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न्यूज क्लिपिंग्स् | बैड बैंक और निजीकरण: बैंक फॉर सेल

बैड बैंक और निजीकरण: बैंक फॉर सेल

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published Published on Mar 22, 2021   modified Modified on Mar 24, 2021

-आउटलुक,

“सरकारी बैंकों में निजी निवेश के लिए उसका एनपीए कम होना जरूरी है और बैड बैंक इसमें मददगार होगा, इसलिए बैंक निजीकरण और बैड बैंक का गठन, दोनों फैसलों को एक-दूसरे से जोड़कर देखा जाना चाहिए”
एस.के. सिंह

इन दिनों एक बैंक की बहुत चर्चा है- बैड बैंक। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी 2021 को बजट में इसका जिक्र किया, जिस पर बाद में रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी सहमति जताई। बैंक और उद्योग जगत इस कदम से खुश हैं। बैंक इसलिए कि उनके डूबे कर्ज (एनपीए) कम होंगे। इंडस्ट्री इसलिए क्योंकि एनपीए कम होने के बाद बैंक उन्हें ज्यादा कर्ज दे सकेंगे। बजट में इस साल दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की भी घोषणा हुई है। दरअसल, बैंक निजीकरण और बैड बैंक का गठन, दोनों फैसले एक-दूसरे से जुड़े हैं। निजी हाथों में सरकारी बैंकों को सौंपने की अच्छी कीमत मिले, इसके लिए जरूरी है कि उसका एनपीए कम हो। बैड बैंक इसमें मददगार होगा।

बैड बैंक और कुछ नहीं, बल्कि ऐसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (एआरसी) है। यह सामान्य बैंकों के एनपीए डिस्काउंट पर खरीदता है और बाद में उस एनपीए की रिकवरी की कोशिश करता है। देश में पहले से कई एआरसी हैं। नई एआरसी का स्वरूप राष्ट्रीय होगा। इसका गठन इसलिए किया जा रहा है क्योंकि मौजूदा एआरसी बहुत छोटे हैं। पिछले तीन वर्षों के दौरान इन्होंने बैंकों का सिर्फ छह फीसदी एनपीए खरीदा है।

बैंक निजीकरण और बैड बैंक का गठन, दोनों के लिए काफी तेजी से काम हो रहा है। बैड बैंक के लिए आवेदन मंगाने और नियुक्तियां करने में समय लगेगा, इसलिए कुछ सरकारी बैंकों के वरिष्ठ अधिकारियों को इसमें डेपुटेशन पर भेजा जा सकता है। इसमें सात सरकारी बैंकों, दो निजी बैंकों और दो सरकारी फाइनेंस कंपनियों की बराबर हिस्सेदारी हो सकती है। इंडियन बैंक्स एसोसिएशन ने सभी बैंकों से 500 करोड़ रुपये से ज्यादा के एनपीए की जानकारी मांगी है। इससे पता चलेगा कि बैड बैंक बनाने के लिए कितनी पूंजी चाहिए। शुरुआती आकलन के मुताबिक बैड बैंक 70 बड़े अकाउंट के दो से ढाई लाख करोड़ रुपये के एनपीए ले सकता है। निजीकरण के लिए भी बैंकों के नाम जल्दी ही तय हो सकते हैं। चर्चा है कि बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में से किन्हीं दो को चुना जा सकता है। निजीकरण से पहले उस बैंक का एनपीए बैड बैंक खरीद सकता है। बैंक को और आकर्षक बनाने के लिए उसके कुछ कर्मचारियों को दूसरे सरकारी बैंकों में ट्रांसफर किया जा सकता है।

निजीकरण के पक्ष में यह दलील दी जाती है कि इससे मैनेजमेंट प्रोफेशनल होगा। लेकिन अतीत में निजी बैंकों में अनेक गड़बड़ियां पाई गई हैं। ऐसे में यह दलील कितनी सही है, इस पर क्रिसिल रेटिंग्स के सीनियर डायरेक्टर कृष्णन सीतारमण कहते हैं, “हमें एक औसत देखना होगा। ऐसा नहीं कि सभी सरकारी बैंकों का प्रदर्शन खराब और निजी बैंकों का अच्छा है। लेकिन एनपीए के मामले में ज्यादातर निजी बैंक, सरकारी बैंकों से बेहतर हैं। पर्याप्त मॉनिटरिंग और सुपरविजन रहे तो निजीकरण में कोई बुराई नहीं है।”

यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस ने निजीकरण के फैसले के खिलाफ 15 और 16 मार्च को हड़ताल बुलाई है। संगठन के संयोजक देवीदास तुलजापुरकर का कहना है कि निजी बैंक ‘एकाउंटिंग प्रॉफिट’ के लिए काम करेंगे, जबकि सरकारी बैंक ‘सोशल प्रॉफिट’ के लिए काम करते हैं। सामाजिक योजनाओं में इन बैंकों का योगदान बहुत कम होता है। तुलजापुरकर के अनुसार जनधन योजना में निजी बैंकों की हिस्सेदारी पांच फीसदी से भी कम है। मुद्रा, स्वधन, स्टैंड अप इंडिया, मेक इन इंडिया योजनाओं का भी यही हाल है।

आगे फिर एनपीए बढ़ेगा

नए बैड बैंक का ढांचा कैसा होगा और यह कैसे काम करेगा, अभी स्पष्ट नहीं है। माना जा रहा है कि यह बैंकों से जिस कीमत पर एनपीए खरीदेगा, उसके बदले  बैंकों को 15 फीसदी राशि नकद देगा। बाकी के बदले सिक्योरिटी रिसीट मिलेगी, जिस पर सरकार की गारंटी होगी। रिजर्व बैंक के 2016 के नियम के मुताबिक एआरसी को एनपीए बेचने पर बैंकों को उसके बदले प्रोविजनिंग यानी कुछ रकम अलग रखनी पड़ती है। इस नियम में ढील दी जा सकती है।

इस कवायद में असली समस्या की कहीं चर्चा नहीं है, और वह है एनपीए इतना अधिक होते क्यों हैं। कोविड-19 जैसी आपदा को छोड़ दें, तब भी भारत पारंपरिक रूप से अधिक एनपीए वाला देश रहा है। जाने-माने अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार कहते हैं, “समस्या कहीं और है और समाधान कहीं और तलाशा जा रहा है। बैंकों पर नेताओं का हमेशा दबाव रहता है। बैंक अगर पूरी छानबीन के बाद किसी कंपनी को कर्ज दे तो एनपीए की गुंजाइश वैसे ही कम हो जाएगी।”

रिजर्व बैंक के अनुसार सितंबर 2020 में पूरे बैंकिंग सिस्टम का ग्रॉस एनपीए कुल कर्ज का 7.5 फीसदी था। कोरोना लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था में जो सुस्ती आई उससे सितंबर 2021 में एनपीए रिकॉर्ड 13.5 फीसदी तक जा सकता है। परिस्थितियां खराब रहीं तो यह 14.8 फीसदी तक भी चला जाएगा। सरकारी बैंकों का एनपीए तो 16.2 फीसदी तक पहुंच जाने का अंदेशा है जो सितंबर 2020 में 9.7 फीसदी था। रिजर्व बैंक की ही के.वी. कामत कमेटी का आकलन है कि कोविड-19 के चलते 15.52 लाख करोड़ रुपये के कर्ज एनपीए बन सकते हैं। कोविड से पहले भी 22.20 लाख करोड़ के कर्ज फंसे हुए थे। इस तरह उद्योग जगत को बैंकों की तरफ से दिए गए कुल कर्ज का 72 फीसदी फंसने का खतरा है।

बैंकों में एनपीए छिपाने की प्रवृत्ति रही है। पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के समय बैंकों के ऐसेट क्वालिटी रिव्यू में पता चला कि अनेक सरकारी और निजी बैंकों ने एनपीए छिपाया, ताकि उनकी बैलेंस शीट मजबूत दिखे। इस रिव्यू के बाद 2015-16 में सरकारी बैंकों का एनपीए लगभग 94 फीसदी बढ़ गया था। इसलिए आरबीआई के एक पूर्व एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बैड बैंक को ‘बैड आइडिया’ मानते हैं। नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर उन्होंने कहा, “इसके बाद तो बैंक और ढिलाई बरतने लगेंगे। उनमें यह प्रवृत्ति पनपने लगेगी कि अगर कोई कर्ज एनपीए हो गया तो उसे डिस्काउंट पर एआरसी को दे देंगे।”

बड़े कर्ज के आवेदन को मंजूरी के विभिन्न चरणों में जांचा जाता है। कंपनी की क्रेडिट रेटिंग और कर्ज के बदल रखी गई गिरवी देखी जाती है। कर्ज देने के बाद फॉलोअप और मॉनिटरिंग भी जरूरी है। इन नियमों का पालन नहीं होने के कारण ही एनपीए होते हैं। इसलिए प्रो. अरुण कुमार कहते हैं, “बैड बैंक से अभी तो एनपीए की समस्या कम हो जाएगी, लेकिन कर्ज देने का तरीका नहीं सुधारा गया तो आगे फिर एनपीए बढ़ेगा।” कृष्णन के अनुसार बैंक की मजबूत सेहत के लिए उसका रिस्क मैनेजमेंट अच्छा होना जरूरी है। बेहतर रिस्क मैनेजमेंट और क्रेडिट अप्रेजल के कारण ही प्राइवेट बैंकों का एनपीए कम है।

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


एसके सिंह, https://www.outlookhindi.com/story/bad-bank-and-privatization-2869


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