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न्यूज क्लिपिंग्स् | भुखमरी के साए में-- रमेश सर्राफ धमोरा

भुखमरी के साए में-- रमेश सर्राफ धमोरा

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published Published on Apr 11, 2018   modified Modified on Apr 11, 2018
मानव जाति की मूल आवश्यकताओं की बात करें तो रोटी, कपड़ा और मकान का ही नाम आता है। इनमें रोटी सर्वोपरि है। रोटी यानी भोजन की अनिवार्यता के बीच आज विश्व के लिए शर्मनाक तस्वीर यह है कि वैश्विक आबादी का बड़ा हिस्सा अब भी भुखमरी का शिकार है। भुखमरी की इस समस्या को भारत के संदर्भ में देखें तो संयुक्त राष्ट्र द्वारा भुखमरी पर जारी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सर्वाधिक भुखमरी से पीड़ित देशों में भारत का नाम भी है। खाद्यान्न वितरण प्रणाली में सुधार और अधिक पैदावार के लिए कृषि क्षेत्र में निरंतर नए अनुसंधान के बावजूद भारत में भुखमरी के हालात बदतर होते जा रहे हैं। इस वजह से भुखमरी के वैश्विक सूचकांक में देश तीन पायदान नीचे आ गया है।

दुनिया भर के देशों में भुखमरी के हालात का विश्लेषण करने वाली गैर सरकारी अंतरराष्ट्रीय संस्था-इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आइएफपीआरआइ) के अनुसार पिछले साल भारत दुनिया के एक सौ उन्नीस देशों के सूचकांक में संतानवेवें स्थान पर था, जो इस साल फिसल कर सौवें स्थान पर पहुंच गया है। इस मामले में एशियाई देशों में उसकी स्थिति बस पाकिस्तान और अफगानिस्तान से थोड़ी ही बेहतर है। सूचकांक में पाकिस्तान और अफगानिस्तान की स्थिति सबसे बुरी है।


इस वैश्विक सूचकांक में किसी भी देश में भुखमरी के हालात का आकलन वहां के बच्चों में कुपोषण की स्थिति, शारीरिक अवरुद्धता और बाल मृत्यु दर के आधार पर किया जाता है। आइएफपीआरआइ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में बच्चों में कुपोषण की स्थिति भयावह है। देश में इक्कीस फीसद बच्चों का पूर्ण शारीरिक विकास नहीं हो पाता। इसकी बड़ी वजह कुपोषण है। रिपोर्ट के अनुसार सरकार द्वारा पोषण युक्त आहार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर चलाए जा रहे अभियान के बावजूद सूखे और मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण देश में गरीब तबके का बड़ा हिस्सा कुपोषण के खतरे का सामना कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार भुखमरी के लिहाज से एशिया में भारत की स्थिति अपने कई पड़ोसी देशों से खराब है। सूचकांक में चीन उनतीसवें, नेपाल बहत्तरवें, म्यांमा सतत्तरवें, इराक अठहत्तरवें, श्रीलंका चौरासीवें और उत्तर कोरिया तिरानवेवें स्थान पर है, जबकि भारत सौवें स्थान पर फिसल गया है। भारत से नीचे केवल पाकिस्तान और अफगानिस्तान हैं। पाकिस्तान एक सौ छहवें और अफगानिस्तान एक सौ सातवें पायदान पर है।

रिपोर्ट में भुखमरी की स्थिति के लिहाज से दुनिया के एक सौ उन्नीस देशों को अत्यधिक खतरनाक, खतरनाक और गंभीर जैसी तीन श्रेणियों में रखा गया है। इनमें भारत गंभीर की श्रेणी में है। भारत की इस स्थिति के कारण ही दक्षिण एशिया का प्रदर्शन इस सूचकांक में बिगड़ा है। आइएफपीआरआइ के मुताबिक भारत में कुपोषण के हालात खराब जरूर हैं, लेकिन 2022 तक देश को कुपोषण से मुक्त करने के लिए सरकार ने जो कार्ययोजना बनाई है, वह सराहनीय है। इसमें आने वाले वर्षों में देश से कुपोषण खत्म करने की सरकार की प्रतिबद्धता झलकती है। सरकारी प्रयासों से साल 2000 के बाद से देश में बाल शारीरिक अवरुद्धता के मामलों में उनतीस प्रतिशत की कमी आई है, लेकिन इसके बावजूद यह 38.4 प्रतिशत के स्तर पर है जिसमें सुधार के लिए काफी कुछ किया जाना बाकी है। दुनिया के देशों के बीच भारत की छवि एक ऐसे मुल्क की है, जिसकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। लेकिन तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले इस देश की एक सच्चाई यह भी है कि यहां के बच्चे भुखमरी के शिकार हो रहे हैं।

भारत अगले एक दशक में दुनिया के सर्वाधिक प्रभावशाली देशों की सूची में शामिल हो सकता है। ऐसे में भुखमरी जैसी हकीकत बेहद चिंतनीय है। सबसे ज्यादा आबादी वाला देश चीन भी इस सूची से नहीं बच पाया है। सूचकांक वाली रिपोर्ट में बताया जाता है कि दुनिया के अलग-अलग देशों में वहां के नागरिकों को खाने-पीने की सामग्री कितनी और कैसी मिलती है। यह सूचकांक हर साल ताजा आंकड़ों के साथ जारी किया जाता है। इसमें विश्व भर में भूख के खिलाफ चल रहे अभियान की उपलब्धियों और नाकामियों को दर्शाया जाता है। नेपाल और श्रीलंका जैसे देश भारत से सहायता प्राप्त करने वालों की श्रेणी में आते हैं। ऐसे में यह सवाल गंभीर हो उठता है कि जो श्रीलंका, नेपाल, म्यांमा हमसे आर्थिक मदद से लेकर तमाम तरह की सहायता लेते हैं, फिर भी भुखमरी खत्म करने के मामले में हमारी हालत उनसे बदतर क्यों है?

महत्त्वपूर्ण सवाल यह भी है कि हर वर्ष हमारे देश में अनाज की रिकार्ड पैदावार होने के बावजूद क्यों देश की लगभग एक चौथाई आबादी को भुखमरी से गुजरना पड़ता है? हकीकत यह है कि हमारे यहां अनाज तो बहुत होता है, पर उस अनाज का एक बड़ा हिस्सा लोगों तक पहुंचने की बजाय कुछ सरकारी गोदामों में, तो कुछ इधर-उधर अव्यवस्थित ढंग से रखे-रखे सड़ जाता है। संयुक्त राष्ट्र के एक आंकड़े के मुताबिक देश का लगभग बीस फीसद अनाज भंडारण क्षमता के अभाव में बेकार हो जाता है। इसके अतिरिक्त जो अनाज गोदामों में सुरक्षित रखा जाता है, उसका भी एक बड़ा हिस्सा समुचित वितरण प्रणाली के अभाव में जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने की बजाय बेकार पड़ा रह जाता है। खाद्य बर्बादी की यह समस्या सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में है।

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष 1.3 अरब टन खाद्यान्न खराब होने के कारण फेंक दिया जाता है। यह वाकई विडंबना है कि एक तरफ दुनिया में इतना अनाज बर्बाद होता है और दूसरी तरफ दुनिया के लगभग पचासी करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हैं। क्या यह अनाज इन लोगों की भूख मिटाने के काम नहीं आ सकता? पर व्यवस्था के अभाव में ये नहीं हो रहा। अनाज की बर्बादी जितनी भारत में होती है, दुनिया में कहीं और नहीं। हर साल सरकारी गोदामों में या खुले में रखे हजारों टन अनाज सड़ जाने की खबर अमूमन हर साल आती रही है। सर्वोच्च न्यायालय इस पर कई बार सरकारों को फटकार लगा चुका है। देश में अनाज ही नहीं, सब्जियां और फल भी काफी मात्रा में नष्ट हो जाते हैं। जाहिर है, यह भंडारण, प्रसंस्करण और आपूर्ति, तीनों मोर्चों पर हमारी नाकामी को जाहिर करता है। जबकि इन तीनों मामलों में सुधार लाकर हम वंचितों के लिए बहुत सारी खाद्य सामग्री यों ही जुटा सकते हैं।

भारत में भुखमरी से निपटने के लिए तमाम योजनाएं बनी हैं, लेकिन उनकी सही तरीके से पालना नहीं होती है। महंगाई और खाद्य पदार्थों की कीमतों में उछाल ने गरीबों और निम्न आय के लोगों का जीवन दूभर बना दिया है। हमारे देश में सरकारों द्वारा भुखमरी को लेकर कभी उतनी गंभीरता दिखाई ही नहीं गई जितनी कि होनी चाहिए। यहां सरकारों द्वारा हमेशा भुखमरी से निपटने के लिए सस्ता अनाज देने संबंधी योजनाओं पर ही विशेष बल दिया गया। कभी भी उस सस्ते अनाज की वितरण प्रणाली को दुरुस्त करने को लेकर कुछ ठोस नहीं किया गया। सार्वजनिक वितरण प्रणाली हांफ रही है और मिड-डे मील जैसी आकर्षक परियोजनाएं भ्रष्टाचार और प्रक्रियात्मक विसंगतियों में डूबी हैं। लेकिन ये विसंगतियां दूर की जा सकती हैं, बशर्ते भुखमरी और कुपोषण को मिटाने की प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति हो। समस्या यह है कि नीतियां बनाने वाले लोगों को केवल विकास दर की चिंता है, कमजोर तबकों और असहाय लोगों पर क्या बीत रही है इसकी नहीं।


https://www.jansatta.com/politics/to-eliminate-hunger-and-malnutrition-from-the-country-need-to-improve-public-distribution-system/627605/


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