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न्यूज क्लिपिंग्स् | कोविड-19 संकट के बीच मजदूरों को आर्थिक सहयोग देने की वित्तीय क्षमता रखती है भारत सरकार

कोविड-19 संकट के बीच मजदूरों को आर्थिक सहयोग देने की वित्तीय क्षमता रखती है भारत सरकार

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published Published on Apr 23, 2020   modified Modified on Apr 23, 2020

-द प्रिंट, 

कोरोनावायरस केंद्र और राज्य सरकारों के लिए नई चुनौती बन कर सामने आया है. इसके मद्देनजर अर्थशास्त्रियों ने भी सरकार के सामने कई तरह के सुझाव रखे हैं. आर्थिक विशेषज्ञों ने एक बात स्पष्टता से रखी है- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित सहयोग पैकेज कामगार जनता को भूख से बचाने के लिए पर्याप्त नहीं है और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आगे बहुत छोटा है. यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई), अन्न भंडारों का खुलना, और लघु एवं मध्य उद्योगों को सहयोग ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था और मेहनतकश समाज के लिए वेंटीलेटर का काम करेंगी.

कोरोनावायरस से लड़ने के लिए सरकार को स्वास्थ्य व्यवस्था (ख़ासकर टेस्टिंग) का प्रबंधन करना पड़ रहा है, पर इसके साथ लॉकडाउन के दौरान हुई आय की क्षति को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. केंद्र सरकार द्वारा घोषित 1.7 लाख करोड़ रुपए के पैकेज में से 1 लाख करोड़ रुपए ही 2019-20 के बजट खर्च के अतिरिक्त है. जिन परिवारों के पास राशन कार्ड नहीं है, उन्हें महज़ 500 रुपए देने का वादा किया गया है, वो भी तब जब उन्हें अन्य सरकारी योजनाओं के तहत जन-धन खातों में पहले से पैसा मिलता है. अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ के मुताबिक़, किसी भी परिवार के लिए ये बहुत छोटी रकम है. प्रवासी मज़दूरों की पीड़ा (यहां तक कि भूख से मौत और आत्महत्या की खबरें) इस कथन का क्रूर ढंग से पुष्टिकरण कर रही हैं.

सार्वजानिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में नामांकित घरानों के हर सदस्य को एक हज़ार रुपए की मासिक आपातकालीन यूबीआई का 6 महीनों का खर्चा भी लगभग सकल घरेलू उत्पाद का 3% होगा (परीक्षित घोष द्वारा आकलन). अन्य देशों की तुलना में सहयोग कार्यों पर इस प्रकार का खर्चा भव्य नहीं है.

आश्चर्य की बात यह है कि आराम का जीवन व्यतीत करने वालों को भारतीय प्रवासी मज़दूरों की पीड़ा (जो पूरी दुनिया देख रही है) शायद दिखाई नहीं पड़ रही. मजदूर वर्ग बस एक न्यूज का क्लिप बन कर रह गया है. विशेषज्ञों के बीच राजस्व प्रोत्साहन के ऊपर बनी (दुर्लभ) सहमति इन्हें फूटी आंख नहीं सुहा रही. ऐसे लोगों का कहना है कि सरकार जितना कर सकती थी, कर रही है, कि भारत सरकार के उधार लेने से अर्थव्यवस्था और भी चौपट हो जाएगी क्योंकि विदेशी बैंकों और रेटिंग संस्थाओं की नज़र में भारतीय अर्थव्यवस्था और भी कमज़ोर हो जाएगी. यथार्थ से परे इस विचित्र विचारधारा के अनुयायी यह भूल बैठे हैं कि इस संकट ने किसी देश को छोड़ा नहीं है- जब यूरोप और अमेरिका की नींव हिल चुकी है, तो वह कौन सा मुल्क है जिसे रेटिंग एजेंसी सर्वश्रेष्ठ रेटिंग देगी? कहने का मतलब यह है कि बाज़ार की शक्ल बदल चुकी है और दुरुस्त निवेश के ठिकाने तय करने के मापदंड भी बदल रहे हैं.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


आरुषि कालरा, https://hindi.theprint.in/opinion/government-of-india-has-the-financial-capacity-to-provide-economic-support-to-laborers-in-the-midst-of-covid-19-crisis/133228/


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