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न्यूज क्लिपिंग्स् | जलवायु संकट पर अमीर देशों और भारत के ताकतवर लोगों के भरोसे रहना बड़ी भूल

जलवायु संकट पर अमीर देशों और भारत के ताकतवर लोगों के भरोसे रहना बड़ी भूल

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published Published on Dec 11, 2021   modified Modified on Dec 11, 2021

-कारवां, 

हाल ही में 31 अक्टूबर और 12 नवंबर के बीच ग्लासगो में संपन्न हुई जलवायु परिवर्तन की 26वीं अंतर्राष्ट्रीय वार्ता में भारत सहित कई विकासशील देशों ने जलवायु न्याय का मुद्दा उठाया. इन देशों की मांग वाजिब है क्योंकि बैंगलुरु के राष्ट्रीय प्रगत अध्ययन संस्थान की डॉक्टर तेजल कानिटकर के अनुसार, विश्व के सबसे धनी देश 1990 में अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन के समझौतों पर चर्चा शुरू होने तक जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कुल जमा गैसों के उत्सर्जन के 71 प्रतिशत हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं. 

अहम बात यह कि दुनिया के सबसे धनी देश उत्सर्जन कम करने और विकाशशील देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान की भरपाई करने के अपने ही वादों पर बार बार मुकर जाते हैं. इसलिए जलवायु परिवर्तन निश्चित रूप से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु न्याय का मुद्दा है और रहेगा. इस सबके बावजूद जलवायु परिवर्तन से जुड़े अन्याय अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर ही खत्म नहीं होते. भारत में जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों और लगातार बढ़ती जा रही अमीर-गरीब के बीच की खाई को देखते हुए देश के भीतर होने वाले जलवायु व पर्यावरण सम्बंधित अन्यायों के बारे में गंभीरता से सोचना आवश्यक है.

{1}

आपने पढ़ा होगा की दिल्ली में वर्ष 2021 में ‘आक्सीजन बार’ खोले गए जहां आप पैसा देकर शुद्ध वायु का सेवन कर सकते हैं. सुनने में यह बड़ा अटपटा लगता है लेकिन हकीकत तो यह है कि वायु प्रदूषण एक बहुत गंभीर समस्या बन गई है. भारत में सालाना 16 लाख से ज्यादा लोग वायु प्रदूषण के कारण अकाल मौत का शिकार होते हैं. शहरों में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण मोटर वाहन होते हैं लेकिन उसका सबसे ज्यादा नुकसान रिक्शा चालकों, दिहाड़ी मजदूरों, और फुटपाथ पर अपनी रोजी रोटी जुटाने को मजबूर गरीब महिलाओं और पुरुषों को उठाना पड़ता है. जहां अमीर लोग अपने घरों में एयर-कंडीश्नर और एयर-प्यूरीफायर जैसे यंत्र लगा रहे हैं, शहरों में रहने वाले एक बड़े वर्ग को दिन रात वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ता है. उन परिस्थितियों में प्रदूषण के लिए सबसे कम जिम्मेदार लोगों पर उसका सबसे ज्यादा असर देखने को मिलता है. यह पर्यावरणीय अन्याय का एक बड़ा उदाहरण है.

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सर्दियों की शुरुआत में पंजाब और हरियाणा के खेतों में डंठल जलाने के कारण दिल्ली में कोहरे की समस्या और ज्यादा गंभीर हो जाती है. हालांकि यह समस्या वर्ष में कुछ समय के लिए ही रहती है, कई बार इस बहाने दिल्ली में प्रदूषण का पूरा दोष किसानों पर डाल दिया जाता है. यह भी ध्यान देने की बात है कि डंठल जलाने की समस्या पंजाब और हरियाणा में खेती के पूर्ण मशीनीकरण के कारण ज्यादा बढ़ी है. कंबाइंड हार्विस्टर मशीन, जो फसल काटने के साथ साथ धान निकालने का काम भी करती है, खेतों में नुकेले और बड़े डंठल पीछे छोड़ देती है जिनको जलाने के अलावा किसानों के पास और कोई किफायती रास्ता नहीं है. इस समस्या को सुलझाने के प्रयास जारी हैं लेकिन जिन इलाकों में डंठल जलाने की समस्या इतनी गंभीर नहीं है उन ग्रामीण इलाकों में भी वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या है.

वैज्ञानिक शोध से पता चला है की भारत में वायु प्रदूषण के होने वाली मौतों में से 75 फीसदी से ज्यादा मौतें ग्रामीण क्षेत्र में होती हैं. इसका सबसे बड़ा कारण घर के अंदर चूल्हा जलाने से होने वाला वायु प्रदूषण है जिसका सबसे ज्यादा खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ता है. खाना पूरा परिवार खाता है लेकिन उसकी कीमत मुख्यतः महिलाएं ही चुकाती हैं. यह पर्यावरणीय अन्याय का एक और उदाहरण है. वायु प्रदूषण एवं पर्यावरणीय अन्याय का यह सिलसिला अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के मासले से भी जुड़ा है.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


प्रकाश कस्वां, https://hindi.caravanmagazine.in/environment/cop26-climate-justice-third-world-countries


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