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न्यूज क्लिपिंग्स् | किसानों को पैकेज और अध्यादेशों से कोई फायदा नहीं

किसानों को पैकेज और अध्यादेशों से कोई फायदा नहीं

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published Published on Jun 16, 2020   modified Modified on Jun 16, 2020

-आउटलुक,

आजादी के बाद पिछले 70 साल से किसान घाटे का सौदा कर रहे हैं। एक तरफ उसकी जोत कम हो रही है, दूसरी तरफ उत्पादन की लागत बढ़ रही है। लेकिन उन्हें उपज बेचने पर लागत भी नसीब नहीं होती है। हर सरकार किसानों की पीड़ा का जिक्र चुनाव प्रचार में तो करती है, लेकिन जीतने के बाद पांच साल के लिए किसानों को भूल जाती हैं। जहां कोरोना से देश परेशान है और लगभग 70 दिनों तक लॉकडाउन में रहा। उद्योगपति अपने घाटे के लिए सरकार से राहत मांगने लगे हैं। जब सरकार ने उद्योगपतियों के लिए राहत पैकेज तैयार किया होगा तो शायद उसे किसान के घाटे का अहसास रहा होगा, इसलिए सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में बार-बार किसानों को राहत की बात की। यह अलग बात है कि किसान को इस पैकेज में राहत के नाम पर कुछ नहीं मिला। पहले कर्ज में दबे किसान को दो लाख करोड़ रुपये और कर्ज देने की बात कही गई। पिछले किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) का पैसा लौटाने की मियाद पहले 31 मई और फिर 31 अगस्त तक बढ़ा दी गई और समय पर भुगतान करने वालों को ब्याज पर 3 फीसदी छूट की बात कही गई जो पिछले 20 साल से मिल रहा है। उम्मीद थी कि 20 लाख करोड़ रुपये में से सरकार उत्तर प्रदेश के 40 लाख गन्ना किसान परिवारों (दो करोड़ लोगों) को बकाया भुगतान और ब्याज के 20 हजार करोड़ रुपये की अदायगी करके राहत पहुंचाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सरकार ऐसा करती तो उसका क्या जाता, देर-सवेर सरकार को मिलों से पैसा वापस मिलना ही था और यहां किसानों के आंसू पोंछना संभव हो जाता।

सरकार को छोटे किसानों की पीड़ा देखनी चाहिए, जिनकी सब्जी, फल, दूध, फूल का नुकसान हुआ। उन्हें कुछ नहीं मिला, हालांकि शहर में रेहड़ी लगाकर हमारी सब्जी, फल, फूल नहीं बेच पाए, उन्हें दस-दस हजार रुपये का कर्ज देने की बात कही गई है। मजाक यहीं खत्म नहीं हुआ। आठ करोड़ प्रवासी मजदूरों को दो महीने के खर्च के लिए 3500 करोड़ रुपये देने की बात कही गई, जो हर परिवार के लिए दैनिक मदद सात रुपये 28 पैसे बैठती है। महीने भर का इसका पैसा एक मनरेगी की दिहाड़ी के बराबर है। सरकार ने मनरेगा को खेती के साथ जोड़ने या ग्रामीण क्षेत्र में खेती पर निर्धारित उद्योग लगाने की कोई बात नहीं की, लेकिन मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने तीन अध्यादेश पारित किए जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक बताया और कहा कि पहली बार किसान आर्थिक रूप से मजबूत होगा क्योंकि उसकी आमदनी में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी होगी। हमें देखना होगा कि इन अध्यादेशों में ऐसा क्या जादू है? पहले अध्यादेश में आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन किया गया, जिससे अनाज, दलहन, खाद्य तिलहन, खाद्य तेल, आलू और ब्याज को आवश्यक वस्तुओं के दायरे से हटा दिया गया है। इसका मतलब अब अनाज, दलहन आदि वस्तुओं की जमाखोरी करने वालों के खिलाफ धारा 3/7 के तहत कार्रवाई नहीं की जाएगी।

दूसरा अध्यादेश किसान की आमदनी बढ़ाने, उन्हें सशक्त और सुरक्षित करने के नाम पर लाया गया है। मोदी आत्मनिर्भर बनाने की बात करते हैं, तो वे कांट्रेक्ट फार्मिंग की वकालत करते दिखते हैं। कांट्रेक्ट फार्मिंग से उद्योगपति का फायदा होगा या किसान का? ऐसा नहीं कि हमने कांट्रेक्ट फार्मिग के बारे में पहली बार सुना है। 30 साल पहले पंजाब के किसानों ने पेप्सिको के साथ आलू और टमाटर उगाने के लिए समझौते किए और बर्बाद हो गए। वहीं, महाराष्ट्र के किसान कपास में बर्बाद हुए, जिससे आत्महत्याएं बढ़ीं। क्या इस अध्यादेश के तहत आपको (किसान को) समयदार (व्यापारी) के साथ लिखित समझौता रजिस्टर करना होगा। यह किसके लिए बना है, यह धारा 2 (एफ) से अंदाज होता है। जहां फार्म प्रोड्यूसिंग ऑर्गनाइजेशन (एफपीओ) को किसान माना गया है, वहीं धारा 10 में किसान और व्यापारी के बीच विवाद में बिचौलिए (एग्रीगेटर) के रूप में भी रखा है। अगर एफपीओ किसान है तो एग्रीगेटर बनकर अपने खिलाफ फैसला कैसे करेगा? धारा 3 (1) और 4 (1) में साफ है कि समझौते में फसल की गुणवत्ता, ग्रेडिंग और विशेष विवरण का हवाला दिया जाएगा, जिससे विवाद की गुंजाइश बनी रहेगी। धारा 3 (3) में लिखा है कि समझौता एक फसल से पांच साल तक का होगा और आगे अनिश्चितकाल के लिए बढ़ाया जा सकता है। धारा 5 के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और सीधे ऑनलाइन खरीद का प्रावधान है और बाजार भाव यानी मंडी रेट या ऑनलाइन रेट की गारंटी की बात कही गई है। सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) या स्वामीनाथम कमीशन के फॉर्मूले (सी2 के साथ 50 फीसदी मार्जिन) का जिक्र कहीं नहीं है। उपधारा 6 (2) में समयदार फसल तैयार होने से पहले फसल का मुआयना करेगा जिससे किसान पर व्यापारी हावी रहेगा। धारा 6 (4) के अनुसार, किसान को पैसा कब और कैसे दिया जाएगा, यह राज्य सरकार निर्धारित करेगी। आपसी विवाद सुलझाने के लिए 30 दिन के भीतर समझौता मंडल में जाना होगा। अगर वहां न सुलझा तो धारा 13 के अनुसार,एसडीएम के यहां मुकदमा करना होगा। एसडीएम के आदेश की अपील जिला अधिकारी के यहां होगी और जीतने पर किसान को भुगतान किए जाने का आदेश दिया जाएगा। इसकी वसूली के लिए जमीनी लगान की तरह की प्रक्रिया चलेगी। देश के 85 फीसदी किसानों के पास दो-तीन एकड़ की ही जोत है। समझौता करने के बाद विवाद होने पर वे अपनी पूंजी तो वकीलों पर ही उड़ा देंगे। आज किसान अपनी फसल औने-पौने दाम पर बेचकर गुजारा तो कर लेता है। कल को अपना पैसा वसूल करने में वर्षों लग जाएंगे।

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


वी.एम सिंह, https://www.outlookhindi.com/agriculture/nazariya/governments-steps-are-of-no-use-farmers-do-not-benefit-from-packages-and-ordinances-49645


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