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चर्चा में.... | ऐसे हो सकता है देश की जीडीपी में 27 फीसद का इजाफा !

ऐसे हो सकता है देश की जीडीपी में 27 फीसद का इजाफा !

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published Published on Oct 18, 2012   modified Modified on Oct 18, 2012

दुनिया में 86 करोड़ 50 लाख महिलाएं अर्थव्यवस्था में योगदान के बावजूद बिना कमाई के जीवन गुजारने को बाध्य हैं। इस तादाद का 94 फीसद विकासशील देशों में है जबकि 6 फीसद विकसित देशों में। साल 2020 तक अर्थव्यवस्था से बाहर जीवन बिताने वाली महिलाओं की तादाद तकरीबन 1 अरब यानी भारत या फिर चीन की कुल आबादी के बराबर हो जाएगी। क्या अर्थव्यवस्था से बाहर जीवन बिताने को बाध्य महिलाओं की यह तादाद आर्थिक मंदी झेल रही दुनिया के लिए लगभग वही करिश्मा कर सकती है जो चीन या भारत की अर्थव्यवस्थाओं ने हाल के दशक में किया है?

महिलाओं के सशक्तीकरण और अर्थव्यवस्था में उनकी भागीदारी का 128 देशों में जायजा लेती हाल की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट की मानें तो- हां।

एम्पॉवरिंग द थर्ड बिलियन- विमेन एंड द वर्ल्ड ऑव वर्क इन 2012 नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर महिलाओं के रोजगार की दर पुरुषों के रोजगार दर के बराबर हो तो भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 27 फीसदी का इजाफा हो सकता है। महिलाओं और पुरुषों के रोजगार-दर में बराबरी लाकर संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र सरीखी विकासशील अर्थव्यवस्थाएं अपनी जीडीपी में क्रमश 12 और 34 फीसद का इजाफा कर सकती हैं।

रिपोर्ट के अनुसार कमोबेश यही करिश्मा विकसित देशों की अर्थव्यवस्था के साथ भी हो सकता है। महिलाओं की रोजगार दर को पुरुषों के रोजगार दर के बराबर लाकर अमेरिका की अर्थव्यवस्था अपनी जीडीपी 5 फीसद तो जापान की अर्थवयवस्था अपनी जीड़ीपी में 9 फीसद की वृद्धि कर सकती है।

वाबजूद इस करिश्माई संभावना के अर्थव्यवस्था से बाहर जीवन गुजारने को बाध्य 1 अरब महिला आबादी की  दुनिया के अनेक देश अनदेखी कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार अर्थव्यवस्था के बाहर खड़ी महिलाओं के हाथ मजबूत करने के मामले में भारत का स्थान 128 देशों के बीच 115 वां है जबकि चीन का 58 वां और ब्राजील का 46 वां।

महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के नवीनतम आंकड़ों पर आधारित इस सूचकांक को तैयार करने में किसी देश में प्राथमिक और उच्चशिक्षा में महिलाओं की स्थिति, समान काम के लिए समान वेतन, स्त्री-पुरुष की समानता पर आधारित नीतियों, संपत्ति पर महिलाओं की मिल्कियत से संबंधित अधिकार जैसी कई बातों का ध्यान रखा गया है। सूचकांक को तैयार करने में इस बात का भी जायजा लिया गया है कि प्रबंधकीय और वरिष्ठ पदों पर पुरुषों की तुलना में किसी देश में कितनी महिलाएं काबिज हैं और कार्यबल में उनकी संख्या तुलनात्मक रुप से कितनी है।

अर्थव्यवस्था के दरवाजे के बाहर खड़ी भारतीय महिलाओं की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है- अधिकतर भारतीय महिलाओं को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा, सामाजिक सेवा, परिवहन तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल नहीं है। अगर भारत अपनी महिला आबादी को आर्थिक रुप से मजबूत बनाना चाहता है तो उसे इन बुनियादी समस्याओं का समाधान करना चाहिए। हालांकि भारत में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए अच्छा खासा जोर दिया गया है लेकिन भारत में विनिर्माण का क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है और इसके लिए व्यवसायिक रुप से हुनरमंद लोगों की जरुरत है जबकि देश की शिक्षा व्यवस्था इस मामले में मांग के अनुरुप पूर्ति नहीं कर पा रही है।

रिपोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-

-दुनिया में 865 मिलियन महिलाएं अर्थव्यवस्था से बाहर हैं। इसमें 94 फीसद तादाद विकासशील देशों की महिलाओं की है और 6 फीसद तादाद विकसित देशों की महिलाओं की।

-साल 2020 तक अर्थव्यवस्था के दरवाजे के बाहर खड़ी महिलाओं की संख्या 1 अरब हो जाएगी।

-अगर महिलाओं के रोजगार की दर पुरुषों के रोजगार दर के बराबर हो तो भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 27 फीसदी का इजाफा हो सकता है।

-महिलाओं और पुरुषों के रोजगार-दर में बराबरी लाकर संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र सरीखी विकासशील अर्थव्यवस्थाएं अपनी जीडीपी में क्रमश 12 और 34 फीसद का इजाफा कर सकती हैं।

-आबादी के मामले में दुनिया के देशों के बीच दूसरे नंबर पर मौजूद भारत का वैश्विक टैलेंट-पूल में 14 फीसद का योगदान है।55 लाख महिलाएं हर साल भारतीय कार्यबल में शामिल होती हैं।

 

-स्त्री-पुरुष की समानता स्थापित करने वाली नीतियों के बावजूद हर साल हिन्दुस्तान में तकरीबन 1,000 महिलाएं ऑनर कीलिंगका शिकार होती हैं।

-आर्थिक मामलों में, भारत स्त्री-पुरुष के बीच सर्वाधिक गैर-बराबरी वाले देशों में एक है। वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम के एक सर्वे(2010) में भारत के बारे में कहा गया कि अगर वरिष्ठ प्रबंधकीय पदों की संख्या 10 हो तो उसमें 9 पर पुरुष मिलेंगे सिर्फ एक पर महिला।

-सरकार का भी इस मामले में रिकार्ड अच्छा नहीं कहा जाएगा। भारत में सरकार के द्वारा बहुत से ऐसे सामाजिक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिसमें महिला कर्मचारी को न्यूनतम मजदूरी से भी कम भुगतान दिया जाता है और इन कार्यक्रमों से जुड़ी महिला कर्मचारी को रिटायर्मेंट, पेंशन या स्वास्थ्य सुविधा के मद में भी कुछ हासिल नहीं होता।

इस कथा के विस्तार के लिए मददगार लिंक-


http://www.booz.com/media/file/BoozCo_2012-Third-Billion-I
ndex-Rankings.pdf


http://www.booz.com/media/uploads/BoozCo_Empowering-the-Th
ird-Billion_Full-Report.pdf

http://www.booz.com/global/home/press/display/51226251

 



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