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चर्चा में.... | मनरेगा 2010: सरकार की कछुआ चाल

मनरेगा 2010: सरकार की कछुआ चाल

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published Published on Dec 10, 2010   modified Modified on Dec 10, 2010

अंग्रेजी में एक कहावत है कि चीजें जितनी बदलती हैं, वो उतनी ही पहले जैसी बनी रहती हैं। ऐसा ही कुछ महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) के सिलसिले में है। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपना पूरा समर्थन दिया है, दो कांग्रेस मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है, एक हाई कोर्ट (आंध्र प्रदेश) ने फैसला दिया है कि मौजूदा वेतन दर न्यूनतम मजदूरी कानून 1948का उल्लंघन है- इसके बावजूद ग्रामीण मजदूरों को अब तक उसी पुराने दर पर ही मजदूरी मिल रही है।

जब केंद्र और राज्य सरकारों के न्यूनतम मजदूरी देने पर ‘राजी’ होने के बाद मनरेगा मजदूरों ने जयपुर में अपने 47 दिन के धरने को खत्म किया था, तब यह सोचा गया कि उसके आगे के कदम कुछ दिनों के भीतर ही उठाए जाएंगे। खासकर आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के रुख को देखते हुए यह मान्यता बनी थी। हाई कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार और केंद्र के खिलाफ उसके जुलाई 2009 के आदेश के उल्लंघन के आरोप में अवमानना की कार्यवाही शुरू कर दी थी। उस आदेश में यह भी कहा गया था कि पहले हुए कम मजदूरी भुगतान के बदले मजदूरों को बकाया राशि पाने का अधिकार है। लेकिन सरकार ने अपने वादे को अमली रूप देने के लिए अब तक अधिसूचना जारी नहीं की है।

कानून की धारा 22 (1) (ए) के तहत मनरेगा मजदूरी के भुगतान का बोझ केंद्र सरकार को उठाना है। ऐसा लगता है कि वह नई दर पर भुगतान के लिए तो तैयार है, लेकिन वह कृषि मजदूरों के लिए मजदूरी को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़ने के खिलाफ है। वित्त मंत्रालय के कुछ अधिकारी चाहते हैं कि बढ़े वित्तीय बोझ को राज्य सरकारों के माथे पर डाल दिया जाए। जबकि राज्य सरकारों की दलील है कि रोजगार गारंटी का पूरा विचार केंद्र ने इस वचनबद्धता के साथ आगे बढ़ाया था कि मजदूरी उसकी जिम्मेदारी होगी।

प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखने वाले पहले मुख्यमंत्री राजस्थान के अशोक गहलोत थे। राज्य में अकुशल मजदूरों के लिए संशोधित दर के मुताबिक अब नई न्यूनतम मजदूरी 135 रुपए होगी- लेकिन अभी इसमें एक पेच है। बढ़ी मजदूरी केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा के प्रावधानों के तहत अधिसूचना जारी कर देने के बाद ही लागू होगी।

आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री के रोशैया ने अशोक गहलोत जैसे ही प्रधानमंत्री को लिखे एक पत्र में चेतावनी दी थी कि यूपीए सरकार को बड़ी शर्मिंदगी झेलनी पड़ सकती है। उनके पत्र में साफ शब्दों में कहा गया कि मजदूरी में संशोधन के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय अब बाध्य है, क्योंकि उसने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील नहीं की है। हाई कोर्ट ने मनरेगा की धारा 6 (1) पर अमल रोक दिया है, जिसमें न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देने का प्रावधान है। रोशैया ने अपने पत्र में प्रधानमंत्री से हाई कोर्ट के आदेश को लागू करने का अनुरोध किया था। साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री से यह भी आग्रह किया था कि जुलाई 2009 में आए हाई कोर्ट के आदेश से बाद की अवधि के बकाये का मजदूरों को भुगतान सुनिश्चित कराया जाए।

साफ तौर पर अब नई मजदूरी दर के लिए अधिसूचना जारी कराने का दायित्व प्रधानमंत्री कार्यालय पर है। जबकि प्रधानमंत्री कार्यालय विभिन्न मंत्रालयों के विचारों और आपत्तियों को जानने के लिए चक्कर काट रहा है। माना जाता है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय इस आदेश पर अमल कराने को लेकर खास तौर पर हिचक रहा है।

अगर सरकार फैसला करे तो वह कानून में ऐसा संशोधन कर सकती है, जिससे मजदूरी देने पर होने वाले खर्च का कुछ हिस्सा राज्य सरकारें उठाएं। लेकिन ऐसा करना आसान नहीं होगा। अगर यह प्रावधान हो जाए तो इससे फिर सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए राज्य सरकारों द्वारा मनरेगा मजदूरी में मनमानी बढ़ोतरी पर रोक लग सकेगी। बहरहाल, यह साफ है कि यूपीए के लिए अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह टालना लगभग नामुमकिन है। जाहिर है, मनरेगा के तहत न्यूनतम मजदूरी दिए जाने के विरोधियों के पास सबसे अच्छा उपाय यही है कि इसके अमल को जब तक संभव हो टाला जाए। और यही वो करते दिख रहे हैं।

कोर्ट के आदेश ने सरकार के लिए न्यूनमत मजदूरी की वैधानिकता का उल्लंघन और भी कठिन बना दिया है। जैसाकि पहले इस वेबसाइट की चर्चा में कई विशेषज्ञों की इस राय का जिक्र हुआ है कि न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी का भुगतान न सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि वह ‘जबरिया मजदूरी’ भी माना जाएगा। न्यूनतम मजूदरी के हक में उठी मांग के सिलसिले में इस राय का समर्थन देश के कई मशहूर न्यायविदों और जजों ने भी किया है। उनकी द्वारा लिखी गई चिट्ठी को सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को भेजी अपनी टिप्पणी के साथ संलग्न किया था। (नीचे लिंक देखें). केंद्र की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद पहले ही न्यूनतम मजदूरी देने की सिफारिश कर चुकी है और केंद्रीय रोजगार गारंटी परिषद मुद्रास्फीति (महंगाई) के साथ मजदूरी की घट-बढ़ को जोड़ने की मांग का समर्थन कर चुकी है।

खाद्य पदार्थों की महंगाई के साथ गरीब ग्रामीण मजदूरों का वास्तविक वेतन घटता गया है, जबकि मुद्रास्फीति के साथ वेतनवृद्धि के जुड़े होने की वजह से सरकारी कर्मचारियों को महंगाई से सुरक्षा मिली रहती है। स्पष्टतः मजदूरों को हर महीने बिना उनके किसी दोष के पहले से कम मजदूरी मिलती है। उन्नीस राज्यों में न्यूनतम मजदूरी 100 रुपए से कम है, लेकिन मनरेगा मजदूरों को यह वाजिब वेतन नहीं मिलता, क्योंकि मनरेगा के तहत वेतन 100 रुपए तय कर दिया गया है।

बहरहाल, ग्रामीण गरीबों के साथ काम करने वाले सिविल सोयासटी संगठन और जन आंदोलनों के लिए मनरेगा में सुधार का मुद्दा सिर्फ उचित मजदूरी के साथ खत्म नहीं हो जाता है। बल्कि वे जोर डाल रहे हैं कि वेतन भुगतान में देरी करने वाले सरकारी अधिकारियों को दंड दिया जाए, देर से मजदूरी मिलने पर मजदूरों को मुआवजा मिले, मजदूरों को रजिस्टर्ड यूनियन बनाने का हक मिले और कार्य प्रबंधन के तौर-तरीकों में सुधार हो।
इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए कृपया नीचे दिए गए लिंक्स और *im4change** *
*के **चर्चा है** कॉलम में पहले दी गई सामग्रियों पर गौर करें। *

मनरेगा की समस्याएं
http://www.im4change.org/news-alert/what-is-wrong-with-mg-
nrega-4237.html


योजना आयोग के सदस्य अभिजित सेन का रूपाश्री नंदा द्वारा इंटरव्यू
http://www.im4change.org/interviews/abhijeet-sen-member-pl
anning-commission-interviewed-by-rupashree-nanda-4744.html


नरेगा मजदूरी विवाद पर हिंसा भड़की, एक की मौत, टाइम्स ऑफ इंडिया, 8 दिसंबर,
2010,
http://timesofindia.indiatimes.com/city/kolkata-/NREGA-pay
-row-sparks-violence-1-dead/articleshow/7062602.cms


मनरेगा में बढ़ती गड़बड़ियां, द हिंदू, 7 दिसंबर, 2010
http://pib.nic.in/release/release.asp?relid=68186

राज्य नरेगा मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी जरूर दें: प्रणब सेन, द बिजनेस
स्टैंडर्ड, 7 दिसंबर, 2010
http://www.business-standard.com/india/news/states-must-pa
y-minimum-wages-to-workers-under-nrega-pronab-sen/417394/


असम: महंत दावा- नरेगा में 180 करोड़ का बड़ा घोटाला, आउटलुक, 6 दिसंबर, 2010
http://news.outlookindia.com/item.aspx?704002

क्या यूनिक आइडेन्टीटी नंबर से नरेगा पटरी से उतर जाएगा, एनडीटीवी, 2 दिसंबर,
2010,
http://www.ndtv.com/article/india/will-unique-identity-num
ber-derail-nrega-70002


मनरेगा भुगतान में देरी पर राजस्थान सरकार ने दंड लगाया, द हिंदुस्तान टाइम्स,
30 नवंबर 2010
http://www.hindustantimes.com/Raj-govt-to-impose-penalty-f
or-delaying-MGNREGA-payment/Article1-632811.aspx


‘यूआईडी को मनरेगा से अलग रखें', द हिंदू, 1 दिसंबर, 2010
http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-opinion/article924451.ece

मीडिया को लोकतंत्र की असली तस्वीर को देखने का आमंत्रण
http://www.im4change.org/news-alert/media-invited-to-witne
ss-the-real-dance-of-democracy-3622.html


मनरेगा: अब तक मिली-जुली सफलता
http://www.im4change.org/news-alert/mgnrega-mixed-success-
so-far-3513.html


राजस्थान में मनरेगा में सबसे बड़ा घोटाला

http://www.im4change.org/news-alert/the-biggest-mnrega-sca
m-in-rajasthan-1911.html


अररिया में सोशल ऑडिट से मनरेगा में भ्रष्टाचार का खुलासा
http://www.im4change.org/news-alert/social-audit-of-nregs-
in-araria-reveals-corruption-870.html


भ्रष्ट सरपंचों के खिलाफ गरीब जनता एकजुट

http://www.im4change.org/news-alert/poor-people-unite-agai
nst-corrupt-sarpanches-777.html


क्या नरेगा II यूपीए II की लापरवाही का परिणाम है?
http://www.im4change.org/news-alert/debate-is-nregs-ii-a-p
roduct-of-a-complacent-upa-ii-114.html



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