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साक्षात्कार | कार्यस्थल में जा कर काम करें अभियंता : चंद्रप्रकाश

कार्यस्थल में जा कर काम करें अभियंता : चंद्रप्रकाश

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published Published on Apr 23, 2015   modified Modified on Apr 23, 2015
राज्य के पेयजल और स्वच्छता मंत्री चंद्रप्रकाश चौधरी घर-घर तक पीने का स्वच्छ पानी पहुंचाने की मुहिम पर काम कर रहे हैं. विश्व बैंक के निर्देश के बाद राज्य के ग्रामीण इलाकों में पीने का पानी पहुंचाने और ग्रामीण आबादी को खुले में शौच से मुक्त कराने में विभागीय मंत्री गंभीर भी हैं.

उनका कहना है कि पीएचइडी विभाग के 32 से अधिक प्रमंडलों में पदस्थापित अभियंता मुख्यालय में कम नजर आएं. इनकी प्राथमिकता फील्ड में अधिक होनी चाहिए, ताकि राष्ट्रीय ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम, स्वच्छ भारत अभियान, गुणवत्ता कार्यक्रम और शहरी जलापूर्ति योजनाओं का क्रियान्वयन समय पर हो. श्री चौधरी ने प्रभात खबर संवाददाता दीपक से बातचीत के क्रम में कहा कि राज्य की दो करोड़ की आबादी अभी भी टय़ूबवेल पर निर्भर है. हर वर्ष सिर्फ टय़ूबवेल रिप्लेसमेंट और नये टय़ूबवेल की स्थापना में 100 से 150 करोड़ रुपये का प्रावधान किया जाता है. इसकी जगह अब सरफेस वाटर को लोगों के घर तक पहुंचाने की आवश्यकता है.

विभाग के अभियंता योजनाओं को समय पर पूरा करने में उतने तत्पर नहीं दिखते हैं? आप क्या करेंगे?
हां, यह मेरी जानकारी में है. विभाग के कई ऐसे अभियंता हैं, जो अपने कार्यो के इतर मुख्यालय में और अन्य कामों में ही अधिक व्यस्त रहते हैं. अब प्रत्येक वर्ष वित्तीय वर्ष का कार्यक्रम तय कर अप्रैल माह से ही योजनाओं को धरातल पर लाने का प्रयास किया जायेगा. प्रमंडल स्तर पर अधीक्षण अभियंताओं को पूरे वर्ष का कार्यक्रम तय करने का निर्देश दिया जायेगा. इससे माह वार लक्ष्य और उपलब्धियों का पता चल सकेगा. खराब प्रदर्शन करनेवाले इसमें नपेंगे. फाइलों पर कुंडली मार कर बैठनेवालों पर भी कार्रवाई की जायेगी. अभी विभाग का बजटीय आकार 450 करोड़ के आसपास है. पर ग्रामीण जलापूर्ति का अधिकतर काम टय़ूबवेल पर ही निर्भर है. प्रत्येक वर्ष 18 हजार से 20 हजार टय़ूबवेल का रिप्लेसमेंट होता है, जिसमें 85 से 100 करोड़ खर्च किये जाते हैं. पीने के पानी की गुणवत्ता की जांच के लिए राज्य स्तरीय प्रयोगशाला तो बना दी गयी है. पर सभी जिलों में लैब की कमी है. हम दूसरी एजेंसी पर निर्भर हैं. यह व्यवस्था दुरुस्त की जायेगी. अधिक टय़ूबवेल की अनुमति अब नहीं दी जायेगी. क्योंकि झारखंड के ग्रामीण इलाकों में अब भी चार लाख से अधिक टय़ूबवेल हैं. इससे जल स्तर भी कम हो रहा है.

सरफेस वाटर जलापूर्ति कार्यक्रम को कैसे आगे बढ़ायेंगे?
सरफेस वाटर जलापूर्ति कार्यक्रम केंद्र सरकार की प्राथमिकता है. हमने साहेबगंज के सुदूरवर्ती गांवों में मेगा ग्रामीण जलापूर्ति योजना शुरू की है. यहां पर एलएनटी को काम दिया गया है. काम थोड़ा धीमा चल रहा है. इसमें तेजी लायी जायेगी. इस योजना के पूरा होने से 110 गांवों के ग्रामीणों को शुद्ध पीने का पानी मिल सकेगा. कमोबेश यही स्थिति धनबाद के निरसा साउथ ग्रामीण जलापूर्ति योजना की भी है. निविदा की प्रक्रिया पूरी कर ली गयी है. अब 400 करोड़ की निरसा नार्थ जलापूर्ति योजना को तकनीकी स्वीकृति देने की प्रक्रिया चल रही है. सभी जिलों में अब नदियों अथवा अन्य जल स्नेतों पर आधारित स्कीम लेने का प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया गया है.

गंगा ग्रिड और सोन ग्रिड जैसी योजनाओं पर कैसे काम होगा?
यह महत्वाकांक्षी परियोजना है. इन दोनों योजनाओं के पूरा होने से राज्य के 15 जिलों में पीने के पानी की समस्या दूर हो सकेगी. विभागीय अधिकारियों को इस योजना की प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार करने की जवाबदेही सौंपी गयी है.
विभागीय अधिकारियों ने एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (इओआइ) भी आमंत्रित किया है. हम चाहते हैं कि देश ही नहीं विदेशों की प्रतिष्ठित कंपनियां भी इसमें शामिल हों और राज्य सरकार को सहयोग करें. हम यह प्रयास करेंगे कि बंद पड़ी खदानों में जमा पानी का उपयोग भी जलापूर्ति योजना के अंतर्गत हो.

पीएचइडी में यह देखा जाता है कि शहरी जलापूर्ति योजनाएं समय पर पूरी नहीं होती हैं. रांची का ही उदाहरण लीजिए. आपने 2010 में योजना को मंजूरी दी थी. पांच वर्ष बाद भी यह योजना अधूरी पड़ी है? क्या कारण है?
शहरी जलापूर्ति योजनाओं के समय पर पूरा नहीं होने के कई कारण हैं. पीएचइडी क्रियान्वयन करनेवाली एजेंसी की भूमिका में रहती है. पैसा नगर विकास विभाग देता है. पर इंजीनियरिंग डिजाइन, समय पर जमीन का अधिग्रहण नहीं होने, पथ निर्माण, रेलवे और अन्य एजेंसियों से समय पर अनापत्ति प्रमाण पत्र भी नहीं मिलने से योजनाएं समय पर पूरी नहीं होती हैं. जहां तक रांची शहरी जलापूर्ति का सवाल है. आइवीआरसीएल ने तय समय पर काम पूरा नहीं किया. अभी एलएनटी को शेष काम का जिम्मा दिया गया है. योजना की लागत भी पांच वर्षो में बढ़ गयी है. किन कारणों से योजना में विलंब हुआ है. इसे देखेंगे. दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी.

स्वच्छता अभियान में झारखंड फिसड्डी है. हम मणिपुर, नागालैंड, केरल से काफी पीछे हैं? क्या कारण है?
हां, यह सही है. स्वच्छ भारत अभियान में झारखंड की स्थिति अच्छी नहीं है. इसके लिए पूर्व में हुए काम में अनियमितता बरती गयी. इस वर्ष 2.5 लाख शौचालय बनाने का लक्ष्य है. अब तक 50 हजार शौचालय बन चुके हैं. झारखंड में खुले में शौच की पारंपरिक व्यवस्था आज भी बरकरार है. ग्रामीण क्षेत्रों में लोग खुले में ही शौच को प्राथमिकता देते हैं.

विभाग में व्याप्त गुटबाजी को कैसे समाप्त करेंगे?
हां, विभाग में गुटबाजी की जानकारी मुङो दी गयी है. सभी पहलुओं पर विचार किया जा रहा है. भ्रष्टाचार और अनियमितता में शामिल रहे अभियंताओं के खिलाफ हमने कार्रवाई भी शुरू कर दी है, जल्द ही इसके परिणाम दिखने लगेंगे. अभियंताओं को समय पर योजनाओं को पूरा करने का निर्देश भी दिया जायेगा. अच्छा परफॉरमेंस देनेवाले अधिकारियों को सरकार के स्तर पर सम्मानित किया जायेगा. विभाग के केंद्रीय निरूपण संगठन (सीडीओ) को और प्रभावशाली बनाया जायेगा. मेरी ओर से सभी प्रमंडलों में नियमित बैठक कर योजनाओं की प्रगति की समीक्षा भी की जायेगी. अधिकारियों फील्ड जाने के निर्देश भी दिये जायेंगे. औचक निरीक्षण भी किया जायेगा.

आप जानते हैं कि झारखंड में आपदा राहत कोष की स्थिति अच्छी है. बैंकों में 400 करोड़ से अधिक राशि जमा है. इस पर क्या कदम उठायेंगे?
मैंने राज्य आपदा प्राधिकार और नियमावली बनाने का निर्देश दे दिया है. जहां तक बैंकों में जमा राशि का सवाल है, जल्द ही मैं इस पर अधिकारियों के साथ बैठक कर ठोस निर्णय लूंगा. राज्य में सूखा और ओला वृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाएं होती हैं. वज्रपात से हर साल सैकड़ों लोगों की मौत हो जाती है. ऐसी घटनाओं को रोकने का उपाय किया जायेगा. जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन कार्यक्रम को सशक्त किया जायेगा.


http://www.prabhatkhabar.com/news/interview/story/289861.html


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