Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | वैक्सीन, किसान और अल्पसंख्यकों पर फर्जी खबरें: 2021 में कहां व्यस्त रहे भारत के फैक्ट-चेकर्स

वैक्सीन, किसान और अल्पसंख्यकों पर फर्जी खबरें: 2021 में कहां व्यस्त रहे भारत के फैक्ट-चेकर्स

Share this article Share this article
published Published on Jan 1, 2022   modified Modified on Jan 2, 2022

-न्यूजलॉन्ड्री,

साल 2021 में जो ख़बरें सुर्ख़ियों में रहीं उनमें प्रमुख थीं दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का विरोध प्रदर्शन, भारत में कोविड टीकाकरण, कोविड की विनाशकारी दूसरी लहर और चार राज्यों समेत एक केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव. वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े से जुड़ी ख़बरें छाई रहीं.

यह वर्ष उपरोक्त सभी ख़बरों पर गलत सूचनाओं से भी भरा रहा.

फैक्ट-चेकिंग पोर्टल्स ने इस साल कई फर्जी व्हाट्सएप फॉरवर्ड्स का भंडाफोड़ किया- जैसे खालिस्तान की मांग करते किसान, कोविड टीके के विरुद्ध प्रचार, ऑक्सीजन की कमी के 'इलाज', पुराने वीडियोज को बंगाल चुनाव के दौरान 'धांधली' के रूप में पेश करना, वीडियो गेम फुटेज को अफगानिस्तान में पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों के रूप में पेश करना, और अल्पसंख्यको को निशाना बनती हुई फर्जी ख़बरें.

जहां इनमें से कुछ फैक्ट-चेकिंग पोर्टल्स समाचार संगठनों की ही विस्तारित शाखाएं हैं, कुछ अन्य स्वतंत्र रूप से केवल फर्जी ख़बरों और गलत सूचनाओं की तथ्य-जांच करने के लिए ही कार्य करते हैं.

भारत फर्जी खबरों और गलत सूचनाओं का अड्डा बनता जा रहा है. आंकड़े बताते हैं कि इसमें वृद्धि हो रही है. 1 जनवरी, 2020 से 1 मार्च, 2021 के बीच 138 देशों से गलत सूचनाओं के 9,657 उदाहरणों की जांच करने के बाद, आईएफएलए (IFLA) जर्नल ने पाया कि भारत में सोशल मीडिया पर उपलब्ध गलत सूचना की मात्रा सबसे अधिक थी.

देश में भी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों में पिछले वर्षों की तुलना में 2020 में फर्जी ख़बरों और अफवाहों के प्रसार में 214 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई.

“भारत में सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोगों में मीडिया की समीक्षा करने की क्षमता नहीं है. कुछ चीजों को केवल एक गूगल सर्च द्वारा जांचा जा सकता है, लेकिन लोग ऐसा करने के लिए भी पर्याप्त रूप से जागरूक नहीं हैं,” क्विंट के वेबकूफ में फैक्ट-चेकर अभिलाष मलिक ने कहा.

वह कहते हैं, “यह अंतर्राष्ट्रीय फैक्ट-चेकिंग नेटवर्क द्वारा प्रमाणित संस्थान है, मीडिया घरानों में भी खबरों को पहले दिखाने की होड़ होती है. और एक बार जब राष्ट्रीय मीडिया पर कुछ आता है तो हर कोई सोचता है कि यह विश्वसनीय है और बिना सोचे समझे उसे फॉरवर्ड कर दिया जाता है."

गलत सूचनाओं और न्यूज़ चक्र का सीधा संबंध

इस साल फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट बूम द्वारा जांची की गई 794 फर्जी ख़बरों में से 422 राजनीति से संबंधित थीं, 160 सांप्रदायिक दावों से जुड़ी थीं, जबकि 59 स्वास्थ्य और कोविड से संबंधित थीं. अधिकांश फर्जी समाचारों में से 340 वीडियो के रूप में शेयर किए गए थे, 363 फोटो के रूप में और 71 लेख के रूप में साझा किए गए थे.

2021 के पहले दो-तीन महीनों में किसानों के विरोध प्रदर्शन से जुड़े झूठे दावों का बोलबाला था. अप्रैल में कोविड की दूसरी लहर की दहशत के दौरान कोविड से जुड़ी गलत सूचनाओं में इजाफा हुआ.

मई में पश्चिम बंगाल चुनाव से संबंधित झूठे दावे फैलाए गए, जबकि जुलाई और अगस्त में तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्ज़े से जुड़ी कई झूठी ख़बरों का प्रसार विशेष रूप से मुख्यधारा के टीवी चैनलों और कुछ ऑनलाइन प्रकाशनों द्वारा किया गया.

अक्टूबर से दिसंबर तक राजनैतिक दलों के बीच संघर्ष और अंदरूनी कलह के इर्द-गिर्द घूमती गलत सूचनाएं फैलाई गईं. वर्ष की अंतिम तिमाही में अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों, को निशाना बनते हुए फर्जी दावों में भी वृद्धि देखी गई.

ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा के अनुसार, "भारत में फर्जी ख़बरों की मात्रा न्यूज़ चक्र के समानुपातिक है". और ऐसा दुष्प्रचार करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है, उन्होंने कहा. भारत के अधिकांश लोग इसके उपभोक्ता हैं, जो यह जाने बिना कि कोई व्हाट्सएप संदेश सही है या गलत, उसे फॉरवर्ड कर देते हैं.

कोविड से जुड़ी गलत जानकारी

वैसे तो फर्जी दावे किसी विषय या माध्यम तक सीमित नहीं होते, सिन्हा ने बताया कि चिकित्सा विज्ञान से संबंधित विशेष प्रकार की गलत जानकारी केवल व्हाट्सएप पर मिलती है. विज्ञान से जुड़ी गलत जानकारी को समझाने के लिए अलग तरह के कौशल और विशेषता की आवश्यकता होती है.

ऑल्ट न्यूज़ में यह काम डॉ सुमैया शेख की निगरानी में होता है. सिन्हा ने कहा, "स्वास्थ्य से जुड़े बहुत सारे तथ्यों की जांच डॉक्टर से बात करके और किसी बयान का हवाला देकर की जाती है. लेकिन हम ऐसा करने में विश्वास नहीं रखते, क्योंकि एक डॉक्टर की राय दूसरे से अलग हो सकती है. इसलिए वह फैक्ट-चेक नहीं बल्कि केवल एक मत है."

इसलिए, ऑल्ट न्यूज़ 'प्रामाणिकता निर्धारित करने के लिए और जानकारी को जांचने के लिए शोध-पत्रों की समीक्षा करता है और वैज्ञानिक स्रोतों की तलाश करता है'. उन्होंने समझाया, "उदाहरण के लिए, जब पतंजलि ने कहा कि कोरोनिल में अश्वगंधा है, तो हमने यह जांचने के लिए सामग्री की समीक्षा की कि क्या ऐसा कोई प्रयोग है."

पिछले एक साल से 29 वर्षीय अभिलाष मलिक क्विंट की फैक्ट-चेकिंग पहल के साथ कोविड और स्वास्थ्य से संबंधित गलत सूचनाओं पर काम कर रहे हैं. मलिक ने कहा कि वैक्सीन-विरोधी गलत सूचनाओं पर अपने शोध के दौरान वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर वैक्सीन-विरोधियों के कई समूहों में शामिल हो गए, जहां उन्हें पता चला कि मैसेजिंग एप टेलीग्राम ऐसी फर्जी ख़बरों का एक विशिष्ट केंद्र है.

व्हाट्सएप के विपरीत, टेलीग्राम में समूहों या 'चैनलों' की कोई सदस्य-सीमा नहीं है, और यदि कोई संदेश कई बार फॉरवर्ड किया गया है तो उसका भी कोई संकेत नहीं मिलता.

परिणामस्वरूप, गलत सूचना को समाचार के रूप में प्रसारित करना आसान होता जाता है; एक मामले में टीवी-9 भारतवर्ष के समाचार बुलेटिन की शक्ल में ऐसी फर्जी रिपोर्ट दिखाई गई कि कोविड वैक्सीन लेने के बाद एक व्यक्ति के शरीर से बर्तन चिपक रहे हैं.

“कोविड संबंधित, खास तौर पर टीके से जुड़ी गलत जानकारी से निपटना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि कुछ दावों को गलत सिद्ध करना बहुत मुश्किल होता है” उन्होंने कहा.

"एक दावा किया गया कि वैक्सीन लेने के दो साल बाद आप मर जाएंगे. कोई भी निश्चित रूप से यह नहीं कह सकता है कि आप दो साल में नहीं मरेंगे, लेकिन उसके लिए आप टीके को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते हैं," मलिक ने कहा, और बताया कि वह फैक्ट-चेक रिसर्च के लिए वैज्ञानिक शोधपत्र और पत्रिकाएं पढ़ते हैं और उस विषय के जानकारों से भी विमर्श करते हैं.

"जब बात स्वास्थ्य की आती है तो हम ऐसे दावों को नहीं उठाते हैं जो वायरल नहीं होते," मलिक ने बताया. "कुछ ऐसे 'इलाज' तो वास्तव में जानलेवा हैं."

उदाहरण के लिए, हाल ही में दूसरी लहर के दौरान एक खबर आई कि कपूर सूंघने से ऑक्सीजन के स्तर में वृद्धि हो सकती है. इस तरह के न्यूज़ आइटम विशेष रूप से चिंताजनक हैं. "यह उन लोगों के लिए घातक हो सकता है जो फैक्ट-चेक नहीं पढ़ेंगे, केवल उस झूठे दावे को पढ़ेंगे और उसका पालन करेंगे."

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


तनिष्का सोढी, https://hindi.newslaundry.com/2022/01/01/corona-vaccine-farmers-protest-fake-news-2021


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close