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न्यूज क्लिपिंग्स् | गुजरात सरकार का तौकते राहत पैकेज प्रवासी मछुआरों की वास्तविकताओं से परे है

गुजरात सरकार का तौकते राहत पैकेज प्रवासी मछुआरों की वास्तविकताओं से परे है

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published Published on Sep 23, 2021   modified Modified on Sep 26, 2021

-द वायर,

मई के महीने में भारत के कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से गुजरते तौकते चक्रवात ने गुजरात में तबाही मचा दी थी. राज्य के मत्स्य व्यवसाय को इसके चलते अनुमानतः 160 करोड़ रुपये का भारी न
कसान
 झेलना पड़ा. हालांकि विशेषज्ञों का अनुमान है कि असल नुकसान इससे कई गुना ज्यादा है.

गुजरात सरकार द्वारा मछुआरों के साथ-साथ उनकी नावों एवं उपकरणों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए 105 करोड़ रुपये का राहत प
केज
 जारी किया गया. जो मछुआरे ऋण लेना चाहते थे, उनके लिए भी सरकार ने वित्तीय सहायता की घोषणा की. राहत पैकेज की राशि में से सरकार ने 80 करोड़ रुपये तो जाफराबाद, नवा बंदर, सैयद राजपाड़ा एवं शियालबेत तटों पर बने बंदरगाहों की मरम्मत और इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने के लिए दिए तथा वित्तीय राहत के लिए मात्र 25 करोड़ की राशि रखे गए.

हर जगह यह विवाद है कि वितरण के लिए निर्धारित वित्तीय राशि पर्याप्त है या नहीं, लेकिन घोषित किए गए राहत पैकेज के अपर्याप्त होने और कमियों की बात कोई नहीं कर रहा. इस पैकेज की परिकल्पना में ही गंभीर कमियां हैं जो इसके जमीनी अमल में बहुत-सी चुनौतियां पैदा कर रही हैं.

तौकते चक्रवात राहत पैकेज में मुआवजा प्राप्त करने के लिए पात्र व्यक्ति के निर्धारण हेतु किसी भी प्रक्रिया या दस्तावेज का उल्लेख नहीं है. ऊपर से देखने पर ऐसा लगेगा कि यह प्रक्रिया उन लोगों के लिए थोड़ी फ्लेक्सिबल होगी, जिनके पास दस्तावेजों का अभाव है. यह सुनिश्चित करती दिखती है कि कहीं वे लोग, जो असल में मुआवजे के योग्य हैं, अपना हक़ लेने से छूट न जाएं (ख़ासकर तब जब कितने ही मछुआरों ने चक्रवात के कारण सरकार द्वारा जारी किए गए उनके पहचान दस्तावेज गंवा दिए.)

लेकिन इस अपारदर्शी प्रक्रिया का परिणाम यह हुआ कि नकद राशि सहायता और आवास क्षति का मुआवजा प्राप्त करने की पात्रता निर्धारित करने के लिए राशन कार्ड का इस्तेमाल किया जा रहा है.

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (एनएफएसए)- जिसकी शुरुआत तो खाद्य सुरक्षा की कल्याणकारी पद्धति के रूप में हुई थी, लेकिन अंतत: यह अधिकार-आधारित पद्धति में बदल गया-  के अंतर्गत सभी संबंधित राज्य सरकारों को राशन कार्ड जारी करने थे. खाद्य सुरक्षा के इस नियम के राष्ट्रीय स्तर पर लागू होने के बावजूद गुजरात सरकार ने अनेकों बार इसे टालकर, अतिरिक्त समय मांगकर 2016 में ही इसे लागू किया.

अतः राहत पैकेज को राशन कार्ड के साथ जोड़कर बुनियादी स्तर पर कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि गुजरात में खाद्य सुरक्षा की मौजूदा प्रणाली और संरचना की स्थिति अच्छी नहीं है.

एनएफएसए के खराब अमल ने चक्रवात में हुए नुकसान के मुआवजे के रूप में मिल रही नकद सहायता एवं आवास क्षति मुआवजे के राहत वितरण पर विपरीत प्रभाव डाला है.

प्रवासी मछुआरों की असल स्थिति

सैयद राजपाड़ा धाराबंदर विस्तार, गुजरात के उना तहसील का एक प्रवासी मछुआरा गांव है, जहां धाराबंदर गांव  से मछुआरा समुदाय रोजगार के लिए आते हैं. वह  मछली पकड़ने के मौसम में आकर छोटे घर और झोंंपड़ियां बनाकर रहते और फिर अपने गांव लौट जाते हैं.

अपने काम की प्रवासी प्रवृत्ति के कारण मछुआरों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. हमारे समाज की मौजूदा व्यवस्था इस समुदाय के अस्तित्व को पहचानने और इनकी दिक्कतों की ओर पर्याप्त तरीके से ध्यान देने में असमर्थ है. इसके कारण इनकी दोनों मुआवजों, नकद राशि सहायता और आवास क्षति मुआवजा, लेने की पात्रता प्रभावित हुई है.

यह मुद्दे शियालबेत, जाफराबाद, छांछ बंदरगाह, धारा बंदरगाह, गिर सोमनाथ के सैयद राजपाड़ा, नवा बंदर एवं सिमर के विभिन्न मछुआरा संगठनों ने गांधीनगर के ‘मत्स्य आयुक्त’ (फिशरीज कमिश्नर) को उनके द्वारा लिखे गए मांग पत्रों में उठाए हैं.

राहत पैकेज के तहत नकद राशि में एक हफ़्ते की अवधि के लिए वयस्कों को 100 रुपये प्रतिदिन और किशोरों को 60 रुपये प्रतिदिन मिलने चाहिए थे, लेकिन यह राशि पाने के लिए उपयुक्त व्यक्तियों की पात्रता निर्धारित करने के लिए राशन कार्ड का उपयोग हुआ, जिसके कारण कई योग्य व्यक्ति इसकी सुविधा लेने से वंचित रह गए.

सैयद राजपाड़ा धाराबंदर विस्तार में 2011 के बाद से राशन कार्ड अपडेट नहीं किए गए हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि मछुआरा समुदाय के किसी भी सदस्य को 2013 के बाद वितरित किए गए नए एनएफएसए कार्ड नहीं मिल पाए हैं.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


द वायर, http://thewirehindi.com/187457/gujarat-s-tauktae-relief-package-ignores-everyday-realities-of-migrant-fisherfolk/
 

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