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न्यूज क्लिपिंग्स् | अंधविश्वास के दौर में श्मशान की सैर

अंधविश्वास के दौर में श्मशान की सैर

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published Published on Mar 17, 2020   modified Modified on Mar 17, 2020

-द वायर,

बच्चों के स्कूल की पिकनिक या उनकी सैर किसी ऐतिहासिक स्थान पर या किसी हिल स्टेशन पर या समुद्र किनारे किसी मशहूर जगह पर जाती रहती है, इस बात से हरेक वाकिफ है, लेकिन अगर कोई स्कूल अपने बच्चों को श्मशान भूमि की सैर कराए तो आप क्या कहेंगे?

दरअसल पिछले दिनों सूबा महाराष्ट्र के सोलापुर जिले का एक छोटा स्कूल इसी वजह से अख़बारों की सुर्खियां बना, जब पता चला कि स्कूल के संचालकों ने विद्यार्थियों को अपने नगर के मोक्षभूमि की सैर कराई और उनके मन में उठते तमाम सवालों के जवाब दिए.

मुख्यतः वंचित तबकों के विद्यार्थियों के लिए चल रहे इस स्कूल के बच्चों की इस अलग किस्म की ‘पिकनिक’ में स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी भरपूर सहयोग दिया. दरअसल इस सैर का मकसद बच्चों में वैज्ञानिक नज़रिया विकसित करना था.

मालूम हो कि समाज में श्मशान को लेकर तरह तरह की भ्रांतियां मौजूद रहती है. मनुष्य की हड्डियों में मौजूद फास्फोरस धातु के चलते वहां पड़ी लाशों में अचानक आग लगने की परिघटना सामने आती है, जिससे ऐसी भ्रांतियों को मजबूती मिलती है. और भूत-प्रेत की तमाम कहानियां भी मनुष्यों के मन को इस कदर डर से भर देती हैं कि इन सभी मामलों में वस्तुनिष्ठ विश्लेषण भी नहीं हो पाता.

बचपन से ही डर के यह संस्कार बच्चों के मन में अंकित किए जाते रहते हैं. अपने परिवार के किसी आत्मीय की अचानक मौत भी उन्हें अंदर से विचलित किए रहती है. इन्हीं मसलों को संबोधित करने के लिए इसका आयोजन हुआ.

यह एक सकारात्मक है कि स्नेहग्राम प्रकल्प के तहत इस स्कूल के इस कदम की तारीफ हो रही है और इलाके के अन्य स्कूल भी ऐसे कदम के बारे में सोचते दिखाई दे रहे हैं.

वैसे श्मशान भूमि की ऐसी ‘सैर’ का यह पहला प्रसंग नहीं है, भले ही इस सैर में बच्चे नहीं बल्कि बुजुर्ग शामिल रहे हों.

मिसाल के तौर पर डेढ़ साल पहले आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी जिले के पलाकोले विधानसभा से चुने गए तेलुगूदेशम के विधायक निम्मला रामा नायडू अपनी ऐसी कार्रवाई से राष्ट्रीय सुर्खियों में आए, जब उन्होंने निर्माण मजदूरों में फैले भूत-प्रेत के डर को दूर करने के लिए यह अनोखा कदम उठाया.

अपनी चारपाई लेकर वह एक शाम श्मशान में सोने चले गए और इस बात का भी ऐलान कर दिया कि वह अगले कुछ दिनों तक यही करने वाले हैं.

दरअसल सरकार द्वारा इस श्मशान के आधुनिकीकरण के लिए धनराशि आवंटित होने पर सबसे बड़ी बाधा यह आयी कि इस काम के लिए कोई ठेकेदार नहीं तैयार हुआ और जब अंततः तैयार हुआ तो श्मशान में अधजले शव को देखकर निर्माण मजदूरों ने वहां लौटने का नाम ही नहीं लिया.

इसी तरह हम याद कर सकते हैं कि कर्नाटक में जिन दिनों कांग्रेस का शासन था और सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे, तब उन दिनों भूतों-प्रेतों के ‘अस्तित्व’ या उनके ‘विचरण’ को लेकर समाज में व्याप्त भ्रांत धारणाओं को चुनौती देने के लिए कर्नाटक के बेलागावी सिटी कार्पोरेशन के अंतर्गत आते वैकुंठ धाम श्मशान में कर्नाटक के एक्साइज मंत्री सतीश जरकीहोली ने सैकड़ों लोगों के साथ रात बिताई थी और वहां भोजन भी किया था.

पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


सुभाष गताड़े, http://thewirehindi.com/113335/maharashtra-school-children-s-trip-to-crematorium-to-fight-superstitions/


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