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न्यूज क्लिपिंग्स् | कॉप-26: वनों से भरपूर भारत ग्लासगो घोषणा-पत्र से पीछे क्यों हटा?

कॉप-26: वनों से भरपूर भारत ग्लासगो घोषणा-पत्र से पीछे क्यों हटा?

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published Published on Nov 6, 2021   modified Modified on Nov 6, 2021

-डाउन टू अर्थ,

दुनिया के वनों से भरपूर शीर्ष दस देशों में शामिल भारत ने जलवायु परिवर्तन पर चल रहे संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन, कॉप-26 में उस घोषणा-पत्र से दूरी बनाए रखी, जिसमें सौ से ज्यादा देशों के नेताओं ने वनों को बचाने का संकल्प लिया गया। यह सम्मेलन स्कॉटलैंड के ग्लासगो में चल रहा है।
 
एक भारतीय प्रतिनिधि के मुताबिक, भारत ने इस घोषणा-पत्र के तैयार मसौदे में आधारभूत संरचनात्मक विकास संबंधी गतिविधियों को वन-संरक्षण से जोड़े जाने से नाखुश होने के चलते यह फैसला लिया। मसौदे में स्थायी उत्पादन और खपत, बुनियादी ढांचे के विकास, व्यापार के साथ-साथ वित्त और निवेश के संबंधित क्षेत्रों में परिवर्तनकारी कार्रवाई को भी जोड़ा गया है।
 
ग्लासगो घोषणा-पत्र के मुताबिक:  हमारा मानना है कि विश्व और राष्ट्रीय स्तर पर भविष्य में भूमि उपयोग, जलवायु, जैव विविधता और सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, स्थायी उत्पादन और खपत, बुनियादी ढांचे के विकास, व्यापार, वित्त, निवेश और छोटे के साझीदारों लिए आपस में जुड़े क्षेत्रों में परिवर्तनकारी कार्रवाई की आवश्यकता होगी। इसमें अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर स्वदेशी लोग और स्थानीय समुदाय महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
 
एक भारतीय प्रतिनिधि ने इस संवाददाता को बताया कि व्यापार और जलवायु परिवर्तन के बीच प्रस्तावित मसौदा भारत को इसलिए स्वीकार्य नहीं था, क्योंकि यह मामला विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत आता है।
 
भारत प्रमुख परियोजनाओं को समायोजित करने के लिए वनों की कटाई की अनुमति देने के लिए मौजूदा वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में बदलाव पर भी विचार कर रहा है। अगर भारत ग्लासगो में प्रस्तावित वन समझौते का हिस्सा बन जाता तो उससे भारत के इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों को झटका लगता।
 
दो अक्टूबर को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक पत्र जारी किया। इसमें वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में बदलाव के 14 संभावित बिंदुओं पर विचार किया गया है। वनों की कटाई कम करने की दिशा में यह कानून बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके तहत वनों का कोई अन्य इस्तेमाल करने के लिए केंद्र सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है।

वन मंजूरी का नियामक तंत्र, मंत्रालय को इस बात पर विचार करने की अनुमति देता है कि वनों की कटाई की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं और अगर ऐसा परमिट दिया जाता है तो उसके लिए क्या शर्तें होनी चाहिए।
 
ग्लासगो का महत्वूपर्ण पड़ाव
दो नवंबर को, दुनिया के नेताओं ने 2030 तक वनों की कटाई और भूमि क्षरण को रोकने के लिए 19 बिलियन डॉलर के सार्वजनिक और निजी फंड के प्रति अपनी  प्रतिबद्धता जताई। ये नेता दुनिया के कुल वनों के करीब नौ से लेकर दसवें हिस्से तक का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस घोषणा को वैश्विक वनों की रक्षा में ‘सबसे बड़ा कदम’ बताया गया।
 
कनाडा से लेकर रूस ने अपने तायगा वनों और ब्राजील के उष्णकटिबंधीय बर्षा वनों तक, कोलंबिया, इंडोनशिया से लेकर कांगो गणराज्य ने ग्लासगो में ‘वन और भूमि के उपयोग संबंधी घोषणपत्र’ का समर्थन किया। ये सारे देश मिलकर दुनिया में वनों का 85 फीसद हिस्सा घेरते हैं, जो 13 मिलियन स्कवायर मील में फैला हुआ है।
 
हमारे ग्रह का फेफड़े होने के कारण वन, हर साल जीवाश्म ईंधन के जलने से निकलने वाली वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड का लगभग एक तिहाई अवशोषित करते हैं। हालांकि कहा जाता है कि इस गैस का नुकसान चेतावनी के स्तर तक खतरनाक दर से होता है, जिसके चलते हर मिनट में 27 फुटबॉल पिचों के आकार के बराबर वन का क्षेत्र नष्ट हो जाता है।
 
वैश्विक जलवायु उत्सर्जन में अपनी भूमिका रेखांकित करते हुए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा, ‘कॉप-26 में दुनिया के नेताओं ने धरती के वनों को बचाने और उनके संरक्षण के लिए ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
 
इस प्रोजेक्ट से जुड़े ब्रिटिश सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, ‘इस प्रयास के महत्व को समझने के लिए आपको वचनबद्ध पूंजी की प्रतिबद्धता और उसकी संरचना को देखना होगा। निजी पूंजी होने के बावजूद लोकनिधि ज्यादा प्रभावी रहती है। इसके अलावा, वित्त पोषण की एक निश्चित समय सीमा है। यह मॉडल उत्सर्जन में कमी को लेकर अन्य क्षेत्रों में अग्रणी बन सकता है’।

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


जयंता बासु, https://www.downtoearth.org.in/hindistory/climate-change/climate-crisis/cop-26-why-a-forest-rich-india-withdrew-from-the-glasgow-declaration-80058


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