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न्यूज क्लिपिंग्स् | ग्राउंड जीरो: गुम है रोशनी कहीं

ग्राउंड जीरो: गुम है रोशनी कहीं

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published Published on Sep 6, 2021   modified Modified on Sep 8, 2021

-आउटलुक,

“दुनिया के सामने तालिबान की पेश हुई उदार छवि उसके सत्ता कब्जाने के तरीके से कैसे हवा हुई और अफगानी समाज के विभिन्न तबकों का नजरिया क्या”

हम पर और ताजा-ताजा कब्जे वाले काबुल पर पूरी दुनिया की नजर है। लेकिन 18 अगस्त को राजधानी से 240 किमी. उत्तर-पश्चिम के शहर से ऐसी खबर आई, जो बताती है कि अफगानिस्तान में आगे क्या होने वाला है। पहाड़ियों और रहस्यमय गुफाओं की इसी ऊंची-नीची सरजमीं में मार्च 2001 में बामियान में छठी सदी की बुद्ध की विशालकाय मूर्ति ढहाकर तालिबान ने इतिहास को चुनौती दी थी। अब बुधवार को अब्दुल अली मजारी की मूर्ति के साथ भी वही हुआ। मजारी बुद्ध तो नहीं मगर मध्यमार्गी थे, संघवाद और बराबरी के पैरोकार थे। वे अंतहीन गृहयुद्ध का खात्मा चाहते थे। 1995 में उनकी निमर्म हत्या कर दी गई थी।  

इधर काबुल में लोग डरे हुए हैं। अपने कब्जे वाले इलाकों में तालिबान लोगों के साथ जो सलूक कर रहे हैं, उसके वीडियो क्लिप तेजी से वायरल हो रहे हैं। अब काबुल में भी तालिबान का कब्जा है तो लोगों को लग रहा है कि वही हश्र उनके साथ भी हो सकता है। टॉर्चर, सैनिकों के सिर कलम किए जाने की तथाकथित खबरें, तस्वीरें और वीडियो हमें डरा रही हैं। यह सब कितना बर्बर और वहशियाना है।

20 वर्षों तक मुक्त समाज में रहने के बाद क्या यह बर्बरता फिर हमारे ऊपर हावी हो जाएगी? हममें से अनेक के लिए यह ऐसा दुःस्वप्न है जिसकी कभी कल्पना नहीं की थी। मैं अन्य अनेक लोगों की तुलना में भाग्यशाली हूं। काबुल में मैं अकेला हूं। मेरे करीबी रिश्तेदार विदेश में हैं। लेकिन मैं दोस्तों और सहकर्मियों की हालत देख सकता हूं जिनकी पत्नी, बच्चे, माता-पिता और दूसरे रिश्तेदार अफगानिस्तान में ही हैं।

मेरी महिला मित्र खास तौर से भयभीत हैं। वे जानती हैं कि उनकी पढ़ाई-लिखाई और उनका करियर बुरी तरह प्रभावित होने वाला है (हालांकि अभी तक तालिबान ने कहा है कि लड़कियों की पढ़ाई नहीं रोकी जाएगी। महिलाओं से भी सरकार के साथ काम करने को कहा गया है)। हममें से कोई भी नहीं मानता कि तालिबान बदल गए हैं। कुछ लोग भले ही कहते हों कि यह मुल्ला उमर का तालिबान नहीं है, लेकिन वे बदले नहीं हैं। हमें इस बात में जरा भी यकीन नहीं कि वक्त के साथ तालिबान भी बदल गए हैं। दोहा में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने तालिबान अलग चेहरा दिखा रहे हैं, लेकिन अफगानिस्तान में वे उसी पुराने अवतार में हैं।

किसी ने भी नहीं सोचा था कि सरकार इतनी आसानी से समर्पण कर देगी। हम जब भी सरकार में बैठे लोगों और मंत्रियों से बात करते, तो वे बड़े भरोसे से कहते कि अफगान नेशनल डिफेंस ऐंड सिक्योरिटी फोर्स (एएनडीएसएफ) शहरों की सुरक्षा करने के लिए तैनात है। सभी नागरिक सरकार के साथ थे। हेरात में जब शुरू में तालिबान को अफगान सेना ने पीछे धकेल दिया, तब आम लोग सड़कों पर और छतों पर निकल आए और अल्ला-हू-अकबर का नारा लगाने लगे। काबुल में रक्षा मंत्री के निवास पर हमले के बाद सुरक्षाबलों ने तालिबान लड़ाकों को मार गिराया, तब भी अल्ला-हू-अकबर का नारा गूंजा।

किसी ने कल्पना नहीं की थी कि सेना इस तरह हथियार डाल देगी। चंद रोज पहले कई पत्रकारों के दल ने पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई से मुलाकात की थी। हम कई वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारियों से भी मिले थे। उन्होंने कहा था कि काबुल पर तालिबान आसानी से कब्जा नहीं कर सकेंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि एएनडीएसएफ गजनी में भी तालिबान से लड़ेगी। लेकिन हुआ क्या? तालिबान एक के बाद एक शहरों में घुसते गए और सुरक्षाबलों के जवान हथियार डालते गए। कुंदूज, हेरात, गजनी, निमरोज, फराह, घोर सभी शहर तालिबान के नियंत्रण में चले गए। कंधार में जरूर लड़ाई की खबरें आईं। काबुल से करीब 70 किलोमीटर दूर लोगार प्रांत में भी युद्ध हुआ। लोग अशरफ गनी की सरकार से नाराज हैं। वे अमेरिका से भी इस हाल में छोड़ देने के लिए खफा हैं। अफगानिस्तान दशकों से महाशक्तियों के लिए खेल का मैदान रहा है। उसमें हमें प्यादे की तरह इस्तेमाल किया गया। पहले रूस को दूर रखने के लिए ‘ग्रेट गेम’ खेला गया। फिर एंगलो-अफगान युद्ध हुआ। अमेरिका और सोवियत संघ के शीत युद्ध में भी हमें इस्तेमाल किया गया। सोवियत सेना के चले जाने के बाद अमेरिका की भी अफगानिस्तान में दिलचस्पी नहीं रह गई। उन्होंने दोबारा अपने सैनिक 9/11 घटना के बाद ओसामा बिन लादेन को पकड़ने के लिए भेजे। बदला ले लिया, तो देश छोड़कर जा रहे हैं। अमेरिका अपनों को निकालने के लिए अतिरिक्त सैनिक भेज रहा है, लेकिन हमारे लोगों का क्या जो तालिबान का कहर झेलेंगे? क्या अफगानियों का जीवन महत्वपूर्ण नहीं?

हालात जटिल हैं। कोई नहीं जानता कि कौन किसके लिए काम कर रहा है। परस्पर विरोधी शक्तियां छद्म युद्ध के लिए अफगानिस्तान का इस्तेमाल करती रही हैं। उत्तर में अनेक जगहों पर अफगान सेना ने बिना किसी प्रतिरोध के समर्पण कर दिया।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


असद कोशा, https://www.outlookhindi.com/story/most-people-in-cities-are-anti-taliban-3129


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