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चर्चा में.... | कीटनाशकों पर अंकुश से कम हो सकती हैं किसान-आत्महत्याएं- नई रिपोर्ट
कीटनाशकों पर अंकुश से कम हो सकती हैं किसान-आत्महत्याएं- नई रिपोर्ट

कीटनाशकों पर अंकुश से कम हो सकती हैं किसान-आत्महत्याएं- नई रिपोर्ट

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published Published on Oct 22, 2019   modified Modified on Oct 22, 2019

दुनिया में आत्महत्या के हर पांच मामले में एक मामला कीटनाशक के जरिये आत्महत्या करने का होता है और आत्महत्या का यह तरीका निम्न आय-वर्ग में शामिल देशों के ग्रामीण तथा खेतिहर इलाकों में देखने को मिलता है. यह कहना है हाल ही में प्रकाशित पुस्तिका प्रीवेंटिंग स्यूसाइड: ए रिसोर्स फॉर पेस्टिसाइड रजिस्ट्रार्स एंड रेग्युलेटर का.

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) तथा फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन ऑफ युनाइटेड नेशन्स (एफएओ) द्वारा संयुक्त रुप से प्रकाशित इस पुस्तिका में कहा गया है कि निम्न आय-वर्ग में शामिल देशों में 1950 के दशक में हरित-क्रांति के अपनाये जाने के साथ खेती-बाड़ी सहित अन्य कामों में हानिकारक रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग बहुत ज्यादा बढ़ गया. घर और काम-काज की जगहों में कीटनाशकों की बाआसानी उपलब्धता के कारण आत्महत्या की प्रवृत्ति वाले लोगों के लिए कीटनाशकों को प्रयोग खुद को जहर देने के लिए करना आसान हो गया.

 

उच्च आय-वर्ग में शामिल देशों में अत्यंत हानिकारक श्रेणी में शामिल कीटनाशक या तो प्रतिबंधित हैं या फिर उनका उपयोग बड़े पेशेवर तरीके से मशीनी उपकरणों के सहारे किया जाता है लेकिन निम्न आय-वर्ग वाले देशों में ऐसे कीटनाशक हरित क्रांति के कारण बाआसानी मिल जाते हैं और उनका उपयोग बिना विशेष रोक-टोक के धड़ल्ले से होता है.

 


पुस्तिका के मुताबिक कीटनाशकों के उपयोग के जरिये आत्महत्या के 1.10 लाख से 1.68 लाख मामले विश्व में हर साल प्रकाश में आते हैं. अनुमान लगाया गया है कि छोटे स्तर की खेती में हरित क्रांति से जुड़ी प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल यानि 1950 के दशक के बाद से अबतक कीटनाशकों के उपयोग के जरिये 1 करोड़ 40 लाख लोग आत्महत्या कर चुके हैं. इन आत्महत्याओं में 95 फीसद तादाद निम्न आय-वर्ग में शामिल देशों के लोगों की है. पुस्तिका में कीटनाशकों पर नियंत्रण और नियमन के जरिये आत्महत्या की घटनाओं को रोकने पर बल दिया गया है.

 

डब्ल्यूएचओ एवं एफएओ की उक्त पुस्तिका में आत्महत्या की कई वजहें बतायी गई हैं जिसमें मानसिक रोग, गंभीर अवसाद, रिश्ते या फिर विवाह-संबंध का टूटना, शारीरिक बीमारी, रोजगार की हानि, हिंसा की स्थिति में पड़ना, बालपन में दुर्व्यवहार का शिकार होना, मादक द्रव्यों का सेवन, शराबखोरी की लत सहित आत्महत्या का अत्यंत मारक तरीकों तक पहुंच जैसी बातें शामिल हैं. पुस्तिका के मुताबिका आत्महत्या की तात्कालिक वजहें मनोवैज्ञानिक (मानसिक अवसाद), सामाजिक (पारिवारिक कलह और झगड़े), सांस्कृतिक (आत्महत्या के प्रति धार्मिक दृष्टिकोण) तथा आर्थिक ( गरीबी, कर्ज, दिवालियापन आदि) बताये गये हैं. खेतिहर समुदाय के लोगों में वित्तीय कठिनाई, और फसल का मारा जाना आत्महत्या का उत्प्रेरक हो सकता है.

 

पुस्तिका में चिन्हित किया गया है कि फांसी लगाना, कीटनाशक पीना तथा आग्नेयास्त्रों का इस्तेमाल दुनिया में आत्महत्या के तीन प्रमुख तरीके हैं. उच्च आय-वर्ग में शामिल देशों में आत्महत्या के मामलों में जहर के तौर पर दर्दनिवारक दवाओं, अवसाद के लक्षणों में दी जाने वाली दवाओं तथा ट्रैंक्वलाइजर का इस्तेमाल प्रमुख है. ये चीजें विशेष जहरीली नहीं होती और इसी कारण इनके जरिये होने वाले आत्महत्या के प्रयासों में व्यक्ति के बचने की संभावना बनी रहती है. लेकिन निम्न आय-वर्ग में शामिल देशों में अत्यंत घातक कीटनाशकों का उपयोग होता है और इससे मरने वालों की तादाद अपेक्षाकृत ज्यादा है.

 

रासायनिक कीटनाशकों के स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव से संबंधित प्रभूत अध्ययन-सामग्री उपलब्ध है. डब्ल्यूएचओ-एफएओ द्वारा जारी पुस्तिका में कहा गया है कि घरेलू स्तर पर अथवा किसी पेशे में होने के कारण कोई व्यक्ति लंबे समय तक कीटनाशकों के संपर्क में रहता है तो उसे त्वचा रोग, सांस के रोग, कैंसर तथा प्रजनन-अंगों से संबंधित रोग हो सकते हैं, साथ ही रोजमर्रा के व्यवहार में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. कुछ कीटनाशक अत्यंत घातक होने के कारण मृत्यु की वजह बन सकते हैं.

 

कीटनाशकों के जरिये होने वाली आत्महत्या की रोकथाम

 

फसल के कीटों को मारने के लिए रासायनिक कीटनाशकों का विकल्प मौजूद है जैसे इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट तथा इंटीग्रेटेड वेक्टर मैनेजमेंट. पुस्तिका में कहा गया है कि कीटों की रोकथाम के लिए डब्ल्यूएचओ तथा एफएओ इन्हें बढ़ावा देते हैं.

 

पुस्तिका में रासायनिक कीटनाशकों की जरिये होने वाली आत्महत्याओं को रोकने के लिए कई समाधान सुधाये गये हैं जैसे :

 

* आत्महत्या के मामलों में इस्तेमाल हुए घातक कीटनाशकों की पहचान;

 

* चलन से बाहर करने के मकसद से विशेष हानिकारक कीटनाशकों को चिन्हित करना;

 

* विशेष हानिकारक कीटनाशकों को चरणबद्ध ढंग से चलन से बाहर करने के लिए नियमनकारी कदम उठाना, कम हानिकारक विकल्पों के प्रयोग के बारे में सलाह और प्रशिक्षण देना;

 

* हानिकारक कीटनाशकों के मनुष्य पर प्रभाव से संबंधित आंकड़ों का संग्रहण जिसमें जोर उन कीटनाशकों के असर पर हो जिनके शरीर में प्रवेश का घातक हो. इस जानकारी का इस्तेमाल नये कीटनाशक उत्पादों के पंजीकरण में किया जाय.

 

*कम जोखिम वाले कीटनाशकों के पंजीकरण और इस्तेमाल को प्रोत्साहन;

 

* निरीक्षण और अन्य नियमनकारी कदमों को चुस्त-दुरुस्त बनाना;

 

* मामले से संबंधित विभिन्न पक्षों के परस्पर विरोधी हितों और उनकी टकराहट को समझना;

 

* अत्यंत घातक कीटनाशकों की जगह अपेक्षाकृत सुरक्षित विकल्पों का इस्तेमाल हो, इसके लिए शोध-अनुसंधान को बढ़ावा देना

 

बीते सालों में हुए बहुत से अध्ययनों को आधार बनाकर डब्ल्यूएचओ-एफएओ की पुस्तिका में कहा गया है कि श्रीलंका में कई कीटनाशकों पर सिलसिलेवार प्रतिबंध लगे जिससे 1995 से 2015 के बीच आत्महत्या के मामलों में 93000 की तादाद में कमी आयी और आत्महत्या के मामले 70 फीसदी घट गये. शोध-अध्ययनों से भी यह भी पता चलता है कि घातक कीटनाशकों को प्रतिबंधित करने का उपज पर कोई नकारात्मक असर नहीं होता. ऐसा श्रीलंका, बांग्लादेश तथा कोरिया गणराज्य में देखने में आया है. इन देशों में घातक कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने के कारण आत्महत्या के मामलों में कमी देखी गई है.

 

विशेष घातक कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने से पहले उनके किफायती विकल्पों का होना जरुरी है. ऐसा ना होने पर घातक कीटनाशकों का अवैध व्यापार, उत्पादन तथा प्रतिबंधित उत्पाद का उपयोग जारी रह सकता है. रोट्रेडम कन्वेंशन (1998) के तहत घातक रसायनों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का नियमन किया गया है जिसमें घातक कीटनाशकों के व्यापार का नियमन भी शामिल है. साथ ही, स्टॉकहोम कन्वेंशन के तहत प्रदूषणकारी तत्वों (जैसे कीटनाशक) के उत्पादन तथा प्रयोग को सीमित करने संबंधी विधान किये गये हैं.



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