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चर्चा में.... | मनरेगा: चार सालों में रोजगार देने में त्रिपुरा सबसे अव्वल, यूपी-बिहार बहुत पीछे
मनरेगा: चार सालों में रोजगार देने में त्रिपुरा सबसे अव्वल, यूपी-बिहार बहुत पीछे

मनरेगा: चार सालों में रोजगार देने में त्रिपुरा सबसे अव्वल, यूपी-बिहार बहुत पीछे

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published Published on Sep 25, 2018   modified Modified on Sep 25, 2018

यूपी-बिहार और पंजाब-हरियाणा जैसे कई राज्यों को मनरेगा के कारगर क्रियान्वयन के मामले में त्रिपुरा से सबक लेने की जरुरत है. त्रिपुरा में बीते चार सालों (2014-15 से 2017-18) में मनरेगा के अंतर्गत ग्रामीण मजदूरों को औसतन लगभग 75 दिनों का रोजगार मिला जबकि इस अवधि में योजना के अंतर्गत रोजगार का अखिल भारतीय औसत महज 45.2 दिनों का रहा.

 

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया(आरबीआई) की सालाना रिपोर्ट के नये आंकड़े संकेत करते हैं कि मनरेगा के अंतर्गत रोजगार देने के मामले में 2014-15 से 2017-18 के बीच त्रिपुरा, मिजोरम और मेघालय सबसे अव्वल रहे हैं. मिजोरम और मेघालय में बतायी गई अवधि में मनरेगा के अंतर्गत ग्रामीण मजदूरों को औसतन 60 दिन से ज्यादा का रोजगार मिला है.

 

रोजगार देने के मामले में सबसे फिसड्डी राज्य असम, गोवा और मणिपुर हैं. मणिपुर और गोवा में बीते चार साल की अवधि में मनरेगा के अंतर्गत मजदूरों को औसतन लगभग 20 दिन का रोजगार हासिल हुआ जबकि असम का इन दोनों राज्यों से थोड़ा ही आगे (औसतन 30 दिन) है. मनरेगा के अंतर्गत अखिल भारतीय औसत (45.2 दिन) से कम रोजगार देने वाले अन्य प्रमुख राज्य छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, ओड़िशा, गुजरात, बिहार, यूपी, हरियाणा, पंजाब और अरुणाचल प्रदेश.(रिपोर्ट में प्रस्तुत ग्राफ देने के लिए यहां क्लिक करें)

 

आरबीआई की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है ग्रामीण रोजगार गारंटी की योजना के क्रियान्वयन के मामले में भी राज्यों के बीच बहुत ज्यादा अंतर है. रिपोर्ट के अनुसार मनरेगा के अंतर्गत मुहैया कराये गये कुल रोजगार में दो राज्यों तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल का हिस्सा लगभग एक चौथाई है जो कि ग्रामीण परिवारों की कुल संख्या में इन राज्यों की हिस्से से कहीं ज्यादा है. रिपोर्ट के मुताबिक देश के कुल ग्रामीण परिवारों में महाराष्ट्र और बिहार की हिस्सेदारी ज्यादा है जबकि तुलनात्मक रुप से देखें तो इन राज्यों में चार सालों मे मनरेगा के अंतर्गत कहीं कम रोजगार का सृजन हुआ है.( रिपोर्ट में शामिल ग्राफ देखने के लिए यहां क्लिक करें)

 

आरबीआई की रिपोर्ट में मनरेगा के रोजगार-सृजन की क्षमता और गरीब ग्रामीण परिवारों पर पड़ने वाले सकारात्मक असर की तरफ ध्यान दिलाते हुए एक सर्वेक्षण का हवाला दिया गया है. साल 2016 के अगस्त-सितंबर माह में गुजरात, केरल, ओड़िशा, पंजाब, उत्तरप्रदेश तथा पश्चिम बंगाल में हुए इस सर्वेक्षण के तथ्यों के मुताबिक केरल, गुजरात और पंजाब में सर्वेक्षण में शामिल मनरेगा के तकरीबन 50 फीसद मजदूरों ने कहा कि उन्हें इस कार्यक्रम के अतिरिक्त कहीं और रोजगार हासिल नहीं है.

 


आरबीआई की सालाना रिपोर्ट में शामिल सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि वैकल्पिक रोजगार मिले तो भी बहुत कम मजदूर उसके लिए मनरेगा के अंतर्गत हासिल काम को छोड़ने के लिए तैयार हैं. दिहाड़ी मजदूरी पर आश्रित ग्रामीण परिवार मनरेगा के अंतर्गत हासिल रोजगार को परंपरागत काम-धंधे की तुलना में ज्यादा अहमियत दे रहे हैं. सर्वेक्षण के मुताबिक ओड़िशा (75 प्रतिशत), उत्तरप्रदेश(66 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (42.5 प्रतिशत) में परंपरागत काम-धंधे की तुलना में मनरेगा के अंतर्गत हासिल रोजगार को अहमियत देने वाले दिहाड़ी मजदूरों की तादाद ज्यादा है जबकि पंजाब ( 29.6 प्रतिशत), केरल (24.1 प्रतिशत) तथा गुजरात( 8.3 प्रतिशत) कम.

 

 

मनरेगा की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़े बताते हैं वित्तवर्ष 2017-18 में 100 दिन के रोजगार गारंटी की इस अखिल भारतीय योजना में ग्रामीण परिवारों औसतन 45.77 दिन का रोजगार मिला जबकि साल 2016-17 में मनरेगा के अंतर्गत ग्रामीण परिवारों को औसतन 46 दिन का रोजगार मिला था. 2015-16 में मनरेगा के अंतर्गत ग्रामीण परिवारों को औसतन 48.85 दिन का रोजगार हासिल हुआ था जबकि 2014.15 में मात्र 40.17 दिन का.

 

साल 2017-18 में मनरेगा के अंतर्गत औसत मजदूरी-दर 169.46 रुपये थी जबकि 2016-17 में 161.65 रुपये. साल 2015-16 में मनरेगा के अंतर्गत औसत मजदूरी दर 154.08 रुपये थी जबकि 2014-15 में 143.92 रुपये. गौरतलब है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने बीते 31 मार्च को मनरेगा के लिए संशोधित मजदूरी दर की सूची जारी की थी. इस सूची के विश्लेषण से पता चलता है कि 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की मनरेगा मज़दूरी उनकी न्यूनतम खेतिहर मज़दूरी से भी कम है. इन दोनों मज़दूरी दरों के लिहाज से सबसे ज्यादा अंतर त्रिपुरा में है. त्रिपुरा में मनरेगा के अंतर्गत स्वीकृत मज़दूरी(177 रुपये) न्यूनतम मज़दूरी(307 रुपये) का मात्र 58 प्रतिशत है. सिक्किम के लिए मजदूरी की इन दोनों दरों में अन्तर का अनुपात 59 प्रतिशत है, गुजरात के लिए 65 प्रतिशत जबकि आंध्र प्रदेश के लिए 68 प्रतिशत. नागरिक संगठन बरसों से मनरेगा के अंतर्गत स्वीकृत मजदूरी दर को न्यूनतम मजदूरी दर के बराबर लाने की मांग कर रहे हैं.

 

पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर साभार इंडियावाटर पोर्टल से 



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