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साक्षात्कार | ‘सीधे खाद्यान्न के बजाय नकदी हस्तातंरण बेहतर है’

‘सीधे खाद्यान्न के बजाय नकदी हस्तातंरण बेहतर है’

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published Published on Sep 16, 2013   modified Modified on Sep 16, 2013

खाद्य सुरक्षा विधेयक तभी सार्थक साबित होगा जब हम सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की खामियों को दूर कर पाएं तथा बढ़ती खाद्य महंगाई पर काबू कर सकें. इस वक्त देश में अनाज का प्रचुर भंडार है और अनुकूल मॉनसून भी, लेकिन इसके चलते हमें बेपरवाह नहीं होना चाहिए क्योंकि आने वाले वर्षों में सूखा भी पड़ सकता है . यह अन्न उत्पादन पर बहुत बुरा असर डालेगा. इन तमाम बातों के अलावा अशोक गुलाटी शैली चोपड़ा को यह भी बता रहे हैं कि कैसे कृषि तथा संबंधित बुनियादी क्षेत्र में बेहतर निवेश खाद्य सुरक्षा के स्थायित्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है

आपने चेतावनी दी है कि खाद्य सुरक्षा विधेयक देश की वित्तीय हालत के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है. आप इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचे?
मैं विधेयक के खिलाफ नहीं हूं, मैंने तो बस वित्तीय स्थिति का ऐसा आकलन पेश किया है जो हकीकत के करीब है. चालू वित्त वर्ष में इसके लिए 90,000 करोड़ रुपये का बजट है जो पर्याप्त नजर आता है क्योंकि लगभग आधा साल तो खत्म हो चुका है. लेकिन फिर भी उसकी शुरुआत समुचित ढंग से नहीं हो सकती है क्योंकि इसके क्रियान्वयन के लिए बुनियादी ढांचे की कमी है. अनेक राज्यों में लाभार्थियों की अंतिम सूची तैयार नहीं है और इस काम को पूरा करने में वक्त लगेगा. अगर वर्ष 2014-15 के पूरे साल की बात की जाए तो इसकी अनुमानित लागत 1,30,000 करोड़ रुपये होगी. खाद्य सुरक्षा को स्थायी बनाने के लिए कृषि में निवेश करके उत्पादन बढ़ाना होगा. क्या हमारे पास उतना पैसा है?

वर्ष 2003 में सूखा पड़ा था और खाद्यान्न भंडार में 3.8 करोड़ टन की कमी आई थी. अगर हम मॉनसून पर इस कदर निर्भर रहे तो विधेयक में जताई गई प्रतिबद्धताओं को कैसे निभाएंगे? हमें सिंचाई में निवेश करने की जरूरत है. तकरीबन 300 बड़े और मझोले उद्यम लंबित हैं जिनमें 2,00,000 करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता है. इतना ही नहीं रेलवे के पास भी इतनी क्षमता नहीं है कि इतनी भारी मात्रा में अनाज को उसके भंडारण क्षेत्र से अन्य राज्यों तक ढो सके. ऐसे में हमें रेलवे तथा भंडारण सुविधाओं में भी निवेश करना होगा. अगर इस सारे निवेश को शामिल कर लिया जाए तो सब्सिडी का बोझ 2,00,000 रुपये को पार कर जाएगा.
इसके अलावा उत्पादन लागत बढ़ने के साथ-साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में भी इजाफा होगा. लेकिन विधेयक में कहा गया है कि पहले तीन सालों के दौरान मोटे अनाज, गेहूं और चावल के लिए कीमतें क्रमश: एक रुपये, दो रुपये और तीन रुपये प्रति किलो की दर पर तयशुदा होंगी. क्या एमएसपी को एक दर पर रखा जा सकता है? एमएसपी बढ़ने के साथ सब्सिडी भी बढ़ेगी. सबसे अच्छा तरीका है सशर्त नकदी हस्तांतरण को अपनाना. इसके जरिए हजारों करोड़ रुपये बचाए जा सकते हैं.

अगर अन्य सब्सिडी में कमी की जा सके तो क्या खाद्य विधेयक को उचित ठहराया जा
सकता है?
ईंधन सब्सिडी कम करने से डीजल की कीमतें बढ़ेंगी. इससे ट्रैक्टर का इस्तेमाल महंगा होगा. उर्वरक सब्सिडी में कमी से खेती में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की लागत बढ़ेगी. हर चीज एक-दूसरे से जुड़ी हुई है, जाहिर है कुछ भी आसानी से नहीं होने वाला है.

क्या कम लागत पर खाद्य सुरक्षा मुहैया कराना मुमकिन है?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनाए जा रहे बेहतरीन तरीकों से यह पता चला है कि इनको अपनाने से भूख और कुपोषण की समस्या हल नहीं होती. तमाम देश नकदी हस्तांतरण की ओर बढ़ चुके हैं. अगर हम खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के बजाय नकदी हस्तांतरण का रुख करें तो हमें तकरीबन 30,000 से 40,000 करोड़ रुपये बचाने में मदद मिलेगी. सरकारी एजेंसियों की मदद से खाद्यान्न वितरण की कवायद महंगी है. इससे लागत में करीब 50 फीसदी का इजाफा होगा. बेहतर होगा कि लोगों को सशर्त नकदी हस्तांरण के जरिए आर्थिक सहयोग दिया जाए. 

क्या इस विधेयक की वजह से महंगाई बढ़ सकती है?
महंगाई की सबसे बड़ी वजह भारी-भरकम राजकोषीय घाटा है. बिजली, ईंधन, उर्वरक और यहां तक कि खाद्यान्न सब्सिडी को भी तार्किक बनाने की जरूरत है. इनमें बड़ी आसानी से 30 फीसदी तक की कटौती की जा सकती है. अगर शेष विश्व बिचौलियों से बचने के लिए सशर्त नकदी हस्तांतरण का रुख कर चुका है तो हम क्यों नहीं? समस्या है दुरुपयोग की, जिसकी वजह से कमी पैदा होती है. राज्य सरकारों के जरिये खाद्यान्न वितरण का विचार अच्छा नहीं है जबकि उससे बचने की गुंजाइश मौजूद है. हमें उसकी तैयारी करनी चाहिए. इसके बाद प्रभावी तरीके से इन सब्सिडी से निपटना चाहिए.

आप ऐसा क्यों मानते हैं कि आने वाले सालों में सब्सिडी का बोझ बढ़ेगा?
गत वर्ष पीडीएस की लागत 80,000 करोड़ रुपये थी जबकि उस वक्त कोई खाद्य विधेयक नहीं था. इस वर्ष वित्त मंत्री ने इसके 90,000 करोड़ रुपये होने की बात कही है, जिसका बोझ हम बरदाश्त कर सकते हैं. लेकिन केवल इस साल भर. यह बात सबको पता थी कि मॉनसून सत्र के पहले विधेयक आगे नहीं बढ़ेगा. अभी इसकी पूरी घोषणा में और वक्त लगेगा तो पैसे की दिक्कत नहीं होगी. लेकिन आने वाले सालों में यकीनन लागत बढ़ेगी. एमएसपी की बढ़ती लागत, खाद्य विधेयक की प्रशासनिक और वितरण लागत, महंगाई, नई बुनियादी सुविधाओं की लागत आदि सब बढ़ेंगी. मेरा मानना है कि सब्सिडी बिल में हर साल 10 फीसदी की बढ़ोतरी होगी.


http://www.tehelkahindi.com/indinoo/national/1981.html


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