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न्यूज क्लिपिंग्स् | जनसंख्या नीति को नई राह जाना होगा-- नवीन चंद्र लोहनी

जनसंख्या नीति को नई राह जाना होगा-- नवीन चंद्र लोहनी

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published Published on Mar 14, 2018   modified Modified on Mar 14, 2018
सर्वोच्च न्यायालय में एक दंपति के अधिकतम दो संतान पैदा करने से जुड़ी जनहित याचिका हो या फिर देश में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर निकल रही रैलियां, इन सबका एक मतलब तो यह निकलता ही है कि जनसंख्या नीति पर तुरंत कठोर निर्णय लेने का समय आ गया है। भारत में युवा शक्ति, युवा मस्तिष्क और युवा देश होने की बात जब नारों और जयकारों के बीच आती है, तो रैलियां, धार्मिक जुलूस और तोड़-फोड़ करते हुजूम मुंह चिढ़ाने लगते हैं। तब लगता है कि हम वास्तव में भीड़तंत्र का हिस्सा बन रहे युवा को देख रहे हैं, जिसके पास उचित शिक्षा की कमी है, और शिक्षा है, तो रोजगार नहीं। नतीजतन वह भटकाव का शिकार है और गलत रास्तों का चयन कर रहा है। भारत दुनिया में अपनी युवा शक्ति के सदुपयोग के लिए कितने भी प्रयास करे, जनसंख्या वृद्धि दर का आंकड़ा बता रहा है कि रोजगार और व्यवसाय सृजन के सारे प्रयास नाकाफी हैं।

लगभग चार दशक पहले पड़ोसी देश चीन के लिए भी जनसंख्या एक अभिशाप बन चुकी थी। मगर उसके एक विवाहित दंपति के लिए एक संतान के सिद्धांत ने ऐसा चमत्कार किया कि आज सरकार को अपनी युवा शक्ति वरदान दिखाई देने लगी और चीन सरकार ने लगभग तीन वर्ष पूर्व एक दंपति के लिए दो संतान को वैधानिक अनुमति दे दी। ऐसा नहीं कि बीच की अवधि में किसी भी घर में दो या अधिक संतानें पैदा नहीं हुईं, पर कानूनी भय, संतान को मिलने वाली नागरिक सुविधाओं में कटौती और आर्थिक दंड के डर से चीन के बहुसंख्यक वर्ग ने इसे स्वीकार किया। एक से अधिक संतानों वाले परिवारों के सामने जैसी मुश्किलें आईं, उसने सरकार की इस मंशा को लागू करने में सफलता ही नहीं दिलाई, पारंपरिक रूप से भारतीयों की तरह पुत्र प्रेम के वशीभूत चीनी समाज को सोच के स्तर पर आधुनिक भी बनाया। एक दंपति-एक संतान के सिद्धांत से जहां लिंग भेद की समस्या काबू में आई, वहीं एक ही बच्चे की परवरिश आसानी से कर पाने की स्थिति ने परिवार में अन्य कई भौतिक योगदान भी किए। एक लाभ यह भी हुआ कि चीनी समाज में आर्थिक समृद्धि आई।

पिछले दिनों थेन आनमन घूमते समय पर्यटन गाइड ने हमें अभिमानपूर्वक बताया था कि 30 साल पहले चीन में भोजन की इतनी कमी थी कि हम आगंतुक से सबसे पहले भोजन के बारे में पूछते थे और विदा करते समय उसको खाने के लिए कुछ देना सबसे जरूरी मदद मानी जाती थी। आज हालत यह है कि हम पूरी दुनिया के लिए उत्पादन कर रहे हैं और विश्व भर की अनाज मंडियों को रसद दे सकते हैं। चीन की विकास केंद्रित नीतियों के साथ जनसंख्या नीति ने आज उसे इस स्थिति में पहुंचाया है। जनसंख्या नियंत्रण नीति का असर इतना व्यापक है कि वैधानिक तौर पर दो संतानों की अनुमति होने के बाद भी ज्यादातर दंपति एक संतान को ही परिवार के सुख का आधार मानकर चल रहे हैं। यद्यपि इसका एक बड़ा कारण अधिकांश युवक-युवतियों का रोजगार या व्यवसाय में होना भी है।

कुछ भी हो, चीन में परिवारों का स्वघोषित जनसंख्या नियंत्रण जारी है।

इसके बरअक्स भारत में जनसंख्या नियंत्रण के सरकारी प्रयासों को धता बताने और जाति-धर्म के नाम पर अपनी-अपनी जनसंख्या नीति घोषित करने वाले स्वयंभू ठेकेदारों की भी कमी नहीं है। जाहिर है, इस बहाने से वे इस या उस राजनीतिक दल के लिए भीड़ या वोट जुटाने का जरिया बन जाते हैं।

ऐसा नहीं कि चीन में जनसंख्या वृद्धि रोकने की कोशिश का विरोध न हुआ हो या सभी लोगों ने इसका अक्षरश: पालन किया हो। यहां तक कि वहां के अल्पसंख्यकों को इस प्रावधान से छूट भी दी गई और आज भी कुछ लोग इसे ठीक नहीं मानते, लेकिन यह भी सच है कि इसी नीति के कारण चीन रोजगार, भोजन, शिक्षा और चिकित्सा के मूलभूत मुद्दों पर ध्यान दे सका और माता-पिता निजी स्तर पर भी अपनी संतानों के भोजन, स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान दे सके।

एक संतान नीति का एक दुष्परिणाम भी हुआ है कि चीन के लगभग 10 से 45 वर्ष के लोगों पर चार बुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी आ रही है या आने वाली है। इसके कारण दोनों पीढ़ियां असहज हैं। कई युवा व बुजुर्ग अपना दुख व्यक्त करते हुए भी मिल जाएंगे। भारत की ही तरह बुजुर्गों की देखभाल की नैतिक-सामाजिक परंपरा के कारण एक ही युवा संतान माता-पिता की चाहकर भी देखभाल नहीं कर पाते हैं। कई बार संतान का दूर अथवा विदेश में कार्यरत होना भी मुश्किलें बढ़ा देता है। कई युवा इस दबाव को स्वीकार भी करते हैं, पर अनेक युवा दंपति खुले दिल से मानते हैं कि एक संतान के सिद्धांत ने उनके निजी व पारिवारिक विकास में बड़ी भूमिका निभाई है।

भारत का मामला भी अलग नहीं है। यहां की युवा पीढ़ी को रोजगार मुहैया कराने की कितनी भी कोशिशें की जाएं, सरकारें रोजगार नीति पर तब तक खरी नहीं उतर पाएंगी, जब तक कि वे जनसंख्या नियंत्रण की कोई प्रभावी नीति लागू नहीं करतीं। भारत की हर नीति जन-दबाव के आगे विफल है। वह चाहे भोजन, आवास, चिकित्सा, शिक्षा, सुरक्षा जैसी मूलभूत आवश्यकताएं हों या संचार, आवागामन, विकास और देश की तकनीकी व वैज्ञानिक उन्नति अथवा प्रदूषण नियंत्रण, भष्टाचार मुक्ति से लेकर तमाम सामाजिक बुराइयों से उबरने की बात। जनसंख्या नियंत्रण पहली सीढ़ी है, जो तमाम कमियों से छुटकारा दिला सकती है। यही वह समस्या है, जिसके कारण हम युवा शक्ति के भटकाव सहित तमाम अन्य दुश्वारियों के शिकार हैं।

सच है कि भारत में वोट बैंक की राजनीति का दबाव सरकारों को कठिन निर्णय लेने से रोकता है। सरकारें ऐसे फैसले लेने में कई बार घबराती हैं, परंतु लोक-कल्याणकारी सरकारों का यह भी दायित्व है कि वे देश की भावी संभावनाओं के व्यापक हित में कठोर कदम भी उठाएं। साल 2021 की जनगणना अब बहुत दूर नहीं है। ऐसा न हो कि लोक-लुभावन घोषणाओं के दबाव के चलते हम जन-दबाव में ही पिसकर रह जाएं और फिर उससे निकलने के विकल्प भी शेष न बचें। (ये लेखक के अपने विचार हैं)


https://www.livehindustan.com/blog/story-navin-chandra-lohani-in-hindustan-on-14-march-1849116.html


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