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न्यूज क्लिपिंग्स् | लॉकडाउन का असर मध्यप्रदेश के नवजात बच्चों पर भी, संस्थागत प्रसव में कमी

लॉकडाउन का असर मध्यप्रदेश के नवजात बच्चों पर भी, संस्थागत प्रसव में कमी

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published Published on Jun 18, 2020   modified Modified on Jun 19, 2020

-डाउन टू अर्थ,

मध्यप्रदेश के रीवा जिले के अंसरा गांव में गर्भवती महिला शिवजानकी (26) अपना प्रसव अस्पताल में कराना चाह रही थी। प्रसव पीड़ा से पहले एंबुलेंस बुलाने के लिए उनके पति मिथिलेश कोल ने कई फोन किए, लेकिन एंबुलेंस नहीं आई। थक-हारकर शिवजानकी का प्रसव घर में ही कराने का फैसला हुआ। 21 मई को शिवजानकी ने प्रियांशी को जन्म दिया। कोविड-19 महामारी से लड़ाई के लिए लगे लॉकडाउन की वजह से यह प्रसव सामान्य नहीं था। शिवजानकी का शरीर पोषण आहार न मिलने की वजह से काफी कमजोर हो गया था, जिसका असर बच्चे पर भी हुआ। प्रियांशी जन्म के बाद से ही काफी कमजोर दिख रही थी और उसका वजन मात्र 1.5 किलो था। 

पिता मिथिलेश बताते हैं कि बच्ची की हालत खराब देखकर उन्होंने चार हजार रुपए का कर्ज लेकर उसे 100 किलोमीटर दूर सरकारी संजय गांधी अस्पताल गए। मिथिलेश ने आरोप लगाया कि अस्पताल में चिकित्सकों ने कहा कि प्रियांशी का खून बदलना पड़ेगा जो कि काफी खर्चिला इलाज है और यह कहकर उन्हें लौटने को कहा गया। गांव लौटने के बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं के हस्तक्षेप के बाद एकबार फिर प्रिंयाशी को अस्पताल में भर्ती कराया गया। उसे खून की जरूरत थी जो कि रीवा कलेक्टर के हस्तक्षेप के बाद पूरी हुई।

दो सप्ताह से अधिक इलाज चलने के बाद प्रियांशी ने 13 जून को अपने जीवन के 23वें दिन में ही दम तोड़ दिया। अब मिथिलेश और शिवजानकी कोल पर 20 हजार का कर्ज चढ़ा है। अगर शिवजानकी का प्रसव संस्थागत प्रसव यानि अस्पताल में हुआ होता तो उसकी बच्ची तो जल्दी इलाज मिलना शुरू हो सकता है।

प्रियांशी की कहानी लॉकडाउन के दौरान मध्यप्रदेश में आम हो चली है। भोपाल स्थित गैर लाभकारी संस्था विकास संवाद ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के पोषण की स्थिति सामने आई। संस्था से जुड़े सचिन कुमार जैन बताते हैं कि जमीनी सर्वे से सामने आया कि 50 फीसदी बच्चे और 75 फीसदी तक गर्भवती महिलाएं जरूरी पोषण से दूर हैं। संस्थागत प्रसव में 50 फीसदी तक की कमी आई है। कोविड-19 त्रासदी की वजह से स्वास्थ्यकर्मी दूसरे कामों में व्यस्त हैं जिसकी वजह से टीकाकरण संबंधी काम भी प्रभावित हुआ है।

पन्ना जिले की शोभा गोंड ने 28 अप्रैल को घर में ही बच्चे को जन्म दिया। वह अपने पति के साथ दिहाड़ी मजदूरी का काम करती है। शोभा ने बताया कि उनकी प्रसव पूर्व कोई जांच नहीं हुई और न ही टीकाकरण हुआ। गर्भधारण की अवधि में मात्र एक महीने के पोषण आहार मिला। प्रसव के बाद स्वास्थ्य कार्यकर्ता या आंगनबाड़ी कार्यकर्ता में से कोई नहीं आया और उनके बच्चे का टीकाकरण भी नहीं हुआ है।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


मनीष मिश्रा, https://www.downtoearth.org.in/hindistory/health/women-health/institutional-deliveries-decreased-due-to-lockdown-in-madhya-pradesh-71808


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