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चर्चा में.... | दास्तान-ए-आरटीआई: कहीं मुख्य सूचना आयुक्त नहीं तो कहीं सूचना आयोग ही नदारद !
दास्तान-ए-आरटीआई: कहीं मुख्य सूचना आयुक्त नहीं तो कहीं सूचना आयोग ही नदारद !

दास्तान-ए-आरटीआई: कहीं मुख्य सूचना आयुक्त नहीं तो कहीं सूचना आयोग ही नदारद !

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published Published on Mar 20, 2018   modified Modified on Mar 20, 2018

क्या हाल-फिलहाल कभी आपके मन में आया कि देश में सूचना का अधिकार कानून के अमल हालत कैसी है ? अगर आपके मन में ऐसा सवाल कौंधा हो तो नीचे लिखे तथ्य आपको जवाब तक पहुंचाने में मददगार साबित हो सकते हैं:

 

देश के 19 सूचना आयोगों में मार्च(2018) के पहले पखवाड़े तक 1.93 लाख द्वितीय अपील और शिकायत की अर्जियां अपने निपटारे की बाट जोहती लंबित पड़ी हैं. 

 

केंद्रीय सूचना आयोग में ऐसे लंबित पड़े मामलों की संख्या 23,989 है तो महाराष्ट्र(40,248) और उत्तरप्रदेश(40,248) में इसके दोगुना. बिहार, झारखंड तथा तमिलनाडु के बारे में ऐसी जानकारी मिल ही नहीं सकती क्योंकि इन सूबों के सूचना आयोग ने लंबित मामलों की जानकारी सार्वजनिक नहीं की है.

 

देश के सूचना आयोगों में सूचना आयुक्त के 146 पदों में फिलहाल एक चौथाई यानि 109 पद खाली पड़े हैं. तीन साल पहले यानि 2015 में स्थिति तनिक अलग थी. तब सूचना आयोगों के कुल 142 पदों में 111 पदों पर सूचना आयुक्त(मुख्य सूचना आयुक्त समेत) काम कर रहे थे.

 

विकास का मॉडल कहे जाने वाले गुजरात के सूचना आयोग में इस साल के जनवरी माह के दूसरे पखवाड़े से कोई मुख्य सूचना आयुक्त नहीं है. महाराष्ट्र के सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त का पद एक प्रभारी सूचना आयुक्त के जिम्मे है जबकि आंध्रप्रदेश में जून 2014(इस समय नया राज्य तेलंगाना बना) से सूचना आयोग ही नहीं है.

 

ये तथ्य स्वयंसेवी संस्था कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइटस् इनिशिएटिव(सीएचआरआई) के एक शोध-अध्ययन से लिए गए हैं. अध्ययन में सूचना के अधिकार कानून के तहत देश के विभिन्न सूचना आयोगों को हासिल अर्जियां, लंबित पड़े मामले, खाली पड़े पदों की संख्या और बीते बारह सालों में सूचना के अधिकार कानून के तहत हासिल अर्जियां की तादाद के बारे में  राज्यवार बताया गया है.

 

सीएचआरआई के स्टेट ऑफ इन्फॉरमेशन कमीशन्स एंड द यूज ऑफ आरटीआई लॉज इन इंडिया रिपोर्ट(रैपिड रिव्यू 4.0) के मुताबिक:

कहीं मुख्य सूचना आयुक्त नहीं तो कहीं सूचना आयोग ही नहीं : गुजरात में 2018 की जनवरी के दूसरे पखवाड़े से सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त का पद खाली है. महाराष्ट्र में यह पद फिलहाल एक प्रभारी के हवाले है. आंध्रप्रदेश में जून 2014(जब तेलंगाना बना) के बाद से कोई सूचना आयोग ही नहीं. आंध्रप्रदेश की सरकार ने हैदराबाद हाइकोर्ट से कहा है कि सूबे में जल्दी ही सूचना आयोग बनाया जायेगा.

 

खाली पड़े पदों की संख्या बहुत ज्यादा है: देश के सूचना आयोगों में 25 फीसद(109) से ज्यादा पद खाली पड़े हैं. साल 2015 में सृजित कुल 142 पदों में से 111 पर सूचना आयुक्त(मुख्य सूचना आयुक्त समेत) काम कर रहे थे.

 

बड़े आकार वाले सूचना आयोगों में लंबित मामलों की संख्या ज्यादा : मुख्य सूचना आयुक्त तथा सूचना आयुक्त के जो पद भरे हुए हैं उनमें 47 फीसद पद सिर्फ सात राज्यों हरियाणा(11), कर्नाटक, पंजाब तथा यूपी(प्रत्येक में 9) तथा केंद्रीय सूचना आयोग, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु(प्रत्येक में 7) में केंद्रित हैं. अगर निपटारे के लिए लंबित पड़े अपील और शिकायतों के मामलों की संख्या के एतबार से देखें तो तमिलनाडु को छोड़कर शेष छह में ऐसे मामलों की तादाद कुल मामलों का 72 फीसद है. (तमिलनाडु में लंबित पड़े मामलों की संख्या अभी तक सार्वजनिक नहीं हो पायी है).

 

नियुक्ति में नौकरशाहों को लेकर पूर्वाग्रह : देश के 90 फीसद सूचना आयोगों की प्रधानी रिटायर्ड नौकरशाहों के हाथ में है. लगभग 43 प्रतिशत से ज्यादा सूचना आयुक्त नौकरशाही की पृष्ठभूमि वाले हैं. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2013 के अपने एक निर्देश में कहा था कि सूचना का अधिकार कानून में वर्णित विशेज्ञता के अन्य क्षेत्रों को ध्यान में रखकर नियुक्ति की जाय.

 

सूचना आयुक्तों में महिलाओं की संख्या कम : मुख्य सूचना आयुक्त तथा सूचना आयुक्त के पद पर काम कर रहे अधिकारियों में महिलाओं की संख्या महज 8.25 प्रतिशत है. इनमें से तीन अवकाशप्राप्त नौकरशाह हैं.

 

कहीं वेबसाइट का बनना शेष है तो कहीं वार्षिक रिपोर्ट नदारद : इंटरनेट पर किसी भी ब्राऊजर का इस्तेमाल कीजिए लेकिन आपको मध्यप्रदेश तथा बिहार के सूचना आयोग का वेबसाइट बहुत खोजने पर भी हासिल नहीं होगा. मध्यप्रदेश तथा उत्तरप्रदेश के सूचना आयोग ने अभी तक कोई वार्षिक रिपोर्ट भी जारी नहीं की है. झारखंड और केरल के सूचना आयोगों को अपनी छह वार्षिक रिपोर्ट पेश करना शेष है. पंजाब को पांच वार्षिक रिपोर्ट पेश करनी है जबकि आंध्रप्रदेश को चार.

 

लंबित पड़े मामलों की संख्या बढ़ी है : देश के 19 सूचना आयोगों से प्राप्त सूचना के विश्लेषण से पता चलता है कि द्वितीय अपील तथा शिकायत की कुल 1.93 लाख अर्जियां अपने निपटारे की बाट जोहती लंबित पड़ी हैं. साल 2015 में कुल 14 सूचना आयोगों में लंबित पड़े मामलों की संख्या 1.10 लाख थी. जिन पांच सूचना आयोगों में लंबित पड़े मामलों की संख्या सबसे ज्यादा(कुल का लगभग 77 प्रतिशत) है उनके नाम हैं : महाराष्ट्र (41,537 मामले), उत्तरप्रदेश (40,248 मामले), कर्नाटक (29,291 मामले), केंद्रीय सूचना आयोग (23,989 मामले) तथा केरल (14,253 मामले).

 

बिहार, झारखंड तथा तमिलनाडु में लंबित पड़े मामलों की संख्या यहां के सूचना आयोग ने सार्वजनिक नहीं की है. मिजोरम में साल 2016-17 में मात्र एक मामला निपटारे के लिए आया और इस पर फैसला सुना दिया गया. त्रिपुरा, नगालैंड तथा मेघालय के सूचना आयोग में कोई भी मामला निपटारे के लिए लंबित नहीं है.

 

बीते 12 सालों में आरटीआई की अर्जियां : सूचना आयोग से हासिल जानकारी के मुताबिक साल 2005 से 2017 के बीच देश में 2.14 करोड़ आरटीआई की अर्जियां प्राप्त हुईं. अगर सभी सूचना आयोग अपने आंकड़े सार्वजनिक करें तो यह तादाद 3 करोड़ से सवा 3 करोड़ तक पहुंच सकती है. कानून के अमल में आने के बाद से 0.5 फीसद से भी कम लोगों ने इसका उपयोग किया है.

 

इन राज्यों में सबसे ज्यादा आयी अर्जियां: बीते 12 साल में केंद्र सरकार को अपने अधिकार-क्षेत्र में आने वाले मुद्दों पर 57.43 लाख अर्जियां मिलीं. सूचना के अधिकार कानून के तहत हासिल अर्जियों के लिहाज से महाराष्ट्र सरकार(54.95 लाख) तथा कर्नाटक (20.73 लाख) सूची में शीर्ष पर हैं.

 

गुजरात में सूचना के अधिकार कानून के तहत बीते 12 सालों में 9.86 लाख अर्जियां हासिल हुईं जबकि राजस्थान में आरटीआई अर्जियों की तादाद 8.55 लाख रही हालांकि राजस्थान सूचना का अधिकार कानून की जन्मभूमि रहा है. यों छत्तीसगढ़ में साक्षरता-दर तुलनात्मक रुप से कम है लेकिन वहां शत-प्रतिशत साक्षरता वाले केरल की तुलना में आरटीआई की ज्यादा अर्जियां आयीं. छत्तीसगढ़ में बीते 12 सालों में 6.02 साल आरटीआई की अर्जियां हासिल हुईं तो केरल में 5.73 लाख अर्जियां.

 

यों हिमाचल प्रदेश(4.24 लाख), पंजाब(3.60 लाख) तथा हरियाणा(3.32 लाख) आकार में छोटे हैं लेकिन भौगोलिक विस्तार के लिहाज से कहीं ज्यादा बड़े ओड़िशा(2.85 लाख) की तुलना में इन राज्यों में सूचना का अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगने वाली अर्जियां ज्यादा तादाद में हासिल हुईं.

 पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर साभार आमोल मालुसरे के ब्लॉग से



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