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चर्चा में.... | मनरेगा- कहीं नरम , कहीं गरम

मनरेगा- कहीं नरम , कहीं गरम

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published Published on Oct 1, 2010   modified Modified on Oct 1, 2010

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना(मनरेगा) के बारे में ज्यादातर खबरें या तो उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार की होती हैं या फिर योजना की कारआमली में हो रही ढिलाई की। सरकार ने इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा पर कुल 40 हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं लेकिन शहराती मध्यवर्ग का एक बड़ा तबका और जनमत-निर्माता इसी पसोपेस में हैं कि आखिर इन रुपयों से कुछ सार्थक हो भी रहा है या नहीं। नुक्ताचीनी की बातों को एक तरफ करके देखें तो नजर आएगा कि अधिकार आधारित यह योजना ग्रामीण भारत की तस्वीर एक सिरे से बदल रही है, भले ही इसकी सफलता को सौ फीसदी नहीं कहा जाय।.

जिन जगहों पर नागरिक संगठन प्रभावशाली हैं या फिर जहां जन आंदोलन मजबूत है वहां यह योजना विशेष रुप से शपल हुई है। जिन जगहों पर जिला-प्रशासन चुस्त योजना की कारअमली को लेकर चुस्त है और योजना के बारे में अगर जिला प्रशासन का रवैया थोड़ा हमदर्दी भरा है तो वहां भी यह योजना सफल सिद्ध हो रही है।कई जगहों पर ग्रामीण इलाकों के गरीबों की मांग है कि मनरेगा के अन्तर्गत मिलने वाली मजदूरी मौजूदा मुद्रास्फीति के हिसाब से तालमेल बैठाकर मिले।उनका तर्क है कि औद्योगिक और सरकारी क्षेत्र में वेतन मुद्रा स्फीति के हिसाब से तय होता है तो हमारा क्यों नहीं। राजस्थान में हजारों नरेगा मजदूर(स्त्री-पुरुष) भुगतान की जाने वाली मजदूरी की पुनरीक्षण,  एक ऐसी पद्धति जिसके सहारे हर मजदूर के काम का अलग-अलग मूल्यांकन किया जा सके और मजदूरी के त्वरित भुगतान जैसी मांगों को लेकर सड़क पर उतर आये हैं। आंदोलनकारी मजदूर भ्रष्ट अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की भी मांग कर रहे हैं।

सरपंच किस तरह मनरेगा के विधान को चूना लगा रहे हैं और किस तरह कुछ जिलों में प्रशासन उनकी नकेल कस रहा है इसे जानने के लिए आप हमारी एक पिछली न्यूज एलर्ट देख सकते हैं।(http://www.im4change.org/news-alert/the-biggest-mnrega-sca
m-in-rajasthan-1911.html) राजस्थान
में कई जगहों पर सरपंच अपने पसंदीदा ठेकेदार को सामानों की आपूर्ति का ठेका देकर मनरेगा के नियमों की सरेआम धज्जी उड़ा रहे हैं। कई जगहों पर खरीदारी के रिकार्ड में हेराफेरी की गई है और जेसीबी मशीनों के इस्तेमाल करके मजदूरों का हक मारा जा रहा है। देश के बाकी हिस्सों में भी मनरेगा की रकम के मामले में गबन और धोखाघड़ी के किस्से आम हैं।

मनरेगा की कहानी का एक उजला पक्ष भी है। मनरेगा के कारण गहन गरीबी से लड़ना संभव हो पाया है।मांग आधारित इस योजना में प्रति परिवार सालाना 100 दिन के काम को हक का दर्जा दिया गया है। इस योजना में महिलाओं को पुरुषों के बराबर मजदूरी दी जाती है और योजना के कारण लाखों गरीब लोगों को बैंकिंग तंत्र से जोड़ना संभव हो पाया है। योजना की विस्तृत जानकारी और इसके विधानों के लिए कृपया हमारी वेबसाइट की निम्नलिखित लिंक देखें। (http://www.im4change.org/empowerment/right-to-work-mg-nreg
a-39.html
) । भ्रष्टाचार, नियमों का उल्लंघन और गबन के मामले मनरेगा में कम नहीं हैं लेकिन इस सिलसिले में सबसे अच्छी बात यह है कि गरीब जनता मनरेगा के नियमों के सहारे ही भ्रष्टाचार से लड़ रही है।सूचनाओं को अनिवार्य रुप से सार्वजनिक करना, सूचना का अधिकार और सामाजिक अंकेक्षण मनरेगा में मौजूद ऐसे ही प्रावधान हैं।

आईएम फ़र चेंज की टोली ने मनरेगा से संबंधित कुछ नवीनतम सूचनाएं नीचे के अनुच्छेद में एकत्रित की हैं।इसमें आपको मनरेगा के लाभुकों की नवीनतम संख्या, राष्ट्रव्यापी स्तर पर मनरेगा के अन्तर्गत हुए कार्यनिष्पादन के आंकड़े आदि एक साथ मिल जायेंगे। अगर आप इस न्यूज एलर्ट के साथ तकनीक के इस्तेमाल पर केंद्रित एक और न्यूज एलर्ट ( http://im4change.org/news-alert/indian-states-use-technolo
gy-to-build-accountability-3259.html
) भी पढ़ते हैं तो आपको हाथोहाथ इस बात की भी जानकारी हो जाएगी कि तकनीक के  इस्तेमाल से कुछ राज्यों के व्यवस्था-तंत्र में किस तरह चुस्ती आई है।

साल 2010-2011 में मनरेगा के अन्तर्गत मिले रोजगार की संख्या
http://164.100.12.7/netnrega/writereaddata/citizen_out/Dem
Register_1011.html

• राष्ट्रीय स्तर पर साल 2010-2011 में मनरेगा के अन्तर्गत 11.35 करोड़ परिवारों और  24.79 करोड़ व्यक्तियों को पंजीकृत किया गया है। दिए गए वर्ष में राष्ट्रीय स्तर पर कुल 11.24 करोड़ जॉब कार्ड जारी किए गए हैं।  

• कुल 3.16 करोड़ परिवारों ने रोजगार की मांग की जिसमें 3.11 करोड़ परिवारों को रोजगार दिया गया। दूसरे ढंग से कहें तो राष्ट्रीय स्तर पर कुल  4.92 करोड़ लोगों ने रोजगार की मांग की जिसमें से 4.86 करोड़ लोगों को रोजगार दिया जा सका।

आंध्रप्रदेश में वित्तीय वर्ष 2010-11 में सर्वाधिक लोगों(25.75 करोड़ मानवदिवस) को रोजगार मिला। राजस्थान इस मामले में दूसरे नंबर पर रहा यहां दिए गए साल  में 15.80 करोड़ लोगों को रोजगार मिला जबकि उत्तरप्रदेश इस मामले (10.20 करोड़ मानवदिवस) तीसरे नंबर पर रहा।

मनरेगा के अन्तर्गत साल 2010-2011 में राष्ट्रीय स्तर पर 94.93 करोड़ मानव-दिवसों के बराबर रोजगार का सृजन हुआ।

 • अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग को क्रमश 20.65 करोड़ और 16.55 करोड़ मानवदिसवसों के बराबर रोजगार हासिल हुआ।

• केवल 8,64,777 परिवार ही दिए गए वर्ष में 100 दिन का कार्य हासिल कर सके।

एवरेज वेज पेड़ पैटर्न ड्यूरिंग द फाइनेंशियल ईयर 2010-2011नामक दस्तावेज के अनुसार,
http://164.100.12.7/netnrega/state_html/Emp_pro_periodwise
1.aspx?lflag=eng&fin=2010-2011

• राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो 2010-11 में अप्रैल महीने में औसत मजदूरी भुगतान  95.53 रुपये रहा जो मई(2010) महीने में कम होकर 91.38 रुपये और जून(2010) में 90.17 रुपये हो गया।

लिस्ट ऑव रजिस्टर्ड फैमिली टू हूम जॉब कार्ड इज नॉट इश्यूड (2010-11) नामक दस्तावेज के अनुसार http://164.100.12.7/netnrega/writereaddata/state_out/streg
nojoball_1011.html
:  

• साल 2010-11 में राष्ट्रीय स्तर पर कुल 0.11 करोड़ पंजीकृत परिवारों को जॉब-कार्ड जारी नहीं किया गया।

• महाराष्ट्र में चालू साल में कुल 4,39,986 पंजीकृत परिवारों को जॉब-कार्ड जारी नहीं किया गया।

 विशेष जानकारी के लिए कृपया निम्नलिखित लिंक देखें-

Employment Generated During The financial Year 2010-2011
http://164.100.12.7/netnrega/writereaddata/State_out/Empst
atusall_1011_.html

Employment Generated during the Year 2010-2011 -
http://164.100.12.7/netnrega/writereaddata/citizen_out/Dem
Register_1011.html

Average wage paid pattern during the financial year 2010-2011-
http://164.100.12.7/netnrega/state_html/Emp_pro_periodwise
1.aspx?lflag=eng&fin=2010-2011

WORK STATUS: Completed Works-
http://164.100.12.7/netnrega/writereaddata/citizen_out/wrk
statlink_1011.html

Suspended Works As on 20-9-2010
http://164.100.12.7/netnrega/writereaddata/state_out/suspe
nwrkreport_1011.html

SC/ST persons engaged in work category irrigation facilities to SC/ST BPL Families
http://164.100.12.7/netnrega/state_html/if_scst.aspx?lflag
=eng&page=S&state_code=&id=disabled&fin_ye
ar=2010-2011

Gehlot may give in to sarpanches' demands by Anindo Dey, 
The Times of India, 10 September, 2010, 
http://timesofindia.indiatimes.com/city/jaipur/Gehlot-may-
give-in-to-sarpanches-demands/articleshow/6527662.cms

Job scheme fails rural test in UP, finds panel, The Indian Express, 9 September, 2010, http://www.indianexpress.com/news/Job-scheme-fails-rural-t
est-in-UP--finds-panel/679396

NREGS: CAG detects machines not men, The Express Buzz, 6 September, 2010, http://expressbuzz.com/states/orissa/nregs-cag-detects-mac
hines-not-men/204385.html

4 district collectors misused NREGA fund for buying computers by Anindo Dey, The Times of India, 23 August, 2010,
http://epaper.timesofindia.com/Default/Scripting/ArticleWi
n.asp?From=Archive&Source=Page&Skin=TOINEW&Bas
eHref=TOIJ/2010/08/23&PageLabel=1&EntityId=Ar00105
&ViewMode

Five heady years of MGNREGA by Himanshu, 
http://www.livemint.com/2010/08/31210546/Five-heady-years-
of-MGNREGA.html?h=B

Social audits lead to action against corrupt officials, http://www.im4change.org/news-alert/social-audits-lead-to-
action-against-corrupt-officials-251.html

Social Audit of NREGS in Araria reveals corruption, http://www.im4change.org/news-alert/social-audit-of-nregs-
in-araria-reveals-corruption-870.html

Rajasthan village uses touch screen to find jobs, Associated Press, 23 September, 2010, http://www.ndtv.com/article/cities/rajasthan-village-uses-
touch-screen-to-find-jobs-54298
 
 

NREGA gets 'smart' by Arvind Mayaram, The Financial Express, 24 September, 2010, http://www.financialexpress.com/news/nrega-gets-smart/686746/0   

Price Index to be linked with NREGA wages by Amit Agnihotri, 21 September, The Asian Age, http://epaper.asianage.com/ASIAN/AAGE/2010/09/22/ArticleHt
mls/22_09_2010_005_076.shtml?Mode=1

 

 

 



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