैं। क्योंकि, यकीन मानिए हमारा सिस्टम ये मान चुका है कि सबसे खराब दौर बीत चुका है और तीसरी वेव नहीं आएगी यही सोच कर वो सुस्त पड़ गया है। इसको ऐसे समझिए कि आप पहली बार एक नए गेंदबाज का सामना कर रहे हैं वो भी ऐसा जिसे आपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में खेलते हुए देखा ही नहीं है। तो आप शुरू में थोड़ा सुरक्षात्मक खेलते हैं उसके स्टाइल को समझते हैं और फिर अपने हाथ खोलते हैं। यानी, आपको शुरुआती दौर में पहले से ज्यादा सावधान होने की जरूरत है और मुझे लगता है सरकारें वही कर भी रही हैं।

पूरा इंटरव्यू पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 

 


गोविन्दराज एथिराज, https://indiaspendhindi.com/indiaspend-interviews/omicron-its-like-facing-a-new-bowler-for-the-first-time-790758


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