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चर्चा में.... | कम क्यों है भ्रष्टाचार की शिकायतें ?
कम क्यों है भ्रष्टाचार की शिकायतें ?

कम क्यों है भ्रष्टाचार की शिकायतें ?

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published Published on Dec 29, 2016   modified Modified on Dec 29, 2016
रोजमर्रा के शासन-प्रशासन में भ्रष्टाचार बहुत ज्यादा है लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत बहुत कम ! 


इस विरोधाभास की व्य़ाख्या कैसे हो ? क्या भ्रष्टाचार रोकने के कानूनों पर अमल इतना लचर है कि लोगों को इंसाफ मिलने का भरोसा ही नहीं होता ?


हाल के एक अध्ययन के तथ्य इसी आशंका की पुष्टी करते हैं.(देखें नीचे की लिंक)


दिल्ली स्थित मानवाधिकार संगठन कॉमनवेल्थ ह्युमन राइटस् इनिशिएटिव(सीएचआरआई) के एक आकलन के मुताबिक बीते पंद्रह सालों(2001-2015) के बीच देश के 29 राज्यों और 7 संघशासित प्रदेशों में भ्रष्टाचार के केवल 54,139 मामले दर्ज हुए. 


यह संख्या पंद्रह सालों में घूस देने की बात सार्वजनिक रुप से स्वीकार करने वाले लोगों की तुलना में आधी से भी कम है.


लोकप्रिय वेबसाइट आई पेड ब्राइव पर 2001 से 2015 के बीच 1,16,010 लोगों ने स्वीकार किया है कि उन्हें किसी ना किसी काम के लिए सार्वजनिक संस्था के अधिकारियों-कर्मचारियों को घूस देनी पड़ी.


नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो(एनसीआरबी) के पंद्रह साल के आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित सीएचआरआई के अध्ययन के मुताबिक भ्रष्टाचार के मामलों में दोषसिद्धि की दर भी बहुत कम है. साल 2001 से 2015 के बीच भ्रष्टाचार के दर्ज प्रत्येक 100 मामलों में औसतन केवल 19 मामलों में आरोपित पर दोष सिद्ध किया जा सका.


हिमाचल प्रदेश और संघशासित प्रदेशों को छोड़ दें तो कुल 28 राज्यों में 2001 से 2015 के बीच भ्रष्टाचार के मामलों में आरोपित 43,394 लोगों की अदालत में सुनवाई हुई लेकिन दोष केवल 31.83  फीसद(13,803) लोगों पर सिद्ध हो सका. दूसरे शब्दों में, लगभग 68 फीसद( 29,591) आरोपितों साक्ष्य के अभाव में अदालत से छूटने में कामयाब हुए.


सीएचआरआई के आकलन के मुताबिक गोवा, मणिपुर और त्रिपुरा में भ्रष्टाचार के शत-प्रतिशत आरोपित सबूत के अभाव में बरी करार दिए गए. इन राज्यों में भ्रष्टाचार के कुल 30 आरोपितों में किसी को सजा नहीं हुई.


पंद्रह सालों की अवधि में सिर्फ नगालैंड ही एक ऐसा राज्य रहा जहां भ्रष्टाचार के 90 फीसद आरोपित दोषी अदालती सुनवाई में दोषी करार दिए गए. नगालैंड में भ्रष्टाचार के कुल 438 अभियुक्तों को दोषी पाया गया. इसमें 404 अभियुक्त 2014 में दोषी करार दिए गए.


जिन राज्यों में भ्रष्टाचार के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए उनमें दोषसिद्धि की दर सबसे ज्यादा केरल(62.95 फीसद) में रही.


सीएचआरआई के अध्ययन के तथ्य संकेत करते हैं कि भ्रष्टाचार के दर्ज ज्यादातर मामले कोर्ट नहीं पहुंच पाते. पंद्रह सालों में भ्रष्टाचार के कुल दर्ज 54,139 मामलों में 29,920 यानी केवल 55 फीसदी मामलों में अदालती सुनवाई पूरी हुई है. शेष मामलों में या तो एफआईआर ही निरस्त हो हो गई या फिर उन्हें अदालत में सुनवाई के लिए पेश नहीं किया गया अथवा आरोपित छूट गये जबकि ऐसे चंद मामले अभी अदालत में चल रहे हैं.


गौरतलब है कि देश में ज्यादातर लोग मानते हैं कि रोजमर्रा के प्रशासन में बहुत ज्यादा भ्रष्टाचार है.   ट्रांसपेरेन्सी इंटरनेशनल के करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में भारत का स्थान 168 देशों के बीच 76 वां है. भूटान (27), चिले (23), घाना (56), जॉर्डन (45), नामीबिय (45), पनामा (72),रवांडा (44), सऊदी अरब (48), और सेनेगल जैसे देशों का करप्शन परसेप्शन इंडेक्स पर दर्जा भारत से बेहतर है.


नागरिक संगठन लगातार कहते रहे हैं कि भ्रष्टाचार से लड़ने के मौजूदा ढांचे को सरकार मजबूत बनाने से कतरा रही है. भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियन(1988) को मजबूत बनाने का प्रस्ताव 2013 से ही संसद की मंजूरी की बाट जोह रहा है. नागरिक संगठनों का आरोप है कि लोकपाल-लोकायुक्त अधिनियम को सरकार अमल में लाये बगैर संशोधित करना चाहती है. शिकायत निवारण विधेयक तथा ह्वीस्ल ब्लोअर प्रोटेक्शन विधेयक पर भी सरकार के लचर रवैये से भी नागरिक संगठनों में नाखुशी है.
 

सीएचआर के शोध-अध्ययन के कुछ गौरतलब तथ्य--


 --- एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2001 से 2015 के बीच 29 राज्यों और 7 संघशासित प्रदेशों में भ्रष्टाचार के कुल 54,139 मामले दर्ज हुए. आई पेड ब्राइव नाम के वेबसाइट के मुताबिक इसी अवधि में तकरीबन दोगुने (1,16,010) लोगों ने कहा कि हमें किसी ना किसी काम के लिए घूस देनी पड़ी है.


  --- साल 2001 स 2015 के बीच देश भर में लगभग पांच लाख( (5,01,852 ) मामले दर्ज हुए जबकि इसी अवधि में भ्रष्टाचार के केवल 54,139 मामले दर्ज हुए. दूसरे शब्दों में हत्या के प्रति 10 मामलों पर भ्रष्टाचार के दर्ज मामलों की संख्या केवल 1 रही.


 ---- 2001 से 2015 के बीच अपहरण अथवा अगवा करने की कुल 5.87 लाख घटनाएं प्रकाश में आयीं दूसरे शब्दों में कहें तो अपहरण अथवा अगवा करने के प्रत्येक 11 मामलों पर देश भर में भ्रष्टाचार का केवल एक मामला विधि-प्रवर्तन अधिकरणों द्वारा दर्ज हुआ.


----- 2001 से 2015 के बीच डकैती के देश भर में 3.54 लाख (3,54,453 ) मामले दर्ज हुए दूसरे शब्दों में डकैती के प्रत्येक 6 मामलों पर भ्रष्टाचार का केवल एक मामला विधि-प्रवर्तन अधिकरणों द्वारा दर्ज हुआ.


---- देश के 29 राज्यों और 7 संघशासित प्रदेशों में पंद्रह साल की अवधि में 54,139 मामले दर्ज हुए जिसमें केवल 55.26% (29,920 ) मामलों में अदालती सुनवाई की कार्यवाही पूरी हुई. शेष मामले या तो अदालतों में लंबित है या अभियुक्त मामले के अदालत पहुंचने से पहले ही छूट गये अथवा प्रथम सूचना रिपोर्ट ही निरस्त हो गई.


---  जिन राज्यों में भ्रष्टाचार के दर्ज मामले सबसे ज्यादा संख्या में अदालती सुनवाई के लिए पहुंचे उन राज्यों में केरल में दोषसिद्धि की दर सबसे ज्यादा( 62.95%) रही.


---- बंगाल, गोवा, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा तथा मेघालय में भ्रष्टाचार के बहुत से मामलों की अदालती सुनवाई हुई लेकिन एक भी मामले में अभियुक्त पर दोषसिद्धि नहीं हो सकी.  पंद्रह साल की अवधि में मणिपुर में केवल एक मामले में अभियुक्त को दोषी करार दिया जा सका.


---- हिमाचल प्रदेश को छोड़ दें तो 28 राज्यों और 7 संघशासित प्रदेशों में पंद्रह साल की अवधि में भ्रष्टाचार के मामलों में 43,394 अभियुक्तों पर मुकदमे चले. इस अवधि में 68.19% (29,591) अभियुक्त अदालतों द्वारा साक्ष्य के अभाव में बरी करार दिए गए. दूसरे शब्दों में कहें तो 31.81% (13,803)  अभियुक्तों को ही पंद्रह साल की अवधि में भ्रष्टाचार के मामलों में सजा हो पायी.


----    जम्मू-कश्मीर में 90 फीसद भ्रष्टाचार के मामलों में अभियुक्त साक्ष्य के अभाव में बरी करार दिये गये जबकि गोवा, नगालैंड तथा त्रिपुरा में शत-प्रतिशत अभियुक्त अदालतों से बरी हुए.
 
इस कथा के विस्तार के लिए कृपया निम्नलिखित लिंक्स देखें--
 

Fact and Fiction: Government’s Efforts to Combat Corruption: CHRI’s Preliminary findings from a study of NCRB’s Statistics (2001 to 2015), please click here to access

 

 

India's war against corruption lacks any 'conviction': Study -Himanshi Dhawan, The Times of India, 18 December, 2016, please click here to access   

 

 

'Only 19% of registered corruption cases end in conviction', PTI/ The Economic Times, 17 December, 2016, please click here to access 

 

 

Performance of anti-corruption departments and courts in India has received cursory attention -Venkatesh Nayak, 17 December, 2016, please click here to access

 

 

Time to blow the whistle -Yogendra Yadav, The Hindu, 12 December, 2016, please click here to access  

 
 
Betrayal In The House -Anjali Bhardwaj & Amrita Johri, The Indian Express, 4 August, 2016, please click here to access  


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