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चर्चा में.... | ये 'अल–नीनो' क्या बला है?
ये 'अल–नीनो' क्या बला है?

ये 'अल–नीनो' क्या बला है?

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published Published on Mar 22, 2023   modified Modified on Mar 24, 2023

एक अनुमान की माने तो वर्ष 2023 अल–नीनो की आगोश में आ जाएगा।अल–नीनो का संयोग भारत के लिए अशुभ माना जाता है।क्योंकि अल–नीनो के कारण कई बार बारिश की मात्रा में गिरावट आ जाती है; हिंदुस्तान के करोड़ों लोगों की उम्मीदों पर अल–नीनो तुषारापात करता है। ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि अल–नीनो नाम की बला है क्या? आज का लेख उसी के नाम!

अल–नीनो का प्रभाव मानसून और महासागर की दशाओं पर पड़ता है मौसम और महासागर आपस में जुड़े हुए हैं; महासागर के बिना मौसम का कोई खास अस्तित्व नहीं रहता।अल–नीनो के मानसून पर डाले गए प्रभाव को समझने से पहले बारिश के कॉन्सेप्ट को सामान्य भाषा में समझने की कोशिश करते हैं। 

बारिश

 

आपने चौथी कक्षा में जल चक्र के बारे में पढ़ा होगा। जिसमें सूर्य की किरणें पृथ्वी पर आती हैं, तभी जलाशयों में फैला पानी वाष्पीकृत होकर हवा में चला जाता है। पौधों में वाष्पोत्सर्जन की क्रिया होती है और उससे भी जल वाष्प हवा में समा जाती है।यानी हवा में जलवाष्प मौजूद रहती है; कहीं पर ज्यादा तो कहीं पर कम।

जब सूरज की किरणें धरातल पर पड़ती हैं तब सरफेस के आस–पास की हवा गर्म हो जाती है। जैसे ही तापमान बढ़ता है, हवा का वजन कम हो जाता है। हल्की हवा, जलवाष्प को अपने में समाहित कर नीले आसमान की ओर जाने लगती है; क्योंकि भारी हवा धरातल की ओर आती है। हवा जब एक खास ऊंचाई पर पहुंच जाती है तब जलवाष्प, जल की बूंदों में रूपांतरित हो जाती है। भूगोल में इसे संघनन कहते हैं। यहां से शुरुआत होती है बादलों के बनने की; बरसने वाले बादलों के बनने की।

तस्वीर में- जल चक्र.

जल की बूंदें, छोटे–छोटे कणों (संघनन केंद्रक) का सहारा लेकर बादल बनाती हैं। 

जब हवा में फैले बादलों का प्रतिरोध गुरुत्वाकर्षण की तुलना में कम हो जाता है तब बरसात होती है।

 

बरसात में पवनों की भूमिका

हमने समझा कि समुद्र का जल वाष्पीकृत होकर भांप में तब्दील हो जाता है। फिर ये जलवाष्प वायुमंडल में चली जाती है। वायुमंडल में फैली हवा को सूर्य की किरणें गर्म कर देती हैं।और ये हवा ऊपर जा कर बादल का रूप धारण कर देती है। फिर सवाल ये उठता है कि दरिया से उठकर ऊपर गई हवा से बनने वाले बादल जमीन पर कैसे बरसते हैं? 

पवनों के कारण। वायुमंडल में अलग–अलग तरह की पवनें बहती हैं; जैसे प्रचलित पवनें, स्थानीय पवनें और प्रादेशिक पवने। ये पवनें जलवाष्प से युक्त हवा को धकेल कर महाद्वीप के ऊपर लाती हैं। भारत के उदाहरण से समझते हैं– गर्मी की ऋतु में हिन्दुस्तान में हवा गर्म हो जाती है, और वायुदाब कम हो जाता है। वायुदाब की इस कमी को पूरा करने के लिए हिंद महासागर से पवनें आती हैं जो किजलवाष्प से युक्त हवा को धकेलते हुए आती हैं। हम कहते हैं मानसून आ गया।

मानसून शब्द की व्युत्पत्ति अरबी शब्द ‘मौसिम’ से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है– मौसम मानसून का अर्थ है, एक वर्ष के दौरान वायु की दिशा में ऋतु के अनुसार परिवर्तन होना।

मौसम के निर्धारण में महासागरों की खास भूमिका रहती है। यदि महासागर की सतह पर पानी की गर्म धारा बह रही हो (प्राकृतिक रूप से) तब ऊपरी हवा में जलवाष्प की आवक अधिक रहती है। वहीं किसी समुद्र की सतह पर ठंडी धारा बह रही हो तो हवा में जलवाष्प का समावेशन कम होगा। कुल मिलाकर मानसून के निर्धारण में महासागर महती भूमिका निभाता है।

पवन और महासागरीय जलधारा

प्रचलित पवनें, वर्षभर लगभग नियत दिशा में सामान्यतः एक खास गति के साथ बहती हैं। जब ये पवने समुद्र के ऊपर से गुजरती हैं तब घर्षण (फ्रिक्शन) के कारण महासागरों के जल में भी गति आ जाती है। इसीलिए, पवनों के बराबर वाला, समंदर का ऊपरी जल गतिशील रहता है। (ये एक कारक है, ऐसे कई कारक जिम्मेदार)

उदाहरण के माध्यम से सीखते हैं– उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में, भूमध्य रेखा के पास, दोनों गोलर्धों में ‘व्यापारिक पवनें (ट्रेड विंड) चलती हैं। जब ये पवनें महासागर के ऊपर जाती हैं तब घर्षण होता है। इसी घर्षण से महासागर में जल धाराओं का गठन हो जाता है। उत्तरी गोलार्ध की जलधारा को ‘उत्तरी विषुवतीय जलधारा’ कहते हैं। जो कि उत्तरी गोलार्ध में बहने वाली व्यापारिक पवन के समानांतर दिशा में बहती है।

अब बात अल–नीनो की

 

दिसंबर के महीने में पूर्वी प्रशांत महासागर के किनारे, पेरू देश के तट के पास एक गर्म जलधारा निकलती है, जिसे अल–नीनो के नाम से जाना जाता है। ये धारा दुनियाभर के मौसम तंत्रों में बदलाव लाती है। सूखे मरुस्थलों में भारी बारिश हो जाती है और भारी बारिश वाले इलाकों में सुखाड़।

तसवीर में- अल-नीनो & ला-नीना वर्षों का विवरण

अल–नीनो एक स्पैनिश शब्द है; जिसका शाब्दिक अर्थ है–छोटा लड़का; क्योंकि ये धारा दिसंबर के महीने में क्रिसमस के आस–पास नज़र आती है इसलिए इसे ‘बेबी क्राइस्ट’ के नाम से भी जान जाता है।

 

अल–नीनो का असर भारत के मौसम तंत्र पर भी पड़ता है। बहरहाल पहले सामान्य दशा (बिना अल–नीनो) को समझते हैं।

 

सामान्य परिस्थिति में विश्व का मौसम

  

सामान्य दशा में– दक्षिण पूर्वी व्यापारिक पवन, दक्षिण अमरीकी महाद्वीप से प्रशांत महासागर के ऊपर आती है तब पेरू के तट पर सागर से टकराती है। इस टकराव से घर्षण उत्पन्न होता है। और ऊपरी हिस्से का जल पवन के साथ गति करने लगता है।उसकी जगह पर ठंडा जल आ जाता है। ये ठंडी जलधारा का निर्माण करता है, जिसे हम पेरू या हंबोल्ट की जलधारा के नाम से जानते हैं। ठंडी जलधारा के कारण यहां उच्च दाब बन जाता है।

तस्वीर में- व्यापारिक पवन जब सशक्त होती है तब घर्षण अधिक, ऊपरी गर्म जल को अपने साथ ले जाती हैं, वहां ठंडी जलधारा का निर्माण

जहां उच्च दाब बनता है वहां बारिश होने की संभावना कम हो जाती है। क्योंकि हवा गर्म होकर ऊपर नहीं उठेगी। और ऊपर नहीं उठेगी तब बादल नहीं बनेंगे। यानी पेरू देश के पश्चिमी हिस्से में बारिश नहीं होगी, होगी तो भी कम होगी। इसी का नतीजा है सेचुरा मरुस्थल।

व्यापारिक पवनों के साथ–साथ विषुवतीय जलधाराएँ बहते हुए इंडोनेशिया द्वीप समूह से जाकर टकराती है। इंडोनेशिया के पास गर्म जलधारा का पानी इकट्ठा होता है। (समंदर की ऊपरी सतह का पानी होता है और गति के कारण गर्म हो जाता है)

इंडोनेशिया के पास गर्म जल से सटी जलवाष्प युक्त हवा ऊपर उठ जाती है। और बारिश करती है। ऊपरी उठी हवा में से एक पैकेट सोमालिया के तट पर जाकर गिरता है। वहां उच्च दाब का निर्माण हो जाता है।

जब पवनें हिंद महासागर में आती है, तो सोमालिया के पास बने उच्च दाब से टकरा कर हिंदुस्तान की ओर मुड़ जाती हैं; जिससे भारत में अच्छी बारिश होती है।

पूर्वी हिंद महासागर ( यानी इंडोनेशिया के पास) गर्म पानी के इकट्ठा हो जाने से समुद्र तल थोडा-सा ऊपर उठ जता है, वहीँ पश्चिमी हिन्द महासागर में उच्च दाब के कारण समुद्र तल नीचे हो जाता है। इस कारण गर्म जल का प्रवाह पूर्वी हिंद महासागर से पश्चिमी हिन्द महासागर की ओर होता है। इस गर्म जल से तड़ित झंझाओं का निर्माण शुरू हो जाता है, जो कि आख़िरकार भारत में बरसात की मात्रा को बढ़ाते हैं।

 

तस्वीर को देखिए ! सामान्य वर्ष में पेरू के तट पर (आपके दाएं हाथ वाले भाग में) ठंडी जलधारा बह रही है। इंडोनेशिया के पास गर्म जल इकट्ठा हो रहा है।

तस्वीर के दूसरे भाग में ठंडी जलधारा की जगह गर्म जलधारा का पानी आ जाता है। और पेरू के पास में पहले उच्च दाब बनता था वहां अब निम्न दाब का निर्माण हो जाता है।

तस्वीर में- सामान्य वर्ष में हिन्द महासागर.

गर्म जल से उठाने वाली जलवाष्प युक्त हवा हिंदुस्तान की ओर मुड़ जाती है. फिर भारत में बरसात.

अल–नीनो की दशा क्यों बनती है?

 

अल–नीनो एक प्राकृतिक घटना है न कि मानवजनित। हालांकि, ग्लोबल वार्मिंग के कारण इसकी बारंबारता व गहनता में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है।

कभी–कभी सूर्य ताप की मात्रा घटने लगती है। जिसके कारण व्यापारिक पवनें क्षीण हो जाती हैं; परिणामस्वरूप समंदर की जल धाराओं में बदलाव आ जाता है।

 

अल–नीनो की पूरी प्रक्रिया

 

व्यापारिक पवन के कमजोर हो जाने से– जब पवन पेरू के तट पर टकराती है तब गर्म पानी को अपनी जगह से नहीं हटा पाती है। बल्कि उस क्षेत्र में प्रति विषुवत रेखीय जलधारा का गर्म जल आ जाता है (पश्चिम से पूर्व की ओर)।

 

गर्म जल के कारण निम्न दाब का गठन होगा। हवा में जलवाष्प की आवक होगी। हवा गर्म होकर ऊपर उठ जाएंगी। वहां भारी बारिश होगी। इसीलिए कहा जाता है कि अल–नीनो के काल में मरुस्थल में भारी बारिश होती है।

पूर्वी प्रशांत महासागर (पेरू के पास) से जब हवा ऊपर उठती है तब एक पैकेट पूर्वी हिंद महासागर (इंडोनेशिया) के पास जाकर गिरता है।

इंडोनेशिया के पास उच्च दाब का गठन हो जाता है।क्योंकि हवा ठंडी है, तो संवहन या कनवेक्शन (जलवाष्प युक्त हवा का आसमान की ओर जाना) की क्रिया नहीं हो पाएगी। इंडोनेशिया के पास उच्च दाब बनने से, पश्चिमी हिंद महासागर (सोमालिया के पास) में निम्न दाब बन जाता है।

सामान्य स्थिति में सोमालिया के पास उच्च दाब रहता था ओर ये उच्च दाब पवनों को भारत की ओर मोड़ देता था।अल-नीनो के दौरान पश्चिमी हिंद महासागर में निम्न दाब निर्मित हो जाता है।निम्न दाब के कारण पवनों की दिशा में बदलाव नहीं आता है, और पवनें मुड़ने की बजाए सीधी चली जाती हैं अफ्रीकी महाद्वीप पर। ये पवनें पूर्वी अफ्रीकी देशों में बारिश की सम्भावना को बढा देती हैं।

पवनों की दिशा में बदलाव नहीं होने के कारण हिंदुस्तान में मानसून देरी से आता है; कमजोर मानसून आता है। इसलिए, भारत की नज़र से अल–नीनो को शुभ नहीं माना जाता है। हालाँकि, अल-नीनो की घटना से हर बार भारत के मानसून पर बुरा असर पड़ेगा ये ज़रूरी नहीं; क्योंकि कई अन्य कारक भी काम करते हैं।

 

 

 

 

 

 

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References-

El Nino, La Nina and the Indian sub-continent by M R Ramesh kumar for down to earth, please click here.
जानिए, क्या है अल नीनो और ला नीना और क्या होता है इसका असर by Dayanidhi for down to earth, please click here.

What are El Niño and La Niña? by National Ocean Service,  please click here.
El Niño, La Niña and changing weather patterns by Priyali For The Hindu please click here.
What are El Niño and La Niña? from The hindu please click here.
Possible El Nino conditions this year could lead to deficit in monsoons: climate experts from Indian Express.
INDIA METEOROLOGICAL DEPARTMENT, please click here.



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