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साक्षात्कार | अब जिंदगियां बचाना ही सबसे जरूरी
अब जिंदगियां बचाना ही सबसे जरूरी

अब जिंदगियां बचाना ही सबसे जरूरी

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published Published on Jun 19, 2020   modified Modified on Jun 19, 2020

-इंडिया टूडे,

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने एसोसिएट एडिटर सोनाली अचार्जी के साथ बातचीत में बताया कि कोरोना महामारी के बारे में पिछले कुछ महीनों में कैसे समझ विकसित हुई और जांच की मौजूदा स्थिति तथा आगे की संभावनाएं क्या हैं. कुछ अंश:

● कोविड-19 को पहले गंभीर किस्म के फ्लू जैसा बताया गया था, फिर इसे प्रतिरोधक क्षमता पर आधात करने वाला बताया गया. अब ऐसी खबरें हैं कि इससे फेफड़ों में खून के थक्के जम जाते हैं. क्या आने वाले हफ्तों में भी यह वायरस हमें इसी तरह चौंकाता रहेगा?

सभी रोगों के बारे में हमारी जानकारी तभी बढ़ती है जब उससे ज्यादा लोगों के संक्रमित होने के मामले सामने आते हैं. हमारी समझ न केवल इस बारे में ज्यादा स्पष्ट हुई है कि कोविड लोगों के शरीर को कैसे प्रभावित करता है, बल्कि हम इस वायरस की संरचना जानने और इसकी कई किस्मों को अलग करने में सफल हुए हैं. हम अब इस वायरस के प्रोटीन, मानव कोशिकाओं में उसे स्वीकार करने वाली संरचनाओं तथा उसकी पुनरुत्पादन प्रक्रियाओं के बारे में पहले से ज्यादा जानते हैं और इससे हमें इसकी जांच और इलाज में मदद मिली है. न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में अनुसंधान निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है.

किसी भी व्यक्ति के शरीर में कोविड वायरस की प्रतिक्रिया में उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता की भूमिका होती है और आइसीएमआर इस दिशा में फास्ट-ट्रैक अनुसंधान की ओर कदम बढ़ा रहा है ताकि जाना जा सके कि वे कौन से कारक हैं जो कोविड संक्रमण की स्थिति में रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करते हैं.

● भारत में कोविड संक्रमण कैसे बढ़ गया?

कोविड के बारे में कुछ बातें सही हैं—यह बहुत तेजी से फैलता है, बहुत से लोगों में इसके लक्षण नहीं उभरते और लोग अपने आप ठीक भी हो जाते हैं. इसके अलावा बुजुर्गों और कमजोर रोग प्रतिरोध क्षमता वाले लोगों को इससे सबसे ज्यादा खतरा होता है.

● मार्च में पत्रकारों से आपने कहा था कि अलग-थलग रहना (आइसोलेशन) संक्रमण के चक्र को तोडऩे का सबसे अच्छा तरीका होगा. दो लाख से ज्यादा मामले सामने आने के बाद अनलॉक 1.0 चल रहा है, आज की स्थिति में आपकी राय क्या है?

आशंका यही थी कि कोरोना वायरस खत्म नहीं होगा और अब पहले से ज्यादा संक्रमण दर है, लेकिन लॉकडाउन से रोगियों की संख्या में बढ़ोतरी के ग्राफ को थोड़ा धीमे रखने में मदद मिली. हालांकि इसका चढऩा नहीं रुका. इससे भी ज्यादा आश्वस्तकारी बात यह है कि हमारे यहां मृत्यु दर नीची है. इसका कारण हमारे लोगों की बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता हो सकती है. जो भी हो, मृत्यु दर नीची है और लोगों के ठीक होने की रफ्तार भी तेज है.

मामलों की संख्या में उछाल आएगा. पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है. हमें मृत्यु के आंकड़े नीचे रखने पर ध्यान देना होगा. लोग इससे संक्रमित हो सकते हैं, लेकिन उन्हें ठीक हो जाना चाहिए. इसके लिए हमें उन लोगों की सुरक्षा करनी होगी जिन्हें इससे सबसे ज्यादा खतरा है, जैसे बुजुर्ग और दूसरे रोगों के कारण मृत्यु की अधिक आशंका वाले लोग.

लोग ‘होम आइसोलेशन’ से बाहर आ रहे हैं, लेकिन उनमें सुरक्षा उपायों जैसे हाथ धोने और मास्क पहनने के महत्व के बारे में पहले से ज्यादा जागरूकता है. अभी भी देश में रात का कर्फ्यू जारी है. हमें सावधान रहना होगा. हमें अभी भी थोड़ा डरा हुआ रहना होगा. रातोरात हम कोविड के बाद के दौर में नहीं पहुंच जाएंगे.

● 70 से 80 फीसद मामलों में कोई लक्षण नहीं दिख रहे हैं, तो बिना लक्षणों वाले लोगों की जांच क्यों नहीं की जा रही है?

हम अब पहले से काफी ज्यादा जांच कर रहे हैं. अब हम प्रति दिन 1,10,000 सैंपलों की जांच कर रहे हैं और आरटी-पीसीआर जांच के लिए आइसीएमआर की 430 और 182 निजी प्रयोगशालाएं काम कर रही हैं. हम अब अपनी जांच किट बना रहे हैं और प्रयोगशाला का निर्माण कर रहे हैं. पहले ऐसा नहीं था.

मई में जांच का दायरा भी काफी बढ़ाया गया. अब हम स्वास्थ्यकर्मियों और इन्लूएंजा जैसे लक्षणों वाले मामलों की जांच की सलाह दे रहे हैं. दुनिया के ज्यादातर देश उन्हीं मामलों की जांच पर ध्यान दे रहे हैं जिनमें लक्षण उभरे होते हैं. बिना लक्षण वाले मामलों की जांच के लिए आपको पूरे देश की जांच करनी होगी, जो मुमकिन नहीं है. इसके अलावा, बिना लक्षणों वाले मामलों से काफी कम वायरस बाहर फैलते हैं.

● जांच की संख्या कैसे बढ़ाई जाएगी?

तेजी से जांच करने वाली एलीजा (एंजाइम-लिंक्ड इम्यूनोसॉर्बेंट एसे) रैपिड टेस्ट किट का इस्तेमाल संक्रमण के फैलाव को मापने में उपयोगी साबित होगा. हम पहले ही सामूहिक जांच के लिए पूल्ड आरटी-पीसीआर जांच की सिफारिश कर चुके हैं जिनमें एक साथ पांच से ज्यादा सैंपल नहीं लिए जाने हैं. राज्यों ने अलग-अलग जांच रणनीतियां अपनाई हैं, और, रोग की जांच का ढांचा पहले से बेहतर है.

● डब्ल्यूएचओ ने अब एक बार फिर से हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन (एचसीक्यू) पर परीक्षण शुरू किए हैं. ऐसे में क्या हम मान सकते हैं कि इस दवा में कोविड का इलाज करने की कुछ संभावना है?

कोविड के इलाज के लिए बहुत-सी दवाओं को इस्तेमाल करने के प्रयास चल रहे हैं. इससे बचाव के लिए एचसीक्यू की छह या अधिक डोज देने के अच्छे परिणाम मिले हैं और इस संबंध में हमने इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में एक अध्ययन भी प्रकाशित किया है. इस समय हमें परीक्षणों के परिणामों के आधार पर दवाओं के बारे में विचार करना चाहिए और भारत ने एचसीक्यू पर परीक्षणों को रोका नहीं है. इसमें कोविड के इलाज में भी प्रयोग किए जाने की कुछ क्षमता है. भारत में इसका प्रयोग हल्के मामलों में किया जा रहा है और डब्ल्यूएचओ के परीक्षणों के परिणाम से इस बारे में ज्यादा जानकारी हासिल हो सकेगी.

पूरा साक्षात्कार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


सोनाली, https://aajtak.intoday.in/story/the-main-thing-now-is-to-save-lives-india-today-cover-story-dg-icmr-1-1200791.html


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