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चर्चा में.... | मौसम विभाग की रिपोर्ट ; पांचवां सबसे गर्म साल रहा 2022
मौसम विभाग की रिपोर्ट ;  पांचवां सबसे गर्म साल रहा 2022

मौसम विभाग की रिपोर्ट ; पांचवां सबसे गर्म साल रहा 2022

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published Published on Jan 18, 2023   modified Modified on Jan 18, 2023

भारत में मौसमी घटनाओं के कारण वर्ष 2022 में 2,227 लोगों की जाने चली गई। सबसे अधिक मौतें बिहार राज्य (418) से हुई हैं। उसके बाद असम से 257, उत्तर प्रदेश से 201, ओडिशा से 194 और महाराष्ट्र के 194 लोगों की जीवन लीला मौसमी कारकों के कारण समाप्त हो गई। मौसम विभाग की रपट के अनुसार;

इसके पीछे की वजहों को देखें तो सबसे बड़ा कारक आकाशीय बिजली और आंधी–तूफान है। इस कारक ने 1285 लोगों को लील लिया। नीचे एक पाई चार्ट दिया गया है। जिसमें कारकों के आधार पर मौत के आंकड़ों को दर्शाया है।

चार्ट-1. चरम मौसमी घटनाओं के कारण वर्ष 2022 में हुए मौतें, कारकों के आधार पर

Other Events: COLD WAVE + CYCLONIC STORM + GALE + SQUALL

Source- Statement on Climate of India during 2022 कृपया देखने के लिए यहां क्लिक करें


 

आकाशीय बिजली और आंधी के कारण सबसे अधिक मौतें बिहार (415) से हुई। उसके बाद ओड़िशा से 168 की और झारखंड में 122 लोगों की मौतें हुई। बाढ़ ने सबसे अधिक तांडव असम में मचाया, 198 लोगों की मृत्यु हो गई। उसके बाद उत्तर प्रदेश में, 78 लोग मरे।

 

धरती लगातार तप रही है

 

वैश्विक तापमान में निरंतर बढ़ोतरी आ रही है। वर्ष 2022, 1901 से लेकर अब तक का पांचवां सबसे गर्म साल रहा। इस दौरान तापमान ‘लंबी अवधि के औसत’ से 0.51 डिग्री सेल्सियस अधिक था। आपको याद होगा 0.71 डिग्री सेल्सियस के साथ सबसे अधिक बढ़ोतरी वर्ष 2016 में हुई थी।

 

लंबी अवधि का औसत– वैश्विक तापमान में हुई बढ़ोतरी या गिरावट का अध्ययन करने के लिए कुछ वर्षों के वार्षिक तापमान को दर्ज कर उसका औसत निकाला जाता है। मौजूदा लंबी अवधि में वर्ष 1981 से लेकर वर्ष 2010 तक के तापमान को शामिल किया है।

 

वर्ष 2022 का लेखा-जोखा

जनवरी और फरवरी के महीनों में तापमान सामान्य था। मानसून पूर्व के महीनों (मार्च से मई तक) में तापमान सामान्य से अधिक (+1.06 डिग्री सेल्सियस) हो जाता है। मानसूनी महीनों (जून से सितंबर) में भी बढ़ोतरी (+0.36°C की) बनी रहती है। मानसून खत्म होने के बाद (अक्टूबर से दिसंबर तक) भी तापमान सामान्य से अधिक (+0.52°C) बना रहता है।

 

राष्ट्रव्यापी पैमाने पर राष्ट्र के समग्र औसत तापमान में मार्च और अप्रैल ने नई लकीर खींची है। महीने के अधिकतम तापमान के मामले में वर्ष 2022 का मार्च महीना साल 1901 से अब तक का सबसे गर्म (+1.61°C) महीना रहा। अप्रैल महीना, सन् 1901 से अब तक का दूसरा सबसे अधिक तापमान (+1.36°C) वाला माह रहा। 1.0°C की अधिकता के साथ दिसंबर महीना सन् 1901 से लेकर अब तक का सबसे गर्म दिसंबर महीना रहा।

मार्च और अप्रैल के करीब छ दिनों तक धरती का तापमान सामान्य से अधिक (3°C से 8°C तक) रहा।

पिछला दशक (2012–2021/ 2013–2022) इतिहास में सबसे अधिक तापमान वाला दशक रहा। इस दशक में 0.37 डिग्री सेल्सियस या 0.41 डिग्री सेल्सियस तापमान की बढ़ोतरी दर्ज हुई है।

 

तापमान बढ़ने से क्या हुआ?

ओडिशा, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और झारखंड में हीट वेव का सामना करना पड़ा। अप्रैल महीने के आखिरी में हिंदुस्तान का लगभग 70 फीसदी भाग हीट वेव से पीड़ित था। हीट वेव का दंश देश के पूर्वी और तटीय हिस्सों को भी झेलना पड़ा। कृपया यहां, यहां और यहां क्लिक कीजिए।

हीट वेव ने जंगलों में लगने वाली आग की संभावना को भी प्रबल किया।

 

तापमान की हुंकार और गेहूं की फसल

 

तस्वीर में- गेहूं की फसल, सांकेतिक फोटो

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की रिपोर्ट के अनुसार, हीट वेव के कारण गेहूं के उत्पादन में कमी आई है। ये कमी 15 से 25 फीसदी के आस–पास ठहरती है। पंजाब राज्य में गेहूं की उपज प्रति हेक्टेयर 43 क्विंटल की हुई जो कि वर्ष 2000 के बाद सबसे कम है। इसी रिपोर्ट के अनुसार मार्च महीने का उदय होने तक गेहूं की फसल ठीक थी लेकिन हीट वेव ने काम तमाम कर दिया।

पंजाब में किन्नू की उपज 23 फीसदी घट गई। उत्तर प्रदेश में आम के बागानों को नुकसान झेलना पड़ा। राजस्थान के सिरोही और भीलवाड़ा जिले में पपीता की खेती पर बुरा असर पड़ा।

ऐसे ही कई राज्यों में जायद की खेती हीट वेव के कारण सिकुड़ गई। जैसे हिमाचल में सेब के बागान और पाली जिले में फूल की खेती।

हीट वेव का प्रभाव दूध के उत्पादन पर भी पड़ा। दूध के उत्पादन में 15 प्रतिशत की कमी आई।

 

मौसम और जलवायु

क्षोभमंडल में हो रहे तेज–तेज बदलावों को मौसम कहते हैं। जबकि जलवायु, मौसमी दशाओं का औसत रूप है। एक जलवायु प्रदेश में जलवायविक दशाएं एक समान रहती हैं। जलवायु में परिवर्तन धीरे–धीरे होता है।

 

उदाहरण के माध्यम से समझते हैं, भारत में औसत वर्षा 88 सेंटीमीटर (± 9_ है। [जिसे हम LPA (Long Period Average) भी कहते हैं] इस औसत वर्षा के पैमाने को आधार बनाए तो भारत में उष्णकटिबंधीय प्रकार की जलवायु है। हां, ये हो सकता है कि किसी वर्ष बारिश ज्यादा हो जाए, किसी वर्ष कम लेकिन औसत मान स्थिर है, परिवर्तन धीमी गति से होगा।

 

मौसम में कई सारे पहलू समाहित हैं जैसे- बारिश, सूरज का ताप, आर्द्रता, हवा की गति इत्यादि। इनमें दैनिक या मासिक अंतराल पर तेजी से परिवर्तन होते रहते हैं। अगर कहीं कम या ज्यादा बारिश हो जाती है तो इसके पीछे का कारण मौसम में हुआ बदलाव है। लेकिन लंबे समय तक कहीं ज्यादा या कम बारिश हो रही हो तो ये जलवायु परिवर्तन का एक सबूत हो सकता है।

 

ग्लोबल वार्मिंग क्या होता है

सूरज की किरणें जमीं पर आती हैं तभी जीवन संभव है। ये किरणें ऊर्जा का मुख्य स्रोत हैं। सूर्य की किरणें थोड़ी देर बाद अपने आप लौट जाती हैं। पर औद्योगिक विकास के नाम पर चल रहे कारखानों ने कई गैसों को सह उत्पाद के रूप में छोड़ दिया। जिसके कारण वायुमंडल में मौजूद गैसों की साम्यावस्था गड़बड़ा गई। धरती के ऊपर बसी ये अदृश्य गैस सूर्य की किरणों को लंबी देर के लिए रोकने लगती है, जिससे तापमान बढ़ जाता है। इसे अंगरेजी में ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं और हिंदी में तापमान का बढ़ना। तापमान बदलेगा तो हवा में आर्द्रता बदलेगी, वायुमंडलीय दबाव परिवर्तित होगा, समुंदर का तल बढ़ेगा, अतः ऐसे कई मौसमी कारकों में बदलाव आएगा। ये बदलाव जलवायु परिवर्तन कहलाएंगे।

मानसून और बारिश

साल 2022 में मानसून नियत समय से पहले आया और देरी से लौटा था। भारत में अच्छी बारिश हुई। "लंबी अवधि के औसत" का 108 फीसदी बारिश भारत में हुई। (यहां लंबी अवधि के औसत को निकलने के लिए वर्ष 1971 से वर्ष 2020 तक के आंकड़ों को शामिल किया है।)

भारत में बारिश के दो सीजन हैं। पहला, दक्षिण पश्चिमी मानसून और दूसरा उत्तर पूर्वी मानसून। ज्यादातर बारिश पहले सीजन में होती है। वर्ष 2022 में दक्षिण पश्चिमी मानसून के दौरान एलपीए की 106% बारिश हुई। मानसून की ये धारा अपने में चार क्षेत्रों को समेटती है।

1. दक्षिणी प्रायद्वीप– यहां एलपीए की 122% बारिश हुई।

2. मध्य भारत का क्षेत्र–यहां एलपीए की 119% बारिश हुई। 

3. उत्तर–पश्चिमी क्षेत्र में एलपीए की 101 फीसदी बारिश हुई।

4. पूर्वी और उत्तर पूर्वी क्षेत्र को एलपीए की 82 फीसद बारिश प्राप्त हुई।

 

यहां गौर करने वाली बात ये है कि समग्र वर्षा का मान अच्छा होना काफी नहीं है। क्योंकि हो सकता है किसी एक क्षेत्र में बरखा जम के बरसा हो वहीं दूसरे में बारिश कम हुई हो।

 

अब बात मानसून के बाद की वर्षा यानी उत्तर पूर्वी सीजन की करते हैं। इस सीजन में मेघा जम के बरसे। बारिश सामान्य से अधिक (एलपीए का 119%) हुई।

बारिश के अधिक होने से बाढ़ की आफत आ जाती है। भारत के असम राज्य में बाढ़ ने अप्रैल महीने में दस्तक दे दी थी। जिस पर हमने न्यूज अलर्ट भी लिखा था। जिसे कृपया आप यहां से पढ़ें।

साल 2022 में बैंगलोर शहर ने भी बाढ़ के दंश को झेला। ये अर्बन बाढ़ थीं, अनियोजित नगरीकरण के कारण उपजी हुई।

चक्रवात का भंवर

वर्ष 2022 में उत्तरी हिंद महासागर में तीन चक्रवाती तूफान निर्मित हुए। जिसमें से दो गंभीर श्रेणी के थे, पहला असानी और दूसरा मैंडूस। तीसरे चक्रवाती तूफान का नाम सीतरंग था। ये तीनों बंगाल की खाड़ी में निर्मित हुए थे। मैंडूस, मानसून के बाद (6 से 10 दिसंबर के बीच) आया था। जिसका दायरा आंध्र प्रदेश, पुदुचेरी और तमिलनाडु तक था। असानी, मानसून से पहले (7 से 12 मई) आया था। सीतरंग का असर असम और मिजोरम पर पड़ा। हालांकि, सीतरंग और असानी के कारण किसी इंसान की जान नहीं गई।

 

चरम मौसमी घटनाओं के कारण कई लोग चल बसे। राज्यवार आंकड़ों को देखने के लिए नीचे दिए गए चार्ट को देखिए।

Source- Statement on Climate of India during 2022 कृपया देखने के लिए यहां क्लिक करें

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सन्दर्भ-
Statement on Climate of India during 2022, Please click here.
1,750 Indians died due to extreme weather events in 2021 from IM4Change.org Please click here. In hindi Please click here.
बाढ़ को असम से इतनी मोहब्बत क्यों ? from IM4Change.org Please click here.

ग्लोबल वार्मिंग क्या है? हम पर इसका क्या असर होता है? डाउन टू अर्थ. कृपया यहाँ क्लिक कीजिये.
Global Warming: Causes and Remedy from india water portal Please click here.
March-April heatwave impacted agriculture in 9 Indian states: ICAR report from Down to earth, please click here.
In North India, unforgiving heatwaves have reduced the yield and quality of wheat this year from scroll.in, please click here.
Heat wave 2022 - Causes Impacts and way forward for Indian Agriculture. from ICMR Please click here.
 


तस्वीर साभार- प्रोफसर आनंद प्रधान


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