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न्यूज क्लिपिंग्स् | बहुत दूर दिखती है मंजिल, सतत विकास सूचकांक में भारत 110वें स्थान पर

बहुत दूर दिखती है मंजिल, सतत विकास सूचकांक में भारत 110वें स्थान पर

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published Published on Jul 27, 2016   modified Modified on Jul 27, 2016
सतत विकास
वैश्विक सामाजिक प्रगति रिपोर्ट में भारत के 98वें स्थान (133 देशों में) पर होने की निराशाजनक खबर के बाद अब चिंताजनक सूचना यह आयी है कि सतत विकास सूचकांक में हमारा देश 110वें (149 देशों में) पायदान पर खड़ा है. वर्ष 2030 तक गरीबी, भूख, अशिक्षा से मुक्ति के साथ बेहतर पर्यावरण का वैश्विक लक्ष्य पाने के हमारे प्रयासों पर यह एक गंभीर टिप्पणी है. इस रिपोर्ट की मुख्य बातों के साथ भावी दशा और दिशा पर एक नजर आज के इन-डेप्थ में...

क्या है सतत विकास सूचकांक

यह सूचकांक देशों को निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने में आ रही मुश्किलों और खामियों को रेखांकित करता है, ताकि उन पर ध्यान देकर वे अपनी प्राथमिकताएं तय कर सकें और लक्ष्यों को 2030 तक पूरा कर सकें. सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क (एसडीएसएन) और द बर्टेल्समान स्टिफ्टुंग ने इस सूचकांक की रूपरेखा तैयार की है तथा सूचकांक भी उन्हीं के द्वारा जारी किया जाता है.

संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित 17 वैश्विक लक्ष्यों के पैमाने पर विश्व के 149 देशों के उपलब्ध आंकड़ों और सूचनाओं के आधार पर यह सूचकांक बनाया गया है. इन लक्ष्यों के तीन मुख्य आयाम हैं- सुशासन के साथ आर्थिक विकास, सामाजिक समावेश और पर्यावरणीय सततता. नेटवर्क के मौजूदा निदेशक जेफ्री साच्स के अनुसार, इस सूचकांक और इसके डैशबोर्ड से हर देश अपनी स्थिति के अनुरूप एक व्यावहारिक रास्ता निर्धारित कर सकता है. उन्होंने भरोसा जताया है कि यदि देश स्पष्टता और दृढ़ता से काम करें, तो लक्ष्यों की पूर्ति करना संभव है.

भारत के समक्ष सतत विकास से जुड़ी चुनौतियां

- सूचकों को परिभाषित करना- हमारी नीति-निर्धारण प्रक्रिया की बड़ी खामी यह रही है कि हम परिणामों के आकलन के लिए प्रासंगिक सूचकों को ठीक से परिभाषित नहीं किया जा सका है. ‘गुणवत्तापूर्ण शिक्षा', ‘स्वच्छ पेयजल' जैसी चीजों की समुचित प्रशासनिक समझ विकसित नहीं हुई है. कहने को तो कह दिया जाता है कि 86 फीसदी भारतीयों को साफ पेयजल मिलता है, लेकिन सच यह है कि दूषित पानी से सबसे अधिक बीमारियां हमारे देश में होती हैं.

- सतत विकास के लक्ष्यों के लिए वित्त मुहैया कराना- एक अध्ययन के अनुसार 2030 तक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भारत को 14.4 अरब डॉलर खर्च करना होगा. केंद्र सरकार द्वारा सामाजिक क्षेत्र में खर्च में कटौती किये जाने के बाद अब राज्यों पर इसे पूरा करने की जिम्मेवारी आ गयी है.

आर्थिक वृद्धि और संपत्ति का समुचित वितरण में संतुलन नहीं है. वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र के अध्ययन में बताया गया था कि 2010 तक दुनिया के 1.2 अरब बेहद गरीब लोगों में से एक-तिहाई संख्या भारत में बसती थी. लक्ष्यों को पूरा करने में वित्त की कमी में निजी निवेश की जरूरत भी है.

- निगरानी और जिम्मेवारी- नीति आयोग पर प्रगति की निगरानी का महत्वपूर्ण जिम्मा है, लेकिन इस संदर्भ में उचित संरचनात्मक तंत्र अभी तक नहीं बनाया जा सका है. चौदहवें वित्त आयोग के बाद अनेक लक्ष्यों से संबंधित कार्यों का जिम्मा राज्य सरकारों पर आ गया है. ऐसे में निगरानी और जवाबदेही की समस्या बढ़ गयी है.

- प्रगति का मापन- उपलब्धियों का आकलन और मापन करना भी जरूरी है. सरकारोंकी आपसी खींचतान, आंकड़ों और सूचनाओं की अपर्याप्त उपलब्धता, प्रशासनिक लचरता जैसी समस्याएं लक्ष्यों की पूर्ति में अवरोध हैं. लक्ष्यों से संबंधित प्राथमिकताओं का निर्धारण और नीतियों तथा कार्यक्रमों में स्थानीयता को प्रमुखता देने, नवोन्मेष और योजना बनाना जैसे क्षेत्रों में भी बेहतरी की जरूरत है.

अवधारणा

सतत यानी धारणी विकास को परिभाषित करने के कई तरीके हैं. लेकिन ‘ऑवर कॉमन फ्यूचर' रिपोर्ट, जिसे ‘बर्टलैंड रिपोर्ट' भी कहते है, की परिभाषा सर्वमान्य तौर पर स्वीकार की गयी है.

ं‘ऐसा विकास जो हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करता हो, लेकिन उसकी कीमत पर भावी पीढ़ी की आ‌वश्यकताओं को पूरा करने में समझौता नहीं करना पड़े.'

इसमें दो सैद्धांतिक पहलू हैं-

आवश्यकता : विश्व की गरीब आबादी की मूल जरूरतों को पूरा करने को सर्वोच्च प्राथमिकता.
सीमा : तकनीकी क्षमता और सामाजिक संगठनों द्वारा वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्यावरण के समुचित प्रयोग का विचार.

एक बेहतर मानवीय जिंदगी जीने के लिए आधारभूत जरूरतों को पूरा करने में सतत विकास की भूमिका अहम होती है. दरअसल, सतत विकास की पूरी आवधारणा की शुरुआत ही जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय मुद्दों से हुई है. हाल के वर्षों में यह मुद्दा समावेशी, टिकाऊ और लोगों भविष्य पर ज्यादा केंद्रित हो गया है. सभी प्रारूपों में गरीबी के उन्मूलन के लिए संयुक्त राष्ट्र तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर बल देता है- आर्थिक विकास, सामाजिक सामवेश और पर्यावरण संरक्षण.

‘एजेंडा-2030'

संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों ने 25 सितंबर, 2015 को आयोजित ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट समिट' में सतत विकास के लक्ष्य ‘एजेंडा फॉर 2030' को स्वीकार किया. इसके तहत वर्ष 2030 तक गरीबी, असमानता व अन्याय के खिलाफ संघर्ष और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी- ‘सस्टेनेबल डेवपलमेंट गोल') को तय किया गया है.
गरीबी से मुक्ति : विश्वभर में वर्ष 1990 में 1.9 बिलियन गरीबों की संख्या थी, जो 2015 में 836 मिलियन ही रह गयी है. लेकिन गरीबी के इस मानवीय कलंक से निबटने के लिए अभी संघर्ष का लंबा रास्ता तय करना है. अभी भी 800 मिलियन से अधिक आबादी रोजाना 1.25 डॉलर से कम पर जीवन-यापन करती है.

भुखमरी से मुक्ति : दुनिया को भुखमरी से आजादी, खाद्य सुरक्षा व पोषक आहार और सतत कृषि विकास को बढ़ावा देने का लक्ष्य. एक रिपोर्ट के अनुसार, 2014 तक दुनिया में 795 मिलियन लोग गंभीर रूप से कुपोषित थे. इस दिशा में मध्य-पूर्व एशिया, लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों में महत्वपूर्ण कदम उठाये गये हैं.

बेहतर स्वास्थ्य : सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए बेहतर स्वास्थ्य व सुविधाओं को सुनिश्चित करना. कई देशों ने इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं, लेकिन इसके बावजूद अभी भी 60 लाख बच्चे प्रतिवर्ष अपने पांचवां जन्मदिन मनाने से पहले मौत का शिकार हो जाते हैं. अभी भी शिशु मृत्यु, जननी स्वास्थ्य, एचआइवी/ एड्स, मलेरिया जैसी कई गंभीर चुनौतियों से निबटना है.

गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा : समावेश और न्यायसंगत शिक्षा के साथ-साथ सभी को आजीवन सीखने के अवसर को बढ़ावा देना. प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में काफी हद कामयाबी मिलने से साक्षरता दर में बढ़ोतरी हुई है. दुनिया के कई हिस्सों में विशेषकर पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका में जारी अशांति की वजह से बच्चे स्कूल जाने से वंचित हैं.

लैंगिक समानता : महिलाओं और लड़कियों का सशक्तीकरण और लैंगिक समानता पर विशेष जोर. वर्ष 2000 के बाद संयुक्त राष्ट्र इन मुद्दों पर विशेष रूप से काम कर रहा है. इसके अलावा महिलाओं को रोजगार में शामिल करने और शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे विषयों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.

स्वच्छ जल और स्वच्छता : सभी के लिए स्वच्छ जल और स्वच्छता सुनिश्चित करना. दुनिया के लगभग 40 फीसदी आबादी की पहुंच में पर्याप्त जल उपलब्ध नहीं है. वर्ष 2011 में करीब 41 देश भीषण जल संकट से जूझ रहे थे. एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक चार में से एक व्यक्ति के समक्ष जल की समस्या उत्पन्न हो जायेगी.

सुलभ एवं स्वच्छ ऊर्जा : सभी के लिए सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करना. विश्व की बढ़ती जनसंख्या की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना बड़ी चुनौती है. 1990 से 2010 के बीच बिजली की पहुंच 1.7 बिलियन लोगों तक हो गयी. स्वच्छ ऊर्जा की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सौर, वायु जैसे नवीकरण स्रोतों पर निर्भरता को बढ़ावा देना होगा.

उचित रोजगार एवं आर्थिक विकास : सतत, टिकाऊ और समावेश आर्थिक विकास एवं रोजगार बढ़ाने पर विशेष ध्यान. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक वर्ष 2015 में 204 मिलियन लोगों के पास कोई रोजगार नहीं था. स्वरोजगार, नीतिगत स्तर पर बदलाव, रोजगार पैदा करने जैसे कार्यों पर विशेष ध्यान देना होगा. इसके अलावा बंधुआ मजदूरी, गुलामी और मानव तस्करी पर रोक लगाने के लिए कार्य करना होगा.

उद्योग, नवोन्मेष और बुनियादी ढांचा: लचीले बुनियादी ढांचे का निर्माण, स्थायी औद्योगीकरण और नवाचार को बढ़ावा देने पर विचार. आर्थिक विकास में इंफ्रास्ट्रक्चर और इनोवेशन के क्षेत्र में निवेश की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. विकासशील देशों में चार बिलियन आबादी के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है.

सूचनाओं और ज्ञान में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए इनोवेशन और एंटरप्रेन्योरशिप पर विशेष ध्यान देना होगा.असमानता उन्मूलन : नागरिकों और देशों के बीच व्याप्त असमानता को दूर करना. आय के स्तर दुनिया भर में भारी असमानता है. विश्व की कुल आय का 40 प्रतिशत मात्र 10 प्रतिशत धनी के लोगों तक केंद्रित है. विकासशील देशों में नागरिकों के बीच आय की असमानता का लगातार बढ़ना चिंताजनक है. आम लोगों के लिए न्यूनतम आय को सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय संस्थाओं, बाजारों के लिए नीतिगत स्तर पर बदलाव करना होगा.

स्थायी शहर और समुदाय : शहरों को सुरक्षित, समावेशी बनाना. विश्व की आधे से अधिक आबादी अब शहरों में रहती हैं. अनुमान के मुताबिक 2050 तक शहरों की आबादी 6.5 बिलियन हो जायेगी, जो कुल आबादी का दो तिहाई हिस्सा होगा. शहरों की बढ़ती आबादी के लिए सुरक्षा, यातायात, सुविधा और प्रबंधन जैसे मुद्दों पर विशेष ध्यान देना होगा.

स्थायी खपत और उत्पादन : टिकाऊ खपत और उत्पादन व्यवस्था को सुनिश्चित करना. प्राकृतिक संसाधनों को समुचित इस्तेमाल पर ध्यान देना होगा. पर्यावरण प्रदूषकों, जल प्रबंधन, पुनर्चक्रण जैसे व्यवस्थाओं के लिए लोगों का जागरूक करना होगा.

जलवायु : जलवायु परिवर्तनों के प्रभावों से निबटने के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत. ग्रीनहाउस गैसों का लगातार बढ़ना विश्व समुदाय के लिए लगातार चुनौती बनता जा रहा है.

वर्ष 1990 की तुलना में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 50 फीसदी तक बढ़ चुका है. प्रतिवर्ष जलवायु संबंधित आपदाओं से निबटने के लिए 6 बिलियन डॉलर की जरूरत होती है. जलवायु परिवर्तन की प्रभावों को कम करने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है.
जल में जीवन : सागरों, महासागरों और संसाधनों समुचित उपयोग और संरक्षण. दुनियाभर में तीन बिलियन से अधिक लोगों का जीवन-यापन तटीय जैव-विविधताओं पर निर्भर है. मानव द्वारा उत्सजित कार्बन डाइ-ऑक्साइड का 30 फीसदी महासागरों द्वारा अवशोषण किया जाता है. जलीय जंतुओं को प्रदूषकों से बचाने और इको-सिस्टम को व्यवस्थित रखने के लिए विशेष रूप से ध्यान देना होगा.

भूमि पर जीवन : जंगल और जैव विविधता को बचाने, भूमि के बंजर होने से रोकने और संरक्षण पर ध्यान. धरती के 30 प्रतिशत भू-भाग पर स्थित जंगलों में लाखों जीव-जंतुओं की प्रजातियों के लिए बसेरा है. प्रतिवर्ष सूखा, जंगलों के कटान से कई समुदायों और वन्य जीवों को नुकसान हो रहा है.

शांति, न्याय और मजबूत संस्थान : शांतिपूर्ण और समावेशी समाज का उत्थान. दुनियाभर के कई हिस्सों में व्याप्त अशांति, हिंसा से आर्थिक विकास, मानवाधिकारों के समक्ष कई चुनौतियां खड़ी हो गयी हैं. अशांति की स्थिति में कभी सतत विकास के लक्ष्यों को किसी भी हालात में पूरा नहीं किया जा सकता है. पहला कार्य शांति स्थापित करना और मानवाधिकारों के लिए व्यापक स्तर पर जागरूकता फैलाना होगा.

लक्ष्यों के लिए भागीदारी : सतत विकास के लिए वैश्विक भागीदारी को सुनिश्चित करना. दुनिया आज एक-दूसरे से अभूतपूर्व तरीके से जुड़ चुकी है. परस्पर सहयोग के लिए बिना किसी लक्ष्य को हासिल करना आसान नहीं है. इसमें तकनीकी व्यवस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है.

(प्रस्तुति - ब्रह्मानंद मिश्र)

सतत विकास सूचकांक में दुनिया के 149 देशों में भारत का स्थान 110वां है. यह सूचकांक संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास के लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में किये गये प्रयासों में प्रगति और उत्तरदायित्व का आकलन करता है.

सूचकांक के

महत्वपूर्ण तथ्य-

शीर्ष के 10 देशः
स्वीडेन, डेनमार्क, नॉर्वे, फिनलैंड, स्विट्जरलैंड,
जर्मनी, ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड
आइसलैंड, ब्रिटेन
सबसे निचले पायदान के पांच देश-
चाड, नाइजर, कांगो, लाइबेरिया, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक
सूचकांक में अमेरिका
25वें तथा रूस 47वें
स्थान पर हैं.

http://www.prabhatkhabar.com/news/special-news/story/834976.html


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