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न्यूज क्लिपिंग्स् | सीबीआई एक ऐसा तोता है जिसे सभी राजनीतिक दल आजाद तो रखना चाहते हैं लेकिन तभी जब विपक्ष में हों

सीबीआई एक ऐसा तोता है जिसे सभी राजनीतिक दल आजाद तो रखना चाहते हैं लेकिन तभी जब विपक्ष में हों

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published Published on Nov 2, 2020   modified Modified on Nov 4, 2020

-सत्याग्रह,

सीबीआई फिर सुर्खियों में है. दिल्ली की एक अदालत ने मोइन कुरैशी मामले की जांच के प्रभारी उसके संयुक्त निदेशक को एक समन भेजा है. इसमें उन्हें 17 नवंबर को पेश होने को कहा गया है. अदालत उनसे इस मामले में सीबीआई के पूर्व निदेशकों एपी सिंह और रंजीत सिन्हा की भूमिका के बारे में जानना चाहती है. वह इस हाई प्रोफाइल केस में जांच की धीमी गति से नाराज भी है. 26 सितंबर को हुई मामले की सुनवाई के दौरान उसने पूछा था कि इससे यह निष्कर्ष क्यों न निकाला जाए कि एजेंसी अपने दो पूर्व मुखियाओं के खिलाफ जांच के लिए खास इच्छुक नहीं है.

आरोप है कि मांस कारोबारी मोइन कुरैशी सीबीआई के अफसरों को रिश्वत देकर भ्रष्टाचारियों को जांच के फंदे से बचाता था. इसके लिए पैसा या तो वह खुद लेता था या फिर यह काम उसका सहयोगी, हैदराबाद का एक कारोबारी सतीश सना बाबू करता था. मोइन कुरैशी मनी लॉन्डरिंग के एक मामले के चलते प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के फंदे में आया था. जांच एजेंसी ने इस मामले में जो आरोपपत्र दाखिल किया उसमें कहा गया था कि वह सीबीआई के पूर्व निदेशकों रंजीत सिन्हा और एपी सिंह के लिए भ्रष्टाचारियों से वसूली करता था.

बीते कुछ समय के दौरान सीबीआई को मुश्किल में डालने वाली यह कोई अकेली घटना नहीं है. हाल में महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने राज्य में जांच और छापामारी के लिए उसे दी गई अनुमति (जनरल कंसेंट) वापस ले ली है. इससे पहले राजस्थान, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश भी ऐसा कर चुके हैं. यानी अब जांच एजेंसी को इन राज्यों में कोई भी जांच करने से पहले यहां की सरकारों से अनुमति लेनी होगी. इस मामले में अपवाद केवल वे जांचें होंगी जिनका आदेश सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट या हाई कोर्ट ने दिया हो.

पश्चिम बंगाल में तो वह तक हो चुका है जो सीबीआई के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था. बीते साल शारदा चिटफंड घोटाले को लेकर राज्य के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ के लिए सीबीआई टीम कोलकाता पहुंची थी. वहां राज्य पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया था. इन सभी राज्यों का कहना है कि यह जांच एजेंसी भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार के एजेंडे के हिसाब से काम कर रही है.

इन सभी राज्यों में एक बात समान है और वह यह कि इनमें गैरभाजपा सरकारें हैं. जानकारों के मुताबिक सीबीआई को लेकर उनका यह कदम केंद्र के राजनीतिक दांव की काट जैसा है. आरोप लगते हैं कि भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार सीबीआई के सहारे पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को घेरना चाहती है तो महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे को. टीआरपी घोटाला मामले में मुंबई पुलिस की एफआईआर और जांच के बावजूद इसी मामले में जिस तरह से उत्तर प्रदेश में एक और रिपोर्ट दर्ज हुई और इसके तुरंत बाद जिस तरह से आदित्यनाथ सरकार की सिफारिश पर केंद्र सरकार ने आनन-फानन में इसकी सीबीआई जांच की अनुमति दी, उससे ऐसे आरोपों को बल मिलता दिखता है.

उधर, भाजपा या उसके सहयोगी दलों के नेतृत्व वाली राज्य सरकारें सीबीआई का अपनी तरह से इस्तेमाल करती नजर आती हैं. विश्लेषकों के मुताबिक अगर कोई ऐसा मामला हो जिससे उन्हें राजनीतिक नुकसान या फायदा हो सकता है तो वे इसकी जांच सीबीआई को सौंपकर अपना दामन बचाने या खुद को फायदा पहुंचाने की कोशिश करती हैं. हाथरस सामूहिक बलात्कार और हत्या का मामला या सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या का मामला इसके सबसे नये उदाहरण हैं. कई लोगों को लगता है कि पहले मामले में योगी आदित्यनाथ सरकार ने अपनी चौतरफा आलोचना से बचने के लिए ऐसा किया और दूसरे मामले को बिहार चुनावों से ठीक पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा द्वारा अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया गया.

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


विकास बहुगुणा, https://satyagrah.scroll.in/article/136089/cbi-modi-sarkaar-dspe-act


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