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चर्चा में.... | ट्रैक्टरों की खरीद में कमी से जानिये बढ़ते ग्रामीण-संकट का हाल, इस न्यूज एलर्ट में
ट्रैक्टरों की खरीद में कमी से जानिये बढ़ते ग्रामीण-संकट का हाल, इस न्यूज एलर्ट में

ट्रैक्टरों की खरीद में कमी से जानिये बढ़ते ग्रामीण-संकट का हाल, इस न्यूज एलर्ट में

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published Published on Sep 25, 2019   modified Modified on Sep 25, 2019
ट्रैक्टरों की खरीदारी का देश की अर्थव्यवस्था में आ रहे उतार-चढ़ाव से क्या रिश्ता हो सकता है ? अगर इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको जेहन पर ज्यादा जोर देना पड़ रहा हो तो इस न्यूज एलर्ट को ध्यान से पढ़िए और सोचिए कि ट्रैक्टरों की खरीदारी के जिस आंकड़े के सहारे अर्थशास्त्रियों का एक समूह देश की अर्थव्यवस्था की खुशहाली के निष्कर्ष निकाल रहा है, उन्हीं आंकड़ों में अर्थशास्त्रियों का दूसरा समूह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के दुर्दशा में पहुंचने के संकेत क्यों पढ़ रहा है ?
 

वित्तवर्ष 2017-18 में जब ट्रैक्टरों की खऱीदारी नई ऊंचाई पर पहुंची तो कुछ टिप्पणीकारों ने इसी बहाने केंद्र सरकार की नीतियों के समर्थन में कहा कि मॉनसून की पर्याप्त बारिश और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफे के कारण ग्रामीण इलाके में मांग बढ़नी शुरु हुई है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था उभार पर है. कई अर्थशास्त्रियों तथा स्तंभकारों ने दावा किया कि दरअसल जिस ग्रामीण संकट की बात की जा रही है वो कहीं है ही नहीं.

 


लेकिन इस सोच के बरक्स एक वैकल्पिक विचार प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में शिक्षक और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अध्येता डा. हिमांशु ने रखा. उन्होंने तर्क दिया कि पंजाब, उत्तरप्रदेश तथा महाराष्ट्र जैसे सूबों में एक तो किसानों की कर्जमाफी हुई है, दूसरे कृषि कर्जों में सूद की दर नीची रखी गई है और इस कारण ट्रैक्टर की खऱीदारी में बड़े किसानों को कुछ आसानी हुई है.

 

डा. हिमांशु का तर्क है कि कुछ सूबों में कर्जमाफी के कारण कर्ज के बोझ से दबे किसानों को राहत मिली और उन्हें नये कर्जों के योग्य मान लिया गया. इस तरह नये कर्जों से मिली रकम से किसानों ने ट्रैक्टर की खरीदारी की. चूंकि बीते दो फसली-वर्ष ( 2014-15 तथा 2015-16) में सूखे के हालात थे और ट्रैक्टरों की खरीद गिरावट पर थी इसलिए तुलनात्मक रुप में देखने के कारण 2017-18 में ट्रैक्टरों की खरीदारी (बेस-इफेक्ट के कारण) ज्यादा बढ़ी-चढ़ी दिखायी दे रही है.

 


कृषि-कर्ज माफी का फायदा अधिकांशतया बड़े किसानों और संस्थागत ऋण हासिल करने की क्षमता रखने वालों को होता है. डा. हिमांशु का कहना है कि ट्रैक्टरों की खरीद भर पर ध्यान देने की जगह अच्छा होगा कि ग्रामीण इलाके में नीचे गिरती वास्तविक मजदूरी की दर पर ध्यान दिया जाय. लाइवमिन्ट में प्रकाशित अपने एक आलेख (21 मई, 2018 में डा. हिमांशु ने ध्यान दिलाया था कि खेतिहर मजदूरों की वास्तविक मजदूरी 2017 के दिसंबर माह से और गैर खेतिहर मजदूरों की वास्तविक मजदूरी 2017 के नवंबर माह से साल दर साल गिरती गई है.

 

अपने हाल के एक आलेख( 15 अगस्त 2019) में डा. हिमांशु ने एनएसएसओ को आंकड़ों के इस्तेमाल के सहारे दिखाया है कि ग्रामीण और शहरी इलाकों में साल 2014 से 2017-18 के दरम्यान औसत उपभोग-खर्च में गिरावट आयी है. वित्तवर्ष 2017-18 की स्थितियों की तुलना में यह स्थिति अलग है.

 

ट्रैक्टर इंडस्ट्री से संबद्ध एक गैर-सरकारी तथा नॉन फॉर प्रॉफिट संस्था ट्रैक्टर एंड मैकेनाइजेशन एसोसिएशन के मुताबिक फरवरी 2019 से लेकर लगातार छह माह तक ट्रैक्टर की घरेलू खरीद में नकारात्मक वृद्धि हुई है. मिसाल के लिए ट्रैक्टरों की कुल घरेलू खरीद पिछली जुलाई से इस साल की जुलाई के बीच 52,463 से घटकर 45,571 पर पहुंच चुकी थी. यह कुल 13.14 फीसद की गिरावट है. (इससे संबंधित आंकड़ों को विस्तार से देखने के लिए कृपया यहां क्लिक करें)

 

 जाहिर है, हाल के महीने में ग्रामीण क्षेत्रों में मांग में आई गिरावट की व्याख्या इस तथ्य से नहीं की जा सकती कि ऐसा मॉनसून के देर से आने से हुआ, जबकि कुछ मीडिया रिपोर्टों में यही कहा गया है. दरअसल ग्रामीण क्षेत्रों में मांग में गिरावट एक लंबे समय से चली आ रही है.

 

ट्रैक्टरों की घरेलू खरीद ही नहीं बल्कि उनके निर्यात में भी कमी आयी है. इन्क्लूसिव मीडिया के अंग्रेजी संस्करण में दिये गये न्यूज एलर्ट की तालिका-2 से पता चलता है कि फरवरी 2019 से लेकर लगातार छह माह तक ट्रैक्टरों के निर्यात की वृद्धि दर नकारात्मक चली आ रही है. मिसाल के लिए, पिछले साल की जुलाई से इस साल की जुलाई के बीच ट्रैक्टरों का निर्यात 6,569 से घटकर 6404 पर चला आया यानि ट्रैक्टरों के निर्यात में 2.51 फीसद की कमी आयी है.(आंकड़ों के विस्तार के लिए यहां क्लिक करें)

 

बेशक ट्रैक्टर धनी और बड़े भूस्वामियों के खरीद की चीज है लेकिन पारले-जी बिस्किट ( प्रति पैकेट 5 रुपये) एक ऐसा उत्पाद है जिसके बारे में माना जा सकता है कि उसे आम जन खरीदते होंगे. लेकिन, मीडिया रिपोर्टों का संकेत है कि घटी हुई ग्रामीण मांग के कारण पारले-जी बिस्किट की खपत प्रभावित हुई है और कंपनी तकरीबन 10,000 श्रमिकों की छंटनी कर सकती है. पारले-जी बिस्किट की खपत में आयी कमी की एक व्याख्या ये कहकर की जा सकती है कि उसपर जीएसटी 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया गया(साथ ही, लागत खर्च में बढ़ोत्तरी हुई) लेकिन हाल के विश्लेषणों से पता चलता है कि ग्रामीण मांग में आयी कमी का बड़ा रिश्ता कामगार तबकी की वास्तविक मजदूरी में आयी कमी से है.
 
इस कथा के विस्तार के लिए निम्नलिखित लिंक्स उपयोगी हो सकते हैं:
 

 

Tractor and Mechanization Association, Monthly report for 2019, please click here to access

 

Tractor and Mechanization Association, Monthly report for 2018, please click here to access

 

 Rural distress is real: Negative monthly growth of real wage rates witnessed in rural areas for 9 consecutive months, starting from November 2017, News alert by Inclusive Media for Change dated 1 April, 2019, please click here to access 



For India Inc's sob story, Sitharaman has a sop story. But will it help? -Aunindyo Chakravarty, TheWire.in, 27 August, 2019, please click here to access

 

Slowdown in sale of biscuits and cookies: A blip in rural consumption or premiumisation of eatables? -Himadri Buch, Moneycontrol.com, 24 August, 2019, please click here to access

Why rural India can't afford to buy biscuits -Roshan Kishore, Hindustan Times, 23 August, 2019, please click here to access

Delayed monsoon, weak rural economy took toll on tractor sale, The New Indian Express, 16 August, 2019, please click here to access 

 

What happened to poverty during the first term of Modi? -Himanshu, Livemint.com, 15 August, 2019, please click here to access
 

FMCG companies red-flag gathering rural slowdown -Pranav Mukul & Anil Sasi, The Indian Express, 15 August, 2019, please click here to access 
 

BJP’s rural votes show talk of farm crisis misleading -SA Aiyar, The Times of India blog, 2 June, 2019, please click here to access

India bearing the cost of ignoring rural distress -Dr. Himanshu, Livemint.com, 21 May, 2018, please click here to access 

Tractor sales at all-time high -G Balachandar, The Hindu Business Line, 27 April, 2018, please click here to access 

Are rising tractor sales a sign of reviving demand in rural India? -Sayantan Bera, Livemint.com, 15 November, 2017, please click here to access 

Record tractor sales likely due to ample rains and farm loan waivers: Crisil -Sayantan Bera, Livemint.com, 2 August, 2017, please click here to access 

 



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