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न्यूज क्लिपिंग्स् | भारतीय रियल एस्टेट की रियल कहानी: क्यों आप अब भी एक अदद घर नहीं खरीद सकते

भारतीय रियल एस्टेट की रियल कहानी: क्यों आप अब भी एक अदद घर नहीं खरीद सकते

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published Published on Aug 12, 2020   modified Modified on Aug 14, 2020

-न्यूजलॉन्ड्री,

फिल्म निर्देशक बासू चटर्जी जिनका थोड़े समय पहले ही देहावसान हुआ, यथार्थ से जुड़ी फिल्में बनाने के लिए जाने जाते थे. उनकी कुछ कम प्रसिद्ध फिल्मों में से एक है 1986 में रिलीज हुई किराएदार. मुंबई में मकान किराए पर लेने की फ़ज़ीहत को दिखाती यह हिंदी सिनेमा की चंद फिल्मों में से एक है, जो एक किराएदार की अपने मकान मालिक से जद्दोजहद की कहानी कहती है. बल्कि फिल्म का शीर्षक गीत इसे फिल्म से भी बेहतर तरीके से बयान करता है, पूरा गीत संक्षिप्त विवरण है एक किराएदार की परेशानियों का.

भारत में किरायेदारों को एक बड़ी ज़मानती रकम से लेकर, मकान मालिकों की विकराल असुरक्षाओं और अहंकार से (सिर्फ इसलिए कि वह एक मकान के मालिक हैं) और पड़ोसी जो आप से सीधे मुंह बात नहीं करते क्योंकि आप एक किराएदार हैं, बहुत कुछ झेलना पड़ता है. यह सब झेलने के साथ-साथ अभिभावकों और रिश्तेदारों का बड़ा दबाव अलग से होता है कि घर खरीद के "सेटल" हो जाओ.

निःसंदेह इस इस बात का विपरीत भी उतना ही सच है जहां किराएदार मकान मालिकों का जीवन दूभर किए रहते हैं, वह चाहे बिना बात का उत्पात मचा रहे हों या समय आने पर घर खाली ना करके.

दिक्कत यह है कि भारत के अधिकतर शहरों में घरों की कीमतें 2002 से 2015 के बीच बहुत तेजी से बढ़ीं. कुछ जगहों पर कीमतों में थोड़ी गिरावट और बाकी जगह स्थिर बने रहने के बावजूद, आम भारतीय के लिए घरों की कीमतें अभी भी पहुंच के बाहर हैं.

पिछले दशक में मुझसे जो सवाल सबसे ज्यादा पूछा गया वह था कि घरों की कीमतें कब गिरेंगी? अगर कोई सामान्य अर्थशास्त्र और बाजार में मांग के नियम से देखे, तो घरों की कीमतों को अब तक काफी कम हो जाना चाहिए था, पर ऐसा हुआ नहीं. इसका कारण, जो हम आगे देखेंगे, है कि घरों की खरीद-फरोख्त का बाज़ार भारत में कम मांग और कम आपूर्ति वाला बनकर रह गया है (जी, आपने ठीक पढ़ा- कम मांग).

कोविड-19 के बाद पैदा हालात में चीजें क्या रूप लेंगी? कीमतों में कुछ कमी आना तो अवश्यंभावी है, पर क्या वह ग्राहकों को दोबारा बाजार में लाने के लिए पर्याप्त होगा, एकदम तो नहीं. साधारण सी बात है कि ऐसे समय में जब लोगों की नौकरियां जा रही हैं, उनकी आमदनी या तो गिर गई है या बढ़ती नहीं दिख रही और छोटे व्यापार लगातार बंद हो रहे हैं, केवल मकानों की गिरती कीमत लोगों को बाज़ार में नहीं ला सकती.

और इस सब से कहीं बढ़कर, भारत में रियल एस्टेट जगत के अंदर छिपा खुफ़िया तंत्र है, जो नहीं चाहता कि घरों की कीमतें गिरें.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


विवेक कौल, https://www.newslaundry.com/hindi/sena/indias-real-estate/


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