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चर्चा में.... | मोबाइल नंबर को जारी रखने के लिए आधार-नंबर जरुरी नहीं-- पढ़िए क्या हैं कारण !
मोबाइल नंबर को जारी रखने के लिए आधार-नंबर जरुरी नहीं-- पढ़िए क्या हैं कारण !

मोबाइल नंबर को जारी रखने के लिए आधार-नंबर जरुरी नहीं-- पढ़िए क्या हैं कारण !

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published Published on Aug 31, 2017   modified Modified on Aug 31, 2017
"सेवा जारी रखने के लिए अपना नंबर आधार से जोड़िए. भारत सरकार के मुताबिक मोबाइल सेवा जारी रखने के लिए ऐसा करना जरुरी है!"


क्या ऐसा कोई संदेश आपके मोबाइल सेट पर आया है ? क्या आप इस बात से परेशान हैं कि पहचान और निवास का प्रमाणपत्र देने के बाद मोबाइल नंबर मिला था तो फिर उसे आधार-नंबर से जोड़ने के लिए क्यों कहा जा रहा है ?


अगर आपके मन में ये सवाल उठ रहे हैं और इनका जवाब हां में है तो फिर इस न्यूज एलर्ट को गौर से पढ़िए क्योंकि नीचे लिखी जा रही सूचना आपके खास काम की साबित हो सकती है.


मोबाइल नंबर को आधार-कार्ड से जोड़ने की सूचना मोबाइल-सेवा प्रदान करने वाली कंपनियां दूरसंचार विभाग(डीओटी) की एक चिट्ठी के निर्देश के आधार पर जारी कर रही हैं.


लेकिन, दिल्ली स्थित एक स्वयंसेवी संस्था का कहना है कि दूरसंचार विभाग का निर्देश देश के कानून और सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ के 15 अक्तूबर, 2015 के फैसले से मेल नहीं खाता.


नागरिक अधिकारों के सवाल पर सक्रिय स्वयंसेवी संस्था सिटीजन्स फोरम फॉर सिविल लिबर्टीज (सीएफसीएल) ने मोबाइल कंपनियों के शीर्ष-प्रबंधन को जारी चिट्ठी में कहा है कि दूरसंचार विभाग ने बीते 23 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के अनुपालन के संबंध में मोबाइल सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों को एक पत्र जारी किया.


यह पत्र मोबाइल सेवा के मौजूदा सभी ग्राहकों के शत-प्रतिशत ई-केवायसी सत्यापन के संबंध में था. सीएफसीएल के मुताबिक इस चिट्ठी में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ के 6 फरवरी 2017 के फैसले के आधे-अधूरे पाठ के आधार पर निर्देश दिया गया है कि एक साल के अंदर मोबाइल-सेवा प्रदान करने वाली सारी कंपनियां अपने नये-पुराने सभी ग्राहकों का ई-केवायसी सत्यापन कर लें.


गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने लोकनीति फाउंडेशन बनाम भारत संघ के मामले में 6 फरवरी 2016 को सुनाये गये फैसले के अनुच्छेद 5 में लिखा है- " सुनवाई के दौरान पेश किए गए तथ्यों से जो तस्वीर हमारे सामने उभरती है उससे हम संतुष्ट हैं कि सभी नये मोबाइल नंबर वाले ग्राहकों के पहचान और निवास संबंधी सत्यापन को सुनिश्चित करने के लिए एक प्रभावकारी प्रक्रिया विकसित हुई है. निकट भविष्य में, और ज्यादा स्पष्ट कहें तो अब से एक साल के अंदर, मौजूदा ग्राहकों के सत्यापन की समान प्रक्रिया पूरी की जायेगी."

 

सीएफसीएल का आरोप है कि 6 फरवरी 2017 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुच्छेद 5 में कही गई बात के आधार पर जो अनुमान लगाया है वह गलत है. दूरसंचार विभाग ने मान लिया है कि सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने अपने फैसले में उसे निर्देश जारी किए हैं कि एक साल के अंदर मोबाइल-सेवा के सभी ग्राहकों का ई-केवायसी सत्यापन करा लिया जाय.


सीएफसीएल का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के दो जजों के फैसले के आधार मानकर दूरसंचार विभाग ने एक गलत अनुमान लगाया और उस अनुमान के सहारे उसने मोबाइल-सेवा के नये ग्राहकों के सत्यापन और पुराने ग्राहकों के पुनर्सत्यापन के लिए मोबाइल सेवा-कंपनियों को चिट्ठी लिखी और कहा कि यह सत्यापन में आधार-नंबर का सहारा लिया जाना चाहिए.


स्वयंसेवी संस्था का तर्क है कि दूरसंचार विभाग का मोबाइल-कंपनियों को सभी ग्राहकों के ई-केवायसी सत्यापन के बारे में जारी निर्देश तीन कारणों से कानून की नजर में असंगत कहा जाएगा.


पहली वजह यह है कि दूरसंचार विभाग का पत्र 15 अक्तूबर 2015 के सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के फैसले का उल्लंघन करता है. इस फैसले में कोर्ट ने साफ कहा कि- आधार-कार्ड स्कीम पूरी तरह स्वैच्छिक है और इसे तब तक अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता जबतक कि अदालत में मामला एक ना एक तरीके से पूरी तरह से सुलझा नहीं लिया जाता.


दूसरे, आधार एक्ट 2016 के विधानों से भी दूरसंचार का पत्र संगत नहीं है. एक्ट के सेक्शन 8(2) (b) में साफ-साफ कहा गया है कि किसी व्यक्ति की पहचान संबंधी सूचनाओं का उपयोग सिर्फ प्रमाणीकरण के लिए किया जाएगा और इसके लिए इन सूचनाओं को 12 अंकों के बायोमीट्रिक यूनिक आयडेन्टीफिकेशन नंबर के केंद्रीय भंडारघर(सेंट्रल आयडेन्टिटीज डेटा रिपॉजिटरी-सीआईडीआर) को भेजा जाएगा.


एक्ट में कहीं नहीं कहा गया कि पहचान संबंधी सूचनाओं को कोई संस्था अपने पास रख सकती है लेकिन मोबाइल कंपनियों को लिखे दूरसंचार विभाग के पत्र में ऐसा निर्देश नहीं दिया गया है.

 

तीसरी वजह यह है कि दूरसंचार विभाग की चिट्ठी 23 मार्च 2017 को जारी हुई और इस चिट्ठी के जारी होने की तारीख के बाद सुप्रीम कोर्ट का 9 जून 2017 को एक फैसला आया. इस फैसले में आधार नंबर के लिए नामांकन को स्वैच्छिक बताया गया है.


फैसले में कहा गया है कि " आधार एक्ट में आधार-संख्या के लिए नामांकन को अनिवार्य नहीं बताया गया है..सरकार और यूएडीएआई का पक्ष भी यही है कि आधार-नंबर स्वैच्छिक है. यूआईडीएआई की वेबसाइट पर यही बात कही गई है और यूआईडीएआई ने इस आशय का स्पष्टीकरण भी जारी किया है..इसलिए आधार-नंबर के लिए नामांकन स्वैच्छिक है."


आधार-नंबर के स्वैच्छिक होने के कारण मोबाइल-सेवा के लिए उसे अनिवार्य बताना सुप्रीम कोर्ट के आदेश से असंगत कहलाएगा.


इस विषय पर विशेष जानकारी के लिए आप सिटीजन्स फोरम फॉर सिविल लिबर्टीज (सीएफसीएल) के सदस्य गोपालकृष्ण से मोबाइल नंबर 9818089660, 08227816731 पर संपर्क कर सकते हैं.



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