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चर्चा में.... | देश के 20 राज्यों के मनरेगा मजदूरों को नहीं मिल पा रही मजदूरी-- नरेगा संघर्ष मोर्चा
देश के 20 राज्यों के मनरेगा मजदूरों को नहीं मिल पा रही मजदूरी-- नरेगा संघर्ष मोर्चा

देश के 20 राज्यों के मनरेगा मजदूरों को नहीं मिल पा रही मजदूरी-- नरेगा संघर्ष मोर्चा

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published Published on Nov 23, 2017   modified Modified on Nov 23, 2017
क्या आप दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ रही एक ऐसी अर्थव्यवस्था की कल्पना कर सकते हैं जहां कुल श्रमशक्ति के लगभग 20 फीसद हिस्से को महीनों से अपने काम की मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया हो ?

 

अगर आपको यह सवाल अजीब लग रहा है तो दुनिया में रोजगार गारंटी की सबसे बड़ी योजना के रुप में मशहूर मनरेगा के मजदूरों की हालिया दशा के बारे में सोचिए.

 

नरेगा मजदूरों के जमीनी हालात के मुद्दे पर सक्रिय मशहूर सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक संगठन नरेगा संघर्ष मोर्चा का दावा है कि फिलहाल देश के 20 राज्यों में मनरेगा के मजदूरों को कई महीनों से मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है.

 

मजदूरी के भुगतान का इंतजार कर रहे इन मनरेगा मजदूरों की कुल तादाद 9.2 करोड़ है. इसका मतलब हुआ कि देश की कुल श्रमशक्ति (47.41 करोड़) में हर पांचवां व्यक्ति अगर वह मनरेगा का मजदूर है तो अपने काम की मजदूरी से वंचित किया जा रहा है. मजदूरी के भुगतान से वंचित लोगों की यह तादाद देश की कुल आबादी का तकरीबन 7 फीसद है और देश की राजधानी दिल्ली की आबादी के लगभग पांच गुनी.

 

नरेगा संघर्ष मोर्चा के सदस्य और मनरेगा के अंतर्गत हो रहे काम पर मौका-मुआयना आधारित शोध में सक्रिय अंकिता अग्रवाल ने इन्क्लूसिव मीडिया फॉर चेंज को बताया कि मनरेगा के अंतर्गत इस वित्तवर्ष के लिए जारी राशि का 85 फीसद हिस्सा सितंबर महीने के आखिर तक खत्म हो चुका था.

 

मोर्चा की प्रेस विज्ञप्ति(देखें नीचे) के अनुसार ‘मनरेगा में 6 नवम्बर 2017 तक कम-से-कम 3541 करोड़ रु का मज़दूरी भुगतान बाकी था. आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, मिज़ोराम, नागालैंड, राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में तो ऋणात्मक शेष (negative balance) की हालत है जबकि 2017-18 में अभी भी पांच महीने बाकी हैं लेकिन मंत्रालय के पास कुल बजट की मात्र 13.9 प्रतिशत राशि ही बची है.'

 

गौरतलब है कि सरकार ने इस साल मनरेगा के मद में 48000 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की थी और इसे मनरेगा के अमल में आने के बाद से अबतक दी गई सबसे ज्यादा राशि बताया था. इस राशि को अपर्याप्त बताते हुए नरेगा संघर्ष मोर्चा ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में ध्यान दिलाया है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय से राज्यों ने वर्ष 2017-18 के लिए 287 करोड़ मानव दिवस के बराबर श्रम बजट मांगा था लेकिन मंत्रालय ने इसके मात्र 77 प्रतिशत हिस्से को ही अनुमोदित किया. ऐसी स्थिति में राज्यों की कुल मांग पूरी करने के लिए केंद्र सरकार को इस वित्तीय वर्ष के लिए कम-से-कम 17,510 करोड़ रु के अतिरिक्त बजट आवंटित करना होगा.

 

पाठकों की सुविधा के लिए नरेगा संघर्ष मोर्चा की प्रेस-विज्ञप्ति का संक्षिप्त हिन्दी अनुवाद और संबंधित जानकारी के लिए स्रोत-व्यक्तियों का फोन नंबर निम्नवत है :

 

 

 

                      मनरेगा मज़दूरों के अधिकारों का लगातार हनन - सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का घोर उल्लंघन जारी

 


देश में गंभीर सूखे की स्थिति के मद्देनज़र सर्वोच्च न्यायालय में स्वराज अभियान द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) व अन्य कल्याणकारी कार्यक्रमों को लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के अपर्याप्त प्रयासों की ओर ध्यान आकर्षित किया था l

 

सर्वोच्च न्यायालय ने 13 मई 2016 के अपने फैसले में मनरेगा मजदूरों के मुद्दों पर भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय को स्पष्ट निर्देश दिया था कि वे मनरेगा को उसकी वास्तविक भावना के अनुसार लागू करें और इस हेतु निम्न बातें सुनश्चित करें: (1) राज्यों को पर्याप्त राशि जारी की जाए और मजदूरों का समय पर भुगतान हो; (2) मज़दूरी भुगतान में देरी के लिए मुआवजे का भुगतान; (3) कार्यक्रम की प्रभावशाली निगरानी; और (4) मनरेगा कानून के सभी प्रावधानों का पालन l लेकिन सुनवाई के एक साल से अधिक समय बीतने के बाद भी मंत्रालय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन किए जा रहा है l इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय की अगली सुनवाई 5 दिसंबर 2017 को है l

 

 समय पर मनरेगा राशि का राज्यों को हस्तान्तान्तरण और मज़दूरी भुगतान करने के आदेश का उल्लंघन

 

राज्यों को पर्याप्त राशि हस्तांतरित करने में देरी से मज़दूरों पर हो रहे प्रतिकूल प्रभाव के मद्देनज़र न्यायालय ने मंत्रालय को निर्देश दिया था, "राज्य सरकारों को पर्याप्त मात्रा में इस कार्यक्रम की राशि समयबद्ध रूप से मुहैया कराएं ताकि मजूदरों को भुगतान समय पर किया जा सके" l लेकिन राशि के आभाव एवं समय पर राशि हस्तांतरित नहीं करने के कारण देशभर में 6 नवम्बर 2017 तक कम-से-कम 3541 करोड़ रु का मज़दूरी भुगतान लंबित है l आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, मिज़ोराम, नागालैंड, राजस्थान, तमिल नाडू और पश्चिम बंगाल में तो ऋणात्मक शेष (negative balance) है l वर्ष 2017-18 में अभी भी पांच महीने बाकी हैं लेकिन मंत्रालय के पास कुल बजट की मात्र 13.9 प्रतिशत राशि ही बची है l यह मंत्रालय के खोखले दावे कि मनरेगा में राशि की कमी नहीं है को दर्शाता है।

 

मंत्रालय ने न्यायालय में यह दावा किया था कि श्रम बजट को किसी अनौपचारिक तरीके से सिमित नहीं किया जाता है, लेकिन इस दावे के विपरीत मंत्रालय ने राज्यों द्वारा 2017-18 के लिए मांगे गए 287 करोड़ मानव दिवस के श्रम बजट के मात्र 77 प्रतिशत हिस्से को ही अनुमोदित किया है l ऐसी स्थिति में राज्यों की कुल मांग पूरी करने के लिए केंद्र सरकार को इस वित्तीय वर्ष के लिए कम-से-कम 17,510 करोड़ रु का अतिरिक्त बजट आवंटित करना होगा l यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि राज्यों द्वारा प्रस्तावित श्रम बजट काम की प्रत्याशित मांग की संकेत मात्र है क्योंकि भविष्य में होने वाली मनरेगा के काम की मांग का सही आंकलन लगाना संभव नहीं है। एवं कानून के अनुसार, प्रस्तावित बजट समाप्त होने पर भी काम मांगने वाले मजदूरों को समय पर रोजगार उपलब्ध करवाना होगा।

 

मजदूरी भुगतान में देरी के लिए मुआवज़ा देने के आदेश का उल्लंघन

 

बड़े पैमाने पर मजदूरी भुगतान में देरी पर न्यायलय ने अपनी प्रतिक्रिया दी, "हम कुछ लोगों के भुगतान में कुछ दिनों या सप्ताहों की देरी समझ सकते हैं, लेकिन इस मामले में लाखों लोगों का कई सप्ताहों (यदि और अधिक न हो) का भुगतान लंबित है। इस समस्या से प्रभावित मज़दूरों की भारी संख्या को मद्देनज़र रखते हुए यह अति दुर्भाग्यपूर्ण है" l और साथ ही, मज़दूरी भुगतान में देरी के लिए मुआवज़े का भुगतान सुनिश्चित करने का मंत्रालय को आदेश दिया। लेकिन 2017-18 में अभी तक 37.62 करोड़ रु के कुल देय मुआवज़े के केवल 10.6 प्रतिशत का भी भुगतान किया गया है l यह केंद्र और राज्य सरकारों का न्यायालय के आदेशों और मनरेगा कानून के उल्लंघन का खुलासा करता है।

 

यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि देय मुआवज़ा मनरेगा के Management of Information System (MIS, www.nrega.nic.in पर उपलब्ध) में मज़दूरी भुगतान में हो रहे विलंब की अपूर्ण गणना पर आधारित है। MIS में भुगतान से सम्बंधित केवल राज्य स्तरीय प्रक्रियाओं (द्वितीय हस्ताक्षरी द्वारा FTO के अनुमोदन तक), और न कि केंद्र सरकार व भुगतान करने वाली वित्तीय संस्थाओं के स्तरों पर होने वाली प्रक्रियाओं (FTO के द्वितीय हस्ताक्षरी द्वारा अनुमोदन के बाद से मज़दूरों के खातों में मज़दूरी जमा होने तक), में हो रही देरी की गणना की जाती है।

 

मुआवज़ा भुगतान से सम्बंधित सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना करते हुए, वर्तमान में, 20 राज्यों में मनरेगा अंतर्गत काम किए मजदूरों का मज़दूरी भुगतान रुका हुआ है। कुछ राज्यों में जैसे केरल और झारखंड में 1.5 महीने से अधिक समय से किसी भी मज़दूर को मज़दूरी नहीं मिली है। यह ऐसे भुगतान हैं जिनमें राज्य सरकार के स्तर पर होने वाली प्रक्रियाएं (FTO के अनुमोदन तक) पूरी कर ली गयी हैं, लेकिन केंद्र सरकार के स्तर पर भुगतान लंबित है l ऐसे राज्य में, जहां लोगों की भूख से मौते हो रही है, मनरेगा मज़दूरी का भुगतान ना करना घोर अपराधिक लापरवाही है l

 

यह भी गौरतलब है कि जिस राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक फंड मैनेजमेंट प्रणाली (N-eFMS) (जिसके माध्यम से मज़दूरी का भुगतान अब सीधा केंद्र स्तर से किया जाता है) को मंत्रालय द्वारा मज़दूरी भुगतान में हो रही देरी के समाधान के रूप में बार-बार सर्वोच्च न्यायालय में पेश किया जाता है, वही प्रणाली भुगतान में देरी का एक और कारण बन गयी है l कई राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार द्वारा समय पर राशि हस्तांतरित न किए जाने की समस्या से निपटने के लिए चक्री राशि (revolving fund) का प्रावधान रखा है। लेकिन NeFMS प्रणाली से मज़दूरी भुगतान के केन्द्रीकरण के कारण वे इस राशि का प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं।

 

मंत्रालय ने हाल ही में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी जिसमें मज़दूरी के लंबित भुगतान का कारण, राज्य सरकारों द्वारा लेखापरीक्षा रिपोर्ट और उपयोगिता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में देरी, को बताया गया था l लेकिन इन प्रकार की देरी के लिए कोई कानूनी मुआवज़ा नहीं दिया जा रहा है क्योंकि ये FTOs के द्वितीय हस्ताक्षरी द्वारा अनुमोदन के पश्चात हो रहे हैं l साथ ही राज्यों द्वारा नियमित प्रशासनिक कार्यों को समय पर न करने के कारण मज़दूरी भुगतान में हो रही देरी के लिए राज्यों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई भी नहीं की जा रही है । केंद्र व राज्य सरकारों का यह रवैया न्यायालय के इस अवलोकन के विरुद्ध है, "जब हजारों लोगों के वैध देय राशि के देरी से भुगतान के कारण उनके अधिकार प्रभावित होते हैं, यह राज्य, चाहे केंद्र सरकार हो या एक राज्य सरकार, द्वारा किया गया संवैधानिक उलंघन है " l

 

कार्यक्रम के प्रभावशाली निगरानी पर दिए गए आदेशों का उल्लंघन

 

सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि "नरेगा अधिनियम का प्रभावशाली कार्यान्वयन तब तक संभव नहीं होगा जब तक भारत सरकार और राज्य सरकारें द्वारा निगरानी और समीक्षा करने वाली संस्थाओं को तत्काल स्थापित न किया जाए l और मंत्रालय को केद्रीय रोजगार गारंटी परिषद और राज्य रोजगार गारंटी परिषदों को स्थापित करने का निर्देश दिया था l इन आदेशों का अनुपालन का आंकलन ही संभव नहीं है क्योंकि मंत्रालय ने इन परिषदों के गठन, बैठक सम्बंधित सूचना एवं बैठकों की कार्यवाई अपनी वेबसाईट पर जारी नहीं की है l नरेगा संघर्ष मोर्चा के सदस्यों से मिल रही सूचना के अनुसार न्यायालय के इस आदेश का पूरे देश में अवहेलना हो रहा है l उदहारण के तौर पर झारखंड में परिषद की आखिरी बैठक जुलाई 2016 में हुई थी जबकि राज्य-स्तरीय नियमों के अनुसार बैठक हर छ: महीनों में होनी चाहिए l एवं इस बैठक में लिए कई महत्वपूर्ण निर्णयों का अभी तक अनुपालन नहीं किया गया है l तेलंगाना के मुख्यमंत्री पिछले तीन वर्षों में परिषद की किसी भी बैठक में हिस्सा नहीं लिए हैं l महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में गठित परिषद सक्रिय नहीं हैं l

 

मनरेगा कानून के सभी प्रावधानों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने पर दिए गए आदेशों का उल्लंघन

 

मंत्रालय ने MIS में फेरबदल करने का एक नया इतिहास रचा है l अब MIS में ऐसे बदलाव किए गए हैं जिनके कारण ग्रामीण परिवारों के कम-से-कम 100 दिन के काम के अधिकार का उलंघन हो रहा है l अब MIS में मज़दूरों द्वारा मांग किए गए प्रत्येक कार्य-सप्ताह (6 दिन) में एक दिन स्वतः जुड़ जा रहा है l साथ ही, MIS में अब ऐसे परिवारों की काम की मांग नहीं हो पा रही है, जो 100 दिनों का काम मांग चुके हैं l इस प्रणाली में यह नहीं देखा जा रहा है कि परिवार को 100 दिनों का काम आवंटित हुआ कि नहीं या परिवार ने 100 दिनों का काम किया कि नहीं l इन दोनों फेरबदल के लिए बहुत परिवार अपने 100 दिनों के काम के अधिकार से वंचित हो जा रहे हैं l यह गौर करने की बात है कि MIS में काम की मांग की एंट्री व काम का आवंटन करने से ही परिवार को वास्तव में काम मिल जाए, ऐसा ज़रूरी नहीं है l कानून की अनुसूची II के अनुसार, "परिवार की सकल हकदारी के अधीन रहते हुए, रोजगार के उन दिनों की संख्या जिनके लिए कोई व्यक्ति आवेदन कर सकेगा या उसको वस्तुतः दिए गए रोजगार के दिनों की संख्या पर कोई सीमा नहीं होगी l" MIS में किया गया यह फेरबदल मनरेगा कानून का एवं न्यायालय के आदेश, "भारत सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि सभी सम्बंधित द्वारा कानून के प्रावधानों का ईमानदारी से कार्यान्वयन किया जाएगा l"

 

न्यायालय के आदेशों व मनरेगा कानून के प्रावधानों का लगातार उल्लंघन और नागेश सिंह कमिटी की मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी न देने की अनुशंसा से यह स्पष्ट है कि सरकार की मनरेगा कानून को सही प्रकार से लागू करने की मंशा नहीं है l अनुलग्नक 1 में दिए गए मानकों की वर्तमान स्थिति भी उच्चतम न्यायालय के आदेशों की घोर अवमानना की ओर अंकित करती है l

 

नरेगा संघर्ष मोर्चा मांग करता है :

1) काम की मांग को पूरा करने के लिए अतिरिक्त राशि का आवंटन तुरंत किया जाए l

2) मज़दूरी भुगतान में हो रही देरी की गणना मज़दूरों के खाते में मज़दूरी जमा होने तक की जाए l

3) मज़दूरों के खाते में मज़दूरी जमा होने में हुई कुल देरी के अनुसार मुआवज़े की गणना व स्वतः भुगतान किया जाए (वर्तमान स्थिति के विपरीत, देय मुआवज़े की राशि खारिज करने का विवेकाधिकार किसी भी कर्मी अथवा पदाधिकारी को नहीं होना चाहिए) l

4) MIS में काम की मांग पर लगाए गयी "चेक" को समाप्त किया जाए l

5) केंद्रीय व राज्य स्तरीय रोजगार गारंटी परिषदो की बैठकों की सारणी व उनकी कार्यवाई को मनरेगा वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जाए l

 

अधिक जानकारी के लिए, कृपया nrega.sangharsh.morcha@gmail.com पर लिखें या अंकिता अग्रवाल (9504091005), अरुंधति धुरु (9415022772) या कामायनी स्वामी (9771950248) से संपर्क करें।

 

 नरेगा संघर्ष मोर्चा की वर्किंग कमिटी:

 

राष्ट्रीय नेटवर्क: अरुंधती धुरू (जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय), ऐनी राजा (नैशनल फेडरेशन औफ़ इन्डियन विमिन), गौतम मोदी (न्यू ट्रेड युनियन इनिशिएटिव) और रोज़ी रोटी अधिकार अभियान (दीपा सिन्हा और कविता श्रीवास्तव)

 

स्थानीय संगठन व नेटवर्क: जारिन वेरी (द ऐंट, असम), (जन जागरण शक्ति संगठन, बिहार), इन्दू देवी (समाज परिवर्तन शक्ति संगठन), (छत्तीसगढ़ किसान मज़दूर आन्दोलन), नीता हार्दिकर (आनंदी, गुजरात), बीरबल और सुन्दर सिंह (पीपल्स ऐक्शन फॉर पीपल इन नीड, हिमाचल प्रदेश), जेम्स हेरेंज और तारामनी साहू (झारखंड नरेगा वॉच), अभय कुमार और स्वर्णा भट (ग्रामीण कुली कर्मिकार संगठन, कर्नाटक), हरसिंह जामरे (जागृत आदीवासी दलित संगठन, मध्य प्रदेश), अश्विनी कुलकर्णी (प्रगति अभियान, महाराष्ट्र), मुकेश निर्वासत और शंकर सिंह (मज़दूर किसान शक्ति संगठन), (समर्थ फ़ौंडेशन, उत्तर प्रदेश), रामबेटी, रीना पांडे और ऋचा सिंह (संगतिन किसान मज़दूर संगठन, उत्तर प्रदेश), उर्मिला (वनांगना, उत्तर प्रदेश), फुलवा (दलित महिला समिति, उत्तर प्रदेश), अनुराधा तलवार (पश्चिम बंगा खेत मज़दूर समिति) और (उदायनी, पश्चिम बंगाल)

 

पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर साभार- डाऊन टू अर्थ

http://www.downtoearth.org.in/news/centre-launches-awareness-campaign-for-mgnrega-42832 

 


 



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