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चर्चा में..... | विवाद के बीज- एक विधेयक बहुराष्ट्रीय निगमों के पक्ष में?

विवाद के बीज- एक विधेयक बहुराष्ट्रीय निगमों के पक्ष में?

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published Published on Apr 26, 2010   modified Modified on Apr 26, 2010
सरकार जिस बीज विधेयक को पारित करने के फिराक में है  उसके बारे में सबसे मौजूं सवाल यह है कि क्या इससे किसानों की जीविका का कोई हित सध पाएगा या फिर इस विधेयक के पारित होते ही बीजों के बाजार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए सरपट दौड़ लगाने का रास्ता खुल जाएगा और किसानों के हितों की अनदेखी होगी। नये बिल की मंशा बीजों के बाजार का नियमन करना है, साथ ही बीजों से संबंधित पुरानी नीतियों को उत्पादन, आपूर्ति तथा घरेलू और विदेशी व्यापार के संदर्भ में मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय चलन के मुताबिक करने का भी उद्देश्य है। केंद्रीय मंत्रिमंडल इस बिल को पहले ही पास कर चुका है और अगर संसद की मंजूरी मिलती है तो यह विधेयक मौजूदा बीज अधिनियम(1966) की जगह ले लेगा।(प्रस्तावित संशोधनों और बिल के प्रारुप के लिए देखें नीचे दी गई लिंक)

 सरकार ने बिल-संशोधन का भी एक प्रारुप जारी किया है। स्पष्ट है कि ऐसा किसानों और नागरिक संगठनों के विरोध को देखते हुए किया गया है लेकिन प्रस्तावित संशोधन बिल के मूल चरित्र में कोई बदलाव नहीं करता।ज्यादातर संशोधन पंजीकरण और निरीक्षण के प्रावधानों से संबंधित हैं साथ ही उसमें किसान की परिभाषा में भी थोड़ा बदलाव किया गया है।

इस बिल का विरोध करने वालों का सबसे बड़ा आरोप  है कि यह विधेयक सीमांत और छोटे किसानों के हितों के विरुद्ध है और जीन संवर्धित बीजों को बेचने वाली तथा अन्य पारराष्ट्रीय बीज कंपनियों की हितरक्षा के लिए मददगार सांस्थानिक तथा विधिक ढांचा तैयार करती है। नये विधेयक के तहत हर तरह के बीज और बिचड़ों को विपणन से पहले राज्य सरकार के तहत पंजीकृत कराना अनिवार्य करने के प्रावधान है। इसके मायने एक तो यह कि किसानों के लिए बीज-व्यापार के बाजार में प्रवेश करना कठिन होगा जबकि किसान यह काम किसानी के अतिरिक्त एक सहायक रोजगार के तौर पर करते रहे हैं, दूसरे इस प्रावधान से किसानों को फसल के मारे जाने की सूरत में या मुआवजे के संदर्भ में कोई सक्रिय मदद नहीं मिलने वाली(इसका अपवाद सिर्फ कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट-1986 )है।प्रस्तावित संशोधनों में कहा गया है कि बीज अगर अपेक्षानुरुप उग-बढ़ या फसल नहीं दे पाते तो किसान मुआवजा के हकदार होंगे और इसके लिए एक समिति बनायी जाएगी लेकिन बहुतों का मानना है कि किसान के हक में यह संशोधन सक्रिय पहलकदमी नहीं माना जा सकता।

 दिखावे के लिए बिल में बस एक ही बात किसानों के हक में है कि किसान परंपरागत किस्म के बीजों की कुछ मात्रा बचा सकता है, उसकी अदल बदल कर सकता है या फिर साझा कर सकता है। बिल में कहा गया है कि किसान बीजों को किसी ब्रांड के नाम से नहीं बेच सकता। बहरहाल यह तथ्य गौरतलब है कि देश में छोटे किसान का बीज उत्पादन में योगदान 80 फीसदी का है जबकि इस बिल में बीजों के प्रामाणन के लिए समुदाय स्तर पर कोई व्यवस्था नहीं की गई है और यह बात किसान के हित के विरुद्ध है। पंजीकरण और अभिप्रमाणन, दोनों ही काम खर्चीले हैं। इसके अंतर्गत बड़े व्यापक पैमाने पर सत्यापन की प्रक्रियाओं के प्रावधान किए गए हैं जिसमें खेतों में जाकर मौका मुआयना करने से लेकर बीजों की आनुवांशिक शुद्धता की जांच तक की प्रक्रियाएं शामिल हैं। अंदाजा लगाना असंभव नहीं कि बीज निरीक्षक के काम से किसके हितों पर चोट पहुंचेगी।

जो लोग जीन संवर्धित बीजों का विरोध कर रहे हैं उनका कहना है कि इस बिल के कानून बनने से आम तौर पर निजी क्षेत्र को और खास तौर पर जीन संवर्धित बीजों के व्यापारी कंपनियों को आसानी होगी और बीजों के दाम कई गुना ज्यादा बढ़ जायेंगे। एक तर्क यह है कि प्रस्तावित बिल बीज व्यापार को एक उद्योग का दर्जा देना चाहता है ना कि इसकी मंशा छोटे किसानों के हितों की रक्षा करना है। आशंका है कि इस बिल के कानून बनने के बाद बीज-व्यवसाय समुदाय के हाथ से छीन जायेंगे और कंपनियों के फायदे के लिए जमीन तैयार होगी। यह बिल कृषि के अन्तर्गत होने वाले शोध की परंपरागत धारणा में एक बदलाव का सूचक है। पहले शोध छोटे और सीमांत किसानों के जनकल्याण की भावना से प्रेरित थे जबकि प्रस्तावित बिल कृषिगत शोध को कंपनियों और पेटेंटधारकों के एकाधिकार में तब्दील करता है।

यूएन के एक पर्चे में बीजों के विपणन से संबंधित नीतियों पर खाद्य सुरक्षा और किसानों के मानवाधिकार के दृष्टिकोण से विचार किया गया है। इस पर्चे में कहा गया है कि- खाद्यसुरक्षा का मामला सीमांत किसानों के हक से नाभिनालबद्ध है। खाद्य सुरक्षा के लिए जरुरी है कि हम खेतिहर कामों में सर्वाधिक वंचित तबके के हितों को सर्वप्रमुख मानकर विचार करें, खासकर विकासशील देशों में।

बिल राज्यसभा में पेश किए जाने के लिए तैयार है लेकिन विपक्ष इस बिल के किसान विरोधी प्रावधानों को पहचानकर इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की तैयारी कर रहा है।

इस बिल के विभिन्न पहलुओं पर जानकारी के लिए कृपया नीचे के लिंक को चटकाएं-



http://www.prsindia.org/index.php?name=Sections&action=bill_details&id=6&bill_id=104&category=45&parent_category=1

http://prsindia.org/uploads/media/1167468389/Proposed%20Am
endments%20to%20Seeds%20Bill.pdf

http://prsindia.org/uploads/media/1167468389/scr1167813175
_Standing_Committee_Report_on_the_Seeds_Bill__2004.pdf

'Anti-farmer' Seeds Bill has the Left up in arms against govt
by AM Jigeesh, April 20, 2010,

http://indiatoday.intoday.in/site/Story/93642/India/'Anti-
farmer'+Seeds+Bill+has+the+Left+up+in+arms+against+govt.ht
ml

Public opinion survey on GE foods,
http://www.indiaenvironmentportal.org.in/files/city-wise-p
oll-results_0.pdf

http://www.grain.org/seedling/?id=338
 
http://dbtindia.nic.in/Draft%20NBR%20Act_%2028may2008.pdf
 
http://prsindia.org/uploads/media/1167468389/Note%20on%20A
mendments%20in%20Seeds%20Bill,%202004.pdf

 
http://prsindia.org/uploads/media/1167468389/Proposed%20Am
endments%20to%20Seeds%20Bill.pdf

 
http://www.siasat.com/english/news/anti-farmer%E2%80%99-se
eds-bill-has-left-arms-against-govt

 
Seed policies and the right to food: enhancing agrobiodiversity and encouraging innovation, Note by the Secretary-General,
http://www.oaklandinstitute.org/voicesfromafrica/pdfs/UN_g
eneral_assembly_right_to_food.pdf
  
  
CSA seeks amendments to Seed Bill-2010, Express News Service, 25 April 2010,
 

http://expressbuzz.com/cities/hyderabad/csa-seeks-amendmen
ts-to-seed-bill-2010/168155.html

Cabinet approves new Seed Bill, March 04, 2010,

http://www.zeenews.com/news608659.html  

 

 

 

 

 

 

 

 
 

 

 

 

 

 

 

 
 

 

 

 

 

 

 

 


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/orissa/4_14_6364895_1.html


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