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न्यूज क्लिपिंग्स् | किसानों और सरकारी बैंकों की लूट के लिए नया सौदा तैयार

किसानों और सरकारी बैंकों की लूट के लिए नया सौदा तैयार

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published Published on Jan 12, 2022   modified Modified on Jan 14, 2022

-न्यूजक्लिक,

ऋण, भूमि उपयोग को बदलने का शक्तिशाली औजार है और एसबीआई-अडानी सौदा, भूमि उपयोग के पैटर्न में इस तरह का बदलाव करने का ही एक तरीका है। दूसरे शब्दों में, ऐसे ‘‘राष्ट्रीयकृत बैंक-एनबीएफसी’’ सौदों के जरिए, सरकार वह हासिल करने की कोशिश कर रही है, जो वह तीन कृषि कानूनों के रास्ते से हासिल नहीं कर पायी है। ऐसे सौदों को वैसे ही भीषण तरीके से तथा वैसी ही एकाग्रता के साथ विरोध किया जाना चाहिए, जिससे कृषि कानूनों का किया गया था। आखिरकार, यह उसी लड़ाई का हिस्सा है।    

औपनिवेशिक राज के जमाने में किसानों को निजी महाजनों से कर्जे लेने पड़ते थे। प्रोविंशियल बैंकिंग इन्क्वाइरी कमेटी की रिपोर्टों के अनुसार, ये महाजन खुद वाणिज्यिक बैंकों से ऋण लिया करते थे। लेकिन, किसानों को ऋण देने में और उनसे बेहिसाब ब्याज लेने के बीच, ये महाजन कम से कम ऋणदाता का पूरा जोखिम तो अपने ऊपर लेते थे। अगर इन महाजनों से लिया ऋण किसान नहीं चुका पाते थे, तो उसके लिए कम से कम उन बैंकों पर कोई जोखिम नहीं आता था। संक्षेप में यह कि बैंकों को, इन अंतिम ऋण प्राप्तकर्ताओं से कुछ लेना-देना ही नहीं होता था।

अडानी कैपीटल और स्टेट बैंक सौदा क्या है?

लेकिन, अब जो नयी व्यवस्था लायी जा रही है, जिसका उदाहरण अडानी कैपीटल और भारतीय स्टेट बैंक के बीच हुए सौदे के रूप में सामने आया है, को-लैंडिंग यानी साझेदारी में ऋण वितरण की व्यवस्था होगी। इस साझेदारी के ऋण वितरण में, 80 फीसद हिस्सा बैंक देगा और 20 फीसद हिस्सा, किसी नॉन-बैंक फाइनेंस कंपनी (एनबीएफसी) का होगा, जैसे अडानी कैपीटल। जाहिर है कि इस साझेदारी में एनबीएफसी द्वारा ही यह तय किया जा रहा होगा कि किसे ऋण दिया जाए तथा किन शर्तों पर ऋण दिया जाए, हालांकि आशा की जाती है कि इसमें भी भारतीय रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों से निकलने वाले कुछ अंकुश तो काम कर ही रहे होंगे। 

दूसरी ओर, अगर अंतिम ऋण प्राप्तकर्ता ऋण चुकाने में विफल हो गया, तो इसका नुकसान बैंक तथा एनबीएफसी दोनों मिलकर उठाएंगे। संक्षेप में यह कि बैंक ऋण देने का जोखिम तो उठा रहे होंगे लेकिन, अंतत: ऋण किसे दिया जाता है, इसमें उनका कोई दखल नहीं होगा। जाहिर है कि अगर इसे तय करने में बैंक का दखल हो, तब तो यह सीधे-सीधे बैंक तथा ऋण लेने वाले, दो पक्षों के बीच ही लेन-देन का मामला हो जाएगा और किसी को-लैंडिंग या ऋण वितरण साझेदारी की कोई जरूरत ही नहीं रहेगी।

संक्षेप में यह कि एनबीएसफसी, औपनिवेशिक जमाने के महाजनों के मुकाबले कहीं फायदे की स्थिति में रहने जा रहे हैं। इस व्यवस्था में वे यह तय तो करेंगे कि किसे ऋण दिया जाए तथा किन शर्तों पर ऋण दिया जाए, लेकिन यह करते हुए भी उन्हें उस तरह का जोखिम उठाना ही नहीं पड़ रहा होगा, जैसा जोखिम औपनिवेशिक जमाने के महाजनों को उठाना पड़ता था। दूसरी ओर, इस मामले में बैंक, औपनिवेशिक जमाने में बैंकों की जो स्थिति होती थी, उससे बदतर या घाटे की स्थिति में होंगे। अंतिम ऋणप्राप्तकर्ता कौन होगा, यह तय करने में तो बैंकों का कोई दखल नहीं होगा लेकिन, ऋण देने का ज्यादातर जोखिम बैंकों को ही उठाना पड़ेगा।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


प्रभात पटनायक, https://hindi.newsclick.in/SBI-Adani-sign-deal-loot-farmers


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