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चर्चा में.... | न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों के लिए कितना मददगार ?
न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों के लिए कितना मददगार ?

न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों के लिए कितना मददगार ?

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published Published on May 6, 2015   modified Modified on May 6, 2015

अगर आप मानते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य देश के ज्यादातर किसानों को उपज का लाभकर मूल्य दिलाने में कारगर है तो आप गलत सोच रहे हैं।

अगर विश्वास ना हो तो नीचे राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की नई रिपोर्ट के इन तथ्यों पर गौर कीजिए।(देखें नीचे दी गई रिपोर्ट)

साल 2012 के जुलाई महीने से दिसंबर महीने के बीच देश के किसान प्रति क्विंटल धान में से महज 17 किलो सहकारी या सरकारी एजेंसियों को बेच पाये जबकि 41 किलो धान उन्हें स्थानीय दुकानदारों को बेचना पडा।

धान की शेष मात्रा उन्हें मंडी या फिर ऐसे लोगों को बेचना पड़ा जहां से उन्हें उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य हासिल नहीं होता।

अगले साल यानि 2013 के जनवरी से जून माह के बीच धान की बिक्री से न्यूनतम समर्थन मूल्य हासिल करने के अवसर और ज्यादा कम हुए। रिपोर्ट के अनुसार 2013 के जनवरी से जून माह की अवधि में देश के किसानों ने अपने प्रति क्विंटल धान की उपज में से 64 किलो स्थानीय दुकानदारों को बेचा जबकि सरकारी एजेंसी या फिर सहकारी संस्था को बेचे गये धान की मात्रा प्रति क्विंटल 6 किलो रही।

एनएसएसओ की रिपोर्ट के अनुसार गन्ने को छोड़कर मूंग, मसूर, अरहर, आलू, प्याज, ज्वार, चना, जौ, ज्वार सरीखी ऐसी कोई फसल नहीं जिसपर देश के किसान सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य का अधिकतम लाभ ले पाये हों।

मिसाल के लिए साल 2013 के जनवरी से जून महीने के बीच किसानों ने प्रति क्विंटल गेहूं की ऊपज में से मात्र 19 किलो सहकारी संस्था या फिर किसी सरकारी एजेंसी को बेचने में सफलता पायी। किसानों ने प्रति क्विंटल गेहूं में से 29 किलो स्थानीय दुकानदारों को बेचा और 44 किलो मंडी में। गेहूं की शेष मात्रा भी उन्हें ऐसे लोगों के हाथों बेचना पडा जहां से उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से ऊपज की कीमत नहीं मिली।

विभिन्न राज्यों के 4500 गांवों में तकरीबन 70 हजार किसान परिवारों के दो चरणों में सर्वेक्षण पर आधारित इस रिपोर्ट के अनुसार बहुत ही कम किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की जानकारी है और जिन किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की जानकारी है उनमें से 50 प्रतिशत से भी कम किसान सरकारी एजेंसी या सहकारी संस्था को अपनी ऊपज(गन्ने को छोड़कर) बेचते हैं।

मिसाल के लिए साल 2012 के जुलाई से दिसंबर महीने की अवधि के बीच धान की ऊपज बेचने वाले प्रति हजार किसान परिवारों में से मात्र 322 परिवारों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की जानकारी थी। इनमें से केवल 251 किसान-परिवार खरीद की सरकारी एजेंसी के बारे में जानते थे लेकिन केवल 135 किसानों ने ऊपज को सरकारी एजेंसी को बेचा।

देश के किसान-परिवारों की स्थिति के आकलन पर केंद्रित यह सर्वेक्षण-रिपोर्ट किसानों के शैक्षिक स्तर, आमदनी और खर्च, उत्पादक परिसंपत्तियों की मालकियत, आधुनिक प्रौद्योगिकी तक किसानों की पहुंच तथा ऋणग्रस्तता के साथ-साथ किसानों की स्थिति से संबंधित अनेक मामलों की सर्वेक्षण आधारित जानकारी देती है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय ने पहले अपने 59 वें दौर की गणना के अंतर्गत साल 2003 में कृषकों की स्थिति का सर्वेक्षण आधारित आकलन किया था। 2013 के सर्वेक्षण पर आधारित हालिया रिपोर्ट एक दशक बाद किसानी की दशा में आये बदलावों का पता देती है।.

रिपोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य---

 

--- वर्ष 2012 के जुलाआ से 2013 के जून महीने के बीच देश में तकरीबन 90.2 मिलियन खेतिहर परिवार थे। खेतिहर परिवारों की संख्या कुल ग्रामीण परिवारों की संख्या का 57.8 प्रतिशत है।

---- उत्तरप्रदेश में देश के कुल खेतिहर परिवारों की 20 प्रतिशत तादाद रहती है। यूपी में खेतिहर परिवारों की संख्या 18.05 है। राजस्थान के ग्रामीण परिवारों में खेतिहर परिवारों की संख्या सबसे ज्यादा (78.4 प्रतिशत) है। उत्तरप्रदेश के ग्रामीण परिवारों के बीच खेतिहर परिवारों की संख्या 74.8 प्रतिशत है जबकि मध्यप्रदेश में 70.8 प्रतिशत।

---- केरल में ग्रामीण परिवारों के बीच खेतिहर परिवारों की संख्या सबसे कम (27.3 प्रतिशत) है। तमिलनाडु के ग्रामीण परिवारों के बीच खेतिहर परिवारों की तादाद 34.7 प्रतिशत है जबकि आंध्रप्रदेश में 41.5 प्रतिशत।

 ---- सर्वेक्षण की अवधि के दौरान देश के लगभग 45 प्रतिशत खेतिहर परिवार ओबीसी समुदाय के थे जबकि 16 प्रतिशत खेतिहर परिवार अनुसूचित जाति के और 13 प्रतिशत खेतिहर परिवार अनुसूचित जनजाति समुदाय के थे।

---- सर्वेक्षण की अवधि में 45 प्रतिशत ग्रामीण परिवार ओबीसी समुदाय के थे जबकि 20 प्रतिशत परिवार अनुसूचित जाति के और 12 प्रतिशत ग्रामीण परिवार अनुसूचित जनजाति के थे।

--- सर्वेक्षण में तकरीबन 63.5 प्रतिशत खेतिहर परिवारों ने खेती को अपनी आमदनी का प्रमुख स्रोत बताया जबकि 22 प्रतिशत खेतिहर परिवारों ने मजदूरी को अपनी आमदनी का प्रधान स्रोत बताया।

---- जिन खेतिहर परिवारों की मालकियत में 0.01 हैक्टेयर या उससे कम जमीन थी उनमें से 56 प्रतिशत ने कहा कि हमारी आमदनी का प्रमुख स्रोत मजदूरी है जबकि 23 प्रतिशत का कहना था कि उनकी आमदनी का प्रमुख स्रोत पशुपालन है।

---- जिन खेतिहर परिवारों की मालकियत में 0.40 हैक्टेयर से ज्यादा की जमीन थी उनमें से ज्यादातर ने खेती को अपनी आमदनी का प्रधान स्रोत बताया  जिन खेतिहर परिवारों के पास -------- 0.01  से  0.04 हैक्टेयर की जमीन थी उन्होंने खेती(42 प्रतिशत) तथा मजदूरी (35 प्रतिशत) दोनों को अपनी आमदनी का प्रधान स्रोत बताया।.

----- केरल को छोड़कर अन्य सभी बड़े राज्यों में खेती और पशुपालन तथा अन्य कृषिगत गतिविधियां ज्यादातर खेतिहर परिवारों के लिए आमदनी का प्रमुख स्रोत हैं। केरल में 61 प्रतिशत खेतिहर परिवार अपनी आमदनी का ज्यादातर हिस्सा गैर-खेतिहर कामों से अर्जित करते हैं।

----- असम, छत्तीसगढ़ तथा तेलंगाना के 80 प्रतिशत से ज्यादा खेतिहर परिवारों ने खेती-बाड़ी को अपनी आमदनी का प्रमुख जरिया बताया। राजस्थान में हालांकि 78 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण परिवार खेतिहर हैं तो भी वहां सिर्फ 47 प्रतिशत खेतिहर परिवारों ने अपनी आमदनी का प्रमुख जरिया खेती-बाड़ी को बताया।

----- मध्यप्रदेश के 78 प्रतिशत खेतिहर परिवारों के लिए खेती-बाड़ी ही आमदनी का प्रमुख जरिया है जबकि वहां 71 प्रतिशत से कम ग्रामीण परिवार खेतिहर हैं।

----- तमिलनाडु, गुजरात, पंजाब तथा हरियाणा के 9 प्रतिशत खेतिहर परिवारों ने पशुपालन को आमदनी का प्रमुख स्रोत बताया।

----- देश के तकरीबन 93 प्रतिशत खेतिहर परिवारों के पास घराड़ी की जमीन के अतिरिक्त भी किसी ना किसी तरह की जमीन है जबकि 7 प्रतिशत खेतिहर परिवारों के पास सिर्फ घराड़ी की जमीन है।

----- देश के ग्रामीण अंचलों में तकरीबन 0.1 प्रतिशत परिवार भूमिहीन हैं। जिन खेतिहर परिवारों के पास 0.01 हैक्टेयर से कम जमीन है उनमें से 70 प्रतिशत परिवारों के पास सिर्फ घराड़ी की जमीन है।

----- देश के तकरीबन 12 प्रतिशत खेतिहर परिवारों के पास सर्वेक्षण के अवधि में राशनकार्ड नहीं थे। तकरीबन 36 प्रतिशत खेतिहर परिवारों के पास बीपीएल श्रेणी का राशन कार्ड सर्वेक्षण अवधि में पाया गयाय़ 5 प्रतिशत खेतिहर परिवारों के पास अंत्योदय श्रेणी का राशन कार्ड था।

----- खेती, पशुपालन, गैर-खेतिहर काम तथा मजदूरी को आपस में मिलाकर देखें तो इन सभी स्रोतों से खेतिहर परिवारों को सर्वेक्षण अवधि में औसतन मासिक आमदनी.6426/ रुपये की थी। सर्वेक्षण अवधि के दौरान खेतिहर परिवारों की आमदनी में खेती तथा पशुपालन से प्राप्त आय का इस मासिक आमदनी में 60 प्रतिशत का योगदान था। आमदनी का तकरीबन 32 प्रतिशत हिस्सा मजदूरी से आ रहा था।

----- सर्वेक्षण अवधि में अखिल भारतीय स्तर पर खेतिहर परिवारों का औसत मासिक व्यय.6223/ रुपये पाया गया।

----- देश के तकरीबन 52 प्रतिशत खेतिहर परिवार कर्जे में हैं। ऐसे हर खेतिहर परिवार पर औसतन 47000/ रुपये का कर्ज है।-

----- आंध्रप्रदेश में तकरीबन 92.9 प्रतिशत खेतिहर परिवारों पर कर्ज है जबकि तेलंगाना में 89.1 प्रतिशत तथा तमिलनाडु में 82.5 प्रतिशत खेतिहर परिवार कर्जे में हैं। असम (17.5 प्रतिशत), झारखंड (28.9 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ (37.2 प्रतिशत) में कर्जदार खेतिहर परिवारों की संख्या आंध्रप्रदेश की तुलना में कम है।

---- केरल में खेतिहर परिवारों के ऊपर सबसे ज्यादा कर्ज (.213600/- रुपये) है। इसके बाद आंध्रप्रदेश के खेतिहर परिवारों का नंबर है जहां कर्जदार खेतिहर परिवार पर औसतन 123400 रुपये का कर्ज है।  पंजाब में कर्जदार खेतिहर परिवारों के ऊपर 119500 रुपये का कर्ज है जबकि असम में ऐसे परिवारों के ऊपर 3400 रुपये का तथा झारखंड में ऐसे परिवारों के ऊपर 5700 रुपये का कर्ज है। छत्तीसगढ़ के कर्जदार खेतिहर परिवारों के ऊपर 10200 रुपये का कर्ज है।


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