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चर्चा में.... | तैयार होगा 'सूचना के शहीदों' का सरकारी डाटाबेस
तैयार होगा 'सूचना के शहीदों' का सरकारी डाटाबेस

तैयार होगा 'सूचना के शहीदों' का सरकारी डाटाबेस

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published Published on Jul 23, 2015   modified Modified on Jul 23, 2015
सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता और जवाबदेही की बहाली के लिए संघर्ष कर रहे नागरिक संगठनों की बरसों की मांग, जान पड़ता है कि पूरी होने वाली है. यह सच है कि सरकार मीडियाकर्मियों, आरटीआई कार्यकर्ता और ह्वीस्लब्लोअर पर हुए हमले के आंकड़ों का संग्रह करने जा रही है.
 
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो(एनसीआरबी) ने राज्यों, संघशासित प्रदेशों और नगरों को एक नया फर्मा(टेम्पलेट) जारी किया है जिसमें मीडियाकर्मियों. ह्वीस्लब्लोअर तथा आरटीआई कार्यकर्ताओं में हुए हमलों की घटनाओं के बारे में जानकारी मांगी गई है. (जारी फर्मे के लिए देखें लिंक संख्या-1)
 
गौरतलब है कि आरटीआई कार्यकर्ताओं और ह्वीस्लब्लोअर पर बढ़ते हमलों को खबरों की नोटिस लेते हुए विगत में सांसदों ने सरकार से बार-बार जानना चाहा है कि अबतक कितनी ऐसी घटनाएं हुई हैं. सरकार का जवाब रहा है कि वह केंद्रीय स्तर पर ऐसे आंकड़ों का संग्रह नहीं करती.  आधिकारिक आंकड़ों के अभाव में फिलहाल आरटीआई कार्यकर्ताओं और ह्वीस्लब्लोअर पर हुए हमलों की संख्या और स्वभाव के बारे में जानकारी का प्रचलित स्रोत इससे संबंधित विकिपीडिया का पन्ना ही है.( देखें लिंक संख्या-2)
 
आरटीआई कार्यकर्ताओं और ह्वीस्लब्लोअर की सुरक्षा की मांग को लेकर सक्रिय नागरिक संगठनों ने सरकार की इस पहलकदमी का स्वागत करते हुए जारी किए गए फर्मे के संबंध में कुछ आशंकाएं जतायी हैं. नागिरक संगठनों का कहना है अगर कोई आरटीआई कार्यकर्ता, मीडियाकर्मी या ह्वीस्लब्लोअर अपने ऊपर हुए हमले में जान से मारा जाता है तो इस घटना को जारी किए गए फर्मे के मुताबिक ‘हत्या’ की श्रेणी में दर्ज करना होगा ना कि आरटीआई कार्यकर्ता, ह्वीस्लब्लोअर या मीडियाकर्मी पर हुए हमले के रुप में.( देखें लिंक संख्या-3)
 
गौरतलब है कि एनसीआरबी की तरफ से जारी फर्मे के मुताबिक फिलहाल आरटीआई कार्यकर्ता, ह्वीस्लब्लोअर या मीडियाकर्मी पर हमला इस श्रेणी में तभी दर्ज हो पाएगा अगर वह हमले के बाद जीवित हो.
 
जारी किए गए फर्मे से जुड़ा एक बड़ा सवाल यह भी है कि आरटीआई का पहली बार इस्तेमाल कर रहे किसी व्यक्ति पर हमला होता है तो इस वारदात को आरटीआई कार्यकर्ता पर हुआ हमला माना जाएगा कि नहीं. नागरिक संगठनों ने ऐसे उदाहरण का हवाला दिया है जिसमें आरटीआई का पहली बार इस्तेमाल कर रहा व्यक्ति मांगी गई सूचना के कारण ही हमले में मारा गया लेकिन पुलिस का जवाब था कि हत्या आरटीआई की अर्जी हासिल होने से कुछ दिन पहले ही हो चुकी थी.( देखें लिंक संख्या-4)
 
नागरिक संगठनों का यह भी कहना है कि ह्वीस्लब्लोअर या आरटीआई कार्यकर्ता पर हुए हमले की स्थिति में एनसीआरबी को फर्मे के मुताबिक सूचना देने का काम पुलिस अधिकारी के जिम्मे हैं लेकिन इस बात की गारंटी नहीं की जा सकती कि पुलिस अधिकारी किस व्यक्ति की पहचान ह्वीस्लब्लोअर के रुप में करेगा और किस व्यक्ति की नहीं. 
 

 

 

3. http://counterview.org/2015/07/22/police-officials-recordi
ng-complaints-of-crime-statistics-must-be-trained-to-ident
ify-attacks-on-activists-whistleblowers/

 

4. http://www.counterview.net/2015/06/cost-of-filing-rti-with
-police-in.html
 

 

इस कथा के विस्तार के लिए कुछ और सहायक लिंक

 http://economictimes.indiatimes.com/news/economy/policy/am
endment-to-whistleblower-protection-law-sparks-outrage-amo
ng-civil-society-activists/articleshow/47303193.cms

 

http://counterview.org/2015/05/12/it-may-be-easier-to-pass
-a-camel-through-the-eye-of-a-needle-than-to-get-an-inquir
y-launched-into-whistleblower-complaint/

 



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