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चर्चा में.... | टीबी कब हारेगा और देश कब जीतेगा ? क्या वर्ष 2030 तक पूरी दुनिया से टीबी रोग का खात्मा हो जाएगा ?
टीबी कब हारेगा और देश कब जीतेगा ? क्या वर्ष 2030 तक पूरी दुनिया से टीबी रोग का खात्मा हो जाएगा ?

टीबी कब हारेगा और देश कब जीतेगा ? क्या वर्ष 2030 तक पूरी दुनिया से टीबी रोग का खात्मा हो जाएगा ?

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published Published on Nov 17, 2022   modified Modified on Nov 21, 2022

सन् 1962 की बात है। भारत के सैनिक सीमा पर चीनी घुसपैठियों से लड़ रहे थे। तभी एक और जंग देश के भीतर शुरू की गई। यह लड़ाई तपेदिक या टीबी रोग के खिलाफ थीं। चीन से छिड़ी जंग एक महीने के समय अंतराल में अपने अंजाम पर पहुंच गई। पर देश के भीतर टीबी के खिलाफ छेड़ी गई जंग तक़रीबन 60 वर्षों के बाद भी जारी है। आज भी भारत की छाती पर टीबी बाहुल्य देश का बिल्ला लगा हुआ है। (विश्व के लगभग 28 फीसदी टीबी मरीज भारत में निवास करते हैं।) फिर प्रश्न यह उठता है कि ‘हंगाम–जंग’ कब पूरा होगा? अब तक यह जंग नतीजे तक क्यों नहीं पहुंची? क्या वर्ष 2025 तक टीबी के खिलाफ जारी युद्ध की रणभेरी शांत हो जाएगी?
  आज के न्यूज़ अलर्ट में वैश्विक टीबी रिपोर्ट (2022) के हवाले से ऐसे ही कई प्रश्नों के जवाब ढूंढने का प्रयास करेंगे।

टीबी के खात्मे की रणनीति

संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2015 में सतत विकास लक्ष्यों  की घोषणा की थी। सतत विकास लक्ष्यों में लक्ष्य नंबर–3 टीबी के खात्मे की बात करता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसी के अनुरूप “End TB Strategy” (टीबी को ख़त्म करने के लिए रणनीति) जारी की थी। टीबी के खात्मे के लिए बनी इस रणनीति में दो वर्षों को ‘मिले के पत्थर’ घोषित किया गया– 2020 और 2025 को। इन दोनों वर्षों (2020 और 2025) तक तीन लक्ष्यों (जोकि नीचे दिए गए हैं) में प्रगति करनी थी।

तीन लक्ष्य इस प्रकार से हैं- 1,टीबी के कारण मरने वालों की संख्या में गिरावट लाना।
2,इंसीडेंस रेट में कमी लाना।
3,टीबी पर किसी मरीज के घर से किए जा रहे खर्च में कमी लाना।

तीनों लक्ष्य में वर्ष  2020 तक कितनी प्रगति करनी है ?

– 1. टीबी के कारण होने वाली मौतों में 35 फीसदी की कमी लाना।

2. टीबी के नए मामलों की दर (इंसीडेंस रेट) में 20 फीसदी की कमी लाना।

3. टीबी के इलाज के लिए किसी भी मरीज या घर को उसकी कुल आय का 20 फीसदी से अधिक हिस्सा खर्च ना हो। (2025 तक कितने प्रगति करनी है? पढ़ें लेख के अंत में)

 

क्या दुनिया ने और भारत ने इन लक्ष्यों को हासिल कर दिया है? हाल ही में आई वैश्विक टीबी रिपोर्ट –2022 को आधार बनाते हुए इसकी पड़ताल करते हैं।

वैश्विक परिदृश्य में देखें तो वर्ष 2000 में टीबी के कारण मरने वालों की संख्या 2.4 मिलियन थी। घटते हुए वर्ष 2015 में यह संख्या 1.7 मिलियन हो जाती है। ऐसे ही 2015 से घटते हुए 2016 में 1.6 मिलियन, 2017 में 1.6 मिलियन, 2018 में 1.5 मिलियन और 2019 में 1.4 मिलियन हो जाती है।
2020 में फिर से बढ़ने लगती है और 1.5 मिलियन हो जाती है। 2021 में 1.6 मिलियन।

2015 को आधार वर्ष मानकर 2021 में मरने वालों के आंकड़ों को देखें तो 5.9 प्रतिशत की गिरावट आई है। जोकि 2020 तक 35 फीसदी कमी लाने के लक्ष्य से बहुत दूर है।


अब बात करते हैं भारत की। भारत को भी, वर्ष 2015 को आधार वर्ष मानते हुए वर्ष 2020 तक टीबी के कारण मरने वालों की संख्या में 35 फीसदी की गिरावट लाना था। लेकिन हुआ उल्टा। वर्ष 2021 में टीबी के कारण मरने वालों की तुलना अगर वर्ष 2015 के आंकड़ों से करें तो 6.6 फीसदी का इजाफा हो जाता है। यह आंकड़े चिंताजनक स्थिति को दर्शा रहे हैं। और इनका कारण महामारी के प्रभाव वाले पेरेग्राफ में दिया है। 
 

टीबी समाप्ति के लिए अपनाई गई रणनीति में दूसरा लक्ष्य– वर्ष 2015 को आधार वर्ष मानते हुए 2020 तक टीबी की नए मामलों की दर (इंसीडेंस रेट*) में 20 प्रतिशत कमी लाना।
क्या कमी आ गई?
वैश्विक टीबी रिपोर्ट–2021 के अनुसार, वैश्विक पटल पर इंसीडेंस रेट में गिरावट आई है। पर यह गिरावट रणनीति के हिसाब से कम है।
वर्ष 2021 में (वर्ष 2015 की तुलना में) इंसीडेंस रेट में 10 प्रतिशत की गिरावट आई है।

*इंसीडेंस रेट– टीबी के नए मामले और ऐसे रोगी जिनका इलाज पूरा हो गया था और फिर से उनमें संक्रमण हो गया है।

भारत के छोर से देखें तो इंसीडेंस रेट के मामले में बेहतर प्रदर्शन किया है। भारत ने वर्ष 2021 में 18 फीसदी की गिरावट दर्ज की है। (2015 की तुलना में)। इस गिरावट के बावजूद भारत लक्ष्य रेखा से दूर ही खड़ा है।
भारत में वर्ष 2000 में, इंसीडेंस रेट प्रति एक लाख जनसंख्या पर 341 लोग थी। जोकि घटते हुए 2015 में 256 हो जाती है। 2016 में 249, 2017 में 234, 2018 में 224, और घटते हुए 2019 में 214 हो जाती है।

वर्ष 2020 में भी घटती है(204)। लेकिन 2021 में बढ़ कर 210 हो जाती है।

यह अचानक जज्बात क्यों बदल गए? यहीं पर जरूरत पड़ती है दास्तान–ए–महामारी की।

टीबी रोग में मृत्यु दर-

वैश्विक स्तर की तुलना में भारत में टीबी मृत्यु दर अधिक है। पहले हम वैश्विक स्तर पर टीबी मृत्यु दर को देखते हैं। मृत्यु दर– प्रति एक लाख लोगों पर एक वर्ष में टीबी के कारण मरने वालों की संख्या।

एचआईवी नेगेटिव टीबी मृत्यु दर- वैश्विक पटल पर वर्ष 2017 में 17 थी। घटते हुए 2018 में 16 और 2019 में भी 16 ही रहती है। लेकिन वर्ष 2021 में बढ़कर 17 हो जाती है। (भारत में बढ़ोतरी तेजी से हुई है)

भारत में टीबी रोग से संक्रमित मरीजों में मृत्यु दर लगातार घट रही थी। लेकिन महामारी के वर्षों में अचानक बढ़ जाती है। 

वर्ष 2017 में एचआईवी नेगेटिव टीबी मृत्यु दर 33 थी, 2018 में 32, 2019 में 32 और 2020 में बढ़ कर 34 हो जाती है। और बढ़ते हुए 2021 में 35 हो जाती है। यह आंकड़े टीबी रिपोर्ट एप्प से लिए गए हैं। 

कोविड महामारी और टीबी

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कोविड महामारी ने टीबी के खिलाफ जारी जंग को कमजोर किया है। टीबी उन्मूलन के लिए दौड़ रही गाड़ी महामारी के काल में पटरी से उतर जाती है। हालांकि, पटरी पर दौड़ रही उन्मूलन गाड़ी की गति पहले से ही धीमी थी। पहले की गति से वो 2020 के उस लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाती।
    खेर! अब प्रश्न यह उठता है कि महामारी के काल में क्या हुआ?
टीबी के नए मामलों की शिनाख्त सरकारें करती है। सरकार टीबी उन्मूलन के लिए अधिक से अधिक जांच पर बल देती हैं। जैसे कोरोना के मामले में था। जितनी अधिक जांच उतने अधिक मामले। इसी तरह जितनी अधिक जांच होगी उतने ही अधिक मामले सामने आएंगे। महामारी के काल में स्वास्थ्य ढांचे पर भार अधिक था। अतः टीबी के लिए की जाने वाली जांच में कमी आ गई। यानी कोविड काल में टीबी से संक्रमित कई लोगों को इलाज से वंचित होना पड़ा।  कृपया इस ग्राफ को देखने के लिए इस पर भार दीजिए और ओपन इमेज पर क्लिक कीजिये:)

 

 

ऊपर दिए गए ग्राफ में इंसीडेंस रेट को दर्शाया गया है। कोविड काल में टीबी के नए मामलों में गिरावट आ जाती है। क्यों? क्योंकि जाँच में कमी आ जाती है। वर्ष 2021 में फिर से टीबी के में मामलों में उछाल आ जाता है। 

 

ऊपर दिए गए ग्राफ में टीबी के कारण मरने वालों को दर्शाया गया है। कोविड काल में टीबी से संक्रमित लोगों को इलाज नहीं मिलता है। वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में टीबी के कारण मरने वालों की संख्या बढ़ जाती है। और 2021 में फिर से बढ़ जाती है।

टीबी और महामारी का काल- भारत में

महामारी के दौर में भारत में टीबी से संक्रमित लोगों की संख्या में तेजी से गिरावट आती है। यह अच्छा संकेत नहीं था। क्योंकि यह गिरावट कृत्रिम प्रकार की थी। जांच में कमी के करने पर संक्रमित लोगों की संख्या में कमी आई थी। कृत्रिम गिरावट का सबूत वर्ष 2020 और 2021 में बढ़ी मरने वालों की संख्या (इलाज नहीं मिलने के कारण) और संक्रमित लोगों की संख्या में आए तेजी से उछाल के रूप में देख सकते हैं।(2020 की तुलना में 2021 में।)

नीचे दो ग्राफ दिए हुए हैं। इन्हें देखिए। भारत में टीबी संक्रमण के नए मामलों में गिरावट आई है। वैश्विक पटल पर गिरावट लाने के मामले में भारत देश का अनुपात अधिक है। वर्ष 2020 में टीबी संक्रमण के नए मामलों में आई वैश्विक कमी में भारत का योगदान 41 फीसदी था।

वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त भारत ?

भारत में महामारी के दौरान टीबी जांच में कमी आ गई थी। नतीजा वर्ष 2021 में बढ़ें हुए मामलों के रूप में देखा। इसलिए जरुरी है, किसी बीमारी के खात्मे के लिए रोगियों की पहचान। सरकार को टीबी जांच में तेजी लानी होगी।
यह सही है सरकार ने वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त राष्ट्र होने की बात कही थीं लेकिन मौजूदा हालात में यह संभव नहीं दिख रहा है।
टीबी को हराने के लिए भारत में पसरे हुए कुपोषण को मिटाना होगा। एम्स के डॉक्टर शाह आलम इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हैं कि जब तक भारत भुखमरी को ख़तम नहीं करेगा तब तक टीबी को नहीं हरा पाएगा।भारत सरकार भी मानती है कि टीबी के इलाज में मरीज के लिए बेहतर पोषण जरूरी है। इसी का सबूत है भारत सरकार की निक्षय पोषण योजना

 औषध प्रतिरोधी टीबी में हो रही है बढ़ोतरी!

टीबी के लिए दवाइयां बनाई हुई हैं। अगर ये दवाएं मरीज पर काम करना बंद कर दें तो मरीज की टीबी को दवा प्रतिरोधी टीबी कहेंगे।
वैश्विक स्तर पर बहु औषध प्रतिरोधी टीबी के मामले वर्ष 2015 में 517 हजार थे। जो घटते हुए 2016 में 499 हजार, 2017 में 480 हजार, 2018 में 465 हजार 2019 में 450 हजार और 2020 में 437 हो जाते हैं।
कोविड काल में इलाज नहीं मिल पाने के कारण वर्ष 2021 में एमडीआर टीबी के मामले बढ़ जाते हैं (450 हजार)।

मरीज दवा पूरी नहीं ले पाए। बीच में ही छोड़ दे। तब इस प्रकार की टीबी के शिकार हो जाते हैं। कोविड महामारी का प्रभाव यहां भी दिख रहा है।

ऐसा ही नजारा भारत के परिपेक्ष में है। वर्ष 2015 में एमडीआर टीबी के मामले 149 हजार थे। जो घटते हुए 2016 में 144 हजार, 2017 में 135 हजार, 2018 में 129 हजार, 2019 में 123 हजार और 2020 में घटते हुए 117 हजार हो जाते हैं।
लेकिन वर्ष 2021 में बढ़कर 119 हजार हो जाते हैं जो कि चिंताजनक है।

टीबी रोकथाम के लिए फंड-

टीबी को खत्म करने के लिए उचित वित्त की जरूरत रहती है। सरकारों के पास दो तरह का वित्त रहता है। पहला वैश्विक वित्त और दूसरा घरेलू वित्त। टीबी की रोकथाम के लिए किए जा रहे खर्च का ब्यौरा सरकारें विश्व स्वास्थ्य संगठन के पास भेजती हैं। डबल्यूएचओ के अनुसार भारत में राष्ट्रीय टीबी रोकथाम के लिए किए गए खर्च का विवरण इस प्रकार है।

भारत में वर्ष 2017 से, घरेलू वित्त की कुल खर्च में हिस्सेदारी बढ़ने लगती है। (क्योंकि भारत में वर्ष 2017 में टीबी उन्मूलन प्रोग्राम शुरू हुआ था।) 2017 में 305 मिलियन डॉलर, 2018 में 348 मिलियन डॉलर और 2019 में 365 मिलियन डॉलर, घरेलू क्षेत्र से खर्च हुए थे। वर्ष 2020 में घरेलू क्षेत्र से आने वाले वित्त में कमी आ जाती है (घटकर 326 मिलियन डॉलर)। और वर्ष 2021 में तेजी से घट कर 183 मिलियन डॉलर हो जाता है।

अब वैश्विक वित्त की बात करें तो वर्ष 2017 से घटना शुरू हो जाता है। 2017 में 187 मिलियन डॉलर, 2018 में 170 मिलियन डॉलर, 2019 में 91 मिलियन डॉलर और घटकर 2020 में 85 मिलियन डॉलर हो जाता है। लेकिन वर्ष 2021 में अंतर्राष्ट्रीय वित्त में बढ़ोतरी आ जाती है। 85 मिलियन डॉलर से बढ़कर 154 मिलियन डॉलर हो जाता है।

 

भारत सरकार को अपने लक्ष्य (2025 में टीबी समाप्ति) की प्राप्ति के लिए वित्त में बढ़ोतरी करनी होगी।

वर्ष 2025 तक ?

भारत सरकार ने वर्ष 2025 तक टीबी के उन्मूलन की बात कही थी। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी वर्ष 2025 तक कुछ लक्ष्य निर्धारित किए थे।

हमने लेख में भारत के 2025 तक टीबी उन्मूलन अभियान के बारे में बात की है। अगर हम डबल्यूएचओ के लक्ष्यों को देखें तो अंधेरा छाया हुआ है।

डबल्यूएचओ के अनुसार वर्ष 2025 तक टीबी इंसिडेंस रेट में 50 फीसदी की कमी लाना था। (2015 के सापेक्ष)

इसी तरह मरने वालों की संख्या में भी वर्ष 2025 तक 75 फीसदी की कमी लाना था।

इन दो लक्ष्यों को करीब से देखें तो बड़ी धीमी गति से चल रहे हैं। इस गति से अपने गंतव्य पर पहुंचना नामुमकिन लग रहा है।

नीचे दिए गए ग्राफ को देखिए, लाल रंग कब तक पूरा भर जाएगा?

 

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श्रेय- सभी छवियों का श्रेय विश्व स्वास्थ्य संगठन को। 

सन्दर्भ-
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी वैश्विक टीबी रिपोर्ट-2022-(कृपया यहाँ क्लिक कीजिये)
टीबी रिपोर्ट में भारत के सन्दर्भ में जारी की गई डाटाशीट -(कृपया यहाँ क्लिक कीजिये)
इंडियन एक्सप्रेस में श्री शाह आलम द्वारा टीबी पर लिखा गया लेख- (कृपया यहाँ क्लिक कीजिये)
विश्व स्वास्थ्य संगठन का टीबी रिपोर्ट पर बनाया एंड्राइड एप्प-(कृपया यहाँ क्लिक कीजिये)

कोविड काल में इलाज से वंचित/देरी वाले मरीजों पर न्यूज क्लिक में छपा एक लेख (कृपया यहाँ क्लिक कीजिये)

विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट जहाँ रिपोर्ट का विवरण दिया हुआ है- (कृपया यहाँ क्लिक कीजिये)

भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी इंडिया टीबी रिपोर्ट-2022- (कृपया यहाँ क्लिक कीजिये)


श्रेय- छवियों का श्रेय विश्व स्वास्थ्य संगठन को।
 

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