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न्यूज क्लिपिंग्स् | बिहार चुनाव : मक्का किसानों को लागत से कम मिलता है दाम

बिहार चुनाव : मक्का किसानों को लागत से कम मिलता है दाम

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published Published on Nov 6, 2020   modified Modified on Nov 6, 2020

-न्यूजक्लिक,

"लाभ की बात छोड़िये, इस साल मक्‍का की लागत भी नहीं निकली है, इस बार भारी नुकसान हुआ है, क्या करें। सरकार केवल ढ़ोल पीटती है कि किसान को एमएसपी मिल रही है; किसान की आय बढ़ने के सभी दावे झूठे हैं, त्रिलोक दास जोकि बाढ़ वाले क्षेत्र कोशी से मक्का बौने वाले किसान हैं ने उक्त बातें कहीं, यह वह इलाका है जिसे सीमांचल क्षेत्र के साथ मक्का की खेती के मुख्य केंद्र के रूप में जाना जाता हैं।

त्रिलोक हजारों मक्का उगाने वाले किसानों में से एक है, जो सरकार का समर्थन न मिलने से काफी पीड़ित हैं क्योंकि उन्हें मक्का की फसल के मुक़ाबले न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मुश्किल से मिलता है, जिसके चलते उन्हे अपनी फसल औने-पौने दामों पर बेचनी पड़ती हैं।

त्रिलोक दास अपने खेत में इकट्ठा की गई मकई के पास खड़े हैं। फोटो: मोहम्मद इमरान खान

खाली खेत में खड़े त्रिलोक दास नवंबर के मध्य तक फिर से खेती करने की योजना बना रहे थे,  उन जैसे लोग काफी असहाय हैं और फिर से प्रयास करने के अलावा उनके पास और कोई विकल्प नहीं है। अनिश्चितता यहां का कड़वा सच है।

पिछले साल के मुक़ाबले जब उसने और दूसरों किसानों ने असाधारण रूप से ऊंची दरों पर मकई को बेचकर अच्छा-खासा लाभ कमाया था, इस साल मजबूरी में संकटपूर्ण बिक्री से भारी नुकसान उठाना पड़ा है। उन्होंने बताया कि, 'मैंने इस बार स्थानीय व्यापारियों को 900 रुपये से लेकर 1000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से मक्का बेचा है, जबकि पिछली बार मक्का का दाम 1,800 रुपये से लेकर 2,000 रुपये क्विंटल तक था।' यद्द्पि केंद्र सरकार ने मक्का की एमएसपी 1,760 रुपये प्रति क्विंटल तय की थी। 

मधेपुरा जिले में बिहारीगंज विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले मुरलीगंज ब्लॉक के रजनी गाँव के निवासी त्रिलोक ने बताया कि अप्रैल में मक्के की फसल खड़ी थी लेकिन बेमौसम भारी बारिश ने तबाह कर दिया। “मुझे 2019 की तरह इस फसल से अच्छा मुनाफा कमाने की उम्मीद थी। हालांकि, मैं गलत साबित हो गया। लॉकडाउन की वजह से मांग में गिरावट आने से कीमत गिर गई। इस सब ने मेरे जैसे किसानों को बुरी तरह प्रभावित किया है।

मधेपुरा, सहरसा, सुपौल, कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया और अररिया सहित कोशी और सीमांचल बेल्ट की 78 विधानसभा सीटों में से लगभग 40 पर 7 नवंबर को तीसरे और अंतिम चरण का मतदान होगा। 

हालांकि, मक्का की कीमतों का कम होना और उस पर एमएसपी न मिलना 5 नवंबर को समाप्त होने वाले चुनाव अभियान में कोई मुद्दा नहीं है। मक्का की फसल, जो इस क्षेत्र के किसानों की जीवन रेखा है, उसका चुनाव घोषणापत्र में उल्लेख भी नहीं है, जिसमें भाजपा जद (यू) और राजद तीनों  शामिल है।

त्रिलोक ने बताया कि मई और जून के महीने में कम कीमतों के कारण उसे एक लाख रुपये का नुकसान हुआ है (जिसमें उत्पादन और उसके अतिरिक्त श्रम की लागत शामिल है)। “मैं दस एकड़ भूमि में मक्का उगाता हूं। उन्होंने कहा कि उत्पादन (बीज, उर्वरक, कीटनाशक, लेबर चार्ज) की लागत लगभग 15,000 रुपये प्रति एकड़ है, लेकिन मुझे सारी उपज बेचने के बाद काफी कम दाम मिला है।

उन्होंने कहा कि यदि वह- जोकि एक अपेक्षाकृत संपन्न किसान है- अगर पीड़ित है, तो आप फिर छोटे और सीमांत किसानों की दुर्दशा की कल्पना नहीं कर सकते हैं। “मेरे पास प्रति एकड़ में लगभग 25 से 30 क्विंटल की अच्छी उपज हुई थी क्योंकि मैं मुख्य रूप से हाइब्रिड बीज बोता हूं और सिंचाई और मजदूरों के काम पर नज़र रखता हूं। लेकिन गरीब किसान ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि इसके लिए अधिक धन की जरूरत होती है।

उसी गाँव के एक मक्का पैदा करने वाले छोटे किसान शंभू कुमार, भी उसी नाव में सवार हैं- उन्हें भी दाम उत्पादन की लागत से कम मिला है और उनके पास बाज़ार का कोई सीधा समर्थन नहीं है। उन्होंने कहा,' व्यापारियों ने लॉकडाउन का फायदा उठाते हुए पिछले साल के मुक़ाबले आधी कीमत की पेशकश की थी। कोई अन्य विकल्प नहीं होने की वजह से मुझे तीन बीघा जमीन की पैदावार को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा।”

शंभू ने कहा मजबूरी में की गई बिक्री से बड़ा नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा, 'मुझे उम्मीद थी कि कुछ तो पैसे मिलेंगे, लेकिन जो मिला, वह पिछले साल का आधा था। मैंने पिछले सप्ताह मकई को 1,050 रुपये प्रति क्विंटल में बेचा था, जिसके बाद उम्मीद थी कि शायद कीमतें बढ़ेंगी। मक्का को यहाँ बड़े तौर पर नकदी फसल माना जाता है,” पाँच सदस्यों के परिवार के एकमात्र कमाने वाले शंभू ने बताया। 

उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि मक्का उगाने वाले किसानों को कृषि से मिल रही कम आय के कारण कारखानों में मजदूरों के रूप में पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।  उन्होंने बताया, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की डबल इंजन की सरकार इस दुर्गति के लिए जिम्मेदार है। मोदी सरकार ने कागज पर मक्का की एमएसपी की घोषणा कर दी और नीतीश सरकार ने इसे देने से इनकार कर दिया। किसानों को गफलत में छोड़ दिया गया। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की उपेक्षा कर रही है, इसलिए वे सरकार से नाराज हैं। उसने बताया कि उन्हे एक भी किसान ऐसा नहीं मिला जो सरकार से खुश है।"

गंगापुर गांव के रहने वाले बिजेन्द्र ने बताया कि उन्हें इस साल 70,000 रुपये का नुकसान हुआ है। “मुझे जो कीमत मिली वह पिछले साल से आधी थी। मैंने आठ बीघा जमीन से 150 क्विंटल मक्का 1,000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचा है। लाभ छोड दो, हमें तो उत्पादन की लागत भी नहीं मिली है, बड़े दुखी मन से उन्होंने बताया।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


मोहम्मद इमरान खान, https://hindi.newsclick.in/bihar-elections-maize-farmers-koshi-seemanchal-get-less-than-cost-production-no-MSP


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