Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
चर्चा में.... | भारत का आदिवासी-खाता मतलब घाटा ही घाटा !
भारत का आदिवासी-खाता मतलब घाटा ही घाटा !

भारत का आदिवासी-खाता मतलब घाटा ही घाटा !

Share this article Share this article
published Published on Sep 20, 2013   modified Modified on Sep 20, 2013

सरकारी नौकरियों में आदिवासी समुदाय के लोगों की मौजूदगी नाम-मात्र को है- एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइटस् द्वारा जारी एक शोध में इस तथ्य की नये सिरे से पुष्टी की गई है। बीते 18 सितंबर को जारी इस शोध के संकेत हैं कि आरक्षण की नीति के बावजूद कुछ मामलों में आदिवासी समुदाय के लोगों का हाशियाकरण लगातार बढ़ रहा है। (पूरी रिपोर्ट के लिए यहां क्लिक करें).


बीते मई महीने तक केंद्रीय सरकार के अधीन आने वाली विभिन्न नौकरियों में आदिवासी समुदाय के लोगों के आरक्षित रिक्तियों का बैकलॉग 12195 था। अगर इन पदों को श्रणीवार तोड़कर देखें तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। साल 2010-11 में केंद्र सरकार में सचिव स्तर के पद पर आदिवासी समुदाय के महज 2.68 फीसदी व्यक्तियों की नियुक्ति थी यानि सचिव स्तर कुल 149 पदों में मात्र 4 व्यक्ति ही आदिवासी समुदाय के थे।अतिरिक्त सचिव के स्तर पर कुल 108 पदों में मात्र 2 व्यक्ति ही(यानि1.85फीसदी) आदिवासी समुदाय के थे। संयुक्त सचिव स्तर के पद पर महज 3.14 फीसदी(कुल 477 पदों में 15) पदों पर आदिवासी समुदाय के व्यक्ति नियुक्त थे। निदेशक के कुल 590 पद में से 7 पदों पर इस समुदाय के लोग नियुक्त थे यानि निदेशक स्तर पर आदिवासी समुदाय के लोगों की नियुक्ति केंद्र सरकार की नौकरियों में महज 1.2 फीसदी थी।


आदिवासी बहुल राज्यों में समस्या की विकरालता खासतौर पर लक्ष्य की जा सकती है।मिसाल के लिए रिपोर्ट में कहा गया है कि 31 अक्तूबर 2011 तक छत्तीसगढ़ के 18 जिलों में से महज दो जिलों में जिला-समाहर्ता के पद पर आदिवासी समुदाय के व्यक्ति नियुक्त थे। पुलिस सुपरिटेन्डेंट और डिस्ट्रिक्ट जज के महज एक पद पर आदिवासी समुदाय के व्यक्ति की नियुक्ति थी जबकि राज्य के 31 बोर्डों और निकायों में किसी एक के भी अध्यक्ष पद पर आदिवासी समुदाय का कोई व्यक्ति नियुक्त नहीं था।


एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइटस् के विश्लेषण में विश्वविद्यालय आदिवासियों के नियुक्ति के मामले में सर्वाधिक पीछे साबित हुए हैं। सूचना के अधिकार के तहत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से हासिल जानकारी के अनुसार साल 2006-07 में विश्विद्यालयों में प्रोफेसर के पद पर आदिवासी समुदाय के लोगों की संख्या 3.88 फीसदी( प्रोफेसर के कुल 1187 पदों में से 46 पद) थी जबकि साल 2010-11 में यह संख्या घटकर 0.24 फीसदी( प्रोफेसर के 1667 पदों में 4 पद) पर आ गई। इसी तरह साल 2006-07 में विश्वविद्यालयों में रीडर के 1744 पदों में 18 पदों(1.03 फीसदी) पर आदिवासी समुदाय के लोगों की नियुक्ति थी जो साल 2010-11 में घटकर महज 0.32% ( रीडर के लिए कुल अनुमोदित 3155 पदों में से 10 पर एसटी समुदाय के लोग) पर आ गई। यूजीसी द्वारा दी गई सूचना के मुताबिक साल 2006-07 में लेक्चरार के कुल 2914 पदों में से 129 यानि 4.43 फीसदी पदों पर अनुसूचित जाति के लोग नियुक्त थे।प्रतिशत पैमाने पर यह संख्या साल 2010-11 में घटकर 3.63 फीसदी( लेक्चरार के कुल 5317 पदों में से 193 पर एसटी समुदाय के लोग) हो गई।


एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइटस् के अनुसार ऊपर बताये गये सभी क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय के लोगों का अपवर्जन एक सोची समझी रणनीति के तहत किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार “ अनुसूचित जनजाति के सदस्य चयन के लिए निर्धारित योग्यता को पूरा करते हैं तो भी अक्सर उन्हें यह कहकर बाहर का दरवाजा दिखाया जाता है कि “एक भी उम्मीदवार चयन के योग्य नहीं मिला।” इस एक वाक्य से यह सुनिश्चित किया जाता है कि आरक्षित पद सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के हिस्से में आ जायें।


इस कथा के विस्तार के लिए देखें-

The Parliamentary Committee’s report of March 2013 on the poor representation of marginal sections in government
http://164.100.47.134/lsscommittee/Welfare%20of%20Schedule
d%20Castes%20and%20Scheduled%20Tribes/15_Welfare_of_Sche
du led_Castes_and_Scheduled_Tribes_26.pdf

 

Government circulars issued over a decade to fill up backlogs in posts for marginalised sections
http://ncst.nic.in/index3.asp?sslid=577&subsublinkid=1
95&langid=1

 

The government’s policy on reserving and dereserving
http://www.persmin.nic.in/DOPT/Brochure_Reservation_SCSTBa
ckward/Chapter-01.pdf

 

http://ccis.nic.in/WriteReadData/CircularPortal/D2/D02adm/
36020_2_2007-Estt.Res-07122009.pdf


Planning Commission reports from the 11th Five Year Plan on empowering India’s Scheduled Tribes and analyses on empowering Scheduled Tribes

http://planningcommission.nic.in/plans/planrel/fiveyr/11th
/11_v1/11v1_ch6.pdf

 

http://planningcommission.gov.in/aboutus/committee/strgrp/
stg_sts.pdf

 पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर के लिए इस वेबसाइट के सदस्य http://2.bp.blogspot.com/-EuI6qgS13ck/TY8GaL_IatI/AAAAAAAAAt0/6dsU_Hc4XRM/s320/Picture%2B063.jpg का आभार वयक्त करते हैं।

 



Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close