Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | मिटे इंडिया और भारत का अंतर-- विश्वनाथ सचदेव

मिटे इंडिया और भारत का अंतर-- विश्वनाथ सचदेव

Share this article Share this article
published Published on Dec 18, 2015   modified Modified on Dec 18, 2015
किसान नेता शरद जोशी ने ही पहली बार ‘इंडिया' और ‘भारत' का नारा दिया था. यह नारा देकर उन्होंने शहरी भारत व ग्रामीण भारत के अंतर को उजागर किया और इस अंतर को मिटाने की जरूरत को भी रेखांकित किया.

सार्वभौम, समाजवादी पंथ-निरपेक्ष जनतांत्रिक गणतंत्र की घोषणा करनेवाले आमुख के बाद हमारे संविधान की शुरुआत जिन शब्दों से होती है, वह है ‘इंडिया जो कि भारत है.' हमारे संविधान निर्माताओं ने चाहे जो कुछ सोच कर भारत को इंडिया कहा होगा, पर आज देश की स्थिति इंडिया, जो कि भारत है, के बजाय इंडिया और भारत होकर रह गयी है. देश के शहरी हिस्से को इंडिया और ग्रामीण हिस्से को भारत कहा जाता है.

ग्रामीण क्षेत्र देश का लगभग दो तिहाई हिस्सा है. यानी देश के एक तिहाई हिस्से का नाम इंडिया है, जहां ऊंची-ऊंची इमारतें हैं, उद्योग-धंधे हैं, नौकरियां हैं, शिक्षा के संसाधन हैं, मल्टीप्लेक्स हैं, मॉल हैं, पुल हैं, पानी है, बिजली है अर्थात वह सब है, जिसे कथित आधुनिकता से जोड़ा जाता है. दूसरी तरफ वह भारत है, जहां देश की लगभग दो तिहाई आबादी खेती के सहारे जीती है. इस भारत में अशिक्षा है, गरीबी है, बेरोजगारी है. मुख्यतः किसान रहते हैं, इस भारत में, जो सदियों से ऋण में पैदा होते रहे हैं, ऋण चुकाते-चुकाते जीवन गुजार देते हैं. किसान भूखे पेट सोने के लिए शापित हैं, इनके बच्चे खस्ताहाल स्कूलों में पढ़ने के लिए नहीं, मुफ्त भोजन के लालच में जाते हैं. यह भारत पानी के लिए तरस रहा है, बिजली के लिए तरस रहा है.

शरद जोशी इन्हीं किसानों के नेता थे. किसानों को उनकी मेहनत के उचित मुआवजे के लिए उन्होंने जो संघर्ष किया, उसकी महत्ता से कोई इनकार नहीं कर सकता. जोशी सांसद भी रहे थे. संसद में भी वे किसानों के हितों की लड़ाई लड़ते रहे, संसद के बजाय सड़क पर उन्होंने अधिक फलदायी संघर्ष किया. गांवों की गलियों से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने ग्रामीण-हितों की एक अनवरत लड़ाई लड़ी थी. वर्ल्ड एग्रीकल्चर फोरम के सलाहकार मंडल के सदस्य के रूप से लेकर देश की किसान समन्वय समिति की स्थापना करनेवाले और ‘शेतकरी संघटना' व ‘शेतकरी महिला आघाड़ी' जैसे संगठनों के माध्यम से उन्होंने किसानों के हितों के लिए किये जानेवाले संघर्ष को रास्ता भी दिखाया था और उस रास्ते पर चलने की प्रेरणा भी दी थी.

15 दिसंबर को जब पुणे में उन्हें अंतिम विदाई दी गयी, तो देश के अलग-अलग हिस्सों से आये हजारों किसानों की आंखों में आंसू थे. अंतिम श्रद्धांजलि देने के लिए आनेवालों में महिलाएं भी बड़ी संख्या में थीं. इन महिलाओं को शरद जोशी ने ‘शेतकरी महिला आघाड़ी' के अंतर्गत संघर्ष करना सिखाया था. जोशी ने ही पहली बार ‘इंडिया' और ‘भारत' का नारा दिया था. यह नारा देकर उन्होंने शहरी भारत व ग्रामीण भारत के अंतर को उजागर किया और इस अंतर को मिटाने की जरूरत को भी रेखांकित किया. देश के नेतृत्व की आंखों में उंगली डाल कर उन्होंने दिखाया था कि किस तरह ग्रामीण भारत की कीमत पर शहरी इंडिया ‘विकसित' किया जा रहा है. दुर्भाग्य से आज भी हमें ‘स्मार्ट सिटी' के सपने दिखाये जा रहे हैं, जबकि जरूरत स्मार्ट गांवों की है.

ऐसा नहीं है कि देश में गांवों के विकास की बात कभी हुई नहीं. पहली पंचवर्षीय योजना में हमने कृषि को ही प्राथमिकता दी थी, पर धीरे-धीरे प्राथमिकताएं बदलती गयीं. जो भी सरकारें इस बीच आयीं, उन्होंने किसानों की बेहतरी के वादे और दावे किये हैं, पर सबकी सचाई इस बात से उजागर हो जाती है कि लाखों किसान अब तक आत्महत्या कर चुके हैं. दुर्भाग्यपूर्ण यह भी है कि हमारा नेतृत्व इस त्रासदी के लिए स्वयं को किसी भी तरह से जिम्मेवार नहीं मानता. देश के नेतृत्व को यह समझना होगा कि आत्महत्या करनेवाले हर किसान के साथ ‘भारत' का एक हिस्सा मरता है या मारा जाता है. देश का ‘इंडिया' और ‘भारत' में बंटवारा वह बुनियादी अपराध है, जिसने देश के समग्र विकास की अवधारणा को ही बदल दिया है. आज जब सबके विकास की बात हो रही है, तो यह भी समझना होगा कि प्रगति के सारे दावों के बावजूद आज भी देश उन गांवों में ही बसता है, जहां किसान भूखा है, नंगा है. विकास शहरी चकाचौंध तक ही सीमित क्यों है? हर गांव तक सिंचाई का पानी क्यों नहीं पहुंचा? गांवों में रोजगार के पर्याप्त साधन क्यों नहीं जुट पाये?

ऐसे सवालों के उत्तर में निहित है यह तथ्य कि यदि ‘इंडिया' का मललब विकास है, तो ‘भारत' को इंडिया बनाना ही होगा. किसान नेता स्वर्गीय शरद जोशी ने यह बात कही थी. उनकी अंत्येष्टि के समय महाराष्ट्र के एक मंत्री ने उनका उचित स्मारक बनाने की बात कही है. लेकिन, शरद जोशी का उचित स्मारक बनाना है, तो इंडिया और भारत के अंतर को मिटाने की ईमानदार कोशिश करनी होगी. इण्डिया और भारत की ‘दूरी' ईमानदारी के अभाव का ही परिणाम है. आप चाहें तो इसे बेईमानी कह सकते हैं.


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/665115.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close