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चर्चा में.... | मनरेगा - क्या जीविका के अधिकार को सीमित किया जा सकता है?
मनरेगा - क्या जीविका के अधिकार को सीमित किया जा सकता है?

मनरेगा - क्या जीविका के अधिकार को सीमित किया जा सकता है?

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published Published on Oct 11, 2014   modified Modified on Oct 13, 2014
राजनीति का सामान्य विद्यार्थी जानता है कि अधिकार अपने स्वभाव में सार्विक होते हैं। लेकिन क्या वह यह अनुमान लगा सकता है कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई कोई सरकार अपने बहुमत के बूते किसी सार्विक अधिकार का दायरा चंद लोगों तक सीमित कर सकती है ?

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में फेरबदल की केंद्र सरकार की हालिया योजना जीविका के सार्विक अधिकार का दायरा सीमित करने की ऐसी ही कोशिश है। पीपल्'स एक्शन फॉर एम्पलॉयमेंट गारंटी एंड अदर कन्ससर्न्ड सिटीजन्स के मंच से प्रधानमंत्री को लिखी और देश के दो सौ ज्यादा गणमान्य नागरिकों के हस्ताक्षर से युक्त चिट्ठी का यह मुख्य स्वर है।( चिट्ठी के देखें नीचे की लिंक)।

जैसा कि समाचारों से जाहिर है, प्रत्येक ग्रामीण गरीब परिवार को साल में सौ दिन का गारंटीशुदा रोजगार देने की अधिकार आधारित योजना नरेगा का दायरा नई सरकार महज जनजातीय या पिछड़े जिलों तक सीमित करना चाहती है। साथ ही, सरकार की योजना नरेगा एक्ट में संशोधन कर मजदूरी और सामान के मौजूदा अनुपात (60:40 से घटाकर 51:49) को बदलने की है। सरकार ने राज्यों से यह भी कहा है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष के शेष महीनों में वे नरेगा पर अपना खर्च सीमित करें।

चिट्ठी में सरकार की इन कोशिशों को नरेगा अधिनियम की "मूल भावना के विपरीत और एक्ट के उद्देश्यों को भटकाने वाला " करार देते हुए प्रधानमंत्री से यह सुनिश्चित करने की अपील की गई है कि "मनरेगा के तहत प्रदान किया जाने वाला रोजगार देश के हर ग्रामीण गरीब परिवार का वैधानिक अधिकार बना रहे तथा इस कानून के अंतर्गत प्रदान की गई हकदारी किसी भी रुप में कम ना की जाय।"

तथ्य संकेत करते हैं कि मनरेगा के मद में किया जाने वाला बजट-आबंटन कम हो रहा है। वित्त वर्ष 2014-15 के लिए नरेगा के मद में बजट आबंटन महज 34,000 करोड़ रुपये का था जो राज्यों द्वारा इस मद में मांगी गई राशि से 45 प्रतिशत कम है। साल 2009-10 में देश की जीडीपी में मनरेगा के मद में हुए आबंटन का हिस्सा 0.87% था जो साल 2013-14 में घटकर 0.59% हो गया। मनरेगा के अन्तर्ग खर्च की गई राशि का सालाना औसत 38 हजार करोड़ रुपये का रहा है जबकि सालाना आबंटन औसतन 33 हजार करोड़ रुपये का हुआ है। मुद्रास्फीति के बढ़ने और आबंटित राशि की कमी के दोतरफा दबाव में मनरेगा का क्रियान्वय लगातार बाधित होता रहा है।(मनरेगा से संबंधित बजट आबंटन के लिए देखें लिंक संख्या- 2 और 3 और 4)

ग्रामीण विकास मंत्री नितिन गड़करी ने 30 जुलाई 2014 को संसद में कहा था कि मनरेगा के अंतर्गत मजदूरी और सामान पर खर्च की जाने वाली राशि का अनुपात 60:40 से घटाकर 51:49 किया जाएगा लेकिन विशेषज्ञों की राय है कि ऐसा करने पर मौजूदा बजट आबंटन को देखते हुए मजदूरी के मद में दी जाने वाली रकम कम पड़ जाएगी। मनरेगा के अंतर्गत साल 2013-14 में कुल 10 करोड़ लोगों ने रोजगार हासिल किया और उन्हें औसतन 45 दिन का रोजगार हासिल हुआ। अगर मजदूरी और सामान पर खर्च की जाने वाली राशि का अनुपात 60:40 से घटाकर 51:49 किया जाता है तो मनरेगा के अंतर्गत रोजगार-सृजन की मौजूदा दर को कायम रखने के लिए अतिरिक्त 20 हजार करोड़ रुपये की जरुरत पड़ेगी। चूंकि सरकार मनरेगा का बजट आबंटन बढ़ाने की जगह घटा रही है इसलिए विशेषज्ञों को आशंका है कि मजदूरी और सामान पर खऱ्च की जाने वाली राशि का अनुपात 51:49 करने पर रोजगार सृजन की क्षमता में 40 प्रतिशत की कमी आएगी और यह सूखे की मार झेलते इस वक्त में गरीब परिवारों पर भारी पड़ेगा।

बीते आठ सालों में ग्रामीण क्षेत्र में हर तीन परिवार में से एक परिवार को नरेगा के अंतर्गत रोजगार मिला है और इस अर्थ में ग्रामीण गरीब परिवारों के लिए नरेगा कार्यक्रम संकटमोचक साबित हुआ है।अकेले साल 2013-14, में नरेगा के अंतर्गत 10 करोड़ लोगों को रोजगार मिला जो कि रोजगार गारंटी का महज 45 प्रतिशत है और इससे जाहिर होता है कि मनरेगा के भीतर रोजगार सृजन की संभावनाओं का पूरा दोहन होना शेष है।

मनरेगा की उपलब्धियों से जुड़े कुछ शोध निष्कर्ष निम्नांकित हैं-:

• प्रतिवर्ष 2.5 अरब वयक्ति दिवस मौसमी रोजगार का सृजन करके नरेगा ने ग्रामीण क्षेत्र में छुपी हुई बेरोजगारी की समस्या में 41 प्रतिशत की कमी की है।( संध्या गर्ग((2014), महात्मा गांधी नेशनल रुरल एम्पलॉयमेंट गारंटी एक्ट: एवीडेंस ऑफ इनटर स्टेट डिस्पैरिटिज, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च, मुंबई)

• जहां भी इस नरेगा का क्रियान्वयन समुचित तरीके से हुआ है वहां पलायन रुका है और खेतिहर क्षेत्र में रोजगार के अभाव के दिनों में नरेगा ने गरीब परिवारों के लिए सुरक्षा कवच का काम किया है। साथ ही, अगर कोई कामगार पढ़ा लिखा और कुशल है तो शहरी क्षेत्र में जाकर रोजगार तलाशने की उसकी कोशिश में नरेगा बाधक साबित नहीं हुआ है। ( लॉरा जिम्मेरमैन (2013), ह्वाई गारंटी एम्पलॉमेंट? एवीडेंस फ्रॉम ए लार्ज इंडियन पब्लिक वर्क्स प्रोग्राम, यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन)

• नरेगा महिलाओं को निरंतर रोजगार देने के मामले में एक टिकाऊ आधार साबित हुआ है। साल 2001 में ग्रामीण क्षेत्रों में महिला-कामगारों की संख्या 54.1% थी जो साल 2011 में बढ़कर 55.6% हो गई। इस संख्या वृद्धि में नरेगा का योगदान है। Census 2011 www.censusindia.gov.in)

• नरेगा के अंतर्गत दिए गए रोजगार में 40% हिस्सा अनुसूचित जाति- अनुसूचित जनजाति के परिवारों को मिले रोजगार का है। ऐसे परिवारों के पोषण और गरीबी की स्थिति के सुधार में इस कार्यक्रम का सकारात्मक असर पडा है।( स्टीफन कोलनर और ओल्डीगेज क्रिश्चियन (2014), कैन एम्पलॉमेंट गारंटी एलीवेट पॉवर्टी ?, यूनिवर्सिटी ऑफ हाईडेलबर्ग)

--इस बात के साक्ष्य मिलते हैं नरेगा के कारण खेतिहर मजदूरी में बढ़ोत्तरी हुई है और इसका फायदा समाज के सबसे गरीब व्यक्ति को हुआ है। एनएसएसओ की 64 वीं दौर की गणना के अनुसार मनरेगा के अंतर्गत काम करने वाले लोगों का कहना था कि उन्हें दिहाड़ी मजदूर के रुप में दैनंदिन मजदूरी से 12 प्रतिशत ज्यादा मजदूरी हासिल हुई। स्त्री और पुरुष मजदूर के बीच मजदूरी के मामले में कायम अन्तर नरेगा के कारण कम हुआ है।( ई बर्ग, एस भट्टाचार्य, आर दुर्ग और एम रामचंद्रन, ‘कैन रुरल पब्लिक वर्क्स अफेक्ट एग्रीकल्चर वेजेज: एवीडेंस फ्राम इंडिया', सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ अफ्रीकन इकॉनोमिज, वर्किंग पेपर्स WPS/2012-15, 2012.)

कथा विस्तार के लिए निम्नलिखित लिंक चटकायें

kafila.org/2014/10/10/open-letter-to-the-prime-minister-st
op-the-dilution-of-mgnrega/

 

Economic Survey 2013-14, 2012013, 2011-12 Table 1 http://indiabudget.nic.in/es2013-14/echap-01.pdf

 

http://www.cbgaindia.org/files/budget_responses/RUB-2012-13.pdf

 

http://planningcommission.gov.in/hackathon/Rural_Development.pdf

www.nrega.nic.inNREGA At a Glance

 

http://indiabudget.nic.in/ub2014-15/statrevfor/annex12.pdf

 

 



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