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न्यूज क्लिपिंग्स् | नए कीटनाशक प्रबंधन विधेयक से पर्यावरण और जनता को नुकसान, कारोबारियों को फायदा

नए कीटनाशक प्रबंधन विधेयक से पर्यावरण और जनता को नुकसान, कारोबारियों को फायदा

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published Published on Feb 16, 2022   modified Modified on Feb 23, 2022

-कारवां,

महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में 6 अगस्त 2021 की रात 42 साल के एक किसान की कीटनाशक जहर से मौत हो गई थी. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, विनोद मसराम चव्हाण अपनी कपास की फसल को घातक गुलाबी बॉलवर्म से बचाने के लिए कीटनाशक नुवाक्रॉन का छिड़काव करते समय उसके संपर्क में आ गए थे. कीटनाशक में मोनोक्रोटोफोस होता है जो एक जहरीला कंपाउंड है. यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहद खतरनाक कीटनाशक के रूप में वर्गीकृत है. महाराष्ट्र में इसका उपयोग प्रतिबंधित कर दिया गया था. चव्हाण की मौत इस क्षेत्र में कीटनाशक के जहर से पिछले चार साल में हुई पहली मौत है. इसने साल 2017 के प्रेत को फिर से जिला दिया है. उस साल राज्य में कीटनाशकों के जहर से 60 से अधिक किसानों की मौत हुई थी और सैकड़ों अन्य किसान इस जहर की चपेट में आए थे.

भारत के खेतों में कीटनाशक के जहर से होने वाली मौतें एक ऐसी आपदा है जो लंबे समय से जारी है. कीटनाशक सालों से खेतीहर आबादी के लिए जोखिम बने हुए हैं. इस तबाही के सबसे खराब परिणाम 1980 से 2000 के बीच सामने आए जब केरल और कर्नाटक में एंडोसल्फान के प्रभाव से हजारों लोगों में अजीबोगरीब गंभीर बीमारियां पैदा हुईं. एंडोसल्फान को काजू के बागानों पर बेतहाशा इस्तेमाल किया गया. फिर 2002 में खबरें आईं कि आंध्र प्रदेश में कीटनाशकों के जहर से कम से कम 500 किसानों की मौत हुई है. दिसंबर 2020 में बीएमसी पब्लिक हेल्थ जर्नल में प्रकाशित कीटनाशक पर एक शोध में अनमान लगाया गया है कि हर साल भारत में 62 प्रतिशत किसान अनजाने में ही व्यावसायिक जहर का शिकार होते हैं. यह दर वैश्विक औसत 44 प्रतिशत से बहुत अधिक है.

कीटनाशक पीकर खुदकुशी करने वाले किसान हताहतों की संख्या भी बहुत अधिक है. बीएमसी पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित भारत में जहर खाकर खुदकुशी के बारे में एक अध्ययन से पता चला है कि 1995 से 2015 के बीच लगभग 450000 मामलों में कीटनाशक का इस्तेमाल हुआ था. सितंबर 2017 के बाद से पश्चिमी ओडिशा में खरपतवार नाशक पाराक्वेट खाने से कई लोगों की मौत हुई.

​ऐसी आपदाओं को रोका जा सके इसके लिए कीटनाशकों के बेहतर नियमन की जरूरत लंबे समय से बनी हुई है. हालांकि, त्रासदी दर त्रासदी के बावजूद कई केंद्रीय सरकारें और राज्य सरकारें इस बाबत पर्याप्त कानून बनाने में विफल रही हैं. सदियों पुराने कीटनाशक कानूनों को बदलने के हालिया प्रयास पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं.

भारत सरकार ने 2008 में पुराने कीटनाशक कानून को अपडेट करने की कोशिश की. लेकिन नागरिक-समाज संगठनों, उद्योग और स्वतंत्र विशेषज्ञों के दबाव के बावजूद सरकार ने इन लंबित सुधारों को पारित करने से अपने पैर खींच लिए. फिलहाल कानून कीटनाशक अधिनियम, 1968 प्रभावी है. यह अधिनियम और इसके तहत 1971 में तैयार किए गए नियम कीटनाशकों के निर्माण और उपयोग के लिए कानूनी ढांचा देते हैं. लेकिन इनमें मृत्यु को रोकने और खेत में काम करने वालों की बीच जोखिम को कम करने या पर्यावरण प्रदूषण और खाद्य प्रदूषण को रोकने के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं हैं.


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FEBRUARY 2022

2008 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने दशकों पुराने इस कानून को बदलने के लिए एक विधेयक तैयार किया था. सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने 2017 में मसौदे को अपडेट किया और सार्वजनिक चर्चा आमंत्रित की. सरकार को मसौदे को दुबारा से तैयार करने और कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2020 (पीएमबी) नाम से नया संस्करण जारी करने में तीन साल और लग गए. कैबिनेट ने फरवरी 2020 में पीएमबी को मंजूरी दी और अगले महीने सरकार ने इसे राज्य सभा में पेश किया. एक साल बाद जुलाई 2021 में कीटनाशक उद्योग की इस आलोचना के जवाब में बिल को कृषि पर बनी संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा दिया गया कि यह अतिरेक है जो संभावित विकास को वाधित करेगा. स्थायी समिति ने दिसंबर 2021 में अपनी रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट में लीपापोती अधिक है. हालांकि इसमें कुछ अच्छी सिफारिशें हैं लेकिन बड़े पैमाने पर कई गंभीर खामियों पर कोई बात नहीं है. इस बीच, नागरिक-समाज संगठनों ने कहा कि लोगों और पर्यावरण की रक्षा के लिए पीएमबी अभी भी काफी कमजोर है.

भारत का कीटनाशक उद्योग 2020 में 23200 करोड़ रुपए का था. भारत संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और चीन के बाद दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कीटनाशक उत्पादक और शुद्ध निर्यातक देश बन गया है. भारत में शीर्ष कीटनाशक निर्माताओं में यूपीएल लिमिटेड, बीएएसएफ इंडिया लिमिटेड, पीआई इंडस्ट्रीज लिमिटेड और बायर क्रॉपसाइंस लिमिटेड जैसी कंपनियों के नाम लिए जाते हैं. 2019-20 में भारत ने लगभग दो लाख टन का कीटनाशक का उत्पादन किया और 60000 टन से अधिक कीटनाशक का यहां इस्तेमाल हुआ. कीटनाशकों का उपयोग - जिसमें कीटनाशक, कवकनाशी, शाकनाशी या खरपतवारनाशी और प्लांट ग्रोथ नियामक शामिल हैं - कृषि, सार्वजनिक-स्वास्थ्य पहल, घरेलू सफाई, औद्योगिक गतिविधियों और निर्माण क्षेत्र में किया जाता है.

भारत में कृषि, निर्माण और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में इस्तेमाल के लिए कीटनाशकों को केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति में पंजीकृत किया जाता है. यदि कोई निर्माता कृषि उपयोग के लिए कोई कीटनाशक पंजीकृत कराना चाहता है, तो उसे बताना होता है कि कीटनाशक किस फसल के लिए होगा, किस कीट पर यह असर करेगा, प्रति इकाई क्षेत्र में कितना कीटनाशक प्रयोग करना होगा, उपयोग से पहले कीटनाशक को कितना पतला करना होगा और छिड़काव किए गए खेतों में फैला जहर कम हो जाए, इसके लिए दो छिड़कावों के बीच कितने समय का अंतराल रखा जाना चाहिए.

राज्य के कृषि विश्वविद्यालय और सरकारी कृषि विभाग फसल-उत्पादन गाइड जारी करते हैं, जिन्हें "प्रैक्टिस पैकेज" के रूप में जाना जाता है. इसमें फसल विशेष में विशिष्ट कीटों के खिलाफ विशिष्ट कीटनाशकों की जानकारी होती हैं. इसके अलावा कॉफी और चाय बोर्ड जैसे कमोडिटी बोर्ड, बागवानी विभाग और अन्य सरकारी संस्थान भी कीटनाशकों के उपयोग के लिए दिशानिर्देश प्रकाशित करते हैं.


अक्सर स्वीकृत उपयोग, अनुशंसित उपयोग और वास्तविक उपयोग के बीच बहुत अंतर होता है. उदाहरण के लिए, पेस्टिसाइड एक्शन नेटवर्क इंडिया की 2015 की एक रिपोर्ट से पता चला है कि केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति ने खरपतवारनाशी पैराक्वाट डाइक्लोराइड को नौ फसलों के लिए मंजूरी दी थी. राज्य के कृषि संस्थानों और कमोडिटी बोर्डों ने इसे 17 फसलों के लिए अनुशंसित किया था जबकि निर्माताओं ने ही केवल 13 फसलों के लिए इसकी सिफारिश की थी. वास्तव में इसका उपयोग 25 फसलों के लिए किया जा रहा था. इसी तरह, शाकनाशी ग्लाइफोसेट को केवल चाय बागानों में खरपतवार नियंत्रण के लिए अनुमोदित किया गया था लेकिन इसका व्यापक उपयोग किया जा रहा है. एक क्षेत्रीय अध्ययन ने भारत में ग्लाइफोसेट के कम से कम बीस गैर-अनुमोदित उपयोगों को दिखाया है. इसका केला, सेम, मिर्च, प्याज और गेहूं सहित 16 खाद्य फसलों में इस्तेमाल हो रहा है.

पीएमबी में केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड के गठन, पंजीकरण प्रक्रियाओं, लाइसेंसिंग, मूल्य निर्धारण, कीटनाशकों पर प्रतिबंध, अपराध और दंड के बारे में कई प्रावधान हैं. पिछले संस्करणों के विपरीत कीटनाशक विषाक्तता पर निगरानी रखने, मुआवजे के लिए फंड बनाने और पीड़ितों के कानूनी उत्तराधिकारियों को इस फंड को वितरित करने के लिए इसमें प्रावधान तो हैं लेकिन अस्पष्ट हैं. इसमें कीटनाशकों के उपयोग में सामंजस्य लाने और गैर-अनुमोदित उपयोगों को अवैध बनाने के प्रावधानों का अभाव है.

कीटनाशकों पर वर्तमान विधाई ढांचे की एक बड़ी खामी यह है कि यह खेतीहर समुदाय के लिए सुरक्षा मानकों को निर्धारित नहीं करता. खेतीहर कीटनाशकों का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है. कानूनी रूप से तो यह भी जरूरी नहीं है कि किसानों और खेतीहर मजदूरों को जहरीले उत्पादों का सुरक्षित रूप से उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाए. 2017 में सरकार ने कुछ कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने की मांग के मामले में सुप्रीम कोर्ट को दिए एक हलफनामे में कहा था कि कीटनाशक कानूनों के एक प्रावधान में मजदूरों के प्रशिक्षण से संबंधित जो बात कही गई है वह "किसानों को प्रशिक्षण देने के संदर्भ में नहीं है बल्कि निर्माताओं या वितरकों या कीट नियंत्रक ऑपरेटरों के साथ काम करने वाले मजदूरों के लिए" है. सरकार के इस जवाब से यह सवाल पैदा होता है कि क्या सरकार किसानों और खेतिहर मजदूरों को प्रमुख कीटनाशक उपयोगकर्ता नहीं मानती है? इससे यह सवाल भी उठता है कि तो क्या सरकार किसानों द्वारा कीटनाशकों के इस्तेमाल को अवैध मानती है और क्या यह उन्हें अनुमोदित उपयोग के उल्लंघन के लिए या उपभोक्ताओं या पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए गलत तरीके से उत्तरदायी ठहरा सकती है? पीएमबी खेतीहर मजदूरों का जिक्र न कर इन अनिश्चितताओं को बनाए रखता है.

भले ही खेतों में काम करने वाले भारत में कीटनाशकों के प्रमुख और अंतिम उपयोगकर्ता हैं तो भी पीएमबी कीटनाशक उपयोगकर्ताओं के रूप में इन्हें मान्यता नहीं देता. पीएमबी की परिभाषा के अनुसार एक कीट-नियंत्रक वह व्यक्ति है जो "कोई भी ऐसा व्यक्ति जो व्यावसायिक हितों के अलावा पेस्ट कंट्रोल काम करता हो वह पेस्ट कंट्रोल ऑपरेटर माना जाएगा और वह व्यक्ति भी संगठन, कंपनी या व्यक्ति के अधीन यह कार्य करता है उसे भी पेस्ट कंट्रोल ऑपरेटर माना जाएगा." किसानों को महत्वपूर्ण कीटनाशक उपयोगकर्ताओं के रूप में पहचानने के लिए सरकार की निरंतर अनिच्छा संभवतः व्यावसायिक हितों की रक्षा की सरकार की सोच को दर्शाता है. जो मान्यता किसानों को सुरक्षा देगी, वह निर्माताओं को अधिक जवाबदेह बनाएगी.

विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा तैयार किया गया दस्तावेज ‘कीटनाशक प्रबंधन पर अंतर्राष्ट्रीय आचार संहिता’ कीटनाशक मंजूरी देने को "उस प्रक्रिया के रूप में परिभाषित करता है जिसके तहत जिम्मेदार राष्ट्रीय सरकार या क्षेत्रीय प्राधिकरण ऐसे कीटनाशक की बिक्री और उपयोग को मंजूरी देता है जो वैज्ञानिक डेटा के मूल्यांकन के बाद देश या क्षेत्र में उपयोग की शर्तों के तहत मानव या पशु स्वास्थ्य या पर्यावरण के लिए जोखिम पैदा नहीं करता है.” एफएओ जोखिम कम करने के लिए तीन महत्वपूर्ण कदम भी सूचीबद्ध करता है : कीटनाशकों पर निर्भरता कम करना, सबसे कम जोखिम वाले कीटनाशकों का चयन करना और उनका उचित उपयोग सुनिश्चित करना. पीएमबी के तहत यह आवश्यक नहीं है कि उत्पादों को पंजीकृत करने या अनुमोदनों को नवीनीकृत करने के दौरान सरकार इन मानक अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन करे.

कीटनाशकों के जोखिम को कम करने के लिए बने कानून को एफएओ-डब्ल्यूएचओ मानदंड द्वारा निर्धारित अत्यधिक खतरनाक कीटनाशकों की एक नकारात्मक सूची को स्पष्ट करना जरूरी होता है. इसके अलावा, डब्ल्यूएचओ के वर्ग II और वर्ग III से संबंधित कीटनाशकों, जिन्हें क्रमशः मध्यम स्तर का खतरनाक और कम खतरनाक के रूप में वर्गीकृत किया गया है, को भी प्रतिबंधित करने की आवश्यकता है. यह भारत में बड़ी संख्या में विषाक्तता के लिए जिम्मेदार हैं. अन्य देशों में प्रतिबंधित या गंभीर रूप से प्रतिबंधित कीटनाशकों के उपयोग की जांच करने की आवश्यकता है और कानून के तहत पंजीकृत कीटनाशकों की आवधिक समीक्षा को अनिवार्य किया जाना चाहिए. कृषि विभाग द्वारा यह कहने के बाद कि अधिक बार समीक्षा "ईज ऑफ बिजनेस" को प्रभावित करेगी, स्थायी समिति ने हर दस साल में समीक्षा की सिफारिश की है. समिति ने नुकसान के बावजूद भारत में प्रतिबंधित कीटनाशकों के निर्यात का भी समर्थन किया.

कीटनाशक प्रबंधन पर अंतर्राष्ट्रीय आचार संहिता विशेष रूप से कहती है कि "सरकारों को स्थानीय जरूरतों, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों, साक्षरता के स्तर, जलवायु परिस्थितियों, उपयुक्त कीटनाशक आवेदन की उपलब्धता और सामर्थ्य और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण जैसे कारकों का पूरा ध्यान रखना चाहिए." इसमें आगे कहा गया है कि "कीटनाशकों का रखरखाव और उपयोग करने के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों के उपयोग की आवश्यकता होती है जो असुविधाजनक, महंगे या आसानी से उपलब्ध नहीं होते हैं, विशेष रूप से गर्म जलवायु में छोटे पैमाने के उपयोगकर्ताओं और खेती में लगे श्रमिकों के मामले में इससे बचा जाना चाहिए." कीटनाशक नियम यह निर्धारित करते हैं कि कीटनाशकों का उपयोग करते समय उपयोगकर्ता को हानिकारक रसायनों के संपर्क में आने से रोकने में सक्षम सामग्री से बने पर्याप्त बाहरी वस्त्र, चोगा, हुड, टोपी, रबर के दस्ताने, धूल-प्रूफ चश्मे, जूते और श्वसन मास्क जैसे सुरक्षात्मक उपकरण प्रयोग करने चाहिए. लेकिन अधिकांश किसान ऐसे उपकरणों का खर्चा नहीं उठा सकते या यह उनकी पहुंच से बाहर हैं.

2017 में महाराष्ट्र में मरने वाले कपास किसानों की एक बड़ी संख्या सुरक्षात्मक उपकरणों (पीपीई) की कमी के कारण कीटनाशकों के संपर्क में आ गई थी या उमस भरे मौसम के कारण निर्धारित उपकरणों का उपयोग करने में असमर्थ थी. जहर की जांच कर रहे एक विशेष जांच दल ने पीपीई की कमी का हवाला तो दिया लेकिन बड़े पैमाने पर पीड़ितों को एहतियाती उपाय नहीं अपनाने का दोषी भी ठहराया. इसने सुरक्षात्मक उपकरणों के उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कानूनी प्रावधानों की कमी को उजागर नहीं किया. पीएमबी इस कमी को दूर करने का कोई प्रयास नहीं करता.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


एडी दिलीप कुमार और नरसिम्हा रेड्डी दोंती, https://hindi.caravanmagazine.in/government/pesticide-bill-farmer-agriculture-ppe-poisoning-environment-food-hindi


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